बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
जब हम चाफेकर बंधु कहते हैं तो उसमें बालकृष्ण हरि चाफेकर, वासुदेव हरि चाफेकर और दामोदर हरि चाफेकर का नाम आता है। यह तीनों भाई क्रांतिकारी थे। इन तीनों भाइयों ने पूना के ब्रिटिश प्लेग कमिश्नर वाल्टर चार्ल्स रैंड की हत्या कर दी थी। असल में उन दिनों पूना में प्लेग फैला हुआ था। प्लेग कमिश्नर महामारी के बहाने हिंदुस्तानियों पर कई तरह से अत्याचार कर रहा था।
वह हिंदुस्तानियों से बहुत ज्यादा घृणा करता था। उससे पूना की जनता काफी परेशान थी। इसलिए एक दिन चाफेकर बंधुओं ने अपने मित्र महादेव विनायक रानाडे के साथ मिलकर वाल्टर चार्ल्स रैंड और उसके अंगरक्षक आयर्स्ट को गोलियों से भून दिया। आयर्स्ट तो वहीं मारा गया, लेकिन तीन दिन बाद रैंड भी मर गया। इस अपराध के लिए तीनों चाफेकर भाइयों और महादेव विनायक रानाडे को फांसी पर लटका दिया गया।
इस घटना के बाद पूरे देश में क्रांतिकारियों के प्रति लोगों में सहानुभूति पैदा हो गई। स्वामी विवेकानंद के निर्देश पर उनकी शिष्या सिस्टर निवेदिता शहीदों की मां को सांत्वना देने के लिए उनके घर गईं। सिस्टर निवेदिता ने सोचा था कि उनके घर में शोक का वातावरण होगा।
शहीद की मां शोकाकुल होंगी क्योंकि उनके तीनों पुत्रों को फांसी दे दी गई है। अब उनके बुढ़ापे का सहारा कौन होगा। लेकिन जब शहीदों के घर पर पहुंची, तो उनकी मां ने दरवाजे पर हाथ जोड़कर स्वागत कियाा। यह देखकर निवेदिता की आंखों में आंसू आ गए। उनकी आंखों में आंसू देखकर मां ने कहा कि आपने तो मोह माया को त्याग दिया है, फिर यह आंसू क्यों? मुझे गर्व है कि मेरे बेटे शहीद हो गए।
अफसोस सिर्फ इस बात का है कि देश पर चढ़ाने के लिए एक और बेटा नहीं है। यह सुनकर निवेदिता अपने को रोक नहीं पाईं और उन्होंने रुंधे गले से यही कहा कि जिस देश में आप जैसी मां होगी, उस देश का कोई बाल बांका नहीं कर सकता है।
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