Sunday, May 4, 2025

हिन्दुत्ववादी कांटे से कांटा निकालने की जुगत में ममता

अशोक मिश्र

अक्षय तृतीया के दिन पश्चिमी बंगाल के दीघा में मुख्यमंत्री ममता बनर्जी ने तीस हजार वर्ग मीटर में फैले भगवान जगन्नाथ मंदिर की प्राण प्रतिष्ठा कराकर हिंदू मतदाताओं में घुसपैठ की तैयारी कर ली है। ममता ने 30 अप्रैल को देश के सभी बड़े अखबारों में दो-तीन पेज के विज्ञापन भी दिए थे। हालांकि दीघा में बने मंदिर का नाम भगवान जगन्नाथ रखने को लेकर विवाद पैदा हो गया है। उड़ीसा में कई सदियों पुराना भगवान जगन्नाथ का मंदिर है जिसकी देशभर में काफी मान्यता है। हर साल लाखों श्रद्धालु देश-विदेश से वहां जाते हैं। अब इस नामकरण को लेकर एक नया विवाद शुरू हो गया है। इस विवाद को भाजपा हवा दे रही है क्योंकि दीघा में मंदिर निर्माण  का भाजपा शुरू से ही विरोध करती आई है।

30 अप्रैल को जब समुद्र तट के किनारे बसे दीघा में जब ममता बनर्जी उड़ीसा के जगन्नाथ मंदिर की प्रतिकृति का लोकार्पण करवा रही थीं, उसी समय भाजपा नेता शुभेंदु अधिकारी और अन्य भाजपा नेता एक दूसरा ही कार्यक्रम करवा रहे थे। उस कार्यक्रम का नाम महान सनातनी दिवस रखा गया था और इसमें भाजपा नेताओं सहित पश्चिम बंगाल के बड़े-बड़े साधु संतों और नामचीन लोगों को आमंत्रित किया गया था। पिछले दो दशक से पश्चिम बंगाल में अपनी जड़ें जमाने की कोशिश में लगी भाजपा को ममता विरोध का यह सुनहरा अवसर नजर आया और शुभेंदु अधिकारी के नेतृत्व में पूरी भाजपा ने कार्यक्रम का बहिष्कार कर दिया। 

हालांकि यह बात भी सही है कि जब सन 2018 में दीघा में भगवान जगन्नाथ मंदिर की बातचीत चल रही थी, उस समय शुभेंदु अधिकारी इसके सबसे बड़े समर्थक थे। तब वह ममता बनर्जी के खासुलखास हुआ करते थे। तब मंदिर का निर्माण ममता का भाजपा के खिलाफ मास्टर स्ट्रोक माना गया था। अब सवाल है कि ममता को हिंदुत्व का सहारा लेने की जरूरत क्यों पड़ने लगी है। क्या अब ममता को यह विश्वास हो चला है कि यदि वह हिंदुत्ववादी मतदाताओं को अपनी ओर खींचने में विफल रहीं तो अगला विधानसभा चुनाव उनके लिए अंतिम विधानसभा चुनाव हो सकता है? क्या सचमुच पश्चिम बंगाल में भाजपा अपना पैर पसारने में सफल होती दिखाई दे रही है।

असल में पिछले दो-तीन साल से ममता दो मोर्चे पर एक साथ काम करती हुई दिखाई दे रही हैं। वह दुर्गा पूजा सहित अन्य बंगाली त्यौहारों पर सरकारी सहायता उपलब्ध कराने के साथ-साथ पूजा के निर्विघ्न करवाने का भरपूर प्रयास करती रही हैं। बंगाली समाज के तीज-त्यौहारों की भव्यता और निर्विघ्न कराने की प्रतिबद्धता से वह अपने बंगाली मतदाताओं को तो रिझा ही रही हैं, वहीं हिंदू कार्यक्रमों में भी शामिल होकर मंत्रों का जोर-जोर से उच्चारण करकेभाजपा के हिंदुत्व को भोथरा करने का प्रयास भी करती जा रही हैं। अब सवाल यह है कि भगवान जगन्नाथ का ही मंदिर ममता ने क्यों बनवाया। इसके पीछे कारण यह माना जा सकता है क्योंकि बंगालियों की भगवान जगन्नाथ पर बड़ी आस्था है। वहीं, बंगाल के संत महाप्रभु चैतन्य की भी जगन्नाथ पर बड़ी आस्था थी। इस वजह से ममता ने जहां जगन्नाथ मंदिर बनवाकर हिंदुओं को अपनी ओर आकर्षित करने का प्रयास किया है, वहीं चैतन्य महाप्रभु के समर्थकों का भी ध्यान अपनी ओर खींचा है।

दरअसल, यह वह वोट बैंक है जो साल 2026 में पश्चिम बंगाल में होने वाले विधानसभा चुनाव में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाला है। इस तरह के वोट बैंक का प्रतिशत लगभग आठ से दस है। भाजपा को पश्चिम बंगाल में 39 से 40 प्रतिशत वोट मिलते रहे हैं। वहीं टीएमसी को 40 से 45 प्रतिशत तक वोट हासिल होते हैं। यदि चार-पांच  प्रतिशत वोट इधर से उधर खिसक जाए, तो पश्चिम बंगाल का चुनावी परिदृश्य बदल सकता है। इसी चार -पांच प्रतिशत वोट बैंक पर कब्जा जमाने की कोशिश में भाजपा और टीएमसी है। इसके चक्कर में ही ममता को हिंदूवादी बाना धारण करना पड़ रहा है।

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