Wednesday, June 18, 2025

किसी को भी सजा नहीं दिलाना चाहता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

संत प्रवृत्ति के लोग किसी को दंड देने के हिमायती नहीं होते हैं। वह किसी का भी बुरा नहीं चाहते हैं। भले ही कुछ दुष्ट प्रवृत्ति के लोग उन्हें कष्ट देते रहते हों। संतों का यही स्वभाव उन्हें दूसरे लोगों से अलग करता है। किसी गांव में एक संत रहते थे। वह अपनी जरूरत भर का अन्न उपजाते थे। थोड़ा बहुत जो इधर-उधर से मिल जाता था, उसी से अपना काम चलाते थे। वह लोगों को नेकी की राह पर चलने की सलाह दिया करते थे। 

यदि किसी को कोई जरूरत पड़ जाती थी, तो वह अपनी क्षमता भर लोगों की मदद करने से भी नहीं चूकते थे। संत की इस प्रवृत्ति को देखते हुए लोग उन्हें तपस्वी कहकर बुलाते थे। हालांकि संत लोगों से कहा करते थे कि मैं कोई तपस्वी नहीं हूं। मैं भी आप लोगों की तरह एक साधारण इंसान ही हूं। इन्हीं लोगों में कुछ लोग ऐसे भी थे, जो संत से अकारण ही ईर्ष्या करते थे।


रात में यह लोग कंकड़ पत्थर और विभिन्न प्रकार के नुकीले कांटे वाले पौधे लाकर संत की कुटिया के आगे बिखेर देते थे। संत रोज सुबह उठते और उन कंकड़ पत्थरों और कांटों को बटोरकर दूर फेंक आया करते थे। यह क्रम लगभग रोज चलता था। लेकिन संत इस बात की किसी से शिकायत भी नहीं करते थे। एक दिन यह बात संत के एक दोस्त को पता चली तो वह इस मामले को पंचायत में ले गया। पंचायत ने संत से पूछा कि ऐसे लोगों को क्या दंड दिया जाए। 

संत ने कहा कि मैं किसी को दंड नहीं दिलाना चाहता हूं। पंचायत ने कहा कि आप कब तक यह सहते रहेंगे? संत ने कहा कि जब तक उन लोगों के पत्थर दिल पिघल नहीं जाते हैं। पंचायत में वे लोग भी बैठे हुए थे, जो दुष्टता करते थे। यह सुनकर उनके सिर शर्म से झुक गए। उस दिनों से उन्होंने ऐसा करना छोड़ दिया और संत के शिष्य बन गए।

हरियाणा में हर साल बढ़ता जा रहा बिजली खपत का आंकड़ा

अशोक मिश्र

हरियाणा में गर्मी अपने उच्चतम स्तर पर है। लोग गर्मी से परेशान हैं। यही नहीं, इंसान के अलावा दूसरे जीव जंतु भी भयंकर गर्मी से पीड़ित हैं। लेकिन इंसानों की परेशानी कुछ दूसरे किस्म की है। इंसानों की परेशानी प्रदेश में बार-बार लगने वाले बिजली कट से है। बिजली कट लगने पर इतनी गर्मी में किसी का भी परेशान हो जाना स्वाभाविक ही है। प्रदेश में हर साल बिजली की खपत बढ़ती जा रही है। इलेक्ट्रिक और इलेक्ट्रानिक वस्तुओं के अत्यधिक उपयोग ने हमें पूरी तरह बिजली पर ही निर्भर कर दिया है। 

थोड़ा सा भी मसाला पीसना है तो उसके लिए ग्राइंडर-मिक्सर हाजिर है। लोगों ने सिल बट्टे का उपयोग करना ही छोड़ दिया है। प्रदेश में सबसे ज्यादा खपत 13 जून को 13452 मेगावॉट हुई थी। दिन रात के तापमान में बढ़ोतरी होने की वजह से बिजली की मांग भी बढ़ती जा रही है। बिजली की बढ़ती मांग को देखते हुए प्रदेश की सैनी सरकार ने वैकल्पिक प्रबंध भी करने शुरू कर दिए हैं। 

इसके बावजूद प्रदेश में बार-बार बिजली कट लग रहे हैं। उद्योगों को भरपूर बिजली नहीं मिल पा रही है। इसके चलते कई उद्योग तो इन दिनों ठप होने के कगार पर हैं। हालांकि प्रदेश के ऊर्जा मंत्री अनिल विज ने इस मामले में काफी सख्त रवैया अपना रखा है। उन्होंने प्रदेश के बिजली विभाग के अफसरों और कर्मचारियों को यह आदेश दे रखा है कि बार-बार लगने वाले कट की पूरी रिपोर्ट रोज उनके आफिस में भेजी जाए। यदि बिजली सप्लाई के मामले में किसी ने किसी किस्म की लापरवाही बरती, तो उसके खिलाफ कठोर कार्रवाई की जाएगी। 

हालांकि ऊर्जा मंत्री विज का कहना है कि हरियाणा में बिजली सप्लाई को लेकर किसी किस्म की कोई दिक्कत नहीं है। दूसरों से बिजली लेने के लिए प्रदेश सरकार ने लंबे समय अवधि वाले समझौते कर रखे हैं। हरियाणा को सोलह हजार मेगावॉट बिजली की आवश्यकता होती है जिसकी पूरी व्यवस्था राज्य सरकार ने कर रखी है। इसके बावजूद सैनी सरकार ने आगामी दस वर्षों में खपत होने वाली बिजली की व्यवस्था करने की योजना अभी से बनानी शुरू कर दी है। 

सच है कि हर साल बिजली की खपत बढ़ती जा रही है। दक्षिण हरियाणा बिजली वितरण निगम और हरियाणा विद्युत प्रसारण निगम लिमिटेड आगामी कुछ ही दिनों में दस वर्ष में होने वाली बिजली खपत का एक खाका ऊर्जा मंत्रालय को भेजने वाला है। आमतौर पर कुछ साल पहले तक यह माना जाता था कि हर साल दस प्रतिशत बिजली की खपत बढ़ जाती है, लेकिन जिस तरह ग्लोबल वार्मिंग के चलते तापमान बढ़ रहा है, उसको देखते हुए दस प्रतिशत से कहीं ज्यादा बिजली की खपत बढ़ रही है।

Tuesday, June 17, 2025

जलियांवाला बाग कांड की बाहर आई सच्चाई

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जलियांवाला बाग म्यूजियम में चेट्टूर शंकरन नायर की प्रतिमा लगी हुई है। कहा जाता है कि इसी प्रतिमा के सामने ब्रिटेन की महारानी और उनके प्रधानमंत्री ने हाथ जोड़कर उनके योगदान
को स्वीकार किया था। शंकरन नायर का जन्म 11 जुलाई 1857 में पलक्कड़ जिले के मनकारा गांव में हुआ था। इनके पिता मम्मायिल रामुन्नी पणिक्कर ब्रिटिश शासनकाल में तहसीलदार थे। 

नायर को 1897 में कांग्रेस का राष्ट्रीय अध्यक्ष भी बनाया गया था। नायर ने मद्रास लॉ कालेज से कानून की डिग्री हासिल की थी। बाद में उन्होंने विभिन्न सरकारी पदों पर कार्य किया। सन 1902 में लार्ड कर्जन ने उन्हें रैले विश्वविद्यालय आयोग का सचिव नियुक्त किया। बाद में वह भारतीय वायसराय लॉर्ड चेम्सफोर्ड की परिषद के सदस्य चुने गए। लेकिन 13 अप्रैल 1919 में जब जलियांवाला बाग हत्याकांड हुआ, तो उनकी आत्मा ने उन्हें झकझोर दिया। उन्होंने वायसराय परिषद से इस्तीफा दे दिया। 

उनके इस्तीफा देने के बाद ही दुनिया भर में जलियांवाला बाग हत्याकांड की असलियत बाहर आई। हंटर कमेटी का गठन हुआ। इसका नतीजा यह हुआ कि जलियांवाला बाग कांड के लिए जिम्मेदार जनरल ओ डायर को पदावनत कर दिया गया और अंतत: उसे अपने पद से त्यागपत्र भी देना पड़ा। बाद में शंकरन नायर ने एक पुस्तक लिखी जिसमें उन्होंने जनरल डायर को हत्याकांड का दोषी बताया। लंदन में रह रहे डायर ने उन पर मुकदमा कर दिया। लंदन में मुकदमा चला। 

न्यायाधीश के पूर्वाग्रह के कारण शंकरन नायर मुकदमा जरूर हार गए, लेकिन दुनिया भर को अंग्रेजी शासन की हकीकत बताने में काफी हद तक सफल भी हो गए। सन 1934 में 77 वर्ष की आयु में शंकरन नायर की मृत्यु हो गई।

अरावली वन क्षेत्र से अवैध निर्माण ध्वस्त करने से ही नहीं बनेगी बात

अशोक मिश्र

हरियाणा में इन दिनों अरावली पर्वत शृंखला को अवैध निर्माणों से मुक्त कराने का अभियान चल रहा है। इसका श्रेय मुख्यत: सुप्रीमकोर्ट को जाता है। हां, प्रदेश के मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी की प्रशंसा इसलिए की जानी चाहिए कि उन्होंने बड़ी सख्ती से अरावली क्षेत्र में किए गए अवैध निर्माण को ध्वस्त करने का आदेश दिया। उन्होंने इस मामले में अपने और पराये का भेद भी नहीं किया। पिछले दो दिनों में फरीदाबाद में 39 अवैध फार्म हाउसों को ध्वस्त कर दिया गया। इसमें कुछ भाजपा नेताओं के भी अवैध फार्म हाउस बताए जाते हैं। अवैध रूप से बनाए गए एक एक फार्म हाउस पर लोगों ने करोड़ों रुपये खर्च किए थे। 

अवैध निर्माणों को ध्वस्त करने में लगे वन अधिकारियों और नगर निगम के लोगों का कहना है कि केवल फरीदाबाद में ही 6793 से अधिक छोटे-बड़े अवैध निर्माण को ढहाया जाना है। जुलाई के अंतिम सप्ताह तक सुप्रीमकोर्ट में प्रदेश सरकार को अपनी रिपोर्ट सौंपनी है। वन विभाग को सुप्रीमकोर्ट को यह बताना होगा कि उसने कुल कितने अवैध निर्माण को ढहाया है। असल में पहले भी सुप्रीमकोर्ट ने अरावली पर्वत शृंखलाओं पर हो रहे अवैध निर्माण और अवैध खनन पर चिंता जताई थी। 

वन विभाग और नगर निगम ने कार्रवाई भी की थी, लेकिन जैसे-जैसे समय बीतता गया, कार्रवाई मंद पड़ती गई और अंतत: बंद हो गई। वन विभाग के प्रति जब सुप्रीमकोर्ट ने कड़ा रवैया अपनाया, तो वन विभाग की नींद खुली और अब वह कार्रवाई कर रहा है। करीब दो अरब साल पहले बनी अरावली पर्वत शृंखलाओं के साथ हो रहे खिलवाड़ को यदि रोक दिया जाए और जिन स्थानों पर पेड़-पौधे काटे जा चुके हैं, उन जगहों पर यदि दोबारा पौधे रोपे जाएं, उनकी सुरक्षा की जाए, तो एक बार फिर अरावली की पहाड़ियां अपना पुराना गौरव हासिल कर सकती हैं। 

दरअसल, बात यह है कि अरावली क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। अरावली क्षेत्र में देशी वृक्ष प्रजातियां जैसे खैर, ढोक, रोहिड़ा, ढूडी, खेजड़ी, हिंगोट, कैर तथा कुछ लुप्तप्राय वृक्ष प्रजातियां जैसे गुग्गुल, जाल और सालर पाई जाती हैं। अवैध रूप से पेड़ पौधों की कटान करने वाले लकड़ी माफिया की निगाह इन पर रही है। वह इन अमूल्य पेड़-पौधों की तस्करी करके अरावली क्षेत्र को खोखला करते रहे हैं। 

