अशोक मिश्र
हमारे देश में यह बहुत पुरानी मान्यता रही है कि सबको अपने-अपने धर्म का पालन करना चाहिए। यहां धर्म का मतलब रिलीजन या धार्मिक मान्यताओं से नहीं है। यहां धर्म का मतलब अपने कर्तव्य से है। यदि किसी व्यक्ति का पेशा रात भर चौकीदारी करने का है, तो उसे अपने कर्तव्य का पालन बड़ी ईमानदारी से करना चाहिए।
प्राचीन पुस्तकों में यह भी कहा गया है कि जो व्यक्ति अपने काम को ईमानदारी से नहीं करता है, वह समाज में अच्छा इंसान नहीं माना जाता है। इस बात को एक कथा के माध्यम से भी समझाया जा सकता है। किसी गांव में एक धोबी रहता था। उसने अपने घर की रखवाली के लिए कुत्ता पाल रखा था। इतना ही नहीं, उसने कपड़ों को घाट तक लाने-ले जाने के लिए एक गधा भी पल रखा था।
धोबी जब गधे और कुत्ते को खाना देता, तो कुत्ते को गुस्सा आ जाता था। वह सोचने लगता था कि गधे को ज्यादा खाना क्यों दिया। रोज यह भेदभाव देखने की वजह से कुत्ता अपने मालिक से नाराज हो गया। एक दिन धोबी के घर में कुछ चोर घुस आए। उन्होंने घर का सारा सामान समेटा और रफूचक्कर हो गए। उस समय घोबी अपने घर में ही सोया हुआ था, लेकिन उसे चोरी होने की खबर ही नहीं हुई।
चोरों को घर में घुसते हुए गधे और कुत्ते ने देख लिया था। गधे ने कुत्ते से कहा कि उसे इस समय भौंकना चाहिए, ताकि मालिक जाग जाएं। इस समय उसका चुप रहना उचित नहीं है। लेकिन कुत्ता नहीं भौंका। यह देखकर गधे ने रेंकना शुरू कर दिया। धोबी उठा, तो उसने पाया कि चोर सब कुछ लेकर जा चुके हैं। धोबी ने उठाया डंडा और गधे को मार-मार कर लहूलुहान कर दिया। इसके बाद कुत्ते का नबंर आया। थोड़ी देर दोनों घायल पड़े थे। एक को मार इसलिए पड़ी क्योंकि उसने दूसरे का धर्म निभाया था। दूसरे को मार इस वजह से पड़ी कि उसने अपने धर्म का निर्वाह नहीं किया था।
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