Saturday, November 1, 2025

हरियाणा के कई जिलों में गंभीर स्तर पर पहुंचा प्रदूषण, घुटने लगी सांस

अशोक मिश्र

हमारे देश प्रदेश में विकास की रफ्तार बहुत तेज रही है। हर तरफ आलीशान इमारतें, चौड़ी-चौड़ी सड़कें और जरूरत की वस्तुओं से सजे बाजार देखने को मिल जाएंगे। ज्यादातर शहरों में सुबह शाम वाहनों की लंबी-लंबी कतारें अब तो आम बात हो गई है। इस विकास की जनता को भारी कीमत भी चुकानी पड़ रही है। वायु, जल और मृदा प्रदूषण ने जीवन को सांसत में डाल दिया है। 

हरियाणा, पंजाब, उत्तर प्रदेश और दिल्ली जैसे कई राज्य प्रदूषण की समस्या से जूझ रहे हैं। हरियाणा में ही वीरवार को रोहतक और धारूहेड़ा का वायु गुणवत्ता सूचकांक देश में सबसे ज्यादा पहुंच गया था। रोहतक का वायु गुणवत्ता सूचकांक (एक्यूआई) 426 और धारूहेड़ा का एक्यूआई 406 तक पहुंच गया था। यह सबसे खतरनाक स्थिति मानी जाती है। इतनी प्रदूषित में लोगों की सांस घुटने लगती है। हालात गैस चैंबर जैसे बन जाते हैं। स्वस्थ लोगों को भी कई तरह की बीमारियों का शिकार बनना पड़ता है। 

पिछले चौबीस घंटों में प्रदेश के कई शहरों की हालत काफी खराब थी। प्रदेश के नौ जिलों में एक्यूआई बहुत खराब रहा। जींद में 347, चरखी दादरी में 392, सोनीपत में 350, बहादुरगढ़ में 344, बल्लभगढ़ में 320, पानीपत में 283, मानेसर में 280, गुरुग्राम में 248 और भिवानी में 264 एक्यूआई दर्ज किया गया था। दीपावली के बाद से ही प्रदेश के कई जिलों में ऐसी स्थिति बनी हुई है। वायु प्रदूषण के चलते सरकारी और निजी अस्पतालों में सांस, हृदय और त्वचा से जुड़ी बीमारियों के मरीज काफी संख्या में आ रहे हैं। 

इन मरीजों में सबसे ज्यादा संख्या बच्चों और बुजुर्गों की है। ऐसी खराब वायु का सबसे पहला अटैक बच्चों और बुजुर्गों पर ही होता है।अब तो यह हर साल की समस्या बनती जा रही है। जैसे ही ठंडक के दिन आने शुरू होते हैं, विभिन्न राज्यों की सरकारें एहतियाती कदम उठाने लगती हैं। लेकिन कोई भी सरकार स्थायी समाधान की ओर ध्यान ही नहीं दे रही हैं। जिस तरह के विकास को बढ़ावा इन दिनों विभिन्न सरकारें दे रही हैं, वह दरअसल विकास नहीं बल्कि विनाश ही है। लोगों की जरूरतें पूरी करने के लिए खेती की जमीनों पर रिहायशी कालोनियां बसाई जा रही हैं। सड़कें बनाने के लिए पेड़ काटे जा रहे हैं। यदि इन पेड़ों को काटने की प्रवृत्ति पर अंकुश नहीं लगाया गया, तो हालात और भी बदतर होंगे। वन क्षेत्र को मिटाया जा रहा है। 

अब तो सरकार ने भी पांच एकड़ से कम जमीन पर उगी वनस्पतियों और पेड़-पौधों को वनक्षेत्र मानने से इनकार कर दिया है। इतना ही नहीं, लोग जागरूकता की कमी की वजह से कूड़ा-करकट, पराली और कोयला जला रहे हैं। प्रशासन हालत बदतर होने पर आदेश तो जारी करता है, लेकिन इन आदेशों पर कितना अमल हुआ, इसके देखने की फुरसत उसके पास नहीं होती है।

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