अरावली क्षेत्र कितना समृद्ध रहा है, इसका पता इस बात से चलता है कि यहां पर कई लुप्तप्राय और संकटग्रस्त वन्यजीव प्रजातियों जैसे दुर्लभ रस्टी स्पॉटेड बिल्ली, तेंदुआ, धारीदार लकड़बग्घा, भारतीय छोटी सिवेट, बंगाल मॉनिटर छिपकली, उल्लू और चील का निवास स्थान भी है। इन्हें बचाना, हम सबका दायित्व है।

Monday, June 16, 2025

इतनी मेहनत करो कि थककर चूर हो जाओ

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

आमतौर पर देखा यह गया है कि अमीर लोग अपने लगभग सभी कामों के लिए नौकरों-चाकरों पर निर्भर हो जाते हैं। वह कोई भी काम करना अपनी तौहीन समझते हैं। इसका दुष्परिणाम भी सामने आता है। कई तरह  के शारीरिक और मानसिक रोगों के शिकार भी हो जाते हैं। 

वैसे आजकल के अमीर लोग काम तो नहीं करते हैं, लेकिन वह अपने घर या बाहर किसी जिम में जाकर अपना पसीना जरूर बहाते हैं। प्राचीन काल की एक कथा है। किसी नगर में एक धनाढ्य व्यापारी रहता था। उसके पास अपार धन-संपत्ति थी। कई बीघे में फैली एक शानदार हवेली थी। घर में हर काम के लिए नौकर-चाकर थे। लेकिन उसे एक समस्या थी। जब वह खा-पीकर रात को लेटता था, तो उसे नींद नहीं आती थी। 

अपनी बीमारी के लिए उसने कई वैद्यों को दिखाया, लेकिन उसे आराम नहीं मिला। उन्हीं दिनों उसके शहर में एक साधु आया। वह लोगों की समस्याओं को दूर कर देता था। उसकी नगर में अच्छी खासी ख्याति थी। एक दिन नगर का सबसे धनाढ्य व्यापारी उसके पास पहुंचा और अपनी व्यथा सुनाई। व्यापारी ने कहा कि रात में मुझे चैन से नींद नहीं आती है। थोड़ी देर सोने के बाद ही चौंक उठता हूं। कोई उपाय बताएं। 

साधु ने कहा कि आप कुछ काम करते हैं? व्यापारी ने कहा कि मुझे काम करने की क्या जरूरत है। मेरे पास इतने नौकर-चाकर किस लिए हैं? तब साधु ने कहा कि यदि तुम ठीक होना चाहते हो, तो मेरी बात मानो। तुम दिनभर में एक बार इतनी मेहनत करो कि थककर चूर हो जाओ। तभी तुम चैन की नींद सो पाओगे। व्यापारी ने साधु की बात मानकर अगले दिन खूब मेहनत की और रात में गहरी नींद सोया। सुबह उठने के बाद सबसे पहले साधु का पास व्यापारी गया और उसका आभार प्रकट किया।

भविष्य में हरियाणा को नहीं झेलनी पड़ेगी बिजली की किल्लत

अशोक मिश्र

फतेहाबाद का गोरखपुर गांव इन दिनों काफी चर्चा में है। चर्चा का कारण भी है। कारण यह है कि सन 2031 तक यानी आगामी छह साल के बीच गोरखपुर गांव में देश का सबसे बड़ा परमाणु बिजली संयंत्र लगने जा रहा है। इसकी पूरी तैयारी कर ली गई है। शनिवार को गांव गोरखपुर पहुंचकर सीएम नायब सिंह सैनी और केंद्रीय ऊर्जा मंत्री मनोहर लाल ने कार्यों की समीक्षा की। 

हरियाणा सदैव नवीन कार्यों को अंजाम देने में आगे रहा है। पूरे भारत में जब हरित क्रांति का नारा दिया गया ताकि देश को खाद्यान्न मामलों में आत्मनिर्भर बनाया जा सके तो सबसे पहले हरियाणा आगे आया था। हरियाणा के किसानों ने अपने खेतों में अधिक से अधिक अन्न पैदा करके देश को भुखमरी से बचाया और देश के सामने एक मिसाल पेश की। हरियाणा के किसानों ने न केवल कृषि यंत्रों का भरपूर उपयोग किया, बल्कि खेती के मामले में नए-नए प्रयोग भी किए। 

नतीजा यह हुआ कि दूसरे राज्यों ने भी हरियाणा से सीखकर अपने को खाद्यान्न मामले में आत्मनिर्भर बनाया। हालांकि यह भी सच है कि कृषि यंत्रों पर निर्भरता बढ़ने से कृषि कार्यों में पशुओं का उपयोग लगभग खत्म हो गया जिसकी वजह से किसानों ने धान की पराली को खेत में ही जलाना शुरू कर दिया। यह गलत परंपरा थी। लेकिन अब हरियाणा ऊर्जा के क्षेत्र  में एक नया कीर्तिमान रचने जा रहा है। हरियाणा में 2800 मेगावाट का परमाणु बिजली संयंत्र स्थापित होने जा रहा है। 

इस संयंत्र में पैदा होने वाली आधी बिजली हरियाणा को मिलेगी, जिससे प्रदेश को अपनी बिजली की जरूरतों को पूरा करने में काफी सहूलियत भी होगी।  2800 मेगावाट बिजली पैदा करने में जो प्रदूषण होता, उससे भी बचत हो जाएगी। परमाणु बिजली संयंत्र से किसी प्रकार के प्रदूषण का कोई खतरा नहीं रहता है। प्रदेश सरकार ने न्यूक्लियर पॉवर कारपोरेशन आफ इंडिया लिमिटेड को हर तरह की सुविधाएं उपलब्ध कराने का वायदा किया है। 

न्यूक्लियर पॉवर कारपोरेशन आफ इंडिया ने गोरखपुर गांव में 979 किसानों की करीब डेढ़ हजार एकड़ भूमि का अधिग्रहण भी कर लिया है। इस जमीन में से 75.4 हेक्टेयर पर आवासीय भवन के साथ साथ अस्पताल, स्कूल और अन्य भवन बनाए जाएंगे। इस प्लांट से 1700 अधिकारियों और कर्मचारियों की नियुक्त की जाएगी। 

परमाणु बिजली संयंत्र का शिलान्यास 13 जनवरी 2014 को तत्कालीन प्रधानमंत्री डॉ. मनमोहन सिंह ने किया था। इससे पहले वन एवं पर्यावरण मंत्रालय ने परमाणु बिजली योजना को एनओसी प्रदान की थी। भाजपा शासन काल में सन 2018 में इसका निर्माण कार्य शुरू हुआ था।



Sunday, June 15, 2025

अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को ऐतिहासिक बनाने की तैयारी

अशोक मिश्र

हरियाणा में 21 जून को आयोजित होने वाले 11वें अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस को सैनी सरकार ऐतिहासिक बनाने की तैयारियों में जुट गई है। हमारे देश में योग का महत्व सदियों से बताया जाता रहा है। वैसे तो महर्षि पतंजलि को योग का जन्मदाता कहा जाता है। उन्होंने योग सूत्र की रचना की थी जो योग दर्शन का मूल ग्रंथ माना जाता है। महर्षि पतंजलि ने अष्टांग योग के आठ अंग बताए हैं। उन आठों अंगों को यम, नियम, आसन, प्राणायाम, प्रत्याहार, धारणा, ध्यान और समाधि कहा जाता है। 

आधुनिक योग का जन्मदाता महर्षि पतंजलि को इसलिए कहा जाता है क्योंकि योग को सरल शब्दों में लोगों को समझाकर उसे अपनाने के लिए प्रेरित किया। योग को सर्वसुलभ बनाने का सराहनीय कार्य महर्षि पतंजलि ने किया था। लेकिन ज्यादातर लोगों का मानना है कि योग के जन्मदाता आदियोगी शिव हैं। आदियोगी शिव ने साधना को योग का प्रमुख अंग माना है। योग केवल आसन या प्राणायम तक ही सीमित नहीं है। 

योगाभ्यास करने से जहां शरीर स्वस्थ रहता है, समस्त शरीर में ऊर्जा का प्रवाह समुचित रूप से होता रहता है, वहीं मानसिक स्वास्थ्य के लिए भी योग बहुत लाभदायक है। यही वजह है कि भारत के योग को पूरी दुनिया में अपनाया गया। सदियों पहले भारतीय योग ने दुनिया के कई देशों को इसे अपनाने को मजबूर कर दिया। इसके पीछे कारण योग से होने वाला लाभ ही था। 

आज से ग्यारह साल पहले पीएम नरेंद्र मोदी के सुझाव पर संयुक्त राष्ट्र ने 21 जून को अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस घोषित किया था। इसके बाद कई देशों में 21 जून को बड़े पैमाने पर योग दिवस मनाए जाने लगे। इस बार भी हरियाणा में बड़े पैमाने पर योग दिवस मानने की तैयारियां की जा रही हैं। योग दिवस के दिन प्रदेश के बाइस जिलों और 121 प्रखंडों में एक ही समय पर योग दिवस मनाया जाएगा। 

इसमें 11 लाख से अधिक लोगों के भाग लेने की संभावना है। प्रदेश सरकार का मुख्य कार्यक्रम कुरुक्षेत्र के ब्रह्म सरोवर पर आयोजित किया जाएगा। कुरुक्षेत्र के आयोजन में रामदेव मौजूद रहकर लोगों को योगाभ्यास कराएंगे। इस आयोजन में एक लाख से अधिक लोगों के आने की संभावना है। मुख्यमंत्री सैनी खुद इस बड़े आयोजन की निगरानी कर रहे हैं। उन्होंने अधिकारियों को सख्त निर्देश दिए हैं कि योग दिवस के अवसर पर योगाभ्यास करने वालों को किसी प्रकार की कोई परेशानी न हो, इसका पूरा ध्यान रखा जाए। भीषण गर्मी की वजह से कुछ लोगों को परेशानी हो सकती है। 

इससे बचने के लिए भी चिकित्सकों की व्यवस्था की जा रही है। वैसे तो पिछले 27 मई से प्रदेश के विभिन्न हिस्सों में योग कार्यक्रमों का आयोजन हो रहा है जिसमें 12.60 लाख लोग हिस्सा ले चुके हैं।

सहनशीलता से बनी रहती है एकता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

जापान में यामातो नाम किसी एक सम्राट का नहीं था। तीसरी से लेकर सातवीं शताब्दी तक जापान में यामातो राजाओं का शासन रहा। इस शासनकाल में जापान की खूब उन्नति हुई थी। कहा जाता है कि यामातो शासनकाल में ही तीसरी शताब्दी में बौद्ध धर्म जापान पहुंचा था। इन्हीं के शासनकाल में महात्मा बुद्ध की शिक्षाओं का इतना प्रचार हुआ कि बौद्ध धर्म वहां का राष्ट्रीय धर्म बन गया। 

यामातो काल में ही जापान में कंजिरा और निहोन शोकी जैसे ऐतिहासिक ग्रंथों की रचना हुई, जिसमें जापान के इतिहास और पौराणिक कथाओं का वर्णन है। कहते हैं कि किसी एक यामातो सम्राट का एक राज्य मंत्री था ओ-चो-सान जो बूढ़ा होने की वजह से सेवानिवृत्त हो गया था। एक दिन सम्राट को पता चला कि उसका एक हजार व्यक्तियों का परिवार है और सभी लोग एक साथ बड़े सुख-शांति के साथ रहते हैं। 

यह सुनकर उसे बड़ा आश्चर्य हुआ। सम्राट ने सोचा कि  सान का परिवार कैसे एकजुट होकर रहता है, इसका पता किया जाए। एक दिन वह अपने बुजुर्ग राज्य मंत्री से मिलने उसके घर जा पहुंचा। राज्यमंत्री सान ने अपने सम्राट का खूब स्वागत किया। स्वागत सत्कार के बाद जब बातचीत शुरू हुई तो सम्राट ने चान से पूछा कि महाशय! मैं आपके परिवार की एकता के बारे में बहुत सुना है। मैं आपके परिवार की एकता का रहस्य जानना चाहता हूं। 

