Friday, May 16, 2025

अपने घर का मैं बादशाह हो जाता हूं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

मुंशी प्रेमचंद आज भी हिंदी और उर्दू में सबसे ज्यादा पढ़े जाने वाले साहित्यकार हैं। वैसे प्रेमचंद का नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 में वाराणसी के लमही गांव में हुआ था। प्रेमचंद का जीवन हमेशा विसंगतियों से घिरा रहा। जब वह सात साल के थे, तो उनकी मां की मृत्यु हो गई थी। 

उनके पिता ने दूसरा विवाह कर लिया था। उनकी सौतेली मां उनके साथ ठीक से व्यवहार नहीं करती थी। पंद्रह साल की उम्र में ही उनका विवाह हो गया था। इसके एक साल बाद प्रेमचंद के पिता की मृत्यु हो गई। सौतेली मां का व्यवहार उनके प्रति आजीवन कड़वा ही रहा। प्रेमचंद ने हिंदी और उर्दू में जो कुछ भी लिखा, वह आज साहित्य की बहुत बड़ी धरोहर है। उनके जीवन का एक प्रसंग काफी प्रसिद्ध है। 

बात उन दिनों की है, जब मुंशी प्रेमचंद शिक्षा विभाग के डेप्युटी इंस्पेक्टर थे। एक दिन इंस्पेक्टर स्कूल का निरीक्षण करने आया। उन्होंने इंस्पेक्टर को स्कूल दिखा दिया। दूसरे दिन वह स्कूल नहीं गए। अपने घर पर ही अखबार पढ़ रहे थे। जब वह कुर्सी पर बैठकर अखबार पढ़ रहे थे तो सामने से इंस्पेक्टर की गाड़ी निकली। इंस्पेक्टर को उम्मीद थी कि प्रेमचंद उसको सलाम करेंगे। लेकिन प्रेमचंद कुर्सी से हिले तक नहीं। 

यह बात इंस्पेक्टर को नागवार गुजरी। उसने अपने अर्दली को मुंशी प्रेमचंद को बुलाने भेजा। जब मुंशी प्रेमचंद गए तो इंस्पेक्टर ने कहा की कि तुम्हारे दरवाजे से तुम्हारा अफसर निकल जाता है तो तुम सलाम तक नहीं करते हो। यह बात दिखाती है कि तुम बहुत घमंडी हो। इस पर मुंशी प्रेमचंद ने जवाब दिया, जब मैं स्कूल में रहता हूं, तब तक ही नौकर रहता हूं। बाद में मैं अपने घर का बादशाह बन जाता हूं। यह सुनकर इंस्पेक्टर मुंह लटकाए आगे बढ़ गया।

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