बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
राजा भोज परमार वंश के शासक थे। उनकी राजधानी का नाम धारानगरी था। कहा जाता है कि उनका राज्य उत्तर में चितौड़ से लेकर दक्षिण में उत्तरी कोंकण और पूर्व में विदिशा से लेकर पश्चिम में साबरमती नदी तक फैला हुआ था। राजा भोज ने अपने आसपास के राजाओं से अलग-अलग युद्ध में विजय प्राप्त की थी, लेकिन वह चंदेल सम्राट विद्याधर वर्मन से युद्ध में पराजित हो गए थे।
वह चंदेल सम्राट के आधीन राजा होकर रह गए थे। राजा भोज के शासनकाल के बारे में एक किंवदंती है कि उनके राज्य में सभी लोग पढ़े लिखे थे। कोई भी अनपढ़ नहीं था। यह बात कितनी सही है, यह तो इतिहासकार ही बता सकते हैं। उन्होंने अपने शासनकाल में प्रजा के हित में काफी कार्य किए थे। राजा भोज बहुत बड़े वीर और प्रतापी होने के साथ-साथ प्रकाण्ड पंडित और गुणग्राही भी थे।
इन्होंने कई विषयों के अनेक ग्रंथों का निर्माण किया था। इन ग्रंथों की चर्चा आज भी की जाती है। राजा भोज बहुत अच्छे कवि, दार्शनिक और ज्योतिषी थे। कहा जाता है कि सरस्वतीकंठाभरण, शृंगारमंजरी, चंपूरामायण, चारुचर्या, तत्वप्रकाश, व्यवहारसमुच्चय आदि अनेक ग्रंथ इन्होंने ही लिखे थे। इनके राज्य में विद्वानों का जमघट लगा रहता था। यह विद्वानों का बड़ा आदर करते थे। इनकी पत्नी का नाम लीलावती था जो बहुत बड़ी विदुषी थी। धर्मशास्त्र पर भोजदेव कृत ‘पूर्तमार्तण्ड' नामक ग्रंथ है।
इसके अतिरिक्त उन्होंने धर्मशास्त्र सम्बन्धी और ग्रंथ भी लिखे थे, क्योंकि इसका उल्लेख अनेक सुप्रसिद्ध धर्मशास्त्र ग्रंथकारों ने अपने ग्रंथों में किया है। दक्षिण कल्याणपुर के चालुक्यवंशी प्रसिद्ध राजा विक्रमांकदेव के मंत्री भट्टविज्ञानेश्वर ने याज्ञवल्लक्य स्मृति पर मिताक्षरी व्याख्या की है। भोजदेव ने 'चाणक्य राजनीतिशास्त्र' नामक ग्रंथ भी लिखा। राजा भोज आज भी अपने ग्रंथों और विद्वता के लिए प्रसिद्ध हैं।
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