राज्यमंत्री चान कुछ बोल नहीं पाते थे, इसलिए उन्होंने कलम दवात मंगाई और कागज के एक टुकड़े पर लिखा-सहनशीलता, सहनशीलता और सहनशीलता। यह पढ़कर सम्राट यामातो सब कुछ समझ गए। उन्होंने अपने पूर्व राज्यमंत्री विदा मांगी और कहा कि यदि परिवार के सभी लोग सहनशील हो जाएं, तो परिवार नहीं बिखरेगा।

मध्य पूर्व में परमाणु हथियारों की रेस का खतरा

 अशोक मिश्र

मध्य पूर्व में तनाव बढ़ रहा है। गुरुवार की रात इजरायल ने ईरान पर जबरदस्त हमला किया। ज्यादातर हमले ईरानी परमाणु स्थल को निशाने बनाकर किए गए। इजरायली हमले में 78 ईरानी नागरिक मारे गए और 320 लोगों के घायल होने की खबर है। हालांकि शुक्रवार की रात ईरान ने इजरायल पर जवाबी हमला किया है। ईरान ने तेल अवीव में इजरायली सैन्य मुख्यालय पर सटीक हमला किया है। ईरान और इजरायल के बीच चल रहे युद्ध के बीच अमेरिका की क्या भूमिका है? सबसे बड़ा सवाल यही है। वैसे तो पिछले दो दिनों के हमले में किस देश को वास्तविक रूप से क्या नुकसान हुआ, इसकी सही जानकारी तो बाहर आने से रही, लेकिन यह सही है कि इन दिनों ईरान काफी हद तक कमजोर पड़ चुका है।

अमेरिका और इजरायल का मकसद सिर्फ इतना है कि वह किसी भी तरह परमाणु हथियार बनाने में सक्षम न हो सके। इजरायल ने इसीलिए गुरुवार की रात को ईरान के परमाणु ठिकानों पर हमला करके उन्हें नष्ट करने का प्रयास किया ताकि वह आज यानी रविवार को अमेरिका के साथ परमाणु हथियार मामले को होने वाली बैठक में भाग लेने को मजबूर हो जाए या फिर उसका परमाणु हथियार बनाने का प्रोग्राम टल जाए या फिर इतना लेट हो जाए कि इजरायल को दूसरी कार्रवाई करने का मौका मिल जाए।

इजरायली हमले के बाद ही डोनाल्ड ट्रंप ने कहा है कि वह परमाणु कार्यक्रम पर जल्दी से जल्दी समझौता करे। इस बीच इजरायल ने देश पर बमबारी जारी रखने की कसम खाई है। वहीं ईरान ने परमाणु समझौता के बारे में होने वाली बैठक में भाग लेने से इनकार कर दिया है। अमेरिका और इजरायल जब भी ईरान पर न्यूक्लियर वीपेन्स बनाने का आरोप लगाते रहे हैं, ईरान हमेशा कहता रहा है कि उसका कार्यक्रम एक सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम है। 

इसके लिए रूस से मदद मिली है और ये पूरी तरह से शांतिपूर्ण उद्देश्यों के लिए है। लेकिन अमेरिका और इजरायल इस बात को मानने को तैयार नहीं हैं। अमेरिका ने तो इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन की बात पर भी विश्वास नहीं किया था। जब सद्दाम चीख-चीख कर दुनिया भर से कह रहे थे कि उनके पास परमाणु हथियार बनाने का उनका कोई प्रोग्राम नहीं है। लेकिन अमेरिका नहीं माना और इराक को नेस्तनाबूत करके ही माना। इराक के तानाशाह सद्दाम हुसैन को बंदी बनाने के बाद 30 दिसंबर 2006 को सन 1982 में दुजैल शहर में अपने 148 विरोधियों की हत्या के जुर्म में फांसी पर लटका दिया था।

वैसे सद्दाम हुसैन कोई दूध के धुले नहीं थे, उन्होंने अपने तीस साल के शासनकाल में ईराकी जनता पर काफी अत्याचार किए थे। लेकिन यहां बात अमेरिका की कूटनीति की है। सद्दाम हुसैन की मृत्यु के बाद इराक में कोई परमाणु हथियार नहीं पाया गया। हो सकता है कि ईरानी शासक सच कह रहे हों कि उनका कार्यक्रम एक सिविल न्यूक्लियर प्रोग्राम है। अब जब अमेरिका के इशारे पर इजरायल ने ईरान पर हमला कर दिया है, तो उसके पास दो ही विकल्प हैं। ईरान साउथ कोरिया के नक्शे कदम पर चलकर तमाम प्रतिबंधों के बावजूद परमाणु हथियार बना ले। या फिर सत्ता पलट का इंतजार करे। 

बताया जा रहा है कि अमेरिका और इजरायल आदि देश इस प्रयास में हैं कि ईरान के धार्मिक नेता अयातुल्लाह अली खामेनेई को अपदस्थ करके वहां अपने किसी समर्थक की सरकार बनाई जाए। यदि ऐसा नहीं हुआ, तो इस बात की संभावना प्रबल रूप से दिखाई दे रही है कि ईरान के वर्तमान धार्मिक नेता खामेनेई और उनके सिपहसालार मध्य पूर्व के लिए एक बहुत बड़ी मुसीबत बन सकते हैं। साल-दो साल के भीतर मध्य पूर्व में इजरायल और अमेरिकी समर्थक देशों को बहुत बड़ा नुकसान उठाना पड़ सकता है। मध्य पूर्व में परमाणु हथियारों की एक रेस शुरू हो सकती है।

Saturday, June 14, 2025

दूसरे के लिए पादरी कोल्बे ने दे दी जान

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

पादरी मैक्सिमिलियन कोल्बे का जन्म 1894 में पोलैंड में हुआ था। कोल्बे ने जीवन भर दया, क्षमा और त्याग जैसी भावनाओं का जीवन भर प्रचार प्रसार किया। कोल्बे ने धर्मशास्त्र का अध्ययन किया था और बाद में वह पादरी बन गए थे। वर्जिन मैरी के प्रति समर्पित मिलिशिया इमैकुलाटा नामक संगठन की स्थापना की थी। वह पोलैंड में काफी लोकप्रिय पादरी थे। लेकिन उन्हें जर्मनी के तानाशाह हिटलर की नाजी कैंप में अपनी जान गंवानी पड़ी थी। 

बात द्वितीय विश्व महायुद्ध की है। जर्मनी के तानाशाह हिटलर ने पोलैंड पर हमला करके उस पर अपना अधिकार जमा लिया था। हिटलर ने पोलैंड के कुछ प्रमुख लोगों को कैद कर लिया था। इन कैदियों को उसने आॅशविट्ज एकाग्रता शिविर में कैद कर दिया था। इन कैदियों के साथ हिटलर के कैंप अधिकारी बहुत बुरा बर्ताव किया करते थे। उन्हीं दिनों शिविर से एक कैदी भाग गया। अधिकारियों ने उसे बहुत खोजा, लेकिन उसका कहीं कोई अता-पता नहीं लगा। 

इस पर अधिकारियों ने फैसला किया कि यदि भागा हुआ कैदी लौटकर नहीं आता, तब तक दस कैदियों को मौत की सजा दी जाएगी। अधिकारियों ने दस कैदी को छांटा और उन्हें एक लाइन में खड़ा कर दिया। उसमें से एक कैदी बहुत ज्यादा रो रहा था। उसने अधिकारियों से लाख विनती की कि उसके छोटे-छोटे बच्चे हैं। उनकी देखभाल करने वाला कोई दूसरा नहीं है। 

वह उस पर रहम करें। लेकिन अधिकारी नहीं माने। तब पादरी कोल्बे आगे आए और उन्होंने कहा कि आपको दस लोगों को मौत की सजा देनी है, तो मैं इस आदमी के बदले सजा भुगतने को तैयार हूं। अधिकारी मान गए। कोल्बे को अधिकारियों ने मरने के लिए एक कमरे में छोड़ दिया। कुछ दिनों बाद उनकी भूख-प्यास से मौत हो गई। कैथोलिक चर्च ने 1982 में उन्हें संत घोषित किया।

बिगड़ते पर्यावरण को सुधारना सभी नागरिकों की जिम्मेदारी

अशोक मिश्र

पिछले कई दशक से हरियाणा और उसके आसपड़ोस के राज्य भयंकर रूप से पर्यावरण प्रदूषण की चपेट में हैं। हरियाणा में अब पर्यावरण को सुधारने की दिशा में प्रदेश सरकार के साथ-साथ कुछ स्वयंसेवी संस्थाएं और स्कूली बच्चे प्रयासरत हैं। इसके बावजूद अभी और बहुत कुछ करने की जरूरत है। सबसे पहले तो हमें जीवाश्म ईंधन का उपयोग कम से कम करना होगा, ताकि प्रदूषण पर नियंत्रण पाया जा सके। कोयला, लकड़ी, डीजल और पेट्रोल जैसे ईंधन का कम से कम उपयोग करके ही हम अपने पर्यावरण को बचा सकते हैं। 

दक्षिण हरियाणा का फेफड़ा कहे जाने वाली अरावली पर्वत श्रंखलाओं को अधिक से अधिक हराभरा करने की कोशिश करनी होगी ताकि जीवनदायिनी आक्सीजन की मात्रा हवा में अधिक से अधिक मिल सके। हरियाणा की नायब सिंह सैनी सरकार ने वनक्षेत्र के विस्तार की योजना बनाई है। सरकार तो अपने स्तर से वन क्षेत्र को बढ़ाने का प्रयास कर रही है और भविष्य में वह करेगी भी। लेकिन प्रदेश के नागरिकों को भी अपनी जिम्मेदारी समझते हुए अधिक से अधिक वनीकरण की ओर ध्यान देना होगा। 

प्रदेश सरकार ने राज्य में  वन क्षेत्र बढ़ाने के लिए बहुआयामी प्रयास शुरू कर दिया है। इससे हमारे प्रदेश के पर्यावरण को सुधारने में सहायता मिलेगी। प्रदेश सरकार का दावा है कि शहर वानिकी के तहत प्रदेश के सभी शहरों में 67,500 पौधे रोपे गए हैं। यही नहीं, यदि गांवों में रोपे गए पौधों की बात करें, तो शहरों और ग्रामीण क्षेत्रों को मिलाकर सन 2024-25 में कुल 44 लाख पौधे रोपे गए हैं। रोपे गए इन पौधों से तत्काल तो पर्यावरण में बदलाव आता नहीं दिखेगा, लेकिन जब यह पौधे अपना आकार ग्रहण कर लेंगे, तब इसका फायदा नजर आएगा। यह शुरुआत हो गई है। 

इसका फायदा आगामी पांच छह साल बाद नजर आएगा। यदि समाज कल्याण की भावना से आज सभी लोग एक या दो पौधे अपनी जमीन पर रोपने के बाद उसकी सुरक्षा करें, तो वह समाज की सबसे बड़ी सेवा कर रहे हैं। अमृत सरोवर योजना के तहत प्रदेश सरकार ने 2200 तालाबों के इर्द-गिर्द पीपल, बड़ और नीम जैसे पेड़ों की त्रिवेणी रोपने का कार्य प्रगति पर है। प्रकृति विज्ञानी बताते हैं कि पीपल, वट, नीम, पाकड़ जैसे पेड़ अधिक से अधिक कार्बन डाईआक्साइड सोखकर आक्सीजन का उत्सर्जन करते हैं। 

यदि इन पेड़ों को ज्यादा मात्रा में रोपा जाए, तो पर्यावरण को सुधारने में काफी सहायता मिलेगी। प्रदेश सरकार का कहना है कि हरियाणा की नदियों के किनारे किनारे बीस लाख से अधिक पौधों को लगाया गया है। यही नहीं, विद्यार्थियों में पर्यावरण के प्रति जागरूकता पैदा करने के लिए 13.50 लाख पौधे वितरित किए गए हैं।

