अशोक मिश्र
हमारे देश में ही नहीं, दुनिया के हर कोने में किसी भूखे को रोटी खिलाना और प्यासे को पानी पिलाना, बहुत ही सराहनीय कार्य माना गया है। सदियों से लोग गर्मी के दिनों में प्याऊ चलाते थे, ताकि राहगीरों को प्यास लगने पर ठंडा पानी मिल सके। कुछ लोग तो ठंडा पानी रखने के साथ साथ थोड़ा सा गुड़ या दूसरी खाने की चीज भी देते थे। इस संबंध में एक कहानी कही जाती है। किसी नगर में एक व्यापारी रहता था।
उसने काफी दौलत कमाई थी। एक दिन व्यापारी ने अपने बेटे को बुलाकर कहा कि यह पैसे ले लो और बाजार चले जाओ। बाजार से कुछ फल ले आओ। हां, फल किसी अच्छी से और ताजे ही लेना। लड़के ने अपने पिता की बात मानते हुए पैसे लिए और बाजार चला गया।
काफी देर बीतने के बाद भी जब बेटा नहीं लौटा तो पिता को थोड़ी चिंता हुई। इसी बीच बेटा लौट आया। व्यापारी ने देखा कि उसका बेटा फल नहीं लाया था। वह खाली हाथ था। उसने अपने बेटे से पूछा कि तुम फल नहीं लाए। बेटे ने जवाब दिया कि पिता जी, मैं आपके लिए अमरफल लेकर आया हूं। व्यापारी पिता ने चौंकते हुए कहा कि क्या कह रहे हो? अमरफल जैसा कुछ होता भी है?
बेटे ने जवाब देते हुए कहा कि पिता जी, जब मैं बाजार पहुंचा, तो फल की सभी दुकानें देखी। तरह-तरह के फल बाजार में बिक रहे थे। मैं सोचने लगा कि क्या लूं? तभी मेरी नजर एक बुजुर्ग पर पड़ी। वह भूख से तड़प रहा था। मैंने फल के पैसे से खाना खरीदा और उस बुजुर्ग को खिला दिया।
खाना खाने के बाद उस बुजुर्ग ने जिस तरह सच्चे मन से मुझे आशीर्वाद दिया, वह मुझे किसी अमरफल से कम नहीं लगा। अब आप बताइए, मैंने कोई गलत किया। पिता ने गदगद होकर कहा, बेटा, तुमने बहुत अच्छा काम किया।
मानवता का सच्चा रुप किसी भी अमरफल से कम नहीं । यही सच्ची प्रेरणा और विश्व भावना की जननी है ।
ReplyDeleteप्रेरक सृजन!
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