अशोक मिश्र
पानी, प्रदूषण और गड़बड़ाता लिंगानुपात हरियाणा की सबसे बड़ी समस्याएं हैं। यदि इन समस्याओं पर नियंत्रण पाने में प्रदेश सरकार सफल हो जाए, तो काफी हद तक प्रदेश खुशहाली के रास्ते पर चल निकलेगा। वैसे तो आर्थिक स्थिति के मामले में हरियाणा देश के कई राज्यों के मुकाबले में काफी ठीक ठाक स्थिति में है, लेकिन लिंगानुपात के मामले में स्थिति दयनीय है।
सन 2015 में जब पीएम नरेंद्र मोदी ने देश भर में गिरते लिंगानुपात को सुधारने के लिए पानीपत से ‘बेटी बचाओ, बेटी पढ़ाओ’ अभियान शुरू किया था, तो राज्य में लिंगानुपात की स्थिति काफी हद तक सुधर गई थी। वर्ष 2019 में तो एक हजार लड़कों के पीछे लड़कियों की संख्या 916 तक पहुंच गई थी। लिंगानुपात में आशातीत सुधार देखकर केंद्र के साथ-साथ राज्य सरकार भी बहुत उत्साहित थी। उसे लगने लगा था कि अब प्रदेश में लड़कियों की संख्या एक सम्मानजनक स्थिति तक पहुंच जाएगी।
लेकिन उसके दो साल बाद ही पूरी दुनिया में कोरोना महामारी फैली और नतीजा यह हुआ कि जो उपलब्धि हासिल हुई थी, वह हाथ से फिसल गई। कोरोना महामारी के चलते कन्या भ्रूण हत्या और अवैध गर्भपात पर निगाह रखने वाली एजेंसियों की सख्ती कम होती गई जिसका नतीजा यह हुआ कि प्रदेश का लिंगानुपात एक बार फिर अपनी पुरानी स्थिति में लौट गया। दिल्ली, उत्तर प्रदेश, राजस्थान, पंजाब जैसे राज्यों में बिना लाइसेंस के चलने वाले क्लीनिकों में हरियाणा के लोग कन्या भ्रूण हत्या और अवैध गर्भपात कराने लगे। प्रदेश में भी कई जगह चोरी छिपे भ्रूण हत्याएं की गईं। कोरोना महामारी का प्रकोप कम होते ही सरकार ने एक बार फिर सख्ती बरतनी शुरू की, तो इसके सकारात्मक परिणाम आने लगे।वर्तमान समय में लिंगानुपात 911 है। अब सैनी सरकार इस संख्या को और भी आगे ले जाना चाहती है। इसके लिए उन्होंने संबंधित विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को स्पष्ट निर्देश दे रखा है कि यदि उनके स्तर से किसी मामले में लापरवाही पाई गई, तो इसका खामियाजा उन्हें भुगतना पड़ेगा। इस चेतावनी का असर कुछ जिलों में दिखाई भी देने लगा है। अभी हाल में ही जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक पंचकूला, पलवल, नूंह, गुरुग्राम और अंबाला जैसे जिलों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। इन जिलों में लिंगानुपात काफी हद तक सुधरा है। इन जिलों से दूसरे जिलों को भी प्रेरणा लेने की जरूरत है।
सीएम सैनी की सख्ती का ही नतीजा है कि लिंगानुपात के लिए सुधारने के लिए गठित टॉस्क फोर्स ने सात सौ से कम लिंगानुपात वाले गांवों की पहचान की है। प्रदेश के चौदह जिलों में एमटीपी किट्स की बिक्री में भारी कमी भी आई है।
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