Friday, June 13, 2025

अब्राहम लिंकन की सज्जनता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अब्राहम लिंकन अमेरिका के बारहवें राष्ट्रपति थे। वह बहुत गरीब परिवा से उठकर अमेरिका के राष्ट्रपति पद तक पहुंचे थे। उन्होंने वकालत पास की थी और जब भी मौका मिलता था, तो वह गरीबों का मुकदमा बिना फीस लिए लड़ते थे। अमेरिका में दास प्रथा को खत्म करने का श्रेय अब्राहम लिंकन को ही दिया जाता है। अमेरिका से दास प्रथा को खत्म करने के लिए उन्हें बहुत ज्यादा संघर्ष करना पड़ा था। अमेरिका का संप्रभु वर्ग अपने गुलामों के साथ बहुत ज्यादा अत्याचार किया करता था। 

बात तब की है, जब वह अमेरिका के राष्ट्रपति थे। एक बार वह अपनी पत्नी के साथ घूमने निकले। अमेरिका की सड़कों पर राष्ट्रपति को देखकर लोग उनका अभिवादन करते और उन्हें अपनी समस्याएं सुनाते। लोग अपनी समस्याएं बताते समय उसे दूर करने का अनुरोध करते। 

लिंकन सबसे मिलते-जुलते हुए आगे बढ़ रहे थे। लोगों की भीड़ थी कि वह बिना किसी प्रकार का संकोच किए उनके पास पहुंच रही थी और उनसे बात कर रही थी। लिंकन की लोकप्रियता भी काफी थी। आगे जाने पर उन्होंने देखा कि एक बुजुर्ग किसान अपने सिर पर अनाज की बोरी लिए चला जा रहा है। 

उसने अपने देश के राष्ट्रपति की ओर नहीं देखा। जब उसने राष्ट्रपति को देखा ही नहीं, तो अभिवादन करने का सवाल ही नहीं था। यह देखकर लिंकन की पत्नी को बहुत बुरा लगा। उन्होंने कहा कि इस बूढ़े को देखो, कितना अभिमानी है। उसने हमारा अभिवादन तक नहीं किया। 

तब लिंकन ने कहा कि उसका हमें अभिवादन करना चाहिए क्योंकि उसकी मेहनत पर ही हमें खाना मिलता है। इसके लिंकन दंपति वापस लौटे और उस किसान का उचित सम्मान करते हुए अभिवादन किया। उसके घर लौटने की व्यवस्था की।

पीड़िता को जीवन भर सताता है बलात्कार का दंश

अशोक मिश्र

पंजाब और हरियाणा हाईकोर्ट ने दुष्कर्म पीड़िता नाबालिग को गर्भ गिराने की अनुमति नहीं दी। कारण यह था कि उसका गर्भ 29 सप्ताह की  समय सीमा पार कर गया था। मेडिकल टर्मिनेशन आफ प्रेगनेंसी एक्ट 1971 के अनुसार जब तक मां या बच्चे की जान को खतरा न हो, तब तक डॉक्टर 29 सप्ताह से अधिक के गर्भ को गिराने की अनुमति नहीं देते हैं। यदि मां को खतरा हो या भ्रूण विकृत हो गया हो, तो इसके लिए भी मेडिकल बोर्ड की सलाह के साथ साथ अदालत की इजाजत लेनी पड़ती है। 

पीड़िता ने जो अपनी पीड़ादायक व्यथा कोर्ट को सुनाई, उसके मुताबिक आरोपी ने जनवरी 2023 में उसके साथ बलात्कार किया। वीडियो बनाया और सोशल मीडिया पर वायरल करने की धमकी देकर लगातार यौन शोषण किया। नाबालिग भयवश चुप रही, लेकिन बाद में एक दिन जब उसे पेट दर्द हुआ तो डाक्टर के पास ले जाने पर पता चला कि वह पांच महीने से गर्भवती है। 

जब तक बात पुलिस तक पहुंचती और गर्भ गिराने के बारे में सोचा जाता, तब तक 29 सप्ताह बीत चुके थे। हाईकोर्ट ने जहां पीड़िता की मजबूरी को समझते हुए सरकार को निर्देश दिया है कि वह उसकी अच्छी देखभाल करे। उसका प्रसव कराए। जिस अस्पताल में पीड़िता प्रसव कराना चाहती है, उसकी व्यवस्था सरकार करे। उसके खाने-पीने का ध्यान रखे। वहीं, अजन्मे बच्चे के हितों का भी कोर्ट ने ध्यान रखा है। भले ही किसी की गलती रही हो, लेकिन जब उस अजन्मे बच्चे ने सांस लेनी शुरू कर दी है, तो उसके जीवन की सुरक्षा भी न्यायपालिका का दायित्व है। 

हाईकोर्ट ने तो यहां तक कहा कि यदि पीड़िता चाहे, तो उसके पैदा होने वाले बच्चे को किसी को गोद भी दिया जा सकता है। इसके लिए हरियाणा सरकार उचित कार्रवाई करे। हाईकोर्ट का फैसला मानवीय आधार पर दिया गया है। हमारे समाज में जब किसी बालिग या नाबालिग के साथ दुराचार होता है, तो समाज उसका जीना कठिन बना देता है। समाज में लोग पीड़िता को ही दोषी ठहराने लगते हैं। जब किसी महिला या बच्ची के साथ बलात्कार होता है, तो उसकी देह तो घायल होती है, उसकी आत्मा तक घायल हो जाती है। 

दुराचार का यह दंश उसे जीवन भर सोने नहीं देता है। यह नासूर बनकर उसकी जिंदगी को हमेशा के लिए दागदार बना देता है। वह जहां भी जाती है, लोग उसे एक अजीब सी नजर से देखते हैं। किसी भी महिला के साथ किया गया बलात्कार दुनिया के सबसे जघन्यतम अपराधों में से एक माना जाना चाहिए। बलात्कारी को ऐसी सजा मिलनी चाहिए जिससे कोई ऐसी हरकत करने से पहले हजार बार सोचे।

Thursday, June 12, 2025

अमेरिकी साहित्य के जनक थे मार्क ट्वेन

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

आधुनिक अमेरिकी साहित्य का जनक सैमुअल लैंगहार्न क्लेमेंस माना जाता है। यह उपाधि प्रसिद्ध साहित्यकार विलियम फॉल्कनर ने उन्हें दी थी। सैमुअल लैंगहार्न क्लेमेंस को मार्क ट्वेन के नाम से जाना जाता है। मार्क का जन्म 30 नवंबर 1835 को फ्लोरिडा में हुआ था। ट्वेन की पहचान एक हास्य व्यंग्यकार, निबंधकार और उपन्यासकार के रूप में है। वह अमेरिका के विभिन्न राज्यों में व्याख्यान देने के लिए बुलाए जाते थे। 

 उनके पिता जॉन मार्शल क्लेमेंस एक वकील और न्यायाधीश थे, जिनकी 1847 में निमोनिया से मृत्यु हो गई थी, जब ट्वेन केवल 11 वर्ष के थे। जब मार्क ट्वेन चार साल के थे, तब उनके पिता अपने परिवार को लेकर हैनिबल, मिसौरी चले गए थे। पिता की मृत्यु के बाद ट्वेन ने पढ़ाई छोड़कर एक प्रकाशक के यहां टाइप सेटर की नौकरी कर ली। बाद में जब अमेरिका में मशीनों से छपाई का युग आने वाला हुआ, तो उन्होंने अपनी जमापूंजी और पत्नी की जमा पूंजी से एक छपाई मशीन खरीदने में लगा दी। 

लेकिन यह मुनाफे का धंधा नहीं साबित हुआ। इससे जमा पूंजी डूब गई। दस साल के अंदर उनका दीवाला निकल गया। हालांकि बाद में लेखन और व्याख्यानों से उनकी कमाई होने लगी और वह पहले जैसी स्थिति में आ गए, लेकिन उन्होंने उस छपाई मशीन को कभी नहीं बेचा। 

हालांकि लोग भी उस मशीन के बारे में भूल चुके थे। मार्क ट्वेन की शादी 1870 में ओलिविया लैंगडन से साथ हुई थी। पहली बार प्रपोज करने पर ओलिविया ने शादी करने से इंकार कर दिया था, लेकिन ट्वेन ने प्रपोज करना जारी रखा। अंतत: ओलिविया मान गई। इस जोड़े की शादी 1904 में ओलिविया की मृत्यु तक 34 साल तक चली। क्लेमेंस परिवार के सभी सदस्यों को एल्मिरा के वुडलॉन कब्रिस्तान में दफनाया गया है ।

हरियाणा में लिंगानुपात सुधारने में सबसे बड़ी बाधा अवैध गर्भपात

अशोक मिश्र

सैनी सरकार प्रदेश में लिंगानुपात सुधारने के लिए जी जान से लगी हुई है। वह जरूरत पड़ने पर संबंधित विभाग के अधिकारियों पर सख्ती कर रही है और जिन जिलों में लिंगानुपात संतोषजनक है, वहां के अधिकारियों और कर्मचारियों की प्रशंसा भी कर रही है। लेकिन सीएम सैनी के इस प्रयास को प्रदेश के झोलाछाप और बीएएमएस डॉक्टर को विफल कर दे रहे हैं। 

प्रदेश में खुले कुछ गैर पंजीकृत क्लीनिक भी सीएम सैनी के मनसूबों पर पानी फेर रहे हैं। इस तरह के डॉक्टरों और क्लीनिकों के चंगुल में फंसकर लोग जहां अपना पैसा बरबाद कर रहे हैं, वहीं गर्भवती महिलाओं के  जीवन से खिलवाड़ भी कर रहे हैं। झोलाछाप और बीएएमएस डॉक्टरों ने इस विषय में कोई पढ़ाई तो की नहीं होती है। ऐसी स्थिति में कई बार गर्भवती महिलाओं को अपनी जान तक गंवानी पड़ जाती है। सीएम तक ऐसे लोगों की शिकायतें भी पहुंच रही हैं। 

सीएम सैनी ने हरियाणा के कई जिलों पलवल, गुरुग्राम और चरखी दादरी आदि में अवैध रूप से गर्भपात कराने की हुई घटनाओं को बड़ी गंभीरता से लिया है। उन्होंने अधिकारियों को निर्देश दिया है कि राज्य में अवैध गर्भपात कराने वाले ऐसे डॉक्टरों को चिन्हित करके सख्त कार्रवाई की जाए। राज्य में लिंगानुपात सुधारने के लिए गठित राज्य टास्कफोर्स में शामिल अधिकारियों और कर्मचारियों से कहा गया है कि अवैध गर्भपात कराने में संलिप्त पाए जाने वाले डॉक्टरों के लाइसेंस रद्द किए जाएं। 

इस मामले में कोई सिफारिश नहीं सुनी जाए। अवैध गर्भपात रोकने के लिए एमटीपी किट की अवैध बिक्री रोकने के भी निर्देश दिए गए हैं। हालांकि सरकार की सख्ती के चलते प्रदेश के चौदह जिलों में एमटीपी किट्स की बिक्री में भारी कमी भी आई है।  लिंगानुपात के लिए सुधारने के लिए गठित टॉस्क फोर्स ने प्रदेश के सभी जिलों में सात सौ से कम लिंगानुपात वाले गांवों की पहचान की है। सरकार की सख्ती और चेतावनियों का असर हालांकि प्रदेश में दिखाई देने लगा है। 

अभी हाल में ही जारी की गई रिपोर्ट के मुताबिक पंचकूला, पलवल, नूंह, गुरुग्राम और अंबाला जैसे जिलों ने काफी अच्छा प्रदर्शन किया है। इन जिलों में लिंगानुपात काफी हद तक सुधरा है। इन जिलों से दूसरे जिलों को भी प्रेरणा लेने की जरूरत है। वर्तमान समय में लिंगानुपात 911 है। अब सैनी सरकार इस संख्या को और भी आगे ले जाना चाहती है। सरकार की मंशा को झोलाछाप, बीएएमएस डॉक्टर अपनी हरकतों से पलीता लगा रहे हैं। यदि सरकार प्रदेश में चल रही अवैध क्लीनिकों और गर्भपात सेंटरों पर लगाम लगा लेती है, तो निश्चित रूप से हरियाणा में लिंगानुपात को सुधारा जा सकता है।

