बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
स्वामी विवेकानंद का जन्म 12 जनवरी 1863 को बंगाल के कायस्थ परिवार में हुआ था। बचपन में इनका नाम नरेंद्र नाथ दत्त था। बाद में जब नरेंद्र नाथ रामकृष्ण परमहंस के संपर्क में आए, तो उन्होंने संन्यास ग्रहण किया और उनको नाम मिला विवेकानंद। उन्होंने ही रामकृष्ण मिशन की स्थापना की थी। तीस वर्ष की अवस्था में स्वामी विवेकानंद को 1893 में अमेरिका के शहर शिकागो में धर्म संसद में शामिल होने का मौका मिला।
उन्होंने अपने विचारों और हिंदू धर्म की जो व्याख्या की, उससे अमेरिका और यूरोप के लोग काफी प्रभावित हुए। अमेरिका में ही कई राज्यों में उन्हें हिंदू धर्म पर व्याख्यान देने के लिए बुलाया गया। अन्य कई देशों में भी वह बुलाए गए। अमेरिका और यूरोप के कई देशों कीं। स्वामी विवेकानंद 1897 में जब भारत लौटे, तो उनका भव्य स्वागत किया गया। लोगों में स्वामी विवेकानंद को लेकर काफी उत्साह था।
वह उनकी बात सुनने को लालायित रहते थे। उनकी ख्याति और लोगों के बीच उनकी प्रतिष्ठा बढ़ने से कुछ लोगों को परेशानी होने लगी। उन लोगों ने स्वामी जी के बारे में दुष्प्रचार करना शुरू कर दिया। कहते हैं कि कुछ लोगों ने स्वामी विवेकानंद को शूद्र कहकर अपमानित करने का प्रयास किया। उन्होंने यह भी कहा कि एक शूद्र कैसे संन्यासी हो सकता है, वह दूसरों को उपदेश कैसे दे सकता है?
स्वामी विवेकानंद को भी यह बात पता चली। लोगों को इतने निचले स्तर तक गिरते देखकर उन्हें बहुत दुख हुआ। इसके बावजूद उन्होंने दुष्प्रचार करने वालों के खिलाफ कुछ नहीं कहा। लोगों से बस यही कहा कि हमें जातीयता में उलझना नहीं चाहिए। दुनिया में सभी लोग समान हैं। कोई भी जाति कमतर नहीं होती है। लोगों के कार्य कमतर होते हैं।
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