Friday, November 7, 2025

साधु वेश का अपमान होता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

रामपुर रियासत की स्थापना राम सिंह ने की थी। 1774 में जब नवाब फैजुल्लाह खान ने सत्ता संभाली, तो इसके नाम में कोई बदलाव नहीं किया। राजा राम सिंह की कई पीढ़ी बाद कोई राजा रणवीर सिंह हुए हैं। कहा जाता है कि वह बहुत दयालु, प्रजावत्सल और कला पारखी थे। उनके दरबार में कलाकारों, साहित्यकारों और बुद्धिजीवियों का बड़ा सम्मान होता था। वह कला प्रेमी थे। एक दिन की बात है। 

जब वह अपने दरबार में बैठे राज्य की समस्याओं पर विचार-विमर्श कर रहे थे। उसी समय एक बहुरूपिया महादेवी का रूप धर पहुंचा। दरबारियों ने उसे देखा तो वह आश्चर्यचकित हो गए क्योंकि इससे पहले बिना कोई सूचना दिए महारानी दरबार में नहीं आई थीं। लेकिन कुछ देर बाद बहुरूपिया अपने असली वेष में आ गया। उसकी कला से राजा बहुत प्रसन्न हुए। 

उन्होंने उसे खूब इनाम देते हुए कहा कि तुम साधु का रूप धरो और मैं पहचान पाऊं, तब तुम्हारी कला का लोहा मान लूंगा। बहुरूपिये ने कहा-ठीक है। इस बात को दो महीने बीत गए। एक दिन नगर में चर्चा चली कि एक साधु सेठ की बगिया में ठहरा हुआ है। वह लोगों के भाग्य बताता है, लेकिन लेता कुछ नहीं है। यह चर्चा राजा तक पहुंची। वह ढेरा सारा उपहार लेकर साधु से मिलने पहुंचा। 

राजा ने साधु को ढेर सारा उपहार भेंट किया, लेकिन साधु ने बड़े आदर से लौटा दिया। दूसरे दिन बहुरूपिया राजमहल पहुंचा और कहा कि आप कल मुझे पहचान नहीं पाए। राजा प्रसन्न हुआ। उसने खूब ईनाम दिया और पूछा कि कल तुम्हारे पर खूब स्वर्णाभूषण और पैसे मैं दे रहा था, लेकिन तुमने क्यों नहीं लिया? बहुरूपिये ने कहा कि यह वह मैं स्वीकार कर लेता, तो उस रूप का अपमान होता। साधु के वेश में मैं वह सब कैसे ले सकता था। यह सुनकर राजा और भी खुश हुआ।

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