Tuesday, May 27, 2025

हरियाणा पंजाब जल विवाद को सुलझा लें तो बेहतर

अशोक मिश्र

सुप्रीमकोर्ट ने पंजाब और हरियाणा के बीच चल रहे जल विवाद के मामले में अपना फैसला फिलहाल सुरक्षित रख लिया है। यह फैसला किसके पक्ष में होगा, यह अभी कह पाना तो आसान नहीं है। लेकिन ऐसा विश्वास है कि सुप्रीम कोर्ट जो भी फैसला लेगा, वह हरियाणा के हितों को अवश्य ध्यान में रखेगा। पंजाब की भगवंत मान सरकार ने लगभग दो ढाई महीने पहले बिना किसी चेतावनी के साढ़े आठ हजार क़्यूसेक पानी की जगह साढ़े चार हजार क़्यूसेक पानी की ही सप्लाई देनी शुरू कर दी थी। हरियाणा के विरोध करने पर पंजाब सरकार ने कहा की हरियाणा अपने हिस्से का पानी पहले ही ले चुका है। 

जिस समय पंजाब में यह कदम उठाया था, उस समय भी प्रचंड गर्मी पड़ रही थी। नतीजा यह हुआ कि हरियाणा की 12 -13 जिलों में पानी को लेकर हाहाकार मच गया। टैंकर माफियाओं ने आपदा में अवसर समझ कर पानी के दाम बढ़ा दिए। चार-पांच सौ रुपये में बिकने वाले एक टैंकर पानी के दाम देखते ही देखते 1200 से 1800 के बीच पहुंच गया। 12 जिलों में एक चौथाई जलघर पूरी तरह से सूख गए। इन जिलों के 600 से अधिक जलघरों में से आधे मैं सिर्फ 50% पानी बचा था। देखते ही देखते हरियाणा और पंजाब के बीच का पानी विवाद राजनीतिक रूप लेने लगा। हरियाणा के सभी विपक्षी दल जहां अपनी सरकार के साथ खड़े हुए, वहीं पंजाब में भी यही सीन देखने को मिला। हरियाणा ने अपने हिस्से का पानी मांगने के लिए हाई कोर्ट का दरवाजा खटखटाया। 

केंद्र सरकार से गुहार लगाई, लेकिन मामला सुलझ नहीं पाया। भाखड़ा ब्यास मैनेजमेंट बोर्ड का रवैया निष्पक्ष रहा, इसे देखते हुए पंजाब सरकार ने बीबीएमबी कार्यालय पर पुलिस तैनात कर दिया। पंजाब सरकार ने जिस कार्यालय से वाटर डिस्ट्रीब्यूशन रेगुलेट होता था, उसे कार्यालय में ताला लगाकर चाबी अपने पास रख ली। भविष्य में ऐसी कोई स्थिति न पैदा हो, इसके लिए केंद्र सरकार और सुप्रीम कोर्ट ने सीआईएसएफ की एक यूनिट को बीबीएमबी कार्यालय पर नियुक्त करने का फैसला किया है। यह बात सही है कि अब हरियाणा को साढ़े आठ हजार क़्यूसेक पानी मिलने लगा है, लेकिन सुप्रीम कोर्ट का फैसला निर्णायक होगा क्योंकि इस फैसले के बाद उम्मीद की जा रही है कि पंजाब सरकार किसी तरह का विवाद भविष्य में नहीं खड़ा करेगी। 

सुप्रीम कोर्ट का फैसला पंजाब, हरियाणा, हिमाचल और राजस्थान  सरकार को मनाना ही पड़ेगा। इसके अलावा उनके पास कोई दूसरा विकल्प भी नहीं है।  वैसे पंजाब और हरियाणा के बीच पानी को लेकर विवाद पहले से ही चल रहा है। सतलुज यमुना लिंक नहर को लेकर सन 1960 से पैदा हुआ विवाद अब तक नहीं सुलझ पाया है।

 एसवाईएल मामले को लेकर सन 1960 से लेकर अब तक कई बार मामला सुप्रीम की कोर्ट की चौखट तक पहुंच चुका है। हरियाणा ने अपने हिस्से की नहर तक तैयार कर ली है, लेकिन पंजाब वल अपने हिस्से की नहर तैयार करने को राजी नहीं है। ऐसी स्थिति में दोनों प्रदेश की जनता के हित में यही है की दोनों राज्यों के कर्ताधर्ता आपस में बैठकर यह मामला सुलझा ले।

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