अशोक मिश्र
किसी दार्शनिक ने कहा है कि मूर्ख व्यक्ति से बहस नहीं करनी चाहिए क्योंकि वह आपकी सही बात को भी गलत ठहरा देंगे। यह बात सामान्य जीवन में भी कई बार सच साबित होती है। मूर्ख व्यक्ति पहले तो ज्ञानी व्यक्ति को बातचीत के दौरान अपने स्तर पर ले आएगा और फिर अपनी मूर्खतापूर्ण बातों से ज्ञानी को हरा देगा। इस संदर्भ में एक बहुत ही रोचक कथा कही जाती है।
एक बार की बात है। चार मेंढक एक बड़े से लट्ठे पर बैठे हुए थे। यह लट्ठा नदी में पड़ा हुआ था। तभी नदी का जलस्तर बढ़ने लगा और लट्ठा पानी में बहने लगा। मेंढकों को बहुत आनंद आया। यह एक अनोखी यात्रा थी। इससे पहले लट्ठे या किसी दूसरी वस्तु पर बैठकर मेंढकों ने यात्रा नहीं की थी। यह देखकर एक मेंढक ने खुशी से चिल्लाते हुए कहा कि नदी के पानी में गति होने की वजह से देखो, हम जिस लट्ठे पर बैठे हैं, वह बहा जा रहा है।
यह सुनकर दूसरे मेंढक ने कहा कि तुम्हें मालूम ही नहीं है। गति पानी में नहीं है, गति लट्ठे में है। इसी वजह से यह लट्ठा तैरता जा रहा है। यह ठीक उसी तरह तैर रहा है जिस प्रकार तालाब या नदी में मगरमच्छ आदि तैरते हैं। यह सुनकर तीसरा मेंढक बोल उठा-तुम सब लोग पागल हो। भला पानी या लट्ठे में गति हो सकती है क्या?
दरअसल,सच तो यह है कि हमारे विचारों में गति है जिसकी वजह से हमें लट्ठा घूमता प्रतीत होता है। यदि हमारे विचारों में गति नहीं होती, तो हमें यह लट्ठा बहता हुआ नहीं दिखता। जब मामला नहीं सुलझा, तो तीनों मेंढकों ने चौथे से पूछा। उसने कहा कि तुम सबकी बात सही है। पानी में गति है,लट्ठे में गति है, विचारों में गति है। यह सुनकर तीनों मेंढकों को गुस्सा आया। उन्होंने आपस में मिलकर चौथे मेंढक को नदी में ढकेल दिया।
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