बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
कहा जाता है कि आदमी यदि अपने बुजुर्ग माता-पिता की सेवा नहीं करता है, उनका अनादर करता है, तो वह इंसान कहलाने लायक नहीं होता है। माता-पिता की सेवा ही सबसे बड़ा पुण्य माना जाता है। एक बार की बात है। किसी गांव में एक किसान रहता था। उसने अपने परिवार का बहुत अच्छी तरह से पालन पोषण किया।
जीवन भर उसने कठिन परिश्रम करके परिवार को सम्मानजनक तरीके से रहने की व्यवस्था की थी। समय के साथ एक दिन ऐसा भी आया जब वह बूढ़ा हो गया। अब किसान किसी काम का नहीं रह गया। वह घर में दिन भर बैठा रहता था। उसका बेटा अब अपने पिता की जगह पर खेतों में काम करने लगा था।
रोज अपने पिता को खाली बैठा देखकर उसे बहुत चिढ़ पैदा होने लगी थी। वह यह भी भूल गया था कि उसके इसी पिता ने उसका पालन-पोषण किया था। जब वह बच्चा था, तो उसकी देखभाल की थी। वह अपने पिता के किए गए उपकारों को भूल चुका था। जब भी वह अपने बुजुर्ग पिता को देखता, तो मन ही मन यही सोचता था कि यह बैठे-बैठे खा रहा है। अब तो इसे मर जाना चाहिए। फालतू में जी रहा है। एक दिन बेटे ने कुछ निश्चय करके उसने लकड़ी का एक ताबूत बनवाया।
उसने उस ताबूत में अपने पिता को डालकर वह खेतों के पास पहाड़ी पर ले गया। जब वह ताबूत को पहाड़ी से नीचे फेंकने ही वाला था कि ताबूत में खटखटाने की आवाज आई। उसने ताबूत खोला, तो उसके पिता ने कहा कि मैं जानता हूं कि तुम मुझे पहाड़ी से फेंकने वाले हो। इस सुंदर ताबूत को खराब करने की क्या जरूरत है। मुझे ऐसे ही फेंक दो। यह ताबूत तुम्हारे बेटे के काम आएगा। यह सुनकर बेटे को बड़ी लज्जा आई। वह फूट-फूटकर रोने लगा। उसने पिता से क्षमा मांगी और उसे वापस घर ले आया।
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