बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
महापंडित राहुल सांकृत्यायन का जन्म 9 अप्रैल 1893 को उत्तर प्रदेश के आजमगढ़ में हुआ था। राहुल सांकृत्यायन का बचपन अपने नाना के गांव पदहा में बीता था।तीसरी कक्षा की उर्दू पुस्तक में राहुल ने एक शे’र पढ़ा था-सैर कर दुनियाँ की गाफिल जिंदगानी फिर कहाँ, जिंदगी गर कुछ रही तो नौजवानी फिर कहाँ। इस शे’र ने इनकी पूरी जिंदगी बदल दी। ग्यारह-बारह साल की उम्र में घर से 22 रुपये लेकर राहुल भाग खड़े हुए दुनिया की सैर करने को। वैसे उनका नाम केदारनाथ पांडेय था।
बाद में उन्हें लोगों ने दामोदर स्वामी कहना शुरू किया। सन 1930 में जब उन्होंने श्रीलंका में बौद्ध धर्म स्वीकार किया, तो अपना नाम महात्मा बुद्ध के बेटे राहुल के नाम पर रख लिया। राहुल के साथ अपने सांकृत्य गोत्र को भी जोड़कर राहुल सांकृत्यायन बन गए। राहुल सांकृत्यायन आजीवन घुमक्कड़ ही रहे। विभिन्न देशों की यात्राएं की। राहुल ने भारत के प्राचीन इतिहास पर बहुत काम किया।
उन्होंने विश्व प्रसिद्ध पुस्तक ‘वोल्गा से गंगा’ लिखी, जो आज भी बडे़ चाव से पढ़ी जाती है। इसके अलावा भागो नहीं, दुनिया को बदलो, तुम्हारी क्षय हो, मानव समाज जैसी न जाने कितनी पुस्तकों की रचना की। वह जब भी मास्को, लंदन, कोरिया, तिब्बत, चीन, लद्दाख, मास्को, यूरोप की यात्रा की, वहां से कुछ न कुछ ज्ञान लेकर लौटे। कहा जाता है कि उन्होंने डेढ़ सौ से अधिक पुस्तकों की रचना की, लेकिन प्रकाशित केवल 129 पुस्तकें ही हुई हैं।
राहुल जी ने हिंदी साहित्य के अतिरिक्त धर्म, दर्शन, लोक साहित्य, यात्रा साहित्य, जीवनी, राजनीति, इतिहास, संस्कृत ग्रंथों की टीका और अनुवाद, कोश, तिब्बती भाषा आदि विषयों पर अधिकार के साथ लिखा है। हिंदी भाषा और साहित्य के क्षेत्र में राहुल जी ने 'अपभ्रंश काव्य साहित्य', 'दक्खिनी हिंदी साहित्य', 'आदि हिंदी की कहानियाँ' प्रस्तुत कर लुप्तप्राय निधि का उद्धार किया है।
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