बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
शम्स तरबेजी को एक सूफी संत माना जाता है। वह फारसी के भाषाविद, दार्शनिक और दयालु फकीर माने जाते हैं। तरबेजी का जन्म 1185 में अजरबैजान में हुआ माना जाता है। तरबेजी के बारे में अरबी, फारसी साहित्य में बहुत कम ही जानने को मिलता है। कुछ लोग यह भी मानते हैं कि फारस के महान विद्वान रूमी के जीवन में आध्यात्मिक क्रांति लाने का श्रेय शम्स तरबेजी को है। रूमी को वाह्य दुनिया को त्यागकर आत्मा की यात्रा करने की प्रेरणा तरबेजी ने ही दी थी।
एक बार की बात है। तरबेजी बाजार में कहीं जा रहे थे। उन्होंने देखा कि एक विद्वान अपने शिष्य को बहुत बुरी तरह डांट रहा है। उस विद्वान को अपनी विद्वता पर बड़ा अभिमान था। वह अपने शिष्य से कह रहा था कि तुम अभी बहुत छोटे हो। ज्ञान पाने के लिए अभी तुम्हें बहुत त्याग करना होगा। ज्ञान हासिल कर पाना, इतना आसान नहीं है। शिष्य को बहुत पीड़ा महसूस हो रही है।
वह अपमान महसूस कर रहा था। तरबेजी उस विद्वान के पास गए और बोले, आप तो बहुत ज्ञानी लगते हैं। उस आदमी ने बड़े गर्व से कहा कि हां, मैंने सैकड़ों पुस्तकें पढ़ी हैं। धर्म, दर्शन, तर्क जैसे तमाम विषयों पर मैं बातचीत कर सकता हूं। यह सुनकर तरबेजी पास की एक रोटी की दुकान पर गए और एक रोटी उठा लाए। बोले, महानुभाव, इस रोटी की कीमत क्या है?
वह व्यक्ति बोला, इसकी एक-दो सिक्के कीमत होगी। तरबेजी ने कहा कि आप तीन दिन रोटी मत खाइए, तब आपको इसकी असली कीमत का पता चलेगा। तीन दिन बाद वह आदमी तरबेजी से मिलने पर रो पड़ा और बोला, मैंने किताबें तो बहुत पढ़ी, लेकिन जीवन का पाठ नहीं पढ़ा। अब मैं रोटी की असली कीमत जान गया हूं।
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