Wednesday, June 11, 2025

जो दिल खोजा आपना,मुझसे बुरा न कोय

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

सैकड़ों साल पहले कबीरदास ने बहुत साफ शब्दों में कहा था कि जब मैंने लोगों में बुराई खोजने की कोशिश की, तो मुझे कोई बुरा नहीं मिला। लेकिन जब मैंने अपने आप में बुराई तलाशी तो संसार में मुझसे बुरा कोई नहीं मिला। कितनी सच्ची बात कही है कबीरदास जी ने। ऐसे ही एक प्राचीन कथा है। 

एक गुरुकुल में जब एक शिष्य की शिक्षा पूरी हो गई, तो गुरु जी ने चलते समय अपने शिष्य को एक अनोखा दर्पण दिया। वैसे वह शिष्य काफी योग्य और होनहार था। गुरुजी को उस शिष्य के प्रति अगाध स्नेह भी था। इसी वजह से गुरुजी ने उसे अनोखा दर्पण भी दिया था। जब गुरुजी ने दर्पण की खासियत बताई, तो उसने दर्पण लेते समय उसका मुंह गुरुजी की ओर कर दिया। 

उसने देखा कि अरे! गुरुजी में तो सारी बुराइयां हैं। लोभ, मोह, लालच, घृणा सब कुछ तो विद्यमान है गुरुजी में। यह देखकर शिष्य दुखी हो गया। वह गुरुजी में इतनी बुराइयों की कल्पना भी नहीं कर सकता था। वह दर्पण लेकर चला गया। उसे घर से लेकर बाहर तक जो भी मिला, वह बुराइयों का पुतला ही मिला। इससे वह काफी दुखी हो गया। वह सोचने लगा कि दुनिया में तो सिर्फबुराई ही बुराई है। क्या संसार में कोई भी अच्छा आदमी नहीं है जिसके मन में किसी किस्म की बुराई न हो। 

काफी सोचने-विचारने के बाद वह लौटकर गुरुकुल आया और गुरुजी से कहा कि गुरुदेव! इस दर्पण में मैंने जिसको भी देखा, वह सभी तो बुरे ही निकले। आपमें भी तो काफी बुराई है। अपने शिष्य की बात सुनकर गुरुजी ने कहा कि अरे! यह दर्पण मैंने तुम्हें इसलिए नहीं दिया था कि तुम दूसरों की बुराई देखो। मैंने तो यह इसलिए दिया था ताकि तुम इसमें अपना चेहरा देखकर अपने को सुधारने का प्रयत्न कर सको। यदि तुम दूसरों को देखने के बजाय अपने को देखा होता, तो अब तक अपने में काफी सुधार कर लिया होता। यह सुनकर शिष्य चुप रह गया।

लाखों साल पुरानी सभ्यता का गवाह रहा है अरावली क्षेत्र

अशोक मिश्र

दिल्ली के पास से शुरू होकर दक्षिणी हरियाणा और राजस्थान से होते हुए गुजरात के अहमदाबाद में समाप्त होने वाली 692 किमी लंबी अरावली पर्वत शृंखला दुनिया की सबसे पुरानी पर्वत शृंखलाओं में से एक है। अरावली पर्वत शृंखला पृथ्वी के इतिहास की चार भूगर्भिक युगों में से तीसरी प्रोटेरोजोइक काल की मानी जाती है। प्रोटेरोजोइक युग आज से 2500 से 538.8 लाख साल पहले का माना गया है। अभी हाल में ग्रीनवॉल प्रोजेक्ट के तहत पुरातत्व विरासत अनुसंधान और प्रशिक्षण अकादमी ने सर्वे करके कुछ ऐसे सबूत इकट्ठे किए हैं जिससे यह साबित होता है कि लाखों साल पहले अरावली क्षेत्र में मानव जीवन था। 

अरावली क्षेत्र के 420 एकड़ क्षेत्र में किए गए सर्वे के दौरान दमदमा क्षेत्र में कुल्हाड़ी और खुरचने वाले औजार मिले हैं। यह सब पुरापाषाणकाल की कलाकृतियां बताई जाती हैं। विशेषज्ञों का मानना है कि कुल्हाड़ी और खुरचने वाला औजार छह से आठ लाख साल पुराना है। लाखों साल पहले अरावली क्षेत्र में मानव सभ्यता का विकास हो रहा था। यह भी माना जाता है कि दिल्ली से लेकर गुजरात तक फैले अरावली क्षेत्र में भील जनजाति निवास करती रही है। भील जनजाति की सांस्कृतिक विरासत का हिस्सा अरावली क्षेत्र है। 

पुरातत्व विभाग को अरावली क्षेत्र में मानव सभ्यता के विकास के प्रमाण मिले हैं, जो पाषाण युग से लेकर तांबे और लौह युग तक फैले हुए हैं। अरावली क्षेत्र में पहले भी मानव जीवन के प्रमाण मिलते रहे हैं। आनंदपुर गांव में भी कुछ साल पहले मानव सभ्यता के प्रमाण मिले थे। अब मांगर और कोट गांव में भी ऐसे प्रमाण मिले हैं जिससे यह साबित होता है कि लाखों साल पहले मानव सभ्यता यहां निवास करती थी। राजस्थान के जयपुर से लेकर अहमदाबाद तक जगह-जगह पर मानव सभ्यता के प्रमाण मिल चुके हैं। 

अरावली क्षेत्र में पत्थरों पर उकेरी गई कुछ कलाकृतियां भी मिली हैं जिससे अनुमान लगाया जाता है कि इस क्षेत्र में आदिमानवों का समूह रहता रहा होगा। एक चट्टान पर तो मानव समूह के निशान भी पाए गए हैं। अरावली क्षेत्र को गणेश्वर सुनारी सांस्कृतिक समूह का हिस्सा माना जाता है जो ईसा से तीसरी शताब्दी पूर्व निवास करने वाली तांबा उत्पादक सभ्यता थी। इतना ही नहीं, पुरातत्व विज्ञानियों को लौह सभ्यता के भी प्रमाण समय समय पर मिलते रहे हैं। 

विभिन्न काल में अरावली क्षेत्र में निवास करने वाली सभ्यताओं के बारे में विस्तृत अध्ययन की आवश्यकता है। भारत की प्राकृतिक हरित दीवार कही जाने वाली अरावली पर्वत शृंखला को अब बचाने की बहुत जरूरत है। पहले से ही खनन माफियाओं ने इसको काफी नुकसान पहुंचाया है।

Tuesday, June 10, 2025

मालवीय जी की सज्जनता

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महामना मदन मोहन मालवीय सनातन धर्म के हिमायती होने के साथ-साथ शिक्षा के प्रचार-प्रसार के लिए भी प्रयासरत रहते थे। वे स्वाधीनता आंदोलन में सक्रिय भाग लेने के साथ-साथ देश के युवाओं की शिक्षा की व्यवस्था लगे रहते थे। उन्होंने उस समय के राजाओं, जमीदारों और तालुकेदारों से चंदा मांगकर काशी (बनारस) हिंदू विश्वविद्यालय की स्थापना की। इस विश्वविद्यालय में सभी विषयों की पढ़ाई होती थी। मालवीय जी की ख्याति पूरे भारत में थी। भारतीयता की भावना उनमें कूट-कूट कर भरी थी। एक बार की बात है। बीएचयू के कुछ छात्र गंगा स्नान के साथ-साथ नौका विहार करने गए।

वहां मल्लाह से उनका कुछ विवाद हो गया। कुछ देर तक उनके बीच बहस होती रही, लेकिन अंतत: छात्रों के सब्र का पैमाना छलक गया। उन्होंने गुस्से में आकर नौका को तोड़ दिया। उससे धक्का मुक्की भी की। इस पर मल्लाह रोता हुआ मालवीय जी के आवास पर पहुंचा और अपशब्द कहने लगा। वह अपनी नौका तोड़ी जाने से दुखी तो था ही, वह रो भी रहा था। थोड़ी देर बाद हल्ला सुनकर मालवीय जी बाहर आए और उन्होंने मामला जाना। मल्लाह ने रोते हुए कहा कि आपके छात्र इतने उद्दंड हैं कि उन्होंने मेरी नाव तोड़ दी है।

मालवीय जी ने कहा कि मैं आपकी नाव ठीक करवा दूंगा, लेकिन उनकी उद्दंडता के लिए आप मुझे जो भी सजा देना चाहें, मैं उपस्थित हूं। इतना कहकर मालवीय जी हाथ जोड़कर खड़े हो गए। उन्हें हाथ जोड़ता देखकर मल्लाह उनके पैरों में गिर पड़ा और अपने आचरण के लिए माफी मांगने लगा। मालवीय जी ने कहा कि नुकसान होने पर तुम्हारा क्रोधित होना गलत नहीं था।

हाईस्कूल के छात्र हो, अंग्रेजी में हंसो

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

कोटा शिवराम कारंत कन्नड़ भाषा के विख्यात साहित्यकार थे। उन्होंने कन्नड़ भाषा में कई उपन्यास और नाटक लिखे जिसे कन्नड़ साहित्य की अमूल्य निधि माना जाता है। उन्हें साहित्य में ज्ञानपीठ पुरस्कार से भी सम्मानित किया गया। कारंत का जन्म 10 अक्टूबर 1902 में कर्नाटक के उडूपी जिले में हुआ था। उन्होंने बाइस साल की उम्र से ही लिखना शुरू कर दिया। वह अपनी मातृभाषा कन्नड़ से बहुत प्रेम करते थे। 

वह प्रकृतिवादी भी थे। युवावस्था में ही कांग्रेस में शामिल हो जाने के कारण वह अपनी पढ़ाई पूरी नहीं कर सके। बात उन दिनों की है, जब वह हाईस्कूल में पढ़ते थे। अंग्रेजों द्वारा स्थापित स्कूल के प्रिंसिपल ने एक नियम बना रखा था कि जो भी अंग्रेजी के अलावा दूसरी भाषा में बातचीत करता था, तो वह नाराज होते थे। 

वह चाहते थे कि सभी बच्चों का अंग्रेजी पर बेहतरीन पकड़ हो। जिसे भी वह कन्नड़ में बातचीत करते देखते थे, प्रिंसिपल सजा देते थे। यह बात कारंत को बहुत नागवार लगती थी। एक दिन की बात है। प्रिंसिपल कहीं गए हुए थे। कक्षा में कारंत ने कोई मजाकिया बात कही जिसे सुनते ही सारे छात्र हंस पड़े। 

कारंत ने हंसने वाले लड़कों को डांटते हुए कहा कि मूर्खों, तुम कन्नड़ में कैसे हंस सकते हो? तुम हाईस्कूल के विद्यार्थी हो, तुम्हें अंग्रेजी में हंसना चाहिए। संयोग से उसी समय प्रिंसिपल काम से लौट आए थे और कक्षा के बाहर खड़े होकर वह कारंत की बात सुन रहे थे। कारंत की बात सुनकर वह समझ गए कि वह क्या कहना चाहता है। इसके बाद उन्होंने अपनी यह आदत छोड़ दी। 

उन्होंने अपने सैंतालीस उपन्यासों के अलावा इकतीस नाटक, चार लघु कहानी संग्रह, निबंध और रेखाचित्रों की छह पुस्तकें , कला पर तेरह पुस्तकें, कविताओं के दो खंड, नौ विश्वकोश और विभिन्न मुद्दों पर सौ से अधिक लेख लिखे।

सड़क पर थोड़ी सी लापरवाही बन सकती है मौत का कारण

अशोक मिश्र

दिल्ली मुंबई एक्सप्रेस वे पर रविवार सुबह 170 किमी की रफ्तार से सड़क पर दौड़ रही स्कार्पियो ने पुलिस की गाड़ी को टक्कर मार दी। इस टक्कर का नतीजा यह हुआ कि फ्लाईओवर के पास खड़ा होमगार्ड बीस फुट नीचे गिरकर गंभीर रूप से घायल हो गया। इस हादसे में एक पुलिस का सिपाही भी घायल हो गया है। स्कार्पियो को 19 वर्षीय युवती चला रही थी जो सेक्टर 30 में रहती है और दिल्ली में पायलट बनने की तैयारी कर रही थी। युवती अपने तीन दोस्तों के साथ सुबह मैगी खाने निकली थी। 

