Thursday, May 1, 2025

सयाजी राव गायकवाड़ की उदारता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

सयाजी राव गायकवाड़ बड़ोदा रियासत के महाराजा थे। इनका मूल नाम गोपाल राव गायकवाड़ था। इनका जन्म 11 मार्च 1863 को नासिक के कुल्वाने गांव में हुआ था। यह बड़ोदा रियासत के महाराज मल्हार राव गायकवाड़ की मौत के बाद महारानी जमुना बाई के द्वारा गोद लिए गए थे। यह बहुत दूरदर्शी और विद्वान शासक थे। महाराजा सयाजी राव गायकवाड़ ने भारत में पुस्तकालय आंदोलन की शुरुआत 1910 में की थी। 

भीमराव रामजी आंबेडकर की प्रतिभा को पहचान कर देश और विदेश में पढ़ने के लिए छात्रवृत्ति देने वाले सयाजी राव गायकवाड़ ही थे। गोपाल राव विद्वानों और कलाकारों का बहुत सम्मान करते थे। उन्होंने अपने शासनकाल में बड़ोदा की कायापलट कर दी थी। एक बार की बात है। प्रसिद्ध पखावज वादक नासिर खान शाम के समय नगर के बाहर स्थित महाराज गायकवाड़ के मकरपुरा महल में कार्यक्रम पेश करने गए। 

नासिर खान के अपना कोई परिवार नहीं था, तो वह अपने वेतन या मानदेय का अधिकतर हिस्सा अपने शिष्यों पर खर्च कर देते थे। महाराज गायकवाड़ के महल में अपना कार्यक्रम प्रस्तुत करने के बाद कोई सवारी की व्यवस्था न होने पर नासिर खान अपने शिष्य के साथ पैदल ही अपने घर जा रहे थे। तभी संयोग से उधर से महाराज गायकवाड़ की सवारी निकली। उन्होंने नासिर खान को पैदल जाते देखा, तो कहा कि यह क्या उस्ताद, आपको घर पहुंचाने के लिए कोई व्यवस्था नहीं की गई। 

महाराज के आदेश पर उनके अंगरक्षक ने नासिर खान को बग्घी पर बिठाकर घर पहुंचाया। अगले महीने जब महीने जब नासिर खान को वेतन मिला, तो उसमें एक नया भत्ता जुड़ा हुआ था ताकि उस्ताद अपने लिए बग्घी खरीद लें। महाराज की कलाकारों के प्रति उदारता देखकर नासिर खान गदगद हो गए।



No comments:

Post a Comment