Sunday, November 9, 2025

वायलिन के मधुर संगीत में खो गए श्रोता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

निकोलो पगनिनी इटली के महान वायलिन वादक थे। इनका जन्म 27 अक्टूबर 1782 को इटली के जेनोआ में हुआ था। पगनिनी के पिता ने इन्हें बचपन से ही वायलिन बजाना सिखा दिया था। कहते हैं कि 12 साल की उम्र में इन्होंने सार्वजनिक मंच पर अपनी कला का प्रदर्शन किया था। 

उन्होंने हार्मोनिक्स, डबल और ट्रिपल स्टॉप्स और अन्य तकनीकों का उपयोग करके वायलिन की तकनीकी सीमाओं का विस्तार किया। उनकी रचनाएं इतनी जटिल थीं कि शुरू में केवल वे ही उन्हें बजा सकते थे। एक बार की बात है। उन्हें एक महत्वपूर्ण स्थान पर वायलिन बजाने का आमंत्रण मिला। वह इस आयोजन को लेकर बहुत उत्साहित थे। 

आखिरकार, वह दिन आ ही गया, जिस दिन उन्हें अपनी कला का प्रदर्शन करना था। इस आयोजन के लिए पगनिनी ने काफी तैयारी भी की थी। कार्यक्रम स्थल पर पहुंचने पर उनका भव्य स्वागत किया गया। यह देखकर पगनिनी की आंखों में आंसू आ गए। वह अपनी आंखें बंदकर वायलिन बजाने लगे। वहां मौजूद लोग उस वायलिन की धुन में खो गए। 

वायलिन बजाने में पगनिनी इतना खो गए थे कि उन्हें पता ही नहीं चला कि वायलिन का एक तार टूट गया है। कुछ देर बाद उन्हें और श्रोताओं को लगा कि मधुर संगीत में बदलाव आ गया है। इसके बाद भी वह रुके नहीं। थोड़ी देर बाद वायलिन का दूसरा तार भी टूट गया। पगनिनी ने वायलिन बजाना बंद कर दिया, तभी एक श्रोता ने कहा कि बजाइए, अभी एक तार बाकी है। पगनिनी ने आंखें बंद की और एक तार पर ही वायलिन बजाने लगे। संगीत सुनते ही श्रोता मंत्रमुग्ध होकर सुनने लगे। बाद में पगनिनी ने कहा कि आत्मविश्वास और कार्य के प्रति सच्ची भावना के कारण ही यह संभव हुआ।

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