एक बड़े कारोबारी की बेटी ने अपनी लापरवाही से एक होमगार्ड का जीवन खतरे में डाल दिया है। यह कोई पहला हादसा नहीं है। इस हादसे में तो किसी की अभी तक जान नहीं गई है, लेकिन यदि युवती ने घबराकर ब्रेक के साथ-साथ हैंडब्रेक नहीं लगाया होता, तो शायद एक बड़ा हादसा हो सकता था। अक्सर देखने में आता है कि अमीर घरों के लड़के-लड़कियां गाड़ी चलाते समय नियमों का पालन नहीं करते हैं। वह इस बात का ध्यान नहीं रखते हैं कि उनकी वजह से किसी की जान जा सकती है। खुद वह भी हादसे का शिकार होकर अपना जीवन गंवा सकते हैं। 

दरअसल, सड़कों पर होने वाले ज्यादातर हादसे तेज रफ्तार के कारण ही होते हैं। तेज रफ्तार में भाग रहे वाहन के सामने यदि कोई दूसरा वाहन, पशु या कोई व्यक्ति आ जाता है, तो ऐसी हालत में तेज रफ्तार से वाहन चला रहे व्यक्ति को कुछ सुझाई नहीं देता है। वह जब तक कुछ समझ पाता है, तब तक हादसा हो चुका होता है। तेज रफ्तार वाहन चलाने का रोमांच कुछ लोगों की जिंदगियों को निगल जाता है। कुछ लोगों को जीवन भर के लिए अपाहिज बना देता है। उनकी जिंदगी एक बोझ बनकर रह जाती है। वह जीवन भर किसी की सहायता के लिए मोहताज हो जाते हैं। 

केंद्र और प्रदेश सरकार लगातार इस प्रयास में है कि देश और प्रदेश में होने वाले हादसों की संख्या को कम किया जाए। इसके लिए कई तरह के प्रयास कर रही है, कुछ हद तक आंकड़े घटे भी हैं। हरियाणा में साल 2024 के दौरान 9806 सड़क हादसे हुए। इन हादसों में करीब 4689 लोगों की मौत हो गई, 7914 लोग घायल हुए। यह आंकड़ा साल 2023 के मुकाबले काफी कम है। 

खास बात यह है कि पुलिस ने साल 2024 के सड़क हादसों में घायल होने वाले 5313 लोगों को फस्ट एड की सुविधा मुहैया करवाई, वहीं 7090 घायलों को तुरंत प्राथमिक उपचार के लिए अस्पताल पहुंचाया। साल 2023 में 10 हजार 168 सड़क हादसे हुए, जिनमें 5092 लोगों की मौत हुई है। साल 2022 में 11 हजार 130 सड़क हादसों में 5621 लोगों की मौत हुई थी।

Monday, June 9, 2025

शिष्य में आ गया अहंकार

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अहंकार से व्यक्ति का विकास रुक जाता है। अगर वह कुछ सीख रहा है, तो वह उस कला को पूरी तरह नहीं सीख पाता है। उसे लगता है कि उसने सब कुछ जान लिया है। अब उसे कुछ नया सीखने की जरूरत नहीं है। इस अहंकार की वजह से उसका बहुत नुकसान होता है। गुरु की बातें भी अहंकारी व्यक्ति को बहुत बुरी लगती हैं। ऐसी ही एक कथा है। 

बहुत पुराने समय की बात है। एक आश्रम में गुरु और उनका शिष्य रहते थे। दोनों खिलौने बनाते थे और उससे ही उनका गुजारा चलता था। शिष्य दोनों के बनाए खिलौने लेकर बाजार जाता था। बाजार में उसके बनाए खिलौने अच्छे दाम पर बिकते थे। जबकि उसके गुरु के बनाए खिलौने बहुत मुश्किल से बिकते थे और दाम भी कम मिलते थे। इसके बावजूद जब भी कोई बात चलती, तो गुरु जी अपने शिष्य से यही कहते थे कि बेटा! थोड़ी और मेहनत करो। अभी बहुत सुधार की जरूरत है। तुम्हारे काम में अभी तक पर्याप्त कुशलता नहीं आई है। 

कुछ दिन तक तो शिष्य अपने गुरु जी की बात को सुनता रहा, लेकिन धीरे-धीरे उसे गुरुजी की बात बुरी लगने लगी। वह मन ही मन सोचता था कि गुरुजी के खिलौने कम दाम में बिकते हैं, इसलिए गुरु की मुझसे ईष्या करते हैं। तभी तो मुझे अक्सर सलाह दिया करते हैं। मैं इनसे अच्छे खिलौने बनाता हूं। एक दिन गुरुजी के सलाह देने पर शिष्य को गुस्सा आ गया। 

उसने अहंकार भरे स्वर में कहा कि मैं आपसे अच्छा खिलौना बनाता हूं, फिर भी आप मुझे सलाह देते हैं। गुरुजी समझ गए कि इसे अहंकार हो गया है। वह बोले, जब मैं युवा था, तो तुम्हारी तरह गुरुजी की बात का बुरा मानता था। मेरे गुरुजी ने मुझे सलाह देनी बंद कर दी। मैं पूरी तरह सीख नहीं पाया। यह सुनकर शिष्य को अपनी गलती का एहसास हुआ। उसने गुरुजी से क्षमा मांगी।

हरियाणा में कांग्रेस संगठन खड़ा करने की जद्दोजहद हुई तेज

अशोक मिश्र

हरियाणा के कांग्रेस कार्यकर्ताओं में उत्साह का माहौल है। यह उत्साह कितने दिन तक स्थायी रहता है, यह तो भविष्य ही बताएगा, लेकिन राहुल गांधी की पिछले दिनों हरियाणा यात्रा ने कांग्रेस कार्यकर्ताओं और छोटे नेताओं में यह विश्वास जरूर जगा दिया है कि आने वाले दिनों में कांग्रेस के हालात अच्छे हो जाएंगे। पिछले दिन चंडीगढ़ में प्रदेश स्तर के नेताओं और पार्टी पदाधिकारियों के साथ हुई बैठक में राहुल गांधी ने एक बात तो साफ कर दी है कि अब पार्टी में गुटबाजी स्वीकार नहीं की जाएगी। 

पार्टी को नुकसान पहुंचाने वाला बयान या गतिविधि को अंजाम देने वाले के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जाएगी। बैठक को लेकर मीडिया जगत में जो बातें सामने आई हैं, उसके मुताबिक लोकसभा में विपक्ष के नेता राहुल गांधी ने गुटबाजी में शामिल कुछ नेताओं को बुरी तरह फटकार लगाई है। राहुल गांधी ने पार्टी नेताओं को यह बात साफ तौर पर बता दी है कि कांग्रेस संगठन तैयार करने में और जिलाध्यक्ष से लेकर ब्लाक स्तर तक पदाधिकारियों की नियुक्ति में किसी भी नेता की सिफारिश नहीं चलेगी। जिस भी नेता ने किसी की सिफारिश की तो उसके भी खिलाफ कार्रवाई की जाएगी। 

राहुल गांधी ने हरियाणा में पार्टी संगठन खड़ा करने की जिम्मेदारी केंद्रीय संगठन द्वारा नियुक्त किए गए आब्जर्वरों और स्थानीय आब्जर्वरों को सौंप दी है। कांग्रेस हाई कमान ने प्रत्येक जिले के लिए आब्जर्वर तैनात कर दिए हैं। यह पार्टी कार्यकर्ताओं से मिलकर, उनसे राय मशविरा करने के बाद जिलाध्यक्ष और अन्य पदाधिकारियों के नाम तय करके हाई कमान को सौंपेंगे। इन नामों में अगड़ा, पिछड़ा, दलित जैसे सभी समुदाय से छह विकल्प होंगे। कहा तो यह भी जा रहा है कि यदि किसी जिले में कोई ऐसा व्यक्तित्व जिसने किसी क्षेत्र में विशेष ख्याति अर्जित की हो और वह पार्टी सदस्य हो, पार्टी की विचारधारा में उसकी आस्था हो, तो उसे भी जिलाध्यक्ष बनाया जा सकता है। 

इसके लिए यह जरूरी है कि वह युवा हो। राहुल गांधी प्रदेश की कमान अब युवाओं को सौंपना चाहते हैं। इसके बाद राजनीतिक गलियारे में यह बात भी कही जाने लगी है कि प्रदेश में जितने भी बुजुर्ग नेता हैं या जो गुटबाजी में शामिल हैं, वह साइड लाइन किए जा सकते हैं। उनकी भूमिका संगठन और विधायकों को बस सलाह देने तक ही सीमित रह सकती है। हालांकि राहुल गांधी ने संगठन बनाने के लिए जो समय सीमा तय की है, वह बहुत कम है। 

पिछले 11 साल में कांग्रेस हाईकमान ने आठ प्रभारी नियुक्त किए, लेकिन वह प्रदेश में कांग्रेस का मजबूत संगठन तैयार करने में सफल नहीं हो सके। ऐसी स्थिति में दो या तीन महीने में पूरे प्रदेश में संगठन तैयार कर पाना, कठिन प्रतीत हो रहा है।

Sunday, June 8, 2025

मैं जनता की राय साहिबी स्वीकार कर चुका हूं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

हिंदी और उर्दू के सबसे लोकप्रिय साहित्यकार मुंशी प्रेमचंद का वास्तविक नाम धनपत राय श्रीवास्तव था। हिंदी साहित्य में कथा सम्राट कहकर उन्हें बड़े आदर के साथ याद किया जाता है। प्रेमचंद का जन्म 31 जुलाई 1880 को वाराणसी जिले (उत्तर प्रदेश) के लमही गाँव में एक कायस्थ परिवार में हुआ था। प्रेमचंद को प्रगतिशील साहित्यकार माना जाता है। उनकी कई कहानियां और उपन्यास तात्कालिक समाज का आईना हैं। उन्होंने जीवन में कभी अपने सिद्धांतों से समझौता नहीं किया। 

यही वजह है कि वह आजीवन कष्ट का सामना करते रहे। प्रेमचंद की कहानियों और उपन्यासों का एक बहुत बड़ा पाठक समुदाय था। उनकी इस लोकप्रियता को भुनाने के उद्देश्य से उत्तर प्रदेश के तत्कालीन गवर्नर विलियम मैल्कम हेली ने उन्हें राय साहब की उपाधि से विभूषित करने का फैसला किया। गवर्नर हेली ने इसके लिए बाकायदा एक पत्र मुंशी प्रेमचंद को भेजा। 

पत्र पाने के बाद भी मुंशी प्रेमचंद इसकी किसी से चर्चा नहीं की। यह बात किसी तरह उनकी पत्नी को पता चल गई। उन्होंने प्रेमचंद से पूछा कि रायसाहबी के बदले कुछ देंगे भी कि खाली तमगा पकड़ा देंगे। प्रेमचंद की पत्नी का मतलब धन से था। प्रेमचंद अपनी पत्नी की बात सुनकर सारा माजरा समझ गए, लेकिन उन्होंने कहा कि मैं यह उपाधि नहीं ले सकता हूं। 

प्रेमचंद ने गवर्नर हेली को पत्र का जवाब देते हुए लिखा कि मैं यह उपाधि स्वीकार नहीं कर सकता हूं क्योंकि मैं जनता की रायसाहबी तो स्वीकार कर चुका हूं तो ब्रिटिश हुकूमत की रायसाहबी कैसे स्वीकार कर सकता हूं। उनका यह जवाब सुनकर गवर्नर विलियम मैल्कम हेली आश्चर्यचकित रह गए। एक बार मिलने पर हेली ने मुंशी प्रेमचंद को सादर नमन किया।

