Tuesday, September 30, 2025

राजा से संत बोला, सिपाही हो जाओ

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हर आदमी को अपना कर्तव्य करने से पीछे हटना नहीं चाहिए। कर्तव्य पालन में कोताही भी नहीं करनी चाहिए। किसी राज्य में एक राजा था। वैसे तो राजा प्रजापालक था। वह अपनी प्रजा का भरपूर ध्यान रखता था। जरूरत पड़ने पर वह उनकी सहायता भी करता था। 

एक दिन जब राजा अपने राज दरबार में बैठा हुआ, तभी उसके किसी दरबारी ने उसे सूचना दी कि राज्य में एक पहुंचे हुए संत आए हैं। जिनकी चर्चा पूरे राज्य में हो रही है। एक दिन राजा ने सोचा कि उसे भी संत के दर्शन करना चाहिए। यही सोचकर वह संत के दर्शन करने पहुंच गया। संत ने उसे आशीर्वाद देते हुए कहा कि जाओ, सिपाही हो जाओ। यह सुनकर राजा को बड़ा गुस्सा आया। 

उसने मन ही मन कहा कि मैं इस राज्य का राजा हूं और यह संत मुझे सिपाही हो जाने को कह रहा है। वह इसके बाद चुपचाप महल लौट गया। अगले दिन राज्य का प्रधान उनके दर्शन करने गया, तो संत ने आशीर्वाद देते हुए कहा कि तुम अज्ञानी हो जाओ। यह सुनकर भी प्रधान को बहुत बुरा लगा। थोड़ी देर बाद राज्य का बहुत बड़ा सेठ उनके दर्शन करने पहुंचा, तो संत ने कहा कि सेवक हो जाओ। यह सुनकर सेठ राजा के पास पहुंचा और संत की शिकायत की। 

अपने अपमान से जले भुने राजा ने संत को धूर्त बताते हुए पकड़कर लाने को कहा। संत ने अपने को दंड देने के बार में पूछा तो सबने अपनी बात रखी। यह सुनकर संत हंस पड़ा और उसने कहा कि राजा प्रजा का रक्षक होता है, इसलिए मैंने राजा को सिपाही की तरह प्रजा की रक्षा करने का आशीर्वाद दिया। प्रधान बहुत ज्ञानी होता है, वह अहंकार में चूर न हो जाए, इसलिए ज्ञानी होते हुए भी अज्ञानी होने को कहा। नगर का सेठ अपने पैसों से लोगों की सेवा कर सकता है। उसके पास अथाह पैसा है। इसलिए उनसे कहा कि सेवक हो जाओ।

सब्जियों और फलों का उत्पादन बढ़ाने से किसानों की बढ़ेगी आय

अशोक मिश्र

हरियाणा के लगभग 12-13 जिलों के किसान इन दिनों संकट में हैं। कुछ ही दिन पहले वह बाढ़ की आपदा झेल चुके हैं। फसल और माल को काफी नुकसान पहुंचा है। कुछ स्थानों पर खेतों में पानी अभी भरा हुआ है। ऐसी स्थिति में किसानों के सामने कई तरह की समस्याएं खड़ी हुई हैं। वैसे तो सरकार ने ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर अपना पंजीकरण कराने वाले किसानों को जांच-पड़ताल के बाद मुआवजा देने की घोषणा भी कर रखी है, लेकिन केवल मुआवजा से ही किसानों की दशा सुधरने वाली नहीं है। 

यह बात सैनी सरकार भी जानती है। यही वजह है कि प्रदेश के किसानों को प्राकृतिक खेती के लिए प्रेरित करके खाद्यान्न उत्पादन में आने वाली लागत को कम करने और अन्न उत्पादन में बढ़ोतरी की ओर ले जाने का प्रयास कर रही है। वैसे यह बात बिल्कुल सही है कि प्रदेश के ज्यादातर किसान परंपरागत रूप से ही खेती कर रहे हैं। परंपरागत रूप से किसान धान, गेहूं, नरमा, सरसों, ज्वार, बाजरा आदि बोते रहे हैं। धान की खेती में पानी का उपयोग कुछ ज्यादा ही होता है जिससे प्रदेश के कई जिलों में भूगर्भ जल संकट पैदा हो गया है। 

यही वजह है कि पानी की कम खपत और रासायनिक खादों के उपयोग को रोकने के लिए प्राकृतिक खेती करने वालों को कुछ विशेष सुविधाएं भी प्रदान की जा रही हैं। राज्य सरकार ने इस साल 20 हजार एकड़ में प्राकृतिक खेती का लक्ष्य तय किया है।  मृदा लवणता और भूमि सुधार के लिए सरकार ने इस बार 50 हजार एकड़ का लक्ष्य निर्धारित किया है। सरकार ने अपनी बागवानी नीति में भी काफी सुधार किया है जिसकी वजह से किसान अब बड़े पैमाने पर सब्जियों और फलों को भी उगाने लगे हैं। 

इससे उनकी कमाई में काफी इजाफा हो रहा है। किसानों को यह बताया जा रहा है कि यदि खेती में भूमि की सेहत सुधारनी है और कीटनाशकों के उपयोग से बचना है, तो सब्जियों और फलों का उत्पादन करना होगा। हरियाणा में पिछले 11 वर्षों में सब्जियों के उत्पादन का रकबा करीब नब्बे हजार एकड़ बढ़ा है। इससे प्रदेश में अब दूसरे राज्यों से सब्जियों को मंगाने की जरूरत कम हो गई है। 

साल 2012-13 में सब्जियों का रकबा 3.74 लाख हेक्टेयर था, जो साल 2024-25 में बढ़कर 4.85 लाख हेक्टेयर हो गया है। इसी तरह प्रदेश में  फलों का उत्पादन भी बढ़ा है। एक अनुमान के मुताबिक प्रदेश में 12 लाख मीट्रिक टन फलों और 78 लाख मीट्रिक टन सब्जियों का उत्पादन होता है। यह प्रदेश के लिए बहुत ही सुखद बात है। अच्छी बात यह है कि प्रदेश सरकार हर साल कृषि बजट में भी बढ़ोतरी करती जा रही है। इस साल प्रदेश का कृषि बजट 7600 करोड़ रुपये था।

Monday, September 29, 2025

नालायक! आत्महत्या करने से रोका क्यों नहीं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

कोई भी रचना तभी सफल और सार्थक होती है, जब उसका रचनाकार  अपने पात्रों में पूरी तरह डूब जाता है। रूस के महान साहित्यकार लियो टॉलस्टाय भी कुछ इसी किस्म के थे। वह कहानी या उपन्यास लिखते समय पूरी तरह अपने पात्रों में डूब जाते थे। 

लियो टॉलस्टाय का जन्म रूस के मास्को में 9 सितंबर 1828 को हुआ था। वह अमीर परिवार से संबंध रखते थे। यही वजह है कि उन्हें मक्सिम गोर्की की तरह आर्थिक कठिनाइयों का सामना नहीं करना पड़ा था। बाद में धनसंपत्ति से विरक्ति हो गई और उसे लोगों में बांट दी थी। यह घटना उस समय की है जब वह अपना प्रसिद्ध उपन्यास अन्ना करोनिना लिखकर पूरा कर चुके थे। 

वह अपना उपन्यास पूरा करने के बाद घूमने निकले। उनके दिमाग में वही अन्ना घूम रही थी। घूमते-घूमते वह एक पुल के पास जा खड़े हुए। तभी उस रास्ते से एक सिपाही गुजरा। उसने टॉलस्टाय से पूछा कि तुमने इधर से किसी जाते हुए देखा है। उन्होंने तपाक से कहा कि हां, अभी-अभी इसी पुल से छलांग लगाकर एक बहुत सुंदर सी लड़की अन्ना ने छलांग लगाकर अपनी जान दे दी है। लेकिन हुजूर उसके बाल सुनहरे नहीं थे। कुछ कुछ काले थे। उसकी आंखें बहुत सुंदर थी। नीली नीली आंखों में बहुत गहरी संवेदना भरी हुई थी। 

यह सुनते ही सिपाही ने कहा कि नालायक, तूने उसे रोका क्यों नहीं। बदमाश चल तुझे थाने चलना पड़ेगा। थाने में जब पुलिस कप्तान ने टॉलस्टाय को देखा, तो उठकर सलाम ठोका और कहा कि सर कुछ काम था, तो मुझे बुलवा लिया होता। टॉलस्टाय ने हंसते हुए कहा कि जब सिपाही ने पूछा, तो मैं अपने उपन्यास के पात्र में खोया हुआ था। उन्होंने सारी घटना बताई, तो सभी ठहाका लगाकर हंसने लगे।

जानते हैं तेज रफ्तार गाड़ी चलाना जानलेवा है, फिर भी चलाते हैं

अशोक मिश्र

दिल्ली गुरुग्राम एक्सप्रेसवे पर शनिवार को सुबह थार पलटने से पांच लोगों की मौत हो गई। हादसा इतना भयानक था कि मरने वालों के अंग छितराए हुए थे। किसी का हाथ उखड़ गया था, तो किसी का पैर। किसी का सिर ही पिचक गया था, मानो किसी फुटबाल से पिन चुभोकर हवा ही निकाल दी गई हो। मरने वालों में तीन युवक और दो युवतियां थीं। हादसा कितना भयानक था, इसका अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि थार के पार्ट्स जगह-जगह बिखरे पड़े थे। 

ऐसी हालत में यह अंदाजा लगाना बहुत आसान है कि हादसे के समय थार गाड़ी कितनी ज्यादा स्पीड में दौड़ रही थी। एक्सप्रेसवे पर ही पड़ने वाले एक पेट्रोल पर मिले सीसीटीवी फुटेज में हादसे में चकनाचूर हुई थार गाड़ी बहुत ज्यादा स्पीड में जाती हुई दिखाई दे रही है। माना जा रहा है कि एक्जिट से एक्सप्रेसवे पर आते ही गाड़ी की स्पीड कुछ ज्यादा ही बढ़ गई थी जिसकी वजह से थार चालक गाड़ी को संभाल नहीं पाया और कार डिवाइडर से टकराकर कई बार सड़क पर पलटती चली गई। तेज गाड़ी चलाने के रोमांच ने पांच घरों में अंधेरा कर दिया। पांच परिवार इस हादसे को अब जिंदगी भर नहीं भूल पाएंगे। 

अपने बेटे-बेटियों को खोने का दुख उन्हें जिंदगी भर सालता रहेगा। जो लोग अपनी जान इस हादसे में गंवा बैठे हैं, वह लोग काश यह समझ पाते कि थोड़ी सी रफ्तार का यह खेल उनकी जिंदगी को निगल जाएगा, तो शायद इतनी रफ्तार में गाड़ी को नहीं चलाते। हमारे देश-प्रदेश में जितने भी हादसे होते हैं, उनमें से अधिकतर हादसे ओवरस्पीड के कारण ही होते हैं। सरकारें और ट्रैफिक पुलिस लोगों को बार-बार जागरूक करती है, सेमिनार से लेकर विभिन्न प्रतियोगिताओं के माध्यम से  का पालन करने के लिए समझाती है, लेकिन इसके बावजूद लोग अपनी हरकतों से बाज नहीं आते हैं। 

वाहन चालक खासतौर पर युवा अपनी गाड़ी को हवाई जहाज समझकर बेतहाशा दौड़ाने लगते हैं। ऐसा करके वह अपना जीवन तो जोखिम में डालते ही हैं, उस सड़क पर जलने वाले दूसरे लोगों के लिए भी मुसीबत साबित होते हैं। कुछ लोग तो शराब या नशीले पदार्थ का सेवन करने के बाद वाहन चलाते हैं। ट्रैफिक पुलिस वाले ड्रिंक एंड ड्राइव के मामले में आए दिन गाड़ियों का चालान काटती रहती है, लेकिन इसके बावजूद लोग तेज रफ्तार में वाहन चलाने से बाज नहीं आते हैं। उन्हें जुर्माना भर देना मंजूर है, लेकिन वाहन को निर्धारित गति सीमा में चलाना मंजूर नहीं है। जब तक वाहन चालक ट्रैफिक नियमों का सख्ती से पालन नहीं करते हैं, तब तक देश या प्रदेश में होने वाले हादसों को रोका नहीं जा सकता है।

Sunday, September 28, 2025

गांधीवादी दर्शन की कटु आलोचक थीं एनी बेसेंट

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

एक अक्टूबर 1847 को लंदन में डॉक्टर के घर में पैदा हुई एनी बेसेंट ने भारतीय दर्शन को पूरी तरह आत्मसात कर लिया था। इनके पिता की मृत्यु तब हो गई थी जब वह पांच साल की थीं। इनकी पढ़ाई लिखाई कई देशों में हुई थी, इस वजह से इन्होंने कई भाषाओं में प्रवीणता हासिल कर ली थी। 

युवावस्था में इनका परिचय रेवरेंड फ्रैंक नामक पादरी से हुआ। दोनों एक दूसरे की ओर आकर्षित हुए और उन्होंने शादी कर ली। लेकिन यह शादी सफल नहीं हुई क्योंकि पादरी संकुचित विचारों का था। वह बात-बात में एनी बेसेंट के स्वतंत्र विचारों को गलत बताते हुए विरोध किया करता था। 

वह स्त्रियों का सम्मान भी नहीं करता था। इस वजह से एनी बेसेंट को लगने लगा कि उनका इस पादरी से विवाह करने का फैसला काफी गलत था।  एक दिन पादरी ने एनी बेसेंट को काफी कटु बात कही जिसकी वजह से वह काफी आहत हुईं। उन्होंने आत्महत्या करने की सोची। इसके लिए उन्होंने जहर भी मंगवाया, लेकिन जैसे ही वह जहर पीने लगीं, उन्होंने लगा कि कोई कह रहा है, तुम कायर हो? 

