बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
हमारे देश में एक कहावत बहुत पुरानी है-भूखे भजन न होय गोपाला। कहने का मतलब यह है कि यदि कोई आदमी भूखा हो, तो उसे भूख के अतिरिक्त दूसरी कोई बात सुहाती नहीं है। यदि पेट भरा हो, तो उपदेश भी अच्छा लगता है और समझ में भी आता है। आदमी की सारी दिनचर्या भी भूख को मिटाने की ही होती है।
एक बार की बात है। महात्मा बुद्ध किसी गांव में रुके। उनसे उस गांव में रुकने और लोगों को धर्म का ज्ञान देने की याचना गांव के ही एक किसान ने की थी। किसान ने गांववालों को महात्मा बुद्ध के बारे में बताकर प्रवचन सुनने आने का अनुरोध किया। सुबह जब नियत स्थान पर सारे लोग इकट्ठा हुए, तभी किसान को पता चला कि उसका बैल गुम हो गया है। वह प्रवचन स्थल पर आया और थोड़ी देर बाद वह अपने बैल को खोजने निकल गया।
काफी समय खोजने के बाद उसका बैल उसे मिला, तो उस किसान ने बैल को लाकर घर पर बांधा और प्रवचन स्थल पर पहुंच गया। महात्मा बुद्ध ने किसान के थके और भूखे चेहरे को देखा, तो प्रवचन रोक दिया। उन्होंने अपने शिष्यों से कहा कि पहले इस किसान के लिए भोजन का प्रबंध करो। शिष्यों ने भोजन का प्रबंध किया और किसान को खिलाया। खाना खाने के बाद तृप्त किसान ने शांत चित्त से महात्मा बुद्ध का प्रवचन सुना और प्रवचन खत्म होने के बाद वह घर चला गया।
तब वहां मौजूद लोगों ने कानाफूसी शुरू कर दी कि देखो, इसने खुद ही लोगों को प्रवचन सुनने के लिए बुलाया और खुद ही दिन भर गायब रहा। यह सुनकर महात्मा बुद्ध ने लोगों से कहा कि जब वह सुबह यहां आया था, तब वह धर्म संकट में फंसा हुआ था। उसका बैल खो गया था। उसने बैल खोजा, इसके बाद यहां आया, तो वह थका था। यदि बिना भोजन किए उसको प्रवचन देता, तो उसकी समझ में कुछ नहीं आता। इसलिए भोजन कराया था।
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