पलायन करने वाले मरीज टीबी मुक्त हरियाणा की राह में सबसे बड़ी बाधा

अशोक मिश्र

आज से तीस-पैंतीस साल पहले जब किसी व्यक्ति को पता चलता था कि उसे क्षय रोग यानी टीबी है, तो वह समाज से इस बात को छिपाने की कोशिश करता था। लोगों को पता चलने पर एक तरह से सामाजिक बहिष्कार ही कर देते थे। उसके पूरे परिवार के साथ उठना बैठना, मिलना-जुलना लोग बंद कर देते थे। दुकानदार भी सामान देने में आनाकानी करते थे। इसका कारण यह था कि क्षय रोग खांसने, थूकने से दूसरों में फैलता है। इसके रोगाणु हवा में फैलकर दूसरों को रोगी बना सकते हैं। 

तब इलाज भी कम ही हो पाता था। लेकिन आज टीबी को पूरी तरह ठीक किया जा सकता है। पिछले साल 7 दिसंबर 2024 से केंद्र सरकार ने सौ दिन में पूरे देश को टीबी मुक्त करने का अभियान चलाया था। यह अभियान हरियाणा में भी चला था। बड़े पैमाने पर लोगों की जांच की गई। यह सही है कि रोगियों की संख्या में इजाफा हुआ। सरकार ने आवश्यक कदम उठाए। लेकिन कुछ मरीज ऐसे भी थे जो दूसरे प्रदेश से अल्पकालिक रोजगार करने के लिए हरियाणा आए थे। वह अपने प्रदेश लौट गए।

ऐसे मरीजों की दवा का कोर्स पूरा नहीं हुआ। यही नहीं, उन्होंने अपने प्रदेश में जाकर सरकारी या गैर सरकारी अस्पतालों में भी संपर्क नहीं किया। ऐसे मरीज खुद के लिए तो सबसे बड़ा खतरा हैं ही, दूसरों के लिए भी किसी मुसीबत से कम नहीं हैं। ऐसी स्थिति से निपटने के लिए पंचकूला में शुक्रवार को दिल्ली, पंजाब, हरियाणा, उत्तर प्रदेश, हिमाचल, उत्तराखंड, चंडीगढ़ आदि राज्यों के चिकित्सा अधिकारियों की एक समन्वय बैठक आयोजित की गई। बैठक में राज्य से पलायन करने वाले टीबी के मरीजों के लिए एक मानक संचालन सिस्टम बनाने पर भी बात हुई। 

बैठक में यह भी तय किया गया कि दूसरे राज्यों से आने वाले मरीजों के इलाज के लिए राज्यों के बीच सहयोग बढ़ाया जाएगा और उन्हें आवश्यक दवाएं और पोषण प्राथमिकता के आधार पर उपलब्ध कराया जाएगा। हरियाणा में टीबी रोगियों की संख्या भी कम नहीं है। हरियाणा में 2017 में टीबी के केस 38,444 दर्ज किए थे। वहीं, सन 2024 में टीबी मरीजों की संख्या 86,704 पहुंच गई। मरीजों की संख्या बीते तीन-चार साल में बहुत तेजी से बढ़ी है।

 हालांकि इसका कारण यह था कि चार-पांच साल पहले बहुत कम संख्या में लोगों की जांच होती थी। लेकिन तीन-चार साल में सरकार और लोग खुद इस मामले में जागरूक हुए हैं। नतीजतन जांच का दायरा बढ़ा है। इससे मरीज भी बढ़े हैं। 2022 में कुल 31,632 मरीजों की जांच हुई थी। 2023 में 6,16,000 मरीजों की जांच की गई। अगले साल यानी साल 2024 में 7,19,900 मरीजों को जांच हुई।

Saturday, June 7, 2025

मां-बाप के तलाक ने भर दी मन में कुंठा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

कर्ट डोनाल्ड कोबेन अमेरिका के एक बड़े संगीतकार, गीतकार और बैंड निर्वाण के मुख्य गायक और गिटारवादक थे। इनका जन्म 20 फरवरी 1967 में वाशिंगटन में हुआ था। इनका पूरा परिवार संगीत पेशे से ही जुड़ा हुआ था। इनकी मां, मामा, चाचा-चाची संगीत के किसी न किसी क्षेत्र से जुड़े हुए थे। 

कोबेन का बचपन बहुत संघर्ष करते हुए बीता। वैसे तो कोबेन ने कम उम्र में ही गाना शुरू कर दिया था, लेकिन उन्हें अमेरिकी में ख्याति बहुत बाद में मिली। जब कोबेन छोटे थे, तो इनकी मां वेंडी एलिजाबेथ फ्रेडेनबर्ग और पिता डोनाल्ड लीलैन कोबेन का तलाक हो गया। इसका नतीजा यह हुआ कि इन्हें कुछ साल अपने पिता और कुछ साल अपनी मां के साथ रहना पड़ा। 

अपनी मां और पिता के साथ इनका संबंध काफी कटुतापूर्ण रहा। जब बचपन में इन्हें मां और पिता का प्रेम चाहिए था, तब इनके मां-बाप ने तलाक ले लिया। इसका नतीजा यह हुआ कि यह विद्रोही होते चले गए। जब यह हाईस्कूल में थे, तब इनको पता चला कि फीस चुकाने के लिए पर्याप्त पैसे नहीं हैं। इनकी मां ने कहा कि पढ़ाई पूरी करने के लिए या तो कमाओ या फिर घर से निकल जाओ। 

मां ने उन्हें दो सप्ताह का समय दिया। लेकिन एक दिन उनकी मां वेंडी ने इनका सामान घर के बाहर रख दिया। मां के घर से निकाले जाने के बाद यह कुछ दिन अपने मित्रों के यहां रहे, लेकिन वहां से भी निकाले गए। नतीजा यह हुआ कि इन्हें अपने गिटार के साथ इन्हें विष्काह नदी के पुल के नीचे रहना पड़ा। रात में पुल के नीचे लेटे-लेटे इन्हें अपना पहला गीत समथिंग इन दे वे रचा। यह गीत जब बैंड निर्वाण पर गाया गया, तो कोबेन की दुनिया ही बदल गई। लोगों ने इसे बहुत पसंद किया और इस तरह इनकी गाड़ी चल निकली।

अरावली क्षेत्र को हरा भरा करने का सैनी सरकार का फैसला सराहनीय

अशोक मिश्र

हरियाणा सरकार ने अरावली इलाके में ग्रीन वाल बनाने की तैयारी शुरू कर दी है। इसकी औपचारिक शुरुआत पर्यावरण दिवस पर प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने कर दी है। हरियाणा के पांच जिलों से होकर गुजरात तक जाने वाली अरावली पर्वत शृंखला को हरा भरा करने का संकल्प लिया गया है। यह एक सुखद समाचार है। वैसे भी अरावली पर्वत शृंखलाओं को हरियाणा का फेफड़ा कहा जाता है। खनन माफिया और चोरी छिपे पेड़ काटने वालों ने अरावली को बहुत नुकसान पहुंचाया है। 

स्थानीय निकायों से जुड़े कर्मचारियों और निजी कंपनियों ने शहर का कूड़ा-कचरा भी अरावली की घाटियों में डालकर उसे काफी नुकसान पहुंचाया है। लेकिन अब सैनी सरकार ने इन स्थितियों से निपटने और अरावली को हराभरा बनाने का फैसला किया है। प्रदेश में अरावली की 24990 हेक्टेयर भूमि ऐसी है जो बंजर हो चुकी है। इसमें फरीदाबाद की साढ़े तीन हजार हेक्टेयर भूमि भी शामिल है। 

इन जमीनों पर पौध रोपण करके इन्हें हराभरा बनाने का प्रयास किया जाएगा। इस प्रोजेक्ट में फरीदाबाद, नूंह, गुड़गांव, रेवाड़ी और महेंद्रगढ़ जिले शामिल रहेंगे। सच बात तो यह है कि सही तरीके से अरावली को हरा भरा बना दिया गया, तो हरियाणा ही नहीं दिल्ली भी वायु प्रदूषण से काफी हद तक राहत महसूस करेगी। दिल्ली एनसीआर वालों को दमघोंटू वायु प्रदूषण का सामना नहीं करना पड़ेगा। 

वायु प्रदूषण के चलते कई तरह की बीमारियों का खतरा झेल रहे हरियाणा और दिल्लीवासियों को काफी हद तक राहत मिल जाएगी। वैसे एक अच्छी खबर यह है कि स्मार्ट सिटी और औद्योगिक नगरी के नाम से विख्यात फरीदाबाद में पिछले वर्ष में 8.73 प्रतिशत वन क्षेत्र की बढ़ोतरी हुई है। वन विभाग ने पिछले साल एक सर्वे किया था। सर्वे के दौरान ही पता चला कि फरीदाबाद में 581.79 हेक्टेयर वन क्षेत्र की बढ़ोतरी हुई है। इससे पहले वर्ष तक अरावली क्षेत्र का दायरा 6948.44 हेक्टेयर ही था। इसका कारण यह बताया गया कि इस क्षेत्र में पिछले कुछ वर्षों के दौरान पौधरोपण ज्यादा किया गया था। 

फरीदाबाद से प्रदेश के अन्य जिलों को एक सबक लेना चाहिए और उन्हें अरावली क्षेत्र ही नहीं, अन्य  इलाकों में भी बड़े पैमाने पर पौधरोपण करना चाहिए। इसे न केवल हरित क्षेत्र बढ़ेगा, बल्कि ग्लोबल वार्मिंग पर भी सकारात्मक असर पड़ेगा। फरीदाबाद को यह सफलता इसलिए भी मिली थी क्योंकि इसमें स्कूली बच्चों, अध्यापकों, स्वयंसेवी संस्थाओं और वन विभाग के कर्मचारियों ने बड़े उत्साह के साथ पौधरोपण कार्यक्रम में भाग लिया था। स्कूली बच्चों को सीड्स बाल दिए गए थे जिसको उन्होंने अरावली क्षेत्र में फेंका था जो बाद में अनुकूल परिस्थितियों के चलते  उग आए थे।

Friday, June 6, 2025

मन में विकार रूपी छेद हो, तो प्रेम कहां टिकेगा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महात्मा बुद्ध गौतम गोत्र में जन्म लेने के कारण गौतम कहलाए थे। यह भी कहा जाता है कि बुद्ध के जन्म के सात दिन बाद मां महामाया देवी की मृत्यु हो जाने पर उनकी मौसी महाप्रजापती गौतमी ने लालन-पालन किया था, इस वजह से वह गौतम कहे गए। जब महात्मा बुद्ध बोधित्व प्राप्त हुआ तो महिलाओं में सबसे पहले प्रवज्या लेने वाली उनकी मौसी गौतमी ही थी। 

गौतमी ने महान भिक्षुणी की अहर्ता प्राप्त की थी। महात्मा बुद्ध ने लोगों को कर्म करने के साथ-साथ अहिंसा का पाठ पढ़ाया। वह जहां भी जाते थे, लोग उनका प्रवचन सुनने को जमा हो जाते थे। एक बार किसी जगह पर वह रोज कुछ घंटे लोगों को उपदेश दिया करते थे। उपदेश खत्म होने के बाद लोग अपनी समस्याएं बुद्ध के सामने रखते थे। वह अपनी स्मित हंसी बिखेरते हुए उनकी समस्याओं का निदान किया करते थे। 

एक दिन एक व्यक्ति महात्मा बुद्ध के पास आया और बोला कि मैं सबसे प्रेम करता हूं। सबकी सहायता भी करता हूं, लेकिन बदले में मुझे कोई प्रेम नहीं करता है। आखिर मुझ में क्या कमी है? तथागत ने उस वक्त तो कोई जवाब नहीं दिया। वह आगे बढ़ गए। तमाम शिष्यों के साथ वह आदमी भी तथागत के साथ चल पड़ा। एक जगह उन्हें प्यास लगी, तो उन्होंने उस व्यक्ति से पानी  लाने को कहा। 

सामने एक कुआं था। वहां बाल्टी और रस्सी भी थी। उस आदमी ने पानी भरना शुरू किया, लेकिन जब बाल्टी ऊपर आई तो उसमें पानी नहीं था। कई बार प्रयास करने के बाद पानी नहीं निकला तो बुद्ध ने कहा कि इसमें पानी इसलिए नहीं निकला क्योंकि बाल्टी में छेद है। इसी तरह तुम्हारे मन में विकार रूपी छेद हैं। फिर उसमें प्रेम कहां समाएगा। लोगों का प्रेम तुम्हें महसूस ही नहीं होगा। यह सुनकर वह व्यक्ति अपनी कमी को समझ गया।

लगातार बिगड़ते पर्यावरण के प्रति आखिर कितना जागरूक हैं हम?