यह महसूस करने के बाद एनी बेसेंट ने जहर की बोतल खिड़की से बाहर फेंक दी और अपने पति का घर छोड़कर मायके आ गईं। इसके बाद इन्होंने कई देशों की यात्रा की। इसी क्रम में वह भारत आईं और फिर भारत की ही होकर रह गईं। भारत में आने के बाद इन्होंने कांग्रेस की राजनीतिक गतिविधियों में भाग लिया। 

मदन मोहन मालवीय के साथ इन्होंने बनारस हिंदू विश्वविद्यालय का निर्माण करने में काफी सहयोग दिया। उनके जीवन का ज्यादातर समय वाराणसी में ही बीता। वह गांधीवादी दर्शन की घोर आलोचक थीं। 20 सिंतबर 1933 को उनकी मृत्यु हो गई।

भारतीय सभ्यता और संस्कृति के अनुकूल नहीं है लिवइन रिलेशन

अशोक मिश्र

लिव-इन-रिलेशनशिप की शुरुआत सबसे पहले किस देश में हुई, यह कह पाना बहुत मुश्किल है, लेकिन इन दिनों भारत में यह बड़ी तेजी से फैल रहा है। आधुनिकता और स्वतंत्र विचारों के नाम पर लिवइन में रहने वाले जोड़ों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। इसके दुष्परिणाम भी सामनेआने लगे हैं। 21 सितंबर को रेवाड़ी के बावलपुर गांव में रोशन नामक व्यक्ति का अपने लिवइन पार्टनर के साथ किसी बात को लेकर विवाद हो गया। इस विवाद के चलते रोशन ने अपने लिवइन पार्टनर की बेटी, जो उसके पूर्व पति से पैदा हुई थी, को जमीन पर पटक-पटककर मार डाला। 

मारने के बाद उसने पांच वर्षीय बच्ची के शव को बेड पर डाल दिया और कमरा बंद करके फरार हो गया। चार दिन बाद जब लाश से बदबू आने आने लगी, तो पड़ोसियों ने पुलिस से शिकायत की, तब जाकर मामले का खुलासा हुआ। कुछ लोगों का मानना है कि लिवइन हमारे देश की सभ्यता और संस्कृति से कतई मेल नहीं खाता है। जो लड़के और लड़कियां विवाह जैसी संस्था को गंभीरता से नहीं लेते हैं, वही लोग लिवइन रिलेशनशिप की वकालत करते हैं। 

ऐसे रिश्ते यूरोप और अमेरिका में तो मान्य हो सकते हैं, लेकिन भारत में नहीं। लिवइन संबंध सही हैं या गलत, इसकी व्याख्या तो कानूनविद ही कर सकते हैं। वैसे भी देश की अदालतों ने कुछ प्रतिबंधों के साथ लिवइन की इजाजत दी है। जब दो वयस्क लोग एक साथ रहना चाहते हैं, तो यह उनकी इच्छा है। इसमें कोई क्या कर सकता है। लेकिन लिवइन के नाम पर समाज में अराजकता फैलाने की इजाजत भी नहीं दी जा सकती है। 

दरअसल, लिवइन में रहने वाले लोग जब तक मर्जी होती है, साथ रहते हैं और यदि साथ रहने की इच्छा नहीं हुई, तो वह अलग हो जाते हैं। यह आपस में शारीरिक संबंध भी बनाते हैं, लेकिन यदि किसी कारणवश बच्चा पैदा हो जाता है, तो उसे महिला को ही पालना पड़ता है, ऐसा अक्सर देखा गया है। पुरुष पार्टनर अपनी जिम्मेदारी से मुंह मोड़ लेता है। हमारे देश में विवाह को एक पवित्र संस्कार माना जाता है। कहा जाता है कि जोड़ियां ऊपर से बनकर आती हैं। विवाह करने के बाद महिला और पुरुष दोनों परिवार और समाज के प्रति उत्तरदायी हो जाते हैं। 

यदि किसी कारणवश दोनों में किसी बात को लेकर मतभेद पैदा होता है, परिवार के लोग दोनों को आमने-सामने बिठाकर समझा देते हैं। गिले-शिकवे दूर करवा देते हैं। कई बार दबाव डालकर भी मामले को सुलझा दिया जाता है। विवाह को समाज में बड़ा सम्मानजनक दर्जा हासिल है। लेकिन लिवइन को समाज ने मान्यता नहीं दी है, भले ही इस रिश्ते को कानूनी मान्यता मिल चुकी हो।

Saturday, September 27, 2025

मेहनत और लगन ने महान वैज्ञानिक बना दिया

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

माइकल फैराडे को प्रयोग करने का जुनून था। वह जिस काम में जुट जाते थे, उसे पूरा करके ही छोड़ते थे। फैराडे का जन्म 22 सितंबर 1791 में लंदन में हुआ था। परिवार को कमाने खाने के लिए काफी मेहनत करनी पड़ती थी। उनके पिता जेम्स फैराडे लोहारी का काम करते थे जिससे बहुत ज्यादा आय भी नहीं होती थी। 

आर्थिक दिक्कतें हमेशा बनी रहती थीं। बेहतर की उम्मीद में जेम्स अपनी पत्नी मारगेट और दो बच्चों को लेकर लंदन आ गए थे ताकि यहां ठीक से कमाई की जा सके। दस-बारह साल की उम्र में माइकल फैराडे को एक बुक बाइंडिंग की दुकान पर काम करने के लिए जाना पड़ा। यहां पर आकर उन्हें पढ़ने का शौक का शौक हुआ। वह बाइंडिंग के लिए आई किताबों को पढ़ने लगे। 

जो पुस्तक दुकान पर नहीं पढ़ पाते, उसे दुकान मालिक से मांगकर ले जाते और घर पर पढ़ते थे। धीरे-धीरे उनकी रुचि विज्ञान के क्षेत्र में बढ़ने लगी। एक दिन उन्हें उस समय के प्रसिद्ध वैज्ञानिक हंपी डेवी का व्याख्यान सुनने को मिला। फैराडे ने उनके व्याख्यान को न केवल ध्यान से सुना, बल्कि उसे नोट भी कर लिया। कुछ दिनों बाद उन्होंने उस नोट्स को डेवी के पास भेज दिया। 

डेवी उनका नोट्स पढ़कर बहुत प्रभावित हुए। उन्होंने फैराडे को अपनी प्रयोगशाला में सहायक बना लिया। यह काम पाकर फैराडे बहुत प्रसन्न हुए। अब उनकी रुचि के मुताबिक काम मिला था। प्रयोगशाला में काम करने के दौरान उन्होंने महसूस किया कि विद्युत और चुंबकत्व के बीच एक संबंध है जिसका उपयोग करके मशीनों को संचालित किया जा सकता है। इस आधार पर उसके बाद बहुत सी मशीनों का निर्माण हुआ। मेहनत और लगन ने उन्हें महान वैज्ञानिक बना दिया।

हरियाणा में धूल और प्रदूषण के चलते लोगों को होने लगी परेशानी

अशोक मिश्र

दुनिया का हर आदमी खुशहाल जीवन जीना चाहता है। वह तनाव और रोग मुक्त जीवन की आकांक्षा रखता है, लेकिन कभी उसके कर्म और कभी समाज के कर्म उसकी खुशहाल जिंदगी में सबसे बड़े बाधक के रूप में प्रकट हो जाते हैं। इन दिनों हरियाणा की हवा में घुल रही धूल और प्रदूषण लोगों के लिए परेशानी का सबब बनता जा रहा है।  आधुनिक सुविधाएं लोगों के लिए मुसीबत बनती जा रही है। धूल पिछले कुछ समय से हरियाणा के वातावरण में घुलती जा रही है। बरसात के बीत जाने के बाद आमतौर पर वातावरण साफ सुथरा हो जाता है, लेकिन इस बार अभी से ही वातावरण में धूल की चादर दिखाई देने लगी है। 

आने वाले दिनों में जब धान की कटाई हो जाएगी, तो पराली भी लोगों के लिए एक समस्या बनकर सामने आएगी। धूल और प्रदूषण की समस्या उन शहरों में सबसे ज्यादा है, जो औद्योगिक  और आधुनिक सुविधाओं से लैस हैं। इन शहरों में कल-कारखानों से निकला धुआं और भवन निर्माण के नियमों की अवहेलना की वजह से ही धूल चारों ओर छा रही है। शहरों में अवैध निर्माण की वजह से वातावरण में धूल जमा हो रही है। राज्य के कई जिलों में बिना परमीशन लिए जमीन खरीदने-बेचने और भवन निर्माण का काम करने वाले लोग किसी भी नियम की परवाह किए बिना निर्माण कर रहे हैं। ऐसे लोग सरकार के नियमों का पालन भी नहीं करते हैं। 

इसके लिए डीटीपी विभाग ने कई बार पुलिस को पत्र भी लिखा, लेकिन कोई मुकम्मल कार्रवाई भी नहीं होती दिखी है। प्रदूषण से निपटने के लिए जरूरी है कि प्रशासन और प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड पूरे राज्य में सक्रिय हो और अवैध निर्माण पर पूरी तरह रोक लगाए। जबकि हालात यह हैं कि प्रदूषण मापक यंत्र ज्यादातर शहरों में या तो पर्याप्त संख्या में हैं नहीं या फिर खराब पड़े हैं। 

ऐसी स्थिति में अधिक जिलों में यह पता ही नहीं चल पाता है कि किस इलाके में प्रदूषण कम है या ज्यादा है। अवैध कब्जों और निर्माणों पर भी प्रशासन निगरानी नहीं कर पा रहा है। अगर विशेषज्ञों की मानें तो सबसे पहले अवैध निर्माणों को रोकने के साथ-साथ हरियाली क्षेत्र को बढ़ाने की जरूरत है। सरकारी और गैर सरकारी जमीनों पर पौधरोपण को बढ़ावा देने पर ही प्रदूषण से किसी हद तक निजात मिल सकती है। 

प्रदेश में कचरा प्रबंधन का भी पर्याप्त उपाय करना चाहिए क्योंकि धूल और प्रदूषण का एक कारण कचरों का इधर उधर पड़ा होना भी है। हरियाणा में प्रदूषण का सबसे बड़ा कारण अरावली पर्वत श्रंखला पर पिछले कुछ दशकों से हरियाली का घटना है। अरावली पर्वत से वनों की कटाई बड़े पैमाने पर हो रही है। यहां पेड़ों की कटाई बड़े पैमाने पर हो रही है जिसकी वजह से प्रदूषण फैल रहा है।

Friday, September 26, 2025

सबके सामने स्वीकार करो अपने पाप

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

लियो टॉलस्टॉय की गिनती दुनिया के महान साहित्यकारों में होती है। वह रूस के एक जमींदार परिवार में पैदा हुए थे। उन्हें बचपन से ही अमीरों को मिलने वाली सारी सुख-सुविधाएं हासिल थीं। वह साहित्य के क्षेत्र में ही नहीं रमे, कई युद्धों में भी भाग लेकर रूसी सेना को विजय दिलाई थी। क्रीमिया युद्ध के बाद उन्होंने सेना की नौकरी छोड़ दी और पूरी तरह साहित्य को समर्पित हो गए। 

अमीर घराने में पैदा होने के बाद भी उन्हें चैन नहीं मिलता था। अंतत: उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति त्याग दी। एक बार की बात है। वह अपने आवास के निटकवर्ती चर्च में बहुत सुबह पहुंच गए। उनका मानना था कि अभी चर्च में कोई नहीं आया होगा। लेकिन जब वह अंदर पहुंचे, तो देखा कि एक व्यक्ति ईसा मसीह की मूर्ति की ओर मुंह किए अपने पापों के लिए क्षमा मांग रहा है। 

उन्होंने सुना कि वह कह रहा है कि हे प्रभु! मैंने अपने जीवन में बहुत पाप किए हैं। मेरी वजह से कई परिवार उजड़ गए। कई लोगों की बस्तियां मैंने उजाड़ दी। मेरा पाप क्षमा के योग्य न होते हुए भी मंै अपने कर्मों के लिए आपके सामने क्षमा मांगता हूं। जब टॉलस्टॉय ने उस व्यक्ति को बड़े गौर से देखा, तो उसे पहचान गए। वह व्यक्ति नगर का सबसे धनी व्यापारी था। 

उन्हें सामने देखकर व्यापारी ने कहा कि अभी मैंने जो कुछ कहा, वह मेरे और ईश्वर की बात है। यदि तुमने सुन लिया है, तो उसे किसी के सामने मत कहना। टॉलस्टॉय ने कहा कि हां, मैंने सभी बातें सुन ली हैं। लेकिन आपका यह पश्चाताप अधूरा है। सच्चा पश्चाताप तो तब होगा, जब आप सबके सामने अपने पापों को स्वीकार कर लो। तभी ईश्वर भी तुम्हें माफ करेगा। यह सुनकर धनी व्यापारी अपना सिर झुकाकर चला गया।

पराली प्रबंधन करने वाले किसानों को राज्य सरकार से मिलेगा ईनाम

अशोक मिश्र

पराली उत्तर भारत के लिए एक बड़ी समस्या बनती जा रही है। हर साल अक्टूबर के बाद प्रदूषण की समस्या गंभीर हो जाती है। सड़कों पर लोगों का चलना बहुत मुश्किल हो जाता है। लोगों में सांस संबंधी समस्याएं काफी बढ़ जाती हैं। प्रदूषण का सबसे ज्यादा असर बच्चों और बुजुर्ग लोगों पर पड़ता है। कई बार तो इस मामले में सुप्रीमकोर्ट तक को दखल देना पड़ा है। दिल्ली सरकार ने तो पिछले कई साल तक गाड़ियों को आॅड-इवन नंबर से भी चलवाया था, लेकिन इसका कोई सकारात्मक परिणाम देखने को नहीं मिले थे। 

इन सब बातों को ध्यान में रखते हुए हरियाणा सरकार ने पहले से ही सतर्कता बरतने की पहल की है। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने सख्त आदेश देते हुए कहा है कि राज्य में जो भी किसान पराली जलाता हुआ पाया जाएगा, उसे सख्त से सख्त सजा दी जाएगी। उन्होंने चेतावनी देते हुए कहा है कि पराली जलाने के आरोपी किसान से जुर्माना तो वसूला ही जाएगा, उसके खिलाफ मुकदमा भी दर्ज किया जाएगा। 

पांच एकड़ से अधिक जमीन वाला किसान यदि पराली जलाता पकड़ा गया, तो उस पर तीस हजार रुपये का जुर्माना लगाया जाएगा। दो से पांच एकड़ जमीन वाले किसान पर दस हजार रुपये जुर्माना वसूला जाएगा। यही नहीं दो एकड़ से कम जमीन वाले किसान से पराली जलाने पर पांच हजार रुपये दंड वसूला जाएगा। यदि कोई किसान बार-बार पराली जलाने का दोषी पाया जाता है, तो उस पर एफआईआर दर्ज करने के साथ-साथ दो सीजन तक मंडी में फसल बेचने पर रोक दिया जाएगा। 

हरियाणा सरकार ने पराली प्रबंधन करने वाले किसानों को प्रति एकड़ मिलने वाले एक हजार रुपये के बदले बारह सौ रुपये देने का फैसला किया है। अगर कोई किसान पराली प्रबंधन करता है, तो उसे ईनाम भी दिया जाएगा। इसके बावजूद प्रदेश सरकार ने नंबरदारों, पंचायत प्रतिनिधियों से लेकर अधिकारियों तक की जिम्मेदारी तय कर दी है। यदि इनमें से किसी की भी पराली मामले में लापरवाही पाई जाती है, तो इनके खिलाफ भी कार्रवाई की जाएगी। सरकार ने हर गांव पर निगरानी रखने का भी फैसला किया है। इसके लिए सभी 22 जिलों में नोडल अधिकारी नियुक्त किया जा रहा है। पचास से भी किसानों के लिए एक नोडल अधिकारी तैनात किया जाएगा। नोडल अधिकारी पराली जलाए जाने पर मौके पर जाकर जांच करेगा और सरकार को रिपोर्ट भेजोगा। जिन जिलों में पिछले साल पराली जलाने की घटनाएं ज्यादा हुई थीं, उन जिलों पर विशेष नजर रखी जाएगी। इसके अलावा पराली प्रबंधन में काम आने वाली मशीनों को किराया मुक्त करने पर भी सैनी सरकार गंभीरता से विचार कर रही है।

