अशोक मिश्र
सत्य सापेक्ष होता है। जो व्यक्ति किसी वस्तु या विचार को देखते है, तो वह अपने नजरिये के अनुसार पाता है। जो बात किसी व्यक्ति के लिए सत्य हो सकती है, वह किसी दूसरे व्यक्ति के लिए असत्य हो सकती है। जो आग किसी व्यक्ति को जला सकती है, वही आग ठंड से ठिठुरते व्यक्ति को राहत दे सकती है। जबकि दोनों मामलों में आग एक ही है। इस संबंध में एक रोचक कथा है। किसी शहर में एक हाथी आया।
उस शहर के लोगों ने पहली बार हाथी देखा था। इसकी खूब चर्चा हुई। यह चर्चा उड़ती हुई अंधे लोगों के एक समूह तक पहुंची। अंधे लोगों ने आपस में विचार किया कि शहर में एक अजीबोगरीब जानवर आया है, जिसे हाथी कहा जाता है। लेकिन उन अंधे लोगों को हाथी का आकार-प्रकार नहीं पता था। वह भिन्न प्रकार के आकार-प्रकार की कल्पना करने लगे। काफी सोच विचार और मंथन के बाद अंधे लोगों के समूह ने फैसला किया कि एक बार हमें हाथी को छूकर देखना चाहिए।
बेकार की कल्पना करने से बेहतर है कि हम उसे छूकर उसकी सच्चाई का पता लगाएं। इसलिए उन्होंने हाथी के मालिक से मिलने का फैसला किया। आखिर में उन्हें मालिक से हाथी को छूने की इजाजत मिल गई। पहले व्यक्ति का हाथ सूंड पर पड़ा। उसने कहा, हाथी एक मोटे साँप जैसा है। दूसरे व्यक्ति का हाथ उसके कान तक पहुँचा, उसे वह एक पंखे जैसा लगा। एक और व्यक्ति का हाथ पैर पर था।
उसने कहा, हाथी पेड़ के तने जैसा है। इस तरह सभी अंधों ने हाथी के विभिन्न अंगों को छुआ और उसके मुताबिक ही हाथी का आकार बताया। वैसे जिसने हाथी देखा है, वह जानता है कि हाथी कैसा होता है, लेकिन अंधों ने जैसा महसूस किया था, उनके लिए वही सत्य था।
No comments:
Post a Comment