अशोक मिश्र
रहीमदास का जन्म 1556 को लाहौर में हुआ था। वह अकबर के संरक्षक बैरम खां के पुत्र थे। वह एक योग्य सेनापति भी थे। उनकी काव्य प्रतिभा अतुलनीय थी। वह दोहा छंद रचने में माहिर थे। रहीमदास के दोहे आज भी काफी पढ़े और सुने-सुनाए जाते हैं। अकबर ने बैरम खां की पत्नी और अब्दुर्रहीम की मां से बैरम खां की मृत्यु के बाद निकाह कर लिया था। इसलिए रहीम दास अकबर के सौतेले पुत्र भी हुए।
इनकी मां सुल्ताना ने दरबार की राजनीति से अलग रखने के लिए शुरू से ही इनकी पढ़ाई लिखाई पर ध्यान दिया और योग्य विद्वान बनाया। रहीम दास और अकबर के ही दूसरे दरबारी कवि गंग की आपस में बड़ी मित्रता था। कहते हैं कि रहीम दास ने कवि गंग के दो दोहों पर प्रसन्न होकर 36 लाख रुपये प्रदान किए थे।
कवि गंग का नाम गंगाधर राव था और वह इटावा के इकनार गांव के रहने वाले थे। रहीम दास अपने दान के लिए काफी प्रसिद्ध थे। उनके पास जो भी आता था, वह खाली हाथ नहीं जाता था। एक दिन जब रहीम दास लोगों को दान कर रहे थे, तो कवि गंग ने देखा कि जब रहीमदास दान देते हैं, तो वह आंखें नीची कर लेते हैं। उन्होंने यह भी देखा कि कुछ लोग दोबारा आकर दान ले जाते हैं।
जब दान देने का कार्यक्रम खत्म हुआ, तो कवि गंग ने कहा कि यह बताओ, तुम दान देते समय आंखें नीची क्यों कर लेते हो। कुछ लोग इसका फायदा उठाकर दोबारा दान ले जाते हैं। रहीम दास ने कहा कि देने वाला कोई और है, जो दिन-रात देता ही रहता है, लोग सोचते हैं कि मैं दे रहा हूं। बस यही सोचकर मेरी आंखें नीची हो जाती हैं। रहीमदास की बात सुनकर कवि गंग ने उन्हें गले से लगा लिया। कहा जाता है कि कवि गंग की स्पष्टवादिता से नाराज होकर जहांगीर ने उन्हें हाथी के पैरों तले कुचलवा दिया था।
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