Thursday, September 25, 2025

बस फांसी! इसके सिवा दे भी क्या सकते हो

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जब भी किसी गुलाम देश में स्वाधीनता संग्राम शुरू होता है, तो आजादी मिलने तक न जाने कितने वीरों को अपने प्राणों की आहुति देनी पड़ती है। हमारा देश भी 15 अगस्त 1947 से पहले ब्रिटिश हुकूमत का गुलाम था। वैसे हमारे देश में स्वाधीनता संग्राम की चिन्गारी अट्ठारहवीं सदी से ही सुलग उठी थी। 

तब से यह संग्राम स्वाधीन होने तक चलता रहा। शायद दुनिया में सबसे लंबे समय तक चलने वाले देश के स्वाधीनता संग्राम में अगणित वीरों ने अपने प्राण न्यौछावर किए थे। उनमें एक खुदी राम बोस भी एक थे। मात्र 18 वर्ष की आयु में ही उन्होंने हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूमा था। खुदी राम बोस पर जज किंग्सफोर्ड पर बम फेंककर मारने की कोशिश करने का आरोप था। 

उनके इस काम में प्रफुल्ल चाकी भी बराबर के सहयोगी थे, लेकिन पकड़े जाने से बचने के लिए उन्होंने आत्महत्या कर ली थी। बाद में उनका सिर धड़ से अलग करके पहचान के लिए खुदीराम बोस के पास पहचान के लिए भेजा गया था। पकड़े जाने पर खुदी राम बोस पर मुकदमा चला और न्याय के नाम पर कई तरह की नौटंकी करने के बाद उन्हें फांसी की सजा सुनाई गई। जब जज ने उन्हें फांसी की सजा सुनाई तो खुदीराम हंस पड़े। जज ने दोबारा कहा कि सुना तुमने, तुम्हें फांसी की सजा दी गई है। 

इस पर मुस्कुराते हुए कहा कि बस फांसी, तुम लोग और दे भी क्या सकते हो? तब जज ने कहा कि तुम्हें ऊपरी अदालत में अपील करने के लिए एक हफ्ते दिया जाता है। तब खुदीराम ने कहा कि अगर दे सकते हो, तो पांच मिनट दे दे ताकि मैं अपने साथियों के साथ आगे की रणनीति पर चर्चा कर सकूं। बाद में भारत मां के इस लाडले ने हंसते-हंसते फांसी का फंदा चूम लिया।

लाडो लक्ष्मी योजना का दायरा बढ़ाने की तैयारी में सैनी सरकार

अशोक मिश्र

25 सिंतबर को दीन दयाल उपाध्याय की जयंती है। इसी अवसर पर हरियाणा सरकार दीन दयाल लाडो लक्ष्मी योजना का पोर्टल लांच करने जा रही है। कल पंचकूला में इसकी शुरुआत सीएम नायब सिंह सैनी करेंगे। इसके बाद एक लाख तक आय वर्ग की महिलाएं इस पोर्टल पर लाडो योजना के लिए अपना पंजीकरण करा सकेंगी। हरियाणा की गरीब महिलाओं के लिए यह एक फायदेमंद योजना है। इससे न केवल वे आर्थिक रूप से मजबूत होंगी, बल्कि वह अपने परिवार की मदद भी कर सकेंगे। 

एक महिला को यदि हर महीने 21 सौ रुपये की आमदनी निश्चित हो जाए, तो उसमें एक आत्मविश्वास पैदा होता है। वह जरूरत के समय अपनी बचत करके परिवार को संकट से ऊबार सकती है। प्रदेश सरकार वैसे तो कल यानी 25 सितंबर से पहले चरण में केवल एक लाख आयवर्ग की महिलाओं को ही यह सुविधा देने जा रही है, लेकिन आगामी कुछ वर्षों में इसमें पांच लाख रुपये की आय वाली महिलाओं को भी शामिल करने की योजना है। राज्य स्थापना दिवस यानी एक नवंबर से लाडो योजना में शामिल होने वाली महिलाओं के खाते में रुपये आने शुरू हो जाएंगे। 

पहले चरण में इस योजना का लाभ पाने वाली महिलाओं की संख्या 20 लाख 97 हजार 256 बताई गई है। चौथे चरण तक लाडो लक्ष्मी योजना में सात लाख अतिरिक्त महिलाओं को यह सुविधा प्रदान की जाएगी, ऐसा सरकार ने ठाना है। दूसरे चरण में 1.80 लाख रुपये वार्षिक आय वाली महिलाओं को शामिल किया जाएगा। वहीं एक लाख अस्सी हजार से तीन लाख रुपये वार्षिक आय वाली महिलाओं की अनुमानित संख्या 46 लाख 62 हजार बताई जा रही है। वैसे तो देश के कई राज्यों में इस तरह की योजनाएं संचालित हैं। 

इन योजनाओं के नाम और दी जाने वाली रकम भले ही अलग अलग हों, लेकिन इन योजनाओं का मूल मकसद लोकसभा और विधानसभा चुनावों के दौरान महिला मतदाताओं को अपनी ओर आकर्षित करना है। जिन महिलाओं को यह सुविधा प्रदान की जाएगी, सरकार का मानना है कि जब कभी चुनाव होंगे, इतनी बड़ी संख्या में महिलाएं उसके ही पक्ष में मतदान करेंगी। इस तरह की योजनाओं का मकसद ही होता है, लोगों की भलाई के नाम पर अपना जनाधार तैयार करना। 

इसके चलते राज्य की अर्थव्यवस्था पर जो भार पड़ता है, उसकी ओर कोई ध्यान नहीं देता है। ऐसी ही तमाम योजनाओं के चलते देश के कई राज्यों पर कर्ज की राशि लगातार बढ़ती जा रही है। यदि इन योजनाओं में पैसा बांटने की जगह नौकरी और रोजगार के अवसर उपलब्ध कराएं जाएं, तो प्रदेश और नागरिकों की अर्थव्यवस्था सुधरेगी।

Wednesday, September 24, 2025

धन संपत्ति का मोह छोड़ो, ठीक हो जाओगे

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

लोभ मनुष्य के पतन का कारण बनता है, यह सभी जानते हैं, लेकिन मोह और लोभ से पीछा जिंदगी भर नहीं छूटता है। जिसके पास जितना होता है, व्यक्ति उससे अधिक हासिल कर लेने के ही लोभ में फंसा रहता है। लोग धन-संपत्ति को हासिल करने के लिए हर संभव प्रयास करते हैं। तरीका चाहे जायज हो या नाजायज, बस अथाह धन-संपत्ति होनी चाहिए, यही व्यक्ति की लालसा होती है। 

किसी नगर में एक धनी व्यक्ति रहता था। वह अपने धन को बढ़ाने के लिए हर जतन किया करता था। जहां से भी और जैसे भी धन आए, वह उस काम को करने से पीछे नहीं हटता था। धीरे-धीरे उसमें इस बात का अहंकार पैदा होने लगा कि वह अपने धन की बदौलत सब सुख हासिल कर सकता है। उसने अपनी जवानी धन कमाने और सुख उठाने में ही बिता दी। 

उसे एक ही बात का दुख था कि उसके कोई औलाद नहीं थी। एक दिन जब वह अपने भव्य महल जैसे मकान में सो रहा था, तो उसने सपने में देखा कि एक अस्पष्ट सी छाया उसके सामने खड़ी है। वह उस छाया को देखकर डर गया। उसने छाया से पूछा कि तुम कौन हो? छाया ने उत्तर दिया-मृत्यु। छाया का जवाब सुनकर उसकी नींद टूट गई। वह डर गया। उसे लगने लगा कि अब उसकी मौत होने वाली है। उसने अपने दुख को दूर करने का हर संभव प्रयास किया, लेकिन नाकाम रहा।

 एक दिन वह एक संत के पास पहुंचा और अपना दुखड़ा सुनाया। संत ने कहा कि मृत्यु और जीवन दोनों मित्र हैं। इनसे डरना कैसा? तुम्हारी समस्या का हल यही है कि तुम एक हाथ से लो और दूसरे हाथ से दो। धन-संपत्ति का मोह त्यागो। मोह त्यागने पर ही तुम्हारा कल्याण है। इसके बाद वह लोगों का कल्याण करने लगा।

दुराचारियों को राहत नहीं देने का हाईकोर्ट का फैसला बिल्कुल सही

अशोक मिश्र

बलात्कार किसी भी महिला के साथ किया गया जघन्यतम अपराध है। जब किसी बच्ची या महिला से कोई दुराचार करता है, तो वह उसके शरीर के साथ-साथ उसकी आत्मा तक को छलनी कर देता है। ऐसा अपराध करने वाले व्यक्ति के प्रति किसी भी प्रकार की रियायत नहीं बरतनी चाहिए। पंजाब-हरियाणा हाईकोर्ट ने सोमवार को पहले पॉक्सो मामले के आरोपी की जमानत देने से इनकार करते हुए कहा कि पॉक्सो के आरोपियों को राहत देने से समाज में गलत संदेश जाएगा। 

दरअसल, मामला यह था कि आरोपी ने अपनी नाबालिग चचेरी बहन के साथ दुराचार किया, उसका अश्लील वीडियो बनाया और अपने एक साथी को भी इस दुराचार में शामिल कर लिया। नाबालिग ने नौ महीने बाद अपने स्कूल के शौचालय में एक बच्चे को जन्म दिया और उस नवजात को ले जाकर कूड़ेदान में डाल दिया। पुलिस ने मामला दर्ज करके छानबीन की तो सच बाहर आया। दोनों आरोपी गिरफ्तार किए गए और उन्हें जेल में डाल दिया गया। सोमवार को मुख्य आरोपी की जमानत याचिका पर सुनवाई करते हुए हाईकोर्ट ने कहा कि देश-प्रदेश में ऐसे मामलों की संख्या दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। 

ऐसी स्थिति में दुराचार के मामले में किसी प्रकार की छूट देने से बच्चों और समाज पर बुरा प्रभाव पड़ सकता है। समाज में गलत संदेश जा सकता है। सच भी यही है। हमारे देश और प्रदेश में यौन शोषण और दुराचार की घटनाएं दिनोंदिन बढ़ती जा रही हैं। हालात इतने बदतर हो चुके हैं कि नरपिशाच दो-तीन साल की बच्चियों तक को अपनी हवस का शिकार बना रहे हैं। ऐसे आरोपियों को कठोरतम सजा दी जानी चाहिए। हमारे समाज की एक मनोवृत्ति यह भी है कि जब कोई महिला या नाबालिग ऐसी स्थिति से गुजरती है, तो परिवार, नाते-रिश्तेदार और समाज के लोग दुराचार का दोषी उसे ही मान लेते हैं। 

मानो उसने जानबूझकर अपना दुराचार करवाया हो। दुराचार करने वाला तो समाज में सिर ऊंचा करके चलता है और पीड़ित को कई तरह की सामाजिक प्रताड़ना का सामना करना पड़ता है। जो पीड़ित है उसे अपना मुंह छिपाकर कहीं आना जाना पड़ता है। जबकि होना यह चाहिए था कि पूरे समाज को पीड़िता के साथ खड़ा होना चाहिए। उसे आरोपी को सजा दिलाने में मदद करनी चाहिए। 

उसके साथ सहानुभूति होनी चाहिए क्योंकि उसके साथ बुरा हुआ है। लेकिन नहीं, होता इसका उलटा है। अपराधी इस कृत्य को अपनी मर्दानगी मानता है। वह समाज के सामने भी लज्जित नहीं होता है। कई बार यह भी देखने को मिलता है कि पीड़िता के परिजन ही अपने परिवार की महिला को ही दोषी मान लेते हैं।

Monday, September 22, 2025

कर्तव्य समझकर राजपाट संभालो

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमें अपने काम को बोझ नहीं मानना चाहिए। काम चाहे आफिस का हो, घर का हो या समाज का, अगर उसे बोझ मान लिया, तो वह हमारे लिए एक मुसीबत बनकर रह जाएगा। यदि हम किसी काम को अपना कर्तव्य मानकर करते हैं, तो वह काम भी अच्छी तरह हो जाएगा और हमें परेशानी भी नहीं होगी। 

यही बात एक राजा को उसके राजगुरु ने आचरण करके समझाई, तो राजा की न केवल समस्त चिंता दूर हो गई, बल्कि वह अपने जीवन में भी खुशी महसूस करने लगा। किसी राज्य में कई वर्षों तक अकाल पड़ने से प्रजा बहुत परेशान हो गई। राजा भी चिंतित रहने लगा। वैसे राजा अपनी प्रजा के प्रति बहुत दयालु था और वह जरूरत पड़ने पर अपनी प्रजा की हर संभव मदद भी करता था। 

जब अकाल ने कई वर्षों तक पीछा नहीं छोड़ा, तो उसने कर वसूलना भी लगभग बंद कर दिया। इसकी वजह से राज्य की आय भी बहुत मामूली रह गई। अपने राज्य के हालात देखकर राजा बहुत चिंतित और उदास रहने लगा। वह सोचने लगा कि यदि अकाल जल्दी ही खत्म नहीं हुआ, तो संभव है कि पड़ोसी राजा हमें कमजोर मानकर हमला न कर दे। ऐसी हालत में लड़ना भी मुश्किल होगा। यह सब कुछ सोचने की वजह से राजा को रातभर नींद नहीं आती थी। उसकी भूख भी कम हो गई थी। 

यह बात जब राजा के राजगुरु को पता चली, तो उन्होंने राजा से कहा कि तुम ऐसा करो, राजपाट मुझे दे दो और एक कर्मचारी की तरह राजपाट संभालो। राजा ने ऐसा ही किया। अब उसे नींद भी आती थी और भूख भी लगती थी। छह महीने बाद राजगुरु ने राजा से पूछा-क्यों अब नींद आती है, भूख लगती है? राजा ने कहा कि हां अब भूख और नींद लगती है। तब राजगुरु ने कहा कि अब आप अपना काम कर्तव्य मानकर करते हैं। पहले बोझ समझते थे, इसलिए नींद नहीं आती थी। यह सुनकर राजा चुप रह गया।



