अशोक मिश्र
संत दादू दयाल को राजस्थान का कबीरदास कहा जाता है। वह कबीरदास के पुत्र कमाल की भक्ति परंपरा में माने जाते हैं। संत दादू का जन्म 1544 को गुजरात के अहमदाबाद में हुआ था, लेकिन इनकी कर्मभूमि राजस्थान ही रही। कबीरदास की तरह खरी बात करना, इनका स्वभाव था। संत दादू और कबीरदास के जन्म की कथा में भी साम्यता पाई जाती है।
कहते हैं कि लोदीराम नगर में एक नागर ब्राह्मण को नदी में बहता हुआ एक बच्चा मिला। वह ब्राह्मण पुत्र विहीन था। वह उसे अपने घर ले आया और बेटे की तरह पालन पोषण किया। बारह साल की उम्र में वह घर छोड़कर संन्यासी होना चाहते थे तो उनके मां-बाप ने संत दादू दयाल की शादी करा दी। आखिर सात साल के बाद वह घर छोड़कर संन्यासी हो ही गए। धीरे-धीरे उनकी ख्याति पूरे राजस्थान में फैल गई।
लोग उनके शिष्य बनने के लिए दूर-दूर से आने लगे। राजस्थान की किसी रियासत का एक दारोगा भी उनका शिष्य बनना चाहता था। वह दादू दयाल से मिलने के लिए निकला। रास्ते में उसने एक व्यक्ति से पूछा कि संत दादू कहां मिलेंगे। वह आदमी चुप रहा। इस पर दारोगा को गुस्सा आ गया। दारोगा ने उस व्यक्ति को धमकाते हुए दोबारा दादू के बारे में पूछा। फिर भी वह आदमी चुप रहा।
इस पर उसने उस व्यक्ति से मारपीट की। मारपीट के बाद दारोगा आगे बढ़ गया। थोड़ी दूर जाने पर एक व्यक्ति से उसकी मुलाकात हुई, तो दारोगा ने उससे संत दादू के बारे में पूछा। उस व्यक्ति ने कहा कि मैं भी उनसे मिलने जा रहा हूं। जिधर से तुम आए हो, उसी ओर उनका आश्रम है। कुछ देर बाद दोनों आश्रम पहुंचे। वहां खड़े एक व्यक्ति की ओर इशारा करते हुए उस आदमी ने कहा कि यही तो हैं संत दादू।
उस आदमी को देखकर दारोगा बड़ा शर्मिंदा हुआ क्योंकि थोड़ी देर पहले उसने इन्हें ही पीटा था। उन्हें देखकर दारोगा संत दादू के पैरों पर गिर पड़ा और क्षमा मांगी।
No comments:
Post a Comment