Thursday, November 6, 2025

महाराजा रणजीत सिंह की दयालुता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महाराणा रणजीत सिंह को शेर-ए-पंजाब का खिताब दिया गया था। वह अपने समय के सबसे लोकप्रिय महाराजा थे। रणजीत सिंह ने कई रियासतों में बंटे पंजाब को एक करके अंग्रेजों के खिलाफ जीवन भर लड़ाई लड़ी। सन 1780 में रणजीत सिंह का जन्म गुजरांवाला (अब पाकिस्तान) में महाराजा महा सिंह के घर में हुआ था। 

चेचक की वजह से रणजीत सिंह की एक आंख चली गई थी। जब वह बारह साल के थे, तो उनके कंधे पर शासन का कार्यभार आ गया था। एक बार की बात है। महाराजा रणजीत सिंह अपने लश्कर के साथ कहीं जा रहे थे। जब वह एक बाग के नजदीक से गुजर रहे थे, तो उनके सिर पर एक पत्थर आ लगा। उनके सिर से खून बहने लगा। सैनिकों ने तत्काल पत्थर मारने वाले की खोज शुरू की। 

थोड़ी देर बाद सैनिक एक बुजुर्ग महिला को पकड़कर लाए। महिला डर से थर थर कांप रही थी। सैनिकों ने उस महिला से पूछा-तुमने पत्थर क्यों मारा? तब तक महाराजा रणजीत सिंह भी उस बुजुर्ग महिला के पास पहुंच चुके थे। उस महिला ने कांपते हुए कहा कि महाराज! मेरे घर में दो छोटे-छोटे बच्चे हैं। उन्होंने दो दिन से कुछ नहीं खाया है। मैं भोजन की तलाश में घर से निकली थी। 

किसी के यहां से कुछ खाने को नहीं मिला, तो इस बाग से कुछ फल तोड़ने का प्रयास कर रही थी ताकि बच्चों का पेट भरा जा सके। लेकिन यहां भी मेरे दुर्भाग्य ने आ घेरा। वह पत्थर आपको लग गया। महाराजा रणजीत सिंह उस महिला के पास गए और उसको सांत्वना देते हुए अफसरों से कहा कि माता जी को कुछ अशर्फियां देकर सम्मान के साथ विदा कर दो। लोगों को ताज्जुब हुआ कि यह कैसा न्याय है? एक सैनिक ने कहा कि वह तो सजा की हकदार थी। रणजीत सिंह ने हंसते हुए कहा कि पत्थर मारने पर जब पेड़ भी फल देता है, मैं तो मनुष्य हूं।

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