नवरात्र में कंजक पूजिये और कन्या भ्रूण हत्या रोकिए

अशोक मिश्र

आज से नवरात्र की शुरुआत हो रही है। इन नौ दिनों में लक्ष्मी, सरस्वती और पार्वती के विभिन्न रूपों की पूजा अर्चना की जाएगी, लोग नौ दिन पूरे नियम-संयम के साथ व्रत रखेंगे। नवरात्र के दिनों में अपने परिवार सहित देश और समाज के कल्याण की कामना की जाएगी। सच यही है कि हमारे पूर्वजों ने नवरात्र के बहाने जहां लोगों में धार्मिक आस्था दृढ़ करने के लिए नवरात्र में नौ देवियों की पूजा-अर्चना की परंपरा शुरू की,वहीं इसके पीछे महिलाओं को कमतर न मानने की सीख देने की इच्छा भी रही है। 

नवरात्र के दौरान पूजी जाने वाली इन नौ देवियों ने अपने साहस और शौर्य के बल पर किसी न किसी समाज विरोधी राक्षसों का वध किया है और समाज में शांति और सद्भाव का संदेश दिया है। नवरात्र पूरे साल भर में चार बार आती है। वासंतिक नवरात्र और शारदीय नवरात्र के अलावा दो गुप्त नवरात्र साल भर में पड़ती है। नवरात्र हमें सादगी और साफ मन से जीवन बिताने की प्रेरणा देती है।

नवरात्र के अंतिम दिन में लोग कन्या पूजन करते हैं। कन्या पूजन की परंपरा इस बात का प्रतीक है कि मानव समाज में स्त्री और पुरुष दोनों की महत्ता बराबर है। यदि समाज में स्त्रियां नहीं होंगी, तो अगली संततियां कैसे होंगी। समाज के निर्माण में महिलाओं का सबसे बड़ा योगदान है। इसलिए हमें महिलाओं की पूजा करनी चाहिए, उनका सम्मान करना चाहिए, उनके प्रति हमें आभार का भाव रखना चाहिए क्योंकि एक स्त्री ही बच्चे को जन्म देती है, उसे जीवन देती है। नवरात्र में नौ देवियों को मां मानकर पूजने के पीछे यही भाव है। जिस तरह यह नौ देवियां पूजनीय हैं, वैसे ही हमारे घर-परिवार की हर महिला पूजनीय है।

चाहे वह मां हो, बहन हो, बेटी हो या पत्नी। सबका मान-सम्मान बराबर होना चाहिए। लेकिन आज जिस तरह समाज हो गया है, उसको देखते हुए यह जरूरत बड़ी शिद्दत से महसूस की जाने लगी है कि नवरात्र के संदेश को हर इंसान के मन में गहराई से बैठा दी जाए कि स्त्री चाहे अपने घर की हो या दूसरे के घर की, हमेशा पूजनीय रही है और भविष्य में भी रहेगी। लेकिन अफसोस की बात यह है कि समाज का वातावरण बहुत भयावह हो चुका है। स्त्री अपने ही घर में सुरक्षित नहीं महसूस कर रही है। 

लोग इतने अंधे हो चुके हैं कि एक-एक, दो-दो साल की बच्चियों तक से दुराचार कर रहे हैं। किसी भी उम्र की बच्ची आज सुरक्षित नहीं है। सड़कों पर चलना दूभर हो गया है। छेड़छाड़ और यौन शोषण की घटनाएं जैसे आम बात होती जा रही हैं। कन्याओं को गर्भ में ही मारा जा रहा है। इसके चलते देश और प्रदेश का लिंगानुपात बिगड़ता जा रहा है। नवरात्र मनाना तब सार्थक होगा, जब पूरे देश में कन्या भ्रूण हत्या पूरी तरह रुक जाएगी।

Sunday, September 21, 2025

गरीबों की मदद करने से मिलता है सम्मान

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

राजा भोज का जन्म परमार वंश में हुआ था। वह खुद बहुत बड़े साहित्यकार, कला प्रेमी और गुणग्राहक थे। उन्होंने 84 ग्रंथों की रचना की थी, लेकिन वर्तमान में केवल 21 ही प्राप्य हैं। उन्होंने भोजपुर को अपनी राजधानी बनाया था जिसे बाद में भोजपाल और वर्तमान में भोपाल कहा जाता है। 

यह मध्य प्रदेश की राजधानी है। राजा भोज ने 1010 से 1055 तक शासन किया था। धारा नगरी के राजा सिंधुल के यह पुत्र थे। कहते हैं कि यह जब पांच साल के थे, तब इनके पिता सिंधुल अपने छोटे भाई मुंज को राजकाज सौंपकर स्वर्गवासी हो गए थे। मुंज इनकी हत्या करके निष्कंटक राज्य करना चाहता था। इसी लिए उसने बंगाल के वत्सराज को इन्हें मारने के लिए बुलाया। वत्सराज ने मारने की जग एक हिरन को मारकर बताया कि उसने भोज को मार दिया है। 

इसके बाद मुंज के मन में  अपने भतीजे के प्रति प्यार जागा और वह बिलख कर रोने लगा। तब वत्सराज ने सच्चाई बताई। उसी समय मुंज ने भोज को राजा बना दिया और खुद पत्नी के साथ जंगल चले गए। एक बार की बात है। भोज अपने महल में सो रहे थे। उनके सपने में एक दिव्य पुरुष आए और उनको अपने साथ उस बगीचे में ले गए जिस पर उन्हें अभिमान था। उस पुरुष ने एक पेड़ को छुआ, तो सारा बगीचा सूख गया। 

इसके बाद वह उन्हें उस मंदिर में ले गया जिसे बनवाने में काफी पैसा खर्च किया गया। उसे छूते ही वह भी काला पड़ गया। तब उस पुरुष ने कहा कि मंदिर, उपवन बनाने और उस पर अभिमान करने की जगह गरीबों की सेवा सहायता करने से लोगों में प्रतिष्ठा बढ़ती है। इसके बाद भोज की नींद खुल गई। उसके बाद भोज ने प्रजा की भलाई के काम करने शुरू किए।

स्वच्छता अभियान तो चला लेकिन नहीं दिखी सफाई

अशोक मिश्र

प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी के जन्मदिन पर हरियाणा के सभी जिलों में मंत्रियों, अधिकारियों और भाजपा कार्यकर्ताओं ने 17 सिंतबर बड़े जोरशोर से सड़कों पर स्वच्छता अभियान चलाया। पीएम मोदी के जन्मदिन के उपलक्ष्य में भाजपा ने सेवा पखवाड़ा मनाने का ऐलान किया है। पूरे पखवाड़े प्रदेश में सेवा की जाएगी। लेकिन ज्यादातर मामलों में यह देखने में आया है कि जहां स्वच्छता अभियान चलाया गया,वह स्थान अपेक्षाकृत पहले से ही साफ सुथरे थे। जिन स्थानों पर गंदगी थी, कूड़ा करकट भरा पड़ा था, उस ओर ध्यान ही नहीं दिया गया। 

साफ सड़कों पर स्वच्छता अभियान चलाने का कोई मतलब नहीं है। प्रशासन की निगाह उन जगहों पर क्यों नहीं पड़ती है जो इलाके पहले से ही गंदे हैं। शहरों में बहुत सारी जगहें ऐसी हैं जिनके किनारे से गुजरना, किसी मुसीबत से कम नहीं है। कुत्ते और लावारिस पशु इन जगहों पर अपने भोजन तलाशते हुए मिल जाते हैं। इन पशुओं की वजह से कई बार हादसे भी हो जाते हैं। कई लोगों की जान भी ऐसे हादसों में जा चुकी है। 

वैसे यह बात सही है कि मंत्रियों, अधिकारियों और कार्यकर्ताओं ने स्वच्छता अभियान चलाकर लोगों को स्वच्छता के प्रति जागरूक करने का प्रयास किया है, लेकिन इससे कितने लोग जागरूक हो पाएंगे यह कह पाना बहुत मुश्किल है। सबने सफाई अभियान में भाग लेकर लोगों को यह संदेश देने का प्रयास किया कि प्रदेश को स्वच्छ रखना बहुत जरूरी है। शहर के गंदा रहने से लोगों के बीमारियों से ग्रसित होने की आशंका रहती है, वहीं शहर की छवि भी खराब होती है। 

हालत यह है कि प्रदेश के लगभग सभी जिलों में थोड़ी सी बरसात होने पर सड़कों पर पानी जमा हो जाता है। सड़कों पर खुले मैनहोल और सीवेज बरसात में जानलेवा साबित हो रहे हैं। अब जब बरसात विदा हो रही है, इसके बावजूद कई जगहों पर सड़कों पर पानी भरा हुआ है। ऐसी स्थिति में शहरों में स्वच्छता अभियान चलाने का कितना फायदा होगा, इस पर भी विचार करना होगा। ऐसी स्थिति में सबसे उपयुक्त यही होगा कि बरसात खत्म होते ही यदि स्थानीय निकाय के अधिकारी-कर्मचारी सहित स्वयंसेवी संस्थाएं स्वच्छता अभियान चलाएं तो नगरों को साफ सुथरा रखा जा सकता है। 

इसके लिए जरूरी है कि जनभागीदारी के लिए स्कूलों और कॉलेजों के छात्रों को स्वच्छता के प्रति जागरूक किया जाए। साथ ही रेजिडेंट वेलफेयर एसोसिएशनों और गैर-सरकारी संगठनों के सदस्यों को भी अभियान से जोड़ा जाए। जब सामूहिक प्रयास होगा, तो सड़कें साफ सुथरी ही नहीं रहेंगी बल्कि जलजमाव की वजह से फैलने वाली बीमारियों पर भी अंकुश लगेगा।

Saturday, September 20, 2025

टॉलस्टाय ने किसान को भेंट किए जूते

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

उन्नीसवीं शताब्दी के सबसे सम्मानित साहित्यकारों में गिने जाते हैं लियो टॉलस्टाय। रूस के इस महान साहित्यकार ने वार एंड पीस नामक उपन्यास रचकर रूसी साहित्य में हलचल पैदा कर दी थी। कहा जाता है कि महात्मा गांधी ने अहिंसा की प्रेरणा इसी पुस्तक को पढ़कर प्राप्त की थी। 

टॉलस्टाय का जन्म 9 सितंबर 1828 को मास्को से सौ मील दूर एक यास्नाया पोल्याना रियासत में हुआ था। इन माता-पिता का बचपन में ही निधन हो गया था। इनका पालन पोषण इनकी चाची तात्याना ने किया था। वह टॉलस्टॉय को एक उच्च श्रेणी का तालुकेदार बनाना चाहती थीं, लेकिन स्वभाव से मस्तमौला प्रवृत्ति का होने की वजह से वह वैसा नहीं बन पाए जैसा उनकी चाची चाहती थीं। 

उन्होंने अपने तालुके में किसानों की दशा सुधारने का कई बार प्रयास किया, लेकिन अंतत: वह नाकाम ही रहे। टॉलस्ट ने सेना की नौकरी भी की और युद्ध के दौरान ही कई रचनाएं कीं। एक बार की बात है। टालस्टाय अपने गांव में रह रहे थे। उन्होंने देखा कि एक किसान नंगे पैर खेत की जुताई कर रहा है। उसके पैर में छाले पड़े हुए थे जो फूट गए थे और उनसे खून बह रहा था। उन्होंने उस किसान से पूछा कि आपने जूते क्यों नहीं पहने हैं? उस किसान ने उत्तर दिया कि मेरे पास जूते नहीं हैं। 

मैं अपने खेतों से उतना ही अन्न उगा पाता हूं जितने में परिवार का बड़ी मुश्किल से गुजारा हो पाता है। इसके बाद टॉलस्टाय घर लौट आए। अगले दिन एक जोड़ी जूता लेकर वह खेत में पहुंचे और किसान को भेंट कर दिया। किसान ने आभार जताते हुए कहा कि आपने मेरी राह आसान कर दी है। अब मैं अपने परिवार के लिए अधिक काम कर सकूंगा। उसकी बात सुनकर टॉलस्टाय मुस्करा दिए।

फसल पंजीकरण मामले की गहनता से कराई जाए जांच

अशोक मिश्र

अब हरियाणा से मानसून विदा हो रहा है। आगामी कुछ दिनों तक कहीं छिटपुट, तो कहीं भारी बरसात हो सकती है। जब मानसून विदा होने लगता है, तो लगभग हर साल ऐसा ही होता है। हां, इस बार मानसून सीजन में हरियाणा में सामान्य से अधिक बरसात हुई। लेकिन सामान्य से अधिक बरसात और बादल फटने की घटनाएं जम्मू-कश्मीर, हिमाचल प्रदेश और उत्तराखंड में कई बार हुईं। इन राज्यों में हुई भारी बारिश की वजह से पंजाब और हरियाणा में आई बाढ़ से लोगों को बहुत नुकसान उठाना पड़ा। 

खेतों में जलजमाव की वजह से दोनों राज्यों में किसानों की फसल डूब गई और बरबाद हो गई। दोनों राज्यों की सरकारों ने किसानों को हुए नुकसान का मुआवजा देने की घोषणा की है। लेकिन जिस तरह दोनों राज्यों में फसल क्षतिपूर्ति के लिए दावे किए गए हैं, वह आश्चर्यजनक हैं। पंजाब के कुल 23 जिले भीषण बाढ़ की चपेट में थे। कुछ जिलों में तो अभी स्थिति सामान्य नहीं हो पाई है, लेकिन पंजाब के किसानों ने अभी तक क्षतिपूर्ति के लिए जो दावा किया है, उसके मुताबिक 23 जिलों में कुल चार लाख एकड़ फसल बरबाद हुई है। 

वहीं हरियाणा के कुल बारह जिलों में बाढ़ और अतिवृष्टि के चलते फसलें बरबाद हुई थीं। सरकारी ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर फसलें बरबाद होने के जो दावे किए गए हैं, वह चकित करने वाले हैं। हरियाणा ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर 32 लाख एकड़ फसल नुकसान की बात कही जा रही है यानी पंजाब के मुकाबले आठ गुना ज्यादा।  ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर इतनी ज्यादा संख्या में किए गए दावे को लेकर सरकारी एजेंसियों के कान खड़े हो गए हैं। इन दावों को देखते हुए आशंका जाहिर की जा रही है कि प्रदेश में कोई ऐसा गैंग सक्रिय हो उठा है जो किसानों की आड़ में प्रदेश सरकार को ठगना चाहता है। 

सरकार का अनुमान है कि फसल नुकसान का वास्तविक आंकड़ा बहुत कम है, लेकिन कुछ लोगों ने फर्जी तरीके से ई-क्षतिपूर्ति पोर्टल पर फसल नुकसान का दावा किया है। कुछ ऐसे किसानों के नाम पर भी दावा करने की बात कही है जो किसान अब इस दुनिया में हैं ही नहीं। उनकी काफी पहले मौत हो चुकी है। ऐसी स्थिति में यह बहुत जरूरी है कि सरकार इस मामले की गहनता से जांच कराए और जो वास्तविक किसान हैं, उनको जल्द से जल्द मुआवजा उपलब्ध कराए। 

