Saturday, May 3, 2025

रूस के महान साहित्यकार मैक्सिम गोर्की

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

मैक्सिम गोर्की रूसी भाषा के ही नहीं, दुनिया की सभी भाषाओं में पढ़े गए।  उनका विश्वप्रसिद्ध उपन्यास मां आज भी बड़े चाव के साथ पढ़ी जाती है। यह उपन्यास उन्होंने 1906 में लिखा था जिसमें जारशाही और मजदूर वर्ग का संघर्ष बहुत ही मार्मिक ढंग से प्रस्तुत किया गया है। 

मैक्सिम गोर्की का जन्म 28 मार्च 1868 को निज्नी नोवगरद नगर में हुआ था। उनके पिता बढ़ई का काम करते थे। गोर्की को पढ़ने का शौक बचपन से ही रहा है। वह अपने पिता के कामों में हाथ बंटाने के साथ-साथ पढ़ते-लिखते रहते थे। अगर उन्हें पता चल जाता कि फलां आदमी के पास कोई अच्छी पुस्तक है, तो वह उस व्यक्ति से पुस्तक मांगकर लाते और पढ़कर वापस कर देते। 

यदि पुस्तक पढ़ने के बदले उन्हें उसके यहां मजदूरी करनी पड़ती तो वह भी उन्हें मंजूर था। उनकी पढ़ने के प्रति जुनून देखकर लोग उन्हें पागल समझते थे। धीरे-धीरे उन्होंने पढ़ने के साथ-साथ लिखना भी शुरू किया। वह अपनी रचनाओं को उस समय की पत्र-पत्रिकाओं में भेजते रहते थे। सन 1892 एक दिन वह चौकीदारी करके लौट रहे थे, तो उन्होंने अखबार बेचने वाले को देखा, तो एक अखबार खरीद लिया। उसमें उनकी पहली लघुकथा मकर छुद्रा प्रकाशित हुई थी। इसके बाद तो उन्होंने जैसे पीछे मुड़कर नहीं देखा। 

कुछ बड़े होने पर वह मार्क्सवादियों के संपर्क में आए। वह रूस के क्रांतिकारी संगठनों में काम करने लगे। जारशाही ने उन्हें गिरफ्तार करके जेल भेज दिया। रूसी जन जीवन का जितना विस्तार से वर्णन गोर्की ने किया है, उतना शायद दूसरे साहित्यकार ने नहीं किया। रूसी जीवन का संपूर्ण परिचय उनकी आत्मकथा मेरा बचपन, जनता के बीच और मेरे विश्वविद्यालय को पढ़ने से ही मिल जाता है।

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