Monday, May 12, 2025

दृढ़ इच्छा शक्ति से सब कुछ किया जा सकता है

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

विल्मा ग्लोडियन रुडोल्फ का जन्म 21 जून 1940 को अमेरिका के टेनेसी में हुआ था। जब विल्मा चार साल की थी, तो उसको निमोनिया और काला ज्वर हो गया था जिसकी वजह से उसके पैर को लकवा मार गया। उसकी मां ने कई डॉक्टरों को दिखाया। डॉक्टरों ने कहा कि अब विल्मा कभी नहीं चल सकेगी। विल्मा का परिवार गरीब था, लेकिन उसकी मां विचारों की धनी थी। 

मां ने विल्मा को ढाँढस बँधाया और कहा कि विल्मा तुम भी चल सकती हो, यदि चाहो तो! विल्मा की इच्छा-शक्ति जाग्रत हुई। उसने डॉक्टरों को चुनौती दी। उसने अपने लकवाग्रस्त पैर को हिलाना-डुलाना शुरू कर दिया। नौ साल की उम्र में विल्मा उठकर बैठ गई। 13 साल की उम्र में उसने पहली बार एक दौड़ प्रतियोगिता में भाग लिया, लेकिन हार गयी। फिर लगातार तीन प्रतियोगिताओं में हारी, लेकिन हिम्मत नहीं हारी। 

15 साल की उम्र में टेनेसी स्टेट यूनिवर्सिटी में जाकर उसने एड टेम्पल नामक कोच से कहा कि आप मेरी क्या मदद करेंगे। मैं दुनिया की सबसे तेज धाविका बनना चाहती हूँ। कोच टेम्पल ने कहा कि तुम्हारी इस इच्छा शक्ति के सामने कोई बाधा टिक नहीं सकती, मैं तुम्हारी मदद करूँगा। 1960 की विश्व-प्रतियोगिता ओलम्पिक में वह भाग लेने आयी। उसका मुकाबला विश्व की सबसे तेज धाविका जुत्ता हैन से हुआ। 

कोई सोच नहीं सकता था कि एक अपंग बालिका वायु वेग से दौड़ सकती है। वह दौड़ी और एक, दो, तीन प्रतियोगिताओं में प्रथम स्थान प्राप्त कर 100 मीटर, 200 मीटर तथा 400 मीटर की दौड़ में स्वर्ण पदक जीता। उसने यह साबित कर दिया कि एक अपंग व्यक्ति दृढ़ इच्छा शक्ति से सब कुछ कर सकता है। हर सफलता की राह कठिनाइयों के बीच से गुजरती है।

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