फर्जीवाड़ा करने वाले लोगों के खिलाफ सख्त से सख्त कार्रवाई की जाए ताकि भविष्य में कोई ऐसा दुस्साहस न कर सके। यदि वास्तव में 32 लाख एकड़ फसल का नुकसान हुआ है, तो किसानों को उनका हक दिया जाए। मामले की गहनता से जांच बहुत जरूरी है क्योंकि किसानों के नाम पर फर्जीवाड़ा रोका ही जाना चाहिए।

Friday, September 19, 2025

आंखों की रोशनी जाने के बाद लिखी पैराडाइज लास्ट

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

पैराडाइज लॉस्ट जैसी अमर कृति लिखने वाले जॉन मिल्टन का जन्म 9 दिसंबर 1608 में लंदन में हुआ था। इनके पिता साहित्य और कला प्रेमी थे। एक सुसंस्कृत परिवार में जन्म लेने का फायदा इन्हें मिला और इनके साहित्य को दुनिया भर में प्रशंसा मिली। मिल्टन की शिक्षा सेंट पॉल स्कूल तथा कैंब्रिज विश्वविद्यालय के क्राइस्ट कॉलेज में हुई। क्राइस्ट कॉलेज में वे सात वर्ष रहे। 

1629 ई० में उन्होंने स्नातक पास किया और 1632 में स्नातकोत्तर की परीक्षा पास की। इसके बाद भी इनका अध्ययन जारी रहा। जॉन मिल्टन को शेक्सपियर के बाद अंग्रेजी साहित्य के दूसरे महानतम कवि माना जाता है। कहते हैं कि जॉन मिल्टन ने कालेज समय से ही गद्य और पद्य में लिखना शुरू कर दिया था। सन 1643 को मिल्टन का विवाह मैरी पावेल से हुआ। 

शादी के एक महीने बाद ही इनकी पत्नी अपने पिता के पास यह कहते हुए लौट गईं कि मिल्टन के साथ जीवन यात्रा अंधकारमय है। लेकिन दो साल बाद वह मिल्टन के पास खुद ही लौट आई। तीन पुत्रियों की मां बनने के बाद 1652 में मेरी पावेल की मौत हो गई। दुर्भाग्य से इसी दौरान मिल्टन की आंखों से रोशनी चली गई। वह उन दिनों पैराडाइज लास्ट यानी स्वर्ग से निष्कासन नामक काव्य ग्रंथ लिख रहे थे। 

अब जब कुछ भी दिखाई नहीं दे रहा था, ऐसी स्थिति में लिखना-पढ़ना बिल्कुल बंद हो गया।  ऐसी स्थिति में उन्होंने अपनी तीनों बेटियों और मित्रों से अनुरोध किया कि वह जो कुछ बोल रहे हैं, उसे लिपिबद्ध कर दें। बेटियों और मित्रों के सहयोग से किसी तरह काव्य ग्रंथ पूरा हुआ। प्रकाशित होने पर पैराडाइज लॉस्ट बहुत लोकप्रिय हुआ। लेकिन तत्कालीन शासन ने इस पुस्तक पर प्रतिबंध लगा दिया।

बात-बात पर उग्र क्यों हो जा रहे हैं हमारे नौनिहाल?

अशोक मिश्र

हमारे देश की युवा पीढ़ी इतनी उग्र क्यों हो रही है, इस पर समाज को गंभीरता से विचार करना होगा। बात-बात पर आक्रामक हो जाने वाली नई पीढ़ी ऐसा क्यों कर रही है? यह समस्या किसी एक परिवार की नहीं है, बल्कि पूरे समाज की समस्या है। नारनौल जिले के कनीना खंड के खेड़ी तलवाना गांव की रहने वाली एक महिला की उसके बेटे ने पीट-पीटकर जयपुर में हत्या कर दी। हत्या का कारण बहुत ही मामूली बताया जा रहा है। कहा जा रहा है कि वाई-फाई कनेक्शन को लेकर दोनों में कहा सुनी हुई। 

इसके बाद उसने अपनी मां को डंडों से पीट-पीटकर हत्या कर दी। उसे बचाने के लिए जब सेवानिवृत्त फौजी पिता और बहनें आईं, तो उनसे भी मारपीट की। बुरी तरह घायल महिला को जब अस्पताल पहुंचाया गया, तो उसने इलाज के दौरान दम तोड़ दिया। समाज में इस तरह की बहुत सारी घटनाएं आए दिन सामने आती रहती हैं। कहीं कोई पिता अपनी बेटी की हत्या कर रहा है, तो कहीं कोई भाई अपने ही भाई-बहन को जान से मार दे रहा है। इन घटनाओं के पीछे कोई बहुत बड़े कारण नहीं होते हैं। 

बस, मामूली सी बातें होती हैं और युवा उग्र होकर ऐसी घटनाओं को अंजाम दे बैठते हैं। आखिर क्यों, युवाओं में यह प्रवृत्ति क्यों पनप रही है? इसके पीछे सामाजिक ढांचे आए बदलाव को प्रमुख कारण माना जा रहा है। हो यह रहा है कि एकल परिवार की अवधारणा के चलते ज्यादातर घरों में पति-पत्नी दोनों कामकाजी होते जा रहे हैं। बच्चा दिन भर अकेले ही घर में रह रहा है। स्कूल या कालेज से आने के बाद बच्चा क्या कर रहा है, इस पर कोई ध्यान देने वाला नहीं है। शाम को घर लौटने पर थके मां-बाप के पास अपने बच्चे के लिएभी समय नहीं होता है। ऐसी दशा में वह भीतर ही भीतर कुंठित होने लगते हैं। 

उनके भीतर मां-पिता के ही प्रति नहीं, बल्कि समाज के प्रति भी आक्रोश पनपने लगता है। वह विद्रोही हो उठते हैं। थोड़ी थोड़ी बात पर ही उनका गुस्सा उबाल मारने लगता है। हिंसक हो जाते हैं। ऊपर से  परिवार पर बढ़ता महंगाई का बोझ, बेरोजगारी और माता-पिता की अपनी संतानों से बढ़ती अपेक्षाएं उन्हें उग्र बना रही हैं। ऐसा नहीं है कि गरीबी, बेकारी और महंगाई का दबाव पहले नहीं था, तब संयुक्त परिवार हुआ करते थे। परिवार के बच्चों पर सबकी निगाह रहा करती थी। 

बच्चे अपने परिवार के बड़े बुजुर्गों से आत्मिक रूप से जुड़े रहते थे। तब यदि कोई परेशानी हुआ करती थी, तो  परिवार के लोग मिलकर उसे सुलझा लिया करते थे। संयुक्त परिवार हर परिस्थिति में एक सेफ्टी वाल्व के रूप में काम करता था। आपस में प्यार से लड़-झगड़कर अपने आक्रोश को निकाल दिया करते थे।

Thursday, September 18, 2025

अहंकार त्यागकर ही सीखा जा सकता है

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हमारे धर्मग्रंथों में मनुष्य के जीवन को बरबाद कर देने वाले छह विकारों की चर्चा की गई है। काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर नाम के इन छह विकारों से मनुष्य को हमेशा बचकर रहने की सलाह दी गई है। इन छह अवगुणों से जो भी ग्रसित हुआ, उसके जीवन में पतन की शुरुआत निश्चित मानी जाती है। काम और क्रोध के बाद अहंकार यानी मद तो व्यक्ति को सबसे पहले पतन की ओर ले जाते हैं। 

व्यक्ति जीवन भर उलझता रहता है, लेकिन जीवन की पहेलियां सुलझ नहीं पाती हैं। इस संबंध में एक बहुत ही रोचक कथा है। किसी राज्य में एक युवा गुरुकुल में तीरंदाजी सीख रहा था। कई साल के अभ्यास के बाद वह एक अच्छा तीरंदाज बन गया। धीरे-धीरे उसमें अहंकार आता गया और उसने अपने को दुनिया का सबसे बड़ा तीरंदाज मान लिया। अब वह जगह-जगह जाकर लोगों को तीरंदाजी के लिए ललकारता और हराने के बाद हारने वाले का खूब मजाक उड़ाता। 

धीरे-धीरे उसकी ख्याति बढ़ती गई। एक दिन उसने अपने ही गुरु को तीरंदाजी के लिए चुनौती दे दी। उसकी चुनौती पर गुरु जी मुस्कुराए और उससे अपने पीछे आने को कहा। गुरु जी उसे लेकर एक ऐसी जगह पहुंचे, जहां एक जर्जर पुल बना हुआ था। उस जर्जर पुल के बीचोबीच में जाकर गुरु जी ने अपने तरकश से तीर निकाला और दूर खड़े एक पेड़ का निशाना लगाया। 

तीर जाकर पेड़ में आधा धंस गया। गुरु ने शिष्य से कहा कि अब तुम निशाना लगाओ। उस पुल पर डरता-डरता शिष्य पहुंचा और पेड़ का निशाना लगाया। शिष्य का तीर लक्ष्य तक ही नहीं पहुंच पाया। शिष्य बहुत शर्मिंदा हुआ। गुरु जी ने कहा कि जब तक सीखने की ललक रहती है, तभी तक कोई सीख सकता है। अहंकार सीखे हुए को भी भुला देता है।

हरियाणा में कुत्तों के काटने की बढ़ती घटनाएं चिंताजनक

अशोक मिश्र

सुप्रीमकोर्ट की ही तरह हरियाणा-पंजाब हाईकोर्ट ने भी आवारा कुत्तों की बढ़ती जनसंख्या और इंसानों पर हमला करने की बढ़ती घटनाओं को काफी गंभीरता से लिया है। हाईकोर्ट ने पंजाब और हरियाणा को निर्देश दिया है कि वह जल्दी से जल्दी कुत्तों के काटने की संख्या और अन्य विवरण दें। इसके साथ ही यह भी बताएं कि कुत्तों की नसबंदी जैसे कार्यक्रमों की वास्तविक स्थिति क्या है? आवारा कुत्तों के टीकाकरण के बारे में भी कोर्ट ने रिपोर्ट तलब की है। हाईकोर्ट ने आवारा कुत्तों के काटने से जुड़े मामलों की सुनवाई के दौरान दोनों राज्यों को यह निर्देश दिए हैं। कोर्ट इस संबंध में दायर अवमानना याचिकाओं को अब सुप्रीमकोर्ट भेजेगा। सुप्रीमकोर्ट पहले ही आवारा कुत्तों के बारे में दिशा निर्देश दे चुका है। 

हरियाणा में आवारा कुत्तों के काटने की घटनाएं कम होती नहीं दिख रही हैं। एक अनुमान के मुताबिक हरियाणा में रोजाना लगभग सौ घटनाएं कुत्तों के काटने के सामने आते हैं। पिछले एक दशक में अब तक लगभग 12 लाख घटनाएं सरकारी आंकड़ों में दर्ज हो चुकी हैं। बहुत सारी ऐसी भी घटनाएं होने का  अनुमान है जो सरकारी आंकड़ों में दर्ज ही नहीं हुई हैं। ज्यादातर लोग परिवार के किसी सदस्य को कुत्ते के काटने पर सरकारी अस्पताल में इलाज कराने की जगह निजी अस्पतालों में इलाज करवा लेते हैं। 

ऐसे मामले सरकारी आंकड़ों में दर्ज ही नहीं हो पाते हैं। वैसे देश भर में शायद हरियाणा पहला राज्य है जिसने गरीब व्यक्ति को कुत्ते के काटने पर न्यूनतम दस हजार रुपये और काटने पर चमड़ी उधड़ जाने पर बीस हजार रुपये मुआवजे का प्रावधान किया है। वैसे यह बात सच है कि प्रदेश में कुत्तों की संख्या लगातार बढ़ती जा रही है। प्रदेश के सभी जिलों में शायद ही कोई ऐसी गली होगी जिसमें आवारा कुत्ते दिखाई न देते हों। हर गली, हर चौराहे पर कुत्तों के झुंड दिखाई देते हैं। 

अगर कोई बच्चा इस झुंड के सामने पड़ जाए, तो उसे नोच नोच कर घायल कर देते हैं। कई बच्चों की तो मौत भी हो जाती है। रात में अगर कोई अकेला व्यक्ति किसी गली से   गुजर रहा हो, तो यह झुंड बनाकर हमला कर देते हैं। कई बार झुंड बनाकर यह कुत्ते व्यक्ति को इतना घायल कर देते हैं कि उसकी मौत तक हो जाती है। स्थानीय निकायों को आवारा कुत्तों की नसबंदी करने में तत्परता दिखानी चाहिए। इनका टीकाकरण बहुत आवश्यक है ताकि किसी भी व्यक्ति की कुत्तों के काटने पर रैबीज की वजह से जान न जाए। 

सरकारी अस्पतालों में कुत्तों के काटने पर लगने वाला इंजेक्शन पर्याप्त मात्रा में होनी चाहिए ताकि कोई भी बिना इंजेक्शन लगवाए जाने न पाए। आए दिन सरकारी अस्पतालों में कुत्तों के काटने पर लगने वाले इंजेक्शन की कमी की खबरें प्रकाशित होती रहती हैं।

Wednesday, September 17, 2025

वक्त के बहुत पाबंद थे जार्ज वाशिंगटन

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जार्ज वाशिंगटन को संयुक्त राज्य अमेरिका का संस्थापक और पिता माना जाता है। वह अमेरिका के 30 अप्रैल 1789 से 4 मार्च 1797 तक राष्ट्रपति भी रहे।1775 में जब ब्रिटिश हुकूमत के खिलाफ अमेरिका में बगावत शुरू हुई, तो उन्हें महाद्वीपीय सेना का कमांडर इन चीफ बनाया गया। उन्होंने अमेरिका की स्वतंत्रता के लिए जी जान से प्रयास किया और अन्य क्रांतिकारियों की मदद से आखिरकार अपने देश को आजाद कराने में सफल हो गए। 

जार्ज वाशिंगटन समय के बहुत पाबंद थे। वह हर काम नियत समय पर ही करना पसंद करते थे। वह सादा जीवन उच्च विचार पर विश्वास रखते थे। उनकी सादगी को देखकर लोगों को ताज्जुब होता था कि अमेरिका का राष्ट्रपति इतना सादा जीवन जीता है। राष्ट्रपति पद संभालने के लगभग तीन महीने बाद की घटना है। उन्हीं दिनों अमेरिकी कांग्रेस के चुनाव हुए थे। 

