अशोक मिश्र
म्यांमार के अंतिम राजा थे थिबा मिन। वह बौद्ध धर्म के अनुयायी थे। कहा जाता है कि वह पाली भाषा और साहित्य के बहुत बड़े विद्वान थे। थिबा, म्यांमार के कोनबाउंग राजवंश के अंतिम राजा थे। उनका जन्म 1 जनवरी 1859 को हुआ था और 16 दिसंबर 1916 को उनकी मृत्यु हो गई। 1878 में, अपने पिता किंग मिंडन की मृत्यु के बाद थिबा सिंहासन पर बैठे।
वे 1878 से 1885 तक म्यांमार के शासक रहे। 1885 में, तीसरे एंग्लो-बर्मी युद्ध में ब्रिटिश सेनाओं ने बर्मा पर आक्रमण किया और 29 नवंबर को थिबा को हराया। इसके बाद उन्हें भारत में निर्वासित कर दिया गया। कहते हैं कि एक बार उनके महल में एक साधु आया।
उसने कहा कि मैं पिछले कई सालों से तप कर रहा हूं। लेकिन आज तक मुझे ज्ञान की प्राप्ति नहीं हुई। लेकिन मैंने सुना है कि आपने राज महल में रहकर सभी सुख भोगते हुए ज्ञानयोग हासिल कर लिया है। भला, ऐसा कैसे हुआ? राजा थिबा ने कहा कि मैं आपको इसका तरीका बताता हूं। लेकिन आप यह दीपक पकड़िए और इसे लेकर राज महल में घूमिए। जो कुछ पसंद आ जाए, आप उसका सुख उठाइए। जो ले जाना चाहें, ले जाएं। बस, यह ध्यान रहे कि अगर यह दीपक बुझ गया, तो आपको मृत्युदंड दिया जाएगा।
साधु दीपक लेकर पूरे महल में घूमा। अंत में वह राजा थिबा के पास पहुंचा, तो उन्होंने पूछा कि राज महल की कौन सी चीज अच्छी लगी? क्या सुख भोगा? उस साधु ने कहा कि मैंने देखा तो पूरा राज महल, लेकिन मैं किसी भी वस्तु पर ध्यान नहीं दे पाया। हर समय ध्यान दीपक में ही लगा रहता था कि कहीं बुझ गया तो मौत निश्चित है। राजा थिबा ने कहा कि बस, ऐसे ही रहते हुए मैंने भी ध्यानयोग प्राप्त कर लिया। मैंने अपने भीतर के दीपक को हमेशा जलाए रखा।
प्रेरक एवं संदेशात्मक कहानी।
ReplyDeleteसादर।
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जी नमस्ते,
आपकी लिखी रचना शुक्रवार १८ जुलाई २०२५ के लिए साझा की गयी है
पांच लिंकों का आनंद पर...
आप भी सादर आमंत्रित हैं।
सादर
धन्यवाद।