उन्होंने अमेरिकी कांग्रेस के चुने हुए प्रतिनिधियों को एक दिन डिनर पर आमंत्रित किया। इसके पीछे उद्देश्य यह था कि लोगों से परिचय भी हो जाएगा और वह उनके दायित्वों को उन्हें बता सकें। डिनर का जब समय हुआ, तब तक कोई भी प्रतिनिधि वहां नहीं पहुंचा था। जब डिनर का समय हुआ, तो रसोइये ने उनको भोजन परोस दिया। वह भोजन कर ही रहे थे कि तब तक सारे प्रतिनिधि भी पहुंच गए। 

उन्हें राष्ट्रपति को भोजन करता हुआ देखकर आश्चर्य हुआ कि मेहमान के आने से पहले भोजन कर रहे हैं। तब वाशिंगटन ने कहा कि मेरा हर काम का समय नियत है। समय बहुत मूल्यवान है। इसके एक-एक क्षण को बरबाद नहीं करना चाहिए। यह सुनकर सभी प्रतिनिधियों को शर्म महसूस हुई और उन्होंने क्षमा मांगते हुए हर काम समय पर करने का वायदा किया।

परिवार पर बोझ बनकर रह जाता है हादसे में दिव्यांग हुआ व्यक्ति

अशोक मिश्र

पंजाब हरियाणा हाईकोर्ट ने अनूप सिंह के मामले जो फैसला सुनाया है, वह न केवल सराहनीय है, वरन भविष्य में ऐसे ही कई मामलों की नजर भी बनेगा। दरअसल, मामला केवल अनूप सिंह का ही नहीं है, ऐसे न जाने कितने मामले देश और प्रदेश में है जिनके फैसले मानवीय आधार पर नहीं होते रहे हैं और शायद भविष्य में भी हों। अनूप सिंह का मामला 2014 का है। 5 जनवरी 2014 को अनूप सिंह एक सड़क हादसे का शिकार हुए। काफी इलाज कराया गया, लेकिन हादसे की वजह से उनका बायां पैर घुटने के पास से काटना पड़ा। 

बाद में जब अनूप सिंह अस्पताल से निकले, तो उन्होंने अपनी दिव्यांगता और हादसे के लिए इंश्योरेंस कंपनी पर मुकदमा दर्ज कराया। हिसार एमएसीटी ने फरवरी 2016 को निर्देश दिया कि कंपनी अनूप सिंह को 14.7 लाख रुपये सात प्रतिशत वार्षिक ब्याज की दर से भुगतान करे। इंश्योरेंस कंपनी ने अनूप सिंह की दिव्यांगता को 60 प्रतिशत बताते हुए फैसले को मानने से इंकार किया और हाईकोर्ट में अपील की। उधर, अनूप सिंह ने भी क्रॉस आब्जेक्शन अपील करते हुए मुआवजे की राशि बढ़ाने की अपील की। 

हाईकोर्ट ने मुआवजे की राशि को बढ़ाते हुए 24 लाख 51 हजार नौ सौ कर दिया। अदालत ने अपनी टिप्पणी में कहा कि दिव्यांगता का आकलन शरीर नुकसान के साथ-साथ उसके जीवन पर पड़ने वाले असर के आधार पर होना चाहिए। अब अनूप सिंह का मामला लें। वह जब हादसे का शिकार हुए थे, तब वह सीआरपीएफ भर्ती परीक्षा पास कर चुके थे और इंटरव्यू आदि के बाद शायद सीआरपीएफ में नौकरी भी पा जाते। लेकिन हादसे के बाद न केवल वह किसी भी तरह की नौकरी के अयोग्य हो गए, बल्कि वह खेती-किसानी या मजदूरी के लायक भी नहीं रह गए। 

एक हादसे ने न केवल उनके सपनों को चकनाचूर कर दिया, बल्कि भावी जीवन की राह भी दुश्वार कर दी। वह जहां परिवार का सहारा बनने जा रहे थे,वहीं अब वह परिवार पर ही बोझ बनकर रह गए। यह केवल अनूप सिंह की ही कहानी नहीं है। हर साल देश और प्रदेश में हादसे का शिकार होने वाले हजारों लोगों की यही कहानी है। हादसे का शिकार होने के बाद काफी लोगों का जीवन नरक के समान हो जाता है। अगर अविवाहित हैं, तो विवाह की संभानवाएं भी खत्म हो जाती है। 

विवाह हो गया है, तो पत्नी और बच्चों का जीवन त्रासद हो जाता है। दिव्यांग हुए लोग परिवार पर बोझ बनकर रह जाते हैं। जो व्यक्ति कल तक अपने परिवार की धुरी था, वही हादसे के बाद किसी काम लायक नहीं रह जाता है। ऐसी स्थिति में हाईकोर्ट ने जीवन पर पड़ने वाले असर को भी मुआवजे का आधार बनाया है, तो वह सराहनीय है।

Tuesday, September 16, 2025

भगवान बुद्ध का सिर काट लूंगा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

स्वामी रामतीर्थ वेदांत दर्शन के अनुयायी थे। वह भारत के महान संतों में गिने जाते हैं। स्वामी रामतीर्थ का जन्म पंजाब के गुजरावालां इलाके में 22 अक्टूबर 1873 को दीपावली के दिन हुआ था। विद्यार्थी जीवन में रामतीर्थ को काफी आर्थिक संकटों का सामना करना पड़ा। इसी बीच इनका बाल विवाह कर दिया गया। अब पढ़ाई के साथ-साथ परिवार का भी बोझ इन पर आ गया। 

किसी तरह छात्रवृत्ति के सहारे रामतीर्थ ने पंजाब विश्वविद्यालय से बीए में सर्वोच्च अंक हासिल किया, तो इन्हें 90 रुपये की छात्रवृत्ति मिली। फिर इन्होंने गणित विषय से एमए किया और जिस कालेज से एमए किया, उसी में गणित के प्रोफसर हो गए। वर्ष 1901 में इन्होंने संन्यास ले लिया और प्रो. तीर्थराम से रामतीर्थ हो गए। अमेरिका में वेदांत का प्रचार करने के बाद वह जापान पहुंचे तो उनका बहुत स्वागत किया गया। 

एक दिन उन्होंने जापान के एक बच्चे से पूछा-बच्चे! तुम किस धर्म को मानते हो? बच्चे ने जवाब दिया-बुद्ध धर्म को।  उन्होंने फिर पूछा-बुद्ध को तुम क्या मानते हो? बच्चे ने बड़े शांत भाव से जवाब दिया-बुद्ध  तो भगवान हैं। स्वामी रामतीर्थ ने फिर पूछा-कन्फ्यूशियस के बारे में तुम क्या सोचते हो? उस बच्चे ने कहा-कन्फ्यूशियस एक महान संत थे। स्वामी जी इतने पर ही नहीं रुके। 

उन्होंने उस बच्चे से पूछा-मान लो कि कोई देश तुम्हारे देश पर हमला कर दे और उस सेना के सेनापति बुद्ध  या कन्फ्यूशियस हों, तो क्या करोगे? इतना सुनते ही उस बच्चे की आंखों में क्रोध उतर आया। उसने कटु शब्दों में कहा कि मैं भगवान बुद्ध का तलवार से सिर काट लूंगा और कन्फ्यूशियस को कुचल दूंगा। यह सुनकर स्वामी रामतीर्थ आश्चर्यचकित रह गए और उसकी राष्ट्रभक्ति से गदगद हो उठे।



विश्व मुक्केबाजी चैंपियनशिप में हरियाणा की चार बेटियों ने रच दिया इतिहास

अशोक मिश्र

हरियाणा की बेटियों ने इतिहास रच दिया। वैसे भी जब से हरियाणा के लोगों ने अपनी बेटियों को स्वतंत्रता, प्रेम और सम्मान दिया है, तब से राज्य की बेटियों ने प्रदेश के साथ-साथ देश का भी नाम रोशन किया है। हरियाणवी छोरियां जीवन के हर क्षेत्र में सफलता के परचम लहरा रही हैं। कल ही लिवरपूल में हुए विश्व मुक्केबाजी चैंपयिनशिप में हरियाणा की चार बेटियों ने इतिहास रच दिया है। बेटियों ने अपने गोल्डन पंच से अपने प्रतिद्ंवद्वी को करारी शिकस्त दी है। 48 किलो भार वर्ग में मीनाक्षी हुड्डा और 57 किलो भार वर्ग में राष्ट्रमंडल खेलों की पदक विजेता जैस्मिन लंबोरिया ने स्वर्ण पदक जीता है। 

वहीं 80 प्लस किलो भार वर्ग में नूपुर श्योरण ने रजत और 80 किलो भार वर्ग में पूजा रानी ने कांस्य पदक जीता। मीनाक्षी हुड्डा विश्व चैंपियनशिप में स्वर्ण पदक जीतने वाली दसवीं लड़की हैं। भारत ने इस प्रतियोगिता में अब तक दो स्वर्ण, एक रजत और एक कांस्य पदक जीता है। 1966 और 1970 में एशियाई खेलों में पदक जीतने वाले हवा सिंह की पौत्री नूपुर को फाइनल में पोलैंड की अगाथा काज्मार्स्का के हाथों हार मिली है। पिछले दो-ढाई दशकों में हरियाणा की छोरियों ने खेलों के मामले में सफलता का परचम कई बार लहराया है। हरियाणा सरकार की खेल नीतियों ने इन्हें प्रोत्साहित किया है। 

सरकार जिस तरह खिलाड़ियों को सुविधाएं मुहैया करा रही है, उससे प्रदेश के खिलाड़ी आगे बढ़कर अपने सपनों को पूरा कर रहे हैं और प्रदेश का नाम रोशन कर रहे हैं। कुश्ती हो, हाकी या कोई दूसरा खेल, हरियाणा की लड़कियों ने हमेशा आगे बढ़कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है।  राष्ट्रीय और अंतर्राष्ट्रीय खेल प्रतिस्पर्धाओं में जिस तरह हरियाणा के खिलाड़ियों ने अपना प्रदर्शन किया है, उसको देखते हुए दूसरे राज्यों ने भी हरियाणा की खेल नीतियों का अनुसरण करना शुरू कर दिया है। 

हरियाणवी छोरे-छोरियां अपनी सफलता की कहानी बस लिखते ही जा रहे हैं। खेल प्रतिभाओं को निखारने और उन्हें बचपन से ही खेलों की ट्रेनिंग देने के लिए प्रदेश सरकार ने पूरे प्रदेश में 868 खेल नर्सरियों की मंजूरी दी है। इन खेल नर्सरियों में विििभन्न खेलों में रुचि रखने वाले बच्चों को ट्रेनिंग दी जाएगी। उन्हें हर संभव सहायता उपलब्ध कराई जाएगी ताकि वह अपने खेल को निखार सकें। पूरे देश में हरियाणा ही ऐसा राज्य है जो अपने पदक विजेताओं को सबसे ज्यादा नकद पुरस्कार देती है। 

ओलंपिक खेलों में स्वर्ण पदक विजेता के लिए छह करोड़ रुपये, रजत पदक विजेता के लिए चार करोड़ रुपये और कांस्य पदक विजेता के लिए 2.5 करोड़ रुपये सरकार प्रदान करती है। इसके साथ उन्हें सरकारी नौकरी भी दी जाती है।

Monday, September 15, 2025

भंते! आप वृक्ष को प्रणाम क्यों कर रहे हैं?

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महात्मा बुद्ध ने बुद्धत्व प्राप्त करने के बाद जीवन भर लोगों को सदाचार और प्रकृति से सामन्जस्य बनाकर रहने की प्रेरणा दी। उन्होंने किसी भगवान को पूजने की जगह प्रकृति की पूजा का संदेश दिया। उनका मानना था कि प्रकृति के समस्त अंगों और उपांगों का संरक्षण और पूजन ही सच्चा धर्म है। जब मनुष्य प्रकृति पूजा करने लगेगा, तो वह प्रकृति के अंग मनुष्य को भी संरक्षित करेगा। 

एक बार की बात है। किसी पेड़ के नीचे कुछ घंटे साधना करने के बाद जब महात्मा बुद्ध उठे, तो उन्होंने उस वृक्ष को प्रणाम किया और बड़ी श्रद्धा से उससे सामने शीश झुकाया। यह देखकर पास खड़ा उनका शिष्य आश्चर्यचकित होते हुए बोला, भंते! आप जैसा महान व्यक्ति पेड़ को झुककर प्रणाम कर रहा है। आपने ऐसा क्यों किया? तब महात्मा बुद्ध ने कहा कि मेरे इस वृक्ष को नमन करने से किसी प्रकार के अनिष्ट की आशंका है क्या? 

उस शिष्य ने कहा कि नहीं, लेकिन सोचने वाली बात यह है कि जब यह पेड़ आपकी बातों का कोई जवाब नहीं दे सकता है, तो आपके प्रणाम करने से क्या फायदा है? अपने शिष्य की बात सुनकर तथागत मुस्कुराए और बोले कि यह वृक्ष भले ही हमारी आपकी तरह बोलकर कुछ न कह रहा हो, लेकिन यह प्रकृति की भाषा में हमारे प्रणाम का उत्तर खुशी से झूमकर दे रहा है। जिस वृक्ष ने मुझे छाया दी, शीतल वायु प्रदान किया, सूरज की तेज किरणों से मुझे बचाया, उसके प्रति आभार व्यक्त करना मेरा कर्तव्य है। 

ध्यान से देखो, तो पता चलेगा कि यह अपनी पत्तियों को हिलाकर हमारे प्रति आभार व्यक्त कर रहा है। यह सुनकर शिष्य ने बड़े गौर से वृक्ष को निहारा, तो उसे लगा कि वृक्ष झूमते हुए महात्मा बुद्ध को नमन कर रहा है।

हरियाणा में खेत-जलघर योजना ने बदल दिया किसानों का भाग्य

अशोक मिश्र

जल के बिना जीवन संभव नहीं है और सबसे बड़ी बात यह है कि पृथ्वी पर जितना पानी है, उसका तीन या चार प्रतिशत ही पीने योग्य है। बाकी समुद्रों का पानी खारा है। ऐसी स्थिति में पेयजल की बरबादी इंसानों और अन्य जीवों को कितनी भारी पड़ सकती है, इसका अंदाजा लगाया जा सकता है। पानी को बरबाद करने में केवल इंसानों का ही हाथ है। हालांकि यह भी सही है कि अब इंसानों ने पानी का संचय और संरक्षण करना शुरू कर दिया है। वह भविष्य में आने वाले खतरे को भांप चुका है। 

हरियाणा में भी जल संरक्षण और संचय की ओर सरकार के साथ-साथ आम लोगों और किसानों ने ध्यान देना शुरू कर दिया है। दक्षिण हरियाणा में पानी की किल्लत पिछले काफी वर्षों से चली आ रही थी। गर्मी के दिनों में दक्षिण हरियाणा में पानी को लेकर त्राहि-त्राहि मच जाती थी। किसानों को अपने खेत की सिंचाई के लिए वर्षा जल पर ही निर्भर रहना पड़ता था। लेकिन अब दक्षिण हरियाणा के किसान आधुनिक तकनीक का सहारा लेकर न केवल पानी बचा रहे हैं, बल्कि अपने खेतों की सिंचाई भी कर रहे हैं। 

अब उन्हें खेतों की सिंचाई के लिए प्रकृति पर भी निर्भर नहीं रहना पड़ रहा है। दक्षिण हरियाणा के किसान कृषि क्षेत्र में एक नई क्रांति कर रहे हैं। इस मामले में प्रदेश सरकार की खेत-जलघर योजना और सूक्ष्म सिंचाई परियोजनाओं का बहुत बड़ा हाथ है। इन योजनाओं की बदौलत ही किसानों की आर्थिक दशा में सुधार आया, बल्कि उनकी खेती भी उन्नत हुई है। सरकारी सब्सिडी से गांवों में सरकारी और निजी तालाब बनाए जा रहे हैं। इसकी वजह से किसान अब परंपरागत खेती को तिलांजलि देकर आधुनिक तकनीक से खेती कर रहे हैं। इसका फायदा यह हो रहा है कि हर खेत को पानी मिल रही है। 

स्प्रिंकलर और ड्रिप जैसी तकनीक अपनाकर किसान न केवल अपनी फसल की पैदावार बढ़ा रहे हैं, बल्कि वह पचास से साठ प्रतिशत पानी की बचत भी कर रहे हैं। खेतों में उतना ही पानी जा रहा है जितने की जरूरत है। इस तकनीक ने किसानों की अर्थव्यवस्था में सकारात्मक बदलाव की आधारशिला तैयार की है। इससे जहां जल संरक्षण हो रहा है, वहीं ऊर्जा बचत और पर्यावरण संतुलन जैसे बड़े लक्ष्यों की प्राप्ति हो रही है। खेत-जलघर योजना से किसान सोलर पंपिंग सिस्टम तक चला रहे हैं। इस योजना के तहत गांव के हर किसान के लिए एक समय निर्धारित किया गया है। जिस किसान की बारी आती है, वह अपने खेत की सिंचाई कर लेता है। इससे सभी किसानों को आवश्यकता के अनुसार सिंचाई के लिए पानी उपलब्ध हो जाता है। यह योजना पूरे प्रदेश में लागू की जा रही है।

Sunday, September 14, 2025

चंद्रशेखर वेंकटरामन की विनम्रता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

चंद्रशेखर वेंकटरामन भारत के महान भौतिक शास्त्री थे। उन्हें विज्ञान क्षेत्र में अपनी अद्वितीय कार्य के लिए नोबल पुरस्कार से सम्मानित किया गया था। उन्होंने प्रकाश के प्रकीर्णन पर उत्कृष्ट कार्य किया था जिसकी वजह से उन्हें भौतिकी का नोबल पुरस्कार प्रदान किया गया था। रामन का जन्म 7 नवंबर 1888 को तमिलनाडु के तिरुचिरापल्ली नामक स्थान पर हुआ था। 

सीवी रामन ने बारह साल की उम्र में ही मैट्रिक की परीक्षा पास कर ली थी। प्रखर बुद्धि के सीवी रामन ने बीए की परीक्षा में विश्वविद्यालय में प्रथम स्थान प्राप्त किया था। सन 1907 में रामन ने एमए की परीक्षा में गणित विषय लेकर विशेष योग्यता हासिल की थी। उन्होंने इतने अंक हासिल किए जितने इससे पहले किसी ने हासिल नहीं किया था। एक बार की बात है। 

किसी विदेशी युवा वैज्ञानिक ने रंगों के कुछ नए प्रयोग किए। रामन उसके काम से बहुत प्रभावित हुए। तब तक रामन को नोबल पुरस्कार प्राप्त हो चुका था और उनकी दुनिया भर में ख्याति फैल चुकी थी। एक दिन वह उस वैज्ञानिक से मिलने उसकी प्रयोगशाला में मिलने पहुंच गए। वह उससे कुछ सीखना चाहते थे। उस वैज्ञानिक ने अपने सामने सीवी रामन को देखा तो वह चकित रह गया। 

उसने बड़े आदर से रामन को बैठने को कहा। उसके कहने पर भी रामन खड़े ही रहे और रंगों के प्रयोग के बारे में जानकारी हासिल करने लगे। वैज्ञानिक ने कहा कि सर, आप बैठिए तो, मैं आपको सब बताता हूं। तब रामन ने कहा कि मैं आपके सामने नहीं बैठ सकता हूं। मैं आपसे कुछ सीखने आया हूं। हमारी संस्कृति में गुरु के सामने या समक्ष बैठने की परंपरा नहीं है। यह सुनकर वह वैज्ञानिक उनकी विनयशीलता का कायल हो गया।

हरियाणा में क्या सचमुच बढ़ रही है गरीबी?

अशोक मिश्र

हरियाणा में गरीबों की संख्या को लेकर तस्वीर साफ नहीं है। विपक्ष प्रदेश सरकार पर आरोप लगा रही है कि उनकी नीतियों ने प्रदेश की 75 प्रतिशत जनता को गरीबी की सीमारेखा से नीचे लगा दिया है। हालांकि सरकार विपक्ष के आरोप को नकारते हुए प्रदेश की गरीबी को दूर करने का दावा करती है। यह सवाल कई बार उठता रहता है कि क्या सचमुच हरियाणा किसी आर्थिक संकट के दौर से गुजर रहा है? लेकिन इसका कोई जवाब नहीं मिल पा रहा है। पिछले साल जब प्रदेश में चुनाव नहीं हुए थे, तब बीपीएल कार्डधारकों की संख्या में एकाएक वृद्धि दर्ज की गई थी। 

अप्रैल 2020 से लेकर सितंबर 2024 के बीच राज्य में गरीबी रेखा से नीचे राशन कार्डधारकों की संख्या में पांच गुना की बढ़ोतरी दर्ज की गई थी। इस बीच 8.8 लाख से बढ़कर 46.4 लाख बीपीएल राशनकार्ड धारक हो गए थे। एक बार तो यह भी सवाल उठने लगा था कि प्रदेश में क्या एकाएक गरीबी बढ़ गई है जो दो साल में बीपीएल कार्डधारकों की संख्या में इजाफा हो रहा है। आगामी चुनाव को ध्यान में रखते हुए प्रदेश सरकार ने भी इस पर ध्यान नहीं दिया, जांच कराने पर वोटबैंक प्रभावित होने का खतरा था। 

प्रदेश के सबसे गरीब व्यक्तियों के लिए चलाई जा रही अंत्योदय अन्न योजना में भी एकाएक बढ़ोतरी देखी गई। अंत्योदय अन्न योजना में लाभर्थियों की संख्या में बीस प्रतिशत की वृद्धि पाई गई। साल 2022 में जिन अंत्योदय अन्न योजना की संख्या 2.44 लाख थी, वही 2024 तक आते आते 2.92 लाख हो गए। बीपीएल कार्ड धारकों की संख्या में बढ़ोतरी ग्रामीण इलाकों में भी देखी गई। शहरों में बीपीएल कार्ड धारकों की संख्या में बहुत ज्यादा बढ़ोतरी पाई गई। औद्योगिक नगरी के नाम से मशहूर फरीदाबाद में ही तीन लाख से अधिक बीपीएल कार्डधारक बढ़े। इसके अलावा करनाल और हिसार जैसे समृद्ध जिलों में भी यही रुझान पाया गया। 

अगर इस आधार पर बात की जाए, तो सचमुच हरियाणा में भीषण गरीबी है और लोग इस गरीबी को झेलने को मजबूर हैं। हरियाणा में बेरोजगारी की दर लगातार बढ़ने से भी बीपीएल और अंत्योदय अन्न योजना के लाभार्थियों की संख्या में इजाफा हुआ, ऐसा समाजशास्त्रियों का मानना है। इन लाभार्थियों में कुछ ऐसे भी लोग शामिल पाए गए हैं जिनके पास पहले से ही जमीनें हैं और वह सरकारी योजना का लाभ उठाने के लिए इसमें शामिल हुए हैंं। यही वजह है कि सरकार बनने के बाद जब मामले की छानबीन शुरू हुई, तो पूरे प्रदेश में लाखों लोगों ने अपना नाम बीपीएल से कटवा लिया या कार्ड का रिवीजन नहीं करवाया ताकि सरकारी शिकंजे में फंसने से बचा जा सके।

Saturday, September 13, 2025

महात्मा गांधी ने डॉक्टर को लगाई डांट

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

लगभग बीस साल दक्षिण अफ्रीका में बिताने के बाद जब महात्मा गांधी भारत लौटकर आए, तो उन्होंने सबसे पहले भारत की दशा-दिशा समझने का प्रयास किया। इसके लिए उन्हें भारत का पैदल भ्रमण करना पड़ा। पदयात्रा के ही दौरान उन्हें भारत की सच्ची तस्वीर समझ में आई। वह समझ गए कि भारत में गरीबी, छुआछूत, अंधविश्वास और निरक्षरता बहुत अधिक है। जब तक लोगों को रोजगार और सामाजिक कुप्रथाओं से मुक्ति नहीं मिलेगी, तब तक देश का भला नहीं किया जा सकता है। 

इसके लिए उन्होंने दलित बस्तियों में स्वच्छता अभियान चलाने पर जोर दिया। वह जहां भी रहते थे, वहां चिकित्सा की भी व्यवस्था जरूर करते थे ताकि गांव के लोगों का इलाज किया जा सके। महात्मा गांधी के आश्रम में विदेश से पढ़कर आए भारतीय और विदेश से आए कुछ युवा डॉक्टर सेवाभाव से काम करते थे। 

एक दिन की बात है। पास के गांव की एक महिला गांधी जी के पास आई और उसने बताया कि उसके शरीर में खुजली हो रही है। गांधी जी ने उसके खुजली वाले स्थान को गंभीरता से देखा और पास खड़े एक विदेशी युवा डाक्टर से बोले कि इस महिला को नीम की पत्ती खिलाने के बाद छाछ पिलवा देना। गांधी जी प्राकृतिक चिकित्सा पर ही विश्वास करते थे। उस युवा डॉक्टर ने महिला को नीम की पत्ती खिलाई और कहा घर जाकर छाछ पी लेना। 

तीन दिन बाद डॉक्टर उस महिला का हालचाल पूछने उसके घर गया। उसने पाया कि महिला की खुजली ठीक नहीं हुई है क्योंकि छाछ नहीं था उसके पास। उस डॉक्टर ने लौटकर गांधी जी को बताया, तो डाक्टर को डांटते हुए गांधी जी ने कहा कि मैंने तुमसे छाछ पिलाने को कहा था। मैं जानता था कि उस महिला के पासछाछ पीने के पैसे नहीं हैं। तुम ऐसे ही लोगों की सेवा करोगे। तब डॉक्टर ने क्षमा मांगी और उस महिला को छाछ और नीम की पत्तियां लाकर दिया।

हरियाणा के बाढ़ग्रस्त इलाकों में बढ़ रहे मलेरिया और डेंगू के मरीज

अशोक मिश्र

बाढ़ का पानी घटने के बाद जिसका डर था, हरियाणा में वह सब कुछ सामने आने लगा है। बाढ़ घटने के बाद पूरे प्रदेश में बीमारियां प्रकोप बनकर लोगों की जान लेने लगी हैं। यही हालत लगभग पंजाब की है। वहां भी ठीक ऐसी ही स्थिति है। आमतौर पर जिस इलाके में बाढ़ आती है या जलजमाव होता है, उन इलाकों में भयंकर संक्रामक रोगों के फैलने की आशंका होती है। 

यह कोई नई बात नहीं है। डूब क्षेत्र में घर बनाने वालों के साथ ऐसा ही होता रहा है। लेकिन अब जब स्वास्थ्य सुविधाएं और अन्य तककीनी सुविधाओं का बोलबाला है तो ऐसी स्थिति में शासन-प्रशासन को पहले ही इसके लिए तैयार रहना चाहिए था। 

हरियाणा में कोई पहली बार बाढ़ नहीं आई है। इन दिनों बाढ़ग्रस्त और जलजमाव वाले इलाकों में सबसे ज्यादा डायरिया, डेंगू, मलेरिया और त्वचा संक्रमण से संबंधित रोग से पीड़ित काफी संख्या में बढ़ रहे हैं। अगर हम प्रदेश में फैलने और होने वाली मौतों की बात करें, तो पानीपत में एक महीने में डायरिया और उल्टी दस्त से पीड़ित आठ लोगों की मौत हो चुकी है। डायरिया से मरने वालों में बच्चों की संख्या सबसे ज्यादा है। इतना ही नहीं, यमुनानगर में  दो, अंबाला में साहा के बिहटा गांव में भी दो बच्चों की मौत हो चुकी है। डायरिया और उल्टी दस्त से सबसे ज्यादा परेशान बच्चे ही होते हैं।

इन्हीं की जान पर सबसे ज्यादा खतरा भी होता है। कई बार तो परिजन बच्चों की उल्टी दस्त पर ज्यादा ध्यान ही नहीं देते हैं, लेकिन जब हालात बेकाबू हो जाते हैं, तो वह अस्पताल या डॉक्टर की ओर भागते हैं। कई बार तब तक बच्चे की जान जा चुकी होती है। बाढ़ और जलभराव ग्रस्त इलाकों में इस सीजन में सोनीपत में सबसे ज्यादा डायरिया के 1816 मरीज सामने आ चुके हैं। रेवाड़ी में 145, नारनौल में सात सौ, फतेहाबाद में 45 और सिरसा में 15 मामले अस्पतालों में दर्ज किए जा चुके हैं। 

प्रदेश स्तर पर अब तक डायरिया के 2700 मरीज अस्पतालों में आ चुके हैं। इनमें से कुछ अपना इलाज करवाकर घर भी जा चुके हैं। प्रदेश में डेंगू और मलेरिया के मरीजों की संख्या भी दिनोंदिन बढ़ती जा रही है। यदि प्रदेश की बात की जाए तो डेंगू के भी 509 मरीज सामने आए हैं। निकट भविष्य में इनकी संख्या में बढ़ोतरी होने की आशंका है। मलेरिया के 125 मरीज भी अपना इलाज करवा रहे हैं। प्रदेश के सरकारी और गैर सरकारी अस्पतालों में त्वचा से संंबंधित रोगों के मरीज बहुत बड़ी संख्या में आ रहे हैं। बरसात और लोगों के घरों के आसपास पानी भरा होने की वजह से वातावरण में नमी बहुत ज्यादा होती है। इससे त्वचा का संक्रमण कुछ ज्यादा ही तेजी से फैलता है।

Friday, September 12, 2025

डर लगने पर अपना नाम दोहराने वाला राजकवि

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अल्फ्रेड लॉर्ड टेनिसन को अंग्रेजी साहित्य में महाकवियों में गिना जाता है। इन्हें इंग्लैंड और आयरलैंड का राजकवि होने का गौरव हासिल है। महारानी विक्टोरिया को टेनिसन की कविताएं बहुत पसंद थीं। टेनिसन का जन्म 6 अगस्त 1809 में लिंकनशायर (इंग्लैंड) में हुआ था। टेनिसन के पिता एक ग्रामीण इलाके में एक चर्च के पादरी थे। प्रकृति के काफी नजदीक रहने की वजह से इनकी कविताओं में प्रकृति अपनी पूरी छटा के साथ मौजूद है। 

टेनिसन की पढ़ाई कैंब्रिज में हुई थी, लेकिन कैंब्रिज में पढ़ने जाने से पहले 18 साल की उम्र में ही कविता संग्रह प्रकाशित हो चुका था। इस कविता संग्रह को पाठकों ने हाथों हाथ लिया था। इसके बाद इनकी एक और पुस्तक प्रकाशित हुई, लेकिन अचानक 1831 में पिता की मृत्यु हो जाने की वजह से इन्हें पढ़ाई बीच में छोड़ देनी पड़ी। 

टेनिसन ने अपनी आत्मकथा में लिखा है कि जब मैं छोटा था, तो मुझे एक अंधेरे कमरे में सोने के लिए भेज दिया जाता था। मुझे अंधेरे से बहुत डर लगता था। रात में डर की वजह से नींद भी नहीं आती थी। किसी से कह भी नहीं सकता था क्योंकि मजाक उड़ाने और डांट पड़ने का भी डर था। ऐसी स्थिति में एक दिन मुझे पता नहीं कैसे सूझा कि यदि मैं किसी शब्द को दोहराऊं, तो डर कम हो जाता है। बस, क्या था? 

मैंने अपना नाम ही दोहराना शुरू किया। इसका नतीजा यह हुआ कि मेरा डर धीरे-धीरे कम होने लगा। जब भी मुझे डर लगता, मैं अपना नाम दोहराने लगता। नाम दोहराने से धीरे-धीरे मुझे नींद आ जाती थी। टेनिसन की बात सचमुच सही है। भारत में जब लोगों को किसी बात से डर लगता है, तो उन्हें हनुमान चालीसा बोलने को कहा जाता है। इसके पीछे यही मनोविज्ञान काम करता है। हमारे शरीर में छिपी शक्ति ऐसे समय में हमारा मनोबल बढ़ाती है।

नदी के डूब क्षेत्र में बस्तियां बसाने का परिणाम तो हर हाल में भुगतना होगा

अशोक मिश्र

पिछले दो-तीन दिनों से भारी बारिश न होने से हरियाणा के कई जिलों में आई बाढ़ और जमा हुआ पानी घटने लगा है। कई जिलों में पानी इतना घट गया है कि अब खेत दिखाई देने लगे हैं। घरों में भी भरा पानी निकाला जा रहा है। यदि हिमाचल, जम्मू-कश्मीर और उत्तराखंड में आने वाले दिनों में भारी बारिश नहीं होती है, तो उम्मीद है कि कुछ ही दिनों में हालात सामान्य होने लगेंगे। लोगों का जीवन पहले की तरह सुचारु रूप से चलने लगेगा। लेकिन किसानों को अपनी फसल नष्ट हो जाने का दुख तो रहेगा ही क्योंकि सरकार ने प्रति एकड़ जो मुआवजा देने की घोषणा की है, वह गिरदावरी के बाद ही मिल पाएगी। 

ऐसी हालत में तत्काल किसानों को किसी किस्म की राहत नहीं मिलने वाली है। गांवों और शहरी इलाकों में जिनके घरों में पानी भर गया था, अब उन्हें अपने घर की साफ-सफाई करनी पड़ रही है। मच्छरों और कीट-पतंगों ने भी अपना डेरा ऐसे घरों में बना लिया होगा, ऐसी स्थिति में सबसे ज्यादा जरूरी यह है कि स्थानीय निकाय इन इलाकों में फागिंग करवाए, दवाओं का छिड़काव करवाए ताकि मलेरिया, डेंगू और चिकनगुनिया जैसे रोगों से लोगों को बचाया जा सके। 

इस बार हरियाणा सहित उत्तर भारत के कई राज्यों में सामान्य से कहीं अधिक वर्षा हुई है, इसलिए बाढ़ का विकराल रूप देखने को मिला है। भविष्य में भी अगर सामान्य से अधिक बरसात हुई तो उन इलाकों के लोगों को परेशानी का सामना करना ही पड़ेगा जिन्होंने नदियों के डूब क्षेत्र में अपना घर बना रखा है। देश या विदेश में जितनी भी नदियां हैं, उनके दोनों किनारों की ओर तीन-चार किमी का क्षेत्र डूब क्षेत्र माना जाता है। 

बहुत ज्यादा बरसात होने पर जब नदियां उफान पर आती हैं, तो अतिरिक्त पानी इसी डूब क्षेत्र में भर जाता है और नदियों का उफान कम हो जाता है। इसका फायदा यह होता है कि उफान में आई हुई नदियां ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में नुकसान नहीं कर पाती हैं। इससे नदियों के आसपास बसे शहरों का भूजल स्तर भी बना रहता है, लेकिन पिछले कई दशक से लोगों ने नदियों के डूब क्षेत्र में ही घर बनाने शुरू कर दिए हैं। 

लोगों ने खेती करनी शुरू कर दी है। अब हरियाणा के कुछ जिलों की बात की जाए, तो इस बार बाढ़ और अतिवृष्टि के चलते फरीदाबाद में ही यमुना नदी के बायीं ओर 4.33 किमी और दायीं ओर 5.99 किमी तक बाढ़ का पानी भर गया था। फरीदाबाद में नदी के दोनों ओर जितनी दूरी तक पानी भर गया था, वह यमुना का डूब क्षेत्र था जिसमें अब बहुमंजिली इमारतें, बाजार और लोगों के घर बने हुए हैं। पलवल में सबसे ज्यादा बायीं ओर 8.80 किमी और दायीं ओर 2.72 किमी तक हिस्सा डूब गया जो नदी का डूब क्षेत्र था।

Thursday, September 11, 2025

बिना पैर के पायलट ने मार गिराए 15 विमान

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

ब्रिटिश रायल एयरफोर्स के सबसे जांबाज पायलटों में से एक थे डगलस बेडर। उनके पिता प्रथम विश्व युद्ध के दौरान ब्रिटिश फौज में मेजर थे। सन 1917 में युद्ध के दौरान उनके शरीर में कुछ छर्रे लगने से वह घायल हो गए थे और इन घावों के चलते ही 1922 में उनकी मौत हो गई थी। इसके बाद उनका परिवार आर्थिक दबाव में आ गया था। डगलस बेडर को इसके बाद आक्सफोर्ड के सेंट एडवर्ड स्कूल में खेल छात्रवृत्ति मिल गई। 

उन्होंने 1928 में क्रैनवेल एयर फोर्स अकादमी में पुरस्कार स्वरूप कैडेटशिप भी जीती। बेडर ने पानी में उड़ने की कला सीखी तथा केवल साढ़े छह घंटे की ट्रेनिंग के बाद ही अकेले उड़ान भरने लगे। लेकिन एक हवाई दुर्घटना में उन्होंने 1931 में अपने दोनों पैर गवां दिए। एक पैर घुटने से नीचे और दूसरा पैर घुटने से ऊपर काट दिया गया। 

इसके बाद भी डगलस ने अपना साहस नहीं खोया और उन्होंने अपने अधिकारियों से मिलकर एयरफोर्स में दोबारा काम करने का निवेदन किया। सेनाधिकारियों ने अपनी मजबूरी जताई क्योंकि शारीरिक अक्षम व्यक्ति को सेना में कैसे भर्ती किया जा सकता था। उन्होंने कहा कि पाटलट बनने के लिए जो परीक्षाएं ली जाती हैं, उससे कहीं ज्यादा कठिन परीक्षा मेरी ली जाए।

अंतत: उस कठिन परीक्षा में भी वह पास हुए। ब्रिटिश रायल एयरफोर्स में उन्हें दोबारा पायलट बना लिया गया। उन्होंने इंग्लैंड-जर्मनी युद्ध में दुश्मन के 15 विमान मार गिराए। जंग खत्म होने के बाद जब विजय दिवस मनाया गया, तो सारा लंदन उन्हें सलामी देने के लिए इकट्ठा हुआ था। लोगों ने उनकी वीरता और साहस की प्रश्ांसा की। ब्रिटेन ने उनके देशप्रेम की भूरि भूरि सराहना की।

उदासी और क्षणिक आवेश बन रहा आत्महत्या का प्रमुख कारण

अशोक मिश्र

आज का युवा सबसे ज्यादा दबाव में है। उसके साथ-साथ अधेड़ और बुजुर्ग भी अवसादग्रस्त नजर आते हैं। हरियाणा भी इससे अपवाद नहीं है। हरियाणा में भी आत्महत्या के मामले बढ़ते जा रहे हैं। मई 2025 में पंचकूला में एक परिवार के सात लोगों ने एक साथ जहर खाकर आत्महत्या कर ली थी। इसमें दंपति सहित उसके बच्चे और बुजुर्ग माता-पिता तक शामिल थे। 

यह दंपति मूलरूप से हिसार का रहने वाला था, लेकिन जब परिवार ने आत्महत्या की थी, तब वह देहरादून में रहने लगा था। परिवार पर कर्ज का बोझ बहुत ज्यादा हो गया था और लोग अपना पैसा मांग रहे थे, इसके दबाव में आकर परिवार ने यह आत्मघाती कदम उठा लिया था। सन 2014 में तो हरियाणा में आत्महत्या करने वालों की संख्या 3203 तक पहुंच गई थी। उस साल यह आंकड़ा उत्तर भारत के राज्यों में सबसे ज्यादा था। वैसे सन 2015 में आत्महत्या की दर एक लाख की आबादी पर 13 प्रतिशत और 2020 में 13.7 प्रतिशत हो गई थी। 

हरियाणा में 2022 में 3785 लोगों ने आत्महत्या की थी जो देश की कुल आत्महत्या का 2.2 प्रतिशत था। सच बात यह है कि प्रदेश की एक बहुत बड़ी आबादी किसी न किसी तरह के दबाव में जी रही है। प्रदेश में बेरोजगारी की दर भले ही सरकारी कागजों पर कुछ भी दर्ज हो, लेकिन वास्तविकता में प्रदेश में बेरोजगारी के हालात विस्फोटक होते जा रहे हैं। भारी संख्या में बेरोजगार युवा नौकरी या रोजगार का कोई जरिया न देखकर आत्मघात कर रहे हैं। समाज और परिवार के ताने उन्हें मजबूर कर देते हैं, ऐसा कदम उठाने को। 

बड़ों में खुदकुशी का सबसे बड़ा कारण जो उभरकर सामने आता है, वह है उदासी और अकेलापन। जब बुजुर्गों को उदासी घेर लेती है, तो वह डिप्रेशन का शिकार होकर आत्मघाती कदम उठा लेते हैं। पति या पत्नी में किसी एक की मौत या कोई गंभीर बीमारी भी मजबूर कर देती है कि वह कठोर कदम उठा लें। उदासी के पीछे वित्तीय नुकसान, शारीरिक अक्षमता, कुछ हद तक प्रेम प्रसंग जैसे मुद्दे हो सकते हैं। युवाओं में यह प्रवृत्ति ज्यादातर उनमें दिखाई देती है जो पिछले कई वर्षों से बेरोजगार हैं या जिनके परिजन उनके साथ अच्छा व्यवहार नहीं करते हैं। जहां तक किशोरों के आत्मघात करने की बात है, तो वह क्षणिक आवेश या गुस्से में ऐसा कदम उठा लेते हैं। 

इसके लिए वह पहले से कोई सोच-विचार या योजना नहीं बनाते हैं। इधर कुछ वर्षों से लाइव आत्महत्या का चलन काफी बढ़ा है। लोग आत्महत्या को लाइव दिखाते हैं या फिर वीडियो बना लेते हैं। इसका कारण यह माना जाता है कि लोग उनकी समस्या पर ध्यान दें ताकि यदि कोई उनके जैसी स्थिति में हो, तो लोग मदद कर सकें।

Wednesday, September 10, 2025

तुम्हारी पत्नी पर पूरे देश को गर्व है

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

भारत ने कभी किसी भी देश पर हमला नहीं किया। यह भारत का इतिहास रहा है। यहां के राजा-महाराजा भले ही आपस में लड़ते-भिड़ते रहे हों, लेकिन राज्य विस्तार की कामना से हमारे देश का कोई भी शासक दूसरे देश पर कब्जा करने नहीं गया। लेकिन जब भी किसी देश ने हमारे देश पर हमला किया, तो उसका मुंहतोड़ जवाब जरूर दिया गया है। 

बात 1965 की है। भारत-पाकिस्तान के बीच युद्ध चल रहा था। हमारे देश की सेना पाक सैनिकों को मुंहतोड़ जवाब दे रही थी। उन दिनों तत्कालीन प्रधानमंत्री लाल बहादुर शास्त्री को किसी नगर में जाना पड़ा। जिस रास्ते से उनकी कार जा रही थी, उसी रास्ते पर सामने से एक बारात आ रही थी। दूल्हा आगे-आगे घोड़ी पर चल रहा था, उसके पीछे दुल्हन की डोली चल रही थी। 

बाराती भी साथ में चल रहे थे। उन दिनों जो अमीर लोग थे, वही घोड़ी और डोली की व्यवस्था बारात के लिए कर सकते थे। जब शास्त्री जी की कार दुल्हन की डोली के बगल से गुजरी, तो दुल्हन ने उन्हें नमस्कार किया। शास्त्री जी को लगा कि दुल्हन उनसे कुछ कहना चाहती है। तो उन्होंने कार रुकवाई और डोली की ओर बढ़े। तब तक दुल्हन भी डोली से बाहर आ गई। 

उसने अपने हाथ की दोनों सोने की चूड़ियां निकालकर शास्त्री जी को देते हुए बोली, मेरी ओर से सीमा पर लड़ने वाले सिपाहियों के लिए यह तुच्छ भेंट स्वीकार कीजिए। इतना कहकर वह शास्त्री जी के पैर छूने को झुकी, तो शास्त्री जी ने उसे रोकते हुए कहा कि हम बेटियों से पैर नहीं छुआते हैं। 

इतने में दूल्हा भी घोड़ी से उतरकर आ गया और शास्त्री जी को प्रणाम करते हुए बोला, मुझे अपनी पत्नी पर गर्व है। तब शास्त्री जी ने कहा कि इस बेटी पर पूरे देश को गर्व है। इन्हीं बेटियों की बदौलत देश तरस्की करेगा।