अशोक मिश्र

पूरी दुनिया में आज विश्व पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। दुनिया भर में इसे किस तरह मनाया गया, यह कह पाना तो आसान नहीं है, लेकिन जिस तरह हमारा पर्यावरण दिनोंदिन बिगड़ता जा रहा है, उससे यह अंदाजा लगाया जा सकता है कि भारत की ही तरह दुनिया भर में विश्व पर्यावरण दिवस मनाया गया होगा। भारत के सभी राज्यों में पर्यावरण दिवस मनाया जा रहा है। 

हरियाणा भी इससे अछूता नहीं है। प्रदेश सरकार ने लोगों को पर्यावरण के प्रति जागरूक करने के लिए विभिन्न प्रकार के कार्यक्रम आयोजित किए हैं। मुख्यमंत्री से लेकर सभी मंत्रियों, विपक्षी दलों के नेताओं, नौकरशाहों ने सभा, सेमिनार और कई तरह के आयोजनों में लोगों को अपने पर्यावरण को सुधारने को लेकर समझाया है। कहीं पौधरोपण किया गया है, तो कहीं बच्चों से लेकर बुजुर्गों तक शपथ दिलाई गई होगी कि वह पर्यावरण सुरक्षा के लिए हरसंभव प्रयास करेंगे। 

सवाल यह है कि क्या एक दिन पर्यावरण दिवस मनाने से हमारा पर्यावरण सुरक्षित हो जाएगा? ग्लोबल वार्मिंग रुक जाएगी? हर साल घटता भूजल स्तर रुक जाएगा? क्या हरियाणा के शहर प्रदूषण के चलते गैस चैंबर बनने से बच जाएंगे? ऐसा कुछ नहीं होने वाला। एक दिन लोगों के सामने भाषण देने, उन्हें शपथ दिलाने या समझाने से हालात नहीं बदलने वाले हैं। हरियाणा में पिछले कई वर्षों में भूजल स्तर चार-पांच मीटर नीचे चला गया है। कुछ इलाके तो ऐसे हैं जहां 62-65 मीटर गहरी बोरिंग करने पर पानी मिलता है। यह गहराई हर साल कुछ मीटर बढ़ जाती है। प्रदेश के सौ से ज्यादा क्षेत्र भूजल के मामले में डार्कजोन में आ चुके हैं। हालात यदि नहीं बदले  तो इनकी संख्या बहुत तेजी से बढ़ सकती है। दिल्ली एनसीआर में शामिल शहरों में प्रदूषण का आलम यह है कि कभी-कभी तो सांस लेना दूभर हो जाता है। 

बुजुर्गों और बच्चों को दमा, अस्थमा और कैंसर जैसे रोगों के होने का खतरा पैदा हो जाता है। हरियाणा की ज्यादातर नदियां प्रदूषण का शिकार हैं। राज्य की फैक्ट्रियों से निकलने वाला खतरनाक रसायन नालों और नालियों के माध्यम से नदियों में प्रवाहित होता है। उस पानी का उपयोग करने से कई तरह की बीमारियों के शिकार लोग होते हैं। सरकार इन फैक्ट्रियों पर अंकुश भी नहीं लगा पा रही है। 

कई बार चेतावनी देने पर भी फैक्ट्री संचालक इस पर ध्यान नहीं देते हैं। यही हाल खेतों में पराली जलाने के मामले में दिखाई देता है। सरकार ने खेतों में पराली जलाने पर कई तरह के प्रतिबंध लगा रखे हैं। यहां तक कि पराली जलाते हुए पकड़े जाने पर जुर्माना और दो सीजन तक सरकारी मंडी में फसल बेचने पर प्रतिबंध तक लगा हुआ है। इसके बावजूद किसान पराली जला रहे हैं।

Thursday, June 5, 2025

मैंने गंदगी नहीं फैलाई, मैं मार भी नहीं खाऊंगा

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

स्वराज मेरा जन्मसिद्ध अधिकार है और मैं उसे लेकर ही रहूँगा का उद्घोष करने वाले लोकमान्य बाल गंगाधर तिलक का जन्म 23 जुलाई 1857 को महाराष्ट्र के रत्नागिरी जिले के चिखली गांव में हुआ था। यह अंग्रेजी शिक्षा के सबसे बड़े विरोधी थे। तिलक का मानना था कि अंग्रेजी शिक्षा हमें अपनी सभ्यता और परंपराओं का अनादर करना सिखाती है। शिक्षा पूरी होने के बाद जब वह राजनीतिक क्षेत्र में उतरे तो उन्होंने कांग्रेस की सदस्यता ली। लेकिन कुछ ही दिनों में वह कांग्रेस के ढुलमुलवादी रवैये के विरुद्ध बोलने लगे। 

सन 1907 में कांग्रेस आंतरिक रूप से दो भागों में विभक्त हो गई। एक को गरम दल और दूसरे को नरम दल कहा गया। विपिन चंद्र पाल और लाला लाजपत राय के साथ उन्होंने गरम दल का नेतृत्व संभाला। कांग्रेस में इस तिकड़ी को पाल-बाल-लाल कहा जाता था। यह किस्सा तब का है, जब वह छोटे थे और स्कूल में पढ़ते थे। 

स्कूल में कुछ बच्चों ने मूंगफली खाई और उसका छिलका क्लास में ही छितरा दिया। जब क्लास टीचर आए तो वह गंदगी देखकर बहुत नाराज हुए। उन्होंने सभी बच्चों से पूछा कि यह गंदगी किसने की है? किसी भी बच्चे ने जवाब नहीं दिया। तब टीचर ने कहा कि यदि किसी ने नाम नहीं बताया, तो सबको सजा होगी। 

टीचर ने सभी बच्चों को दो-दो छड़ी लगाई। जब तिलक का नंबर आया, तो उन्होंने कहा कि मार नहीं खाऊंगा। टीचर ने कहा कि तो उसका नाम बताओ जिसने गंदगी फैलाई है। तिलक ने कहा कि मैं उसका नाम नहीं लूंगा। मैंने गंदगी नहीं फैलाई है, इसलिए मार भी नहीं खाऊंगा। टीचर ने इसकी शिकायत प्रिंसिपल से की। तिलक के पिता से उनकी शिकायत की गई, लेकिन तिलक अपनी बात से टस से मस नहीं हुए।

हरियाणा में लगातार घट रहे भूजल स्तर को बचाने की जरूरत

अशोक मिश्र

हरियाणा के लिए यह खबर सचमुच बहुत चिंताजनक है कि प्रदेश की औद्योगिक नगरी फरीदाबाद में हर साल दो मीटर भूजल स्तर गिर रहा है। सेंट्रल ग्राउंड वॉटर बोर्ड के अनुसार, न्यू इंडस्ट्रियल टाउन 4  और उसके आसपास के इलाकों में भूजल स्तर 64.47 मीटर तक पहुंच गया है जो पूरे जिले में सबसे ज्यादा है। यह स्थिति केवल फरीदाबाद की ही नहीं है। प्रदेश के 22 जिलों में पिछले कई दशक से भूजल स्तर लगातार गिर रहा है। प्रदेश में जितना जल दोहन हो रहा है, उससे कम ही वॉटर रिचार्ज हो रहा है। 

इसकी वजह से प्रदेश में जल संकट गहराता जा रहा है। यदि भूजल स्तर को संतुलित नहीं किया गया, तो प्रदेश के लिए जल संकट का खतरा बढ़ सकता है। बीते 10 वर्षों की बात करें तो प्रदेश का औसत भूजल स्तर 5.41 मीटर नीचे जा चुका है। नतीजतन प्रदेश के 107 ब्लॉक डार्क जोन की श्रेणी में पहुंच गए हैं। अगर डायनामिक ग्राउंड वॉटर रिसोर्स असेसमेंट 2024 की रिपोर्ट को आधार बनाकर बात की जाए, तो हरियाणा में साला भूजल पुनर्भरण की क्षमता 19.32 अरब घन मीटर बताई जाती है। इसमें से 9.36 अरब घन मीटर पानी का उपयोग साल भर में किया जाना चाहिए, लेकिन ऐसा हो नहीं रहा है। 

प्रदेश में हर साल 12.72 अरब घन मीटर पानी का उपयोग किया जा रहा है। हरियाणा में उपलब्ध भूजल क्षमता के हिसाब से तो यह आंकड़ा 136 फीसदी तक पहुंचता है। डायनामिक ग्राउंड वॉटर रिसोर्स असेसमेंट 2024 की रिपोर्ट बताती है कि प्रदेश के 143 क्षेत्र जिनमें ब्लाक और शहरी इकाइयां शामिल हैं, में से 88 क्षेत्र में पानी का दोहन क्षमता से अधिक हो रहा है। राज्य के 11 क्षेत्रों में हालत इतनी बदतर है कि इन्हें गंभीर श्रेणी में रखा गया है। प्रदेश के आठ क्षेत्र तो आंशिक गंभीर श्रेणी में रखा गया है। इन क्षेत्रों में यदि प्रयास किया जाए, तो हालात को सुधारा जा सकता है। वहीं केवल 36 क्षेत्र ऐसे हैं जिनको लेकर संतोष व्यक्त किया जा सकता है। 

यदि इन इलाकों में भी जल दोहन पर ध्यान नहीं दिया गया, तो हालात यहां भी बदतर होने में देर नहीं लगेगी। हरियाणा में भूजल का सबसे ज्यादा उपयोग कृषि के लिए किया जा रहा है। राज्य में कुल 35 लाख हेक्टेयर कृषि योग्य भूमि में से करीब 11.21 लाख हेक्टेयर में ट्यूबवेल से सिंचाई की जाती है। राज्य में सिंचाई के लिए करीब 8.5 लाख ट्यूबवेल हैं। सिंचाई के लिए ज्यादा पानी का उपयोग तब होता है, जब अगैती फसल बोई जाती है। अगैती फसलों को सामान्यत: ज्यादा पानी की जरूरत होती है। यही नहीं, टैंकर माफिया भी अंधाधुंध जल दोहन करके हालात को खराब कर रहे हैं। इनकी वजह से भी जल स्तर लगातार घटता जा रहा है।

Wednesday, June 4, 2025

आप तय करें कि शांति चाहिए या समृद्धि

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

संसार एक मृगतृष्णा है। जिस तरह रेगिस्तान में प्यासा मृग चमकीले रेत को पानी समझकर भागता फिरता है, उसी प्रकार इंसान भी अपनी तमाम इच्छाओं के भ्रमजाल में उलझकर जीवन भर भटकता रहता है। इच्छाएं व्यक्ति को शांत बैठने नहीं देती हैं। अगर किसी के पास दो है तो वह हमेशा उसे चार करने की जुगत में ही लगा रहता है। इन इच्छाओं के चलते इंसान कभी शांति से जीवन नहीं गुजार पाता है। 

यदि शांति चाहिए, तो इच्छाओं को त्यागना होगा। जो इच्छाओं को त्याग देता है, वह सुखी जीवन बिताता है। किसी राज्य का एक राजा था। वह हमेशा चिंतित रहता था। देखते ही देखते बीमार पड़ गया। राज्य के एक से बढ़कर एक वैद्य बुलाए गए। सबने भिन्न भिन्न तरह की दवाइयां दी, कई तरह के उपाय बताए। लेकिन राजा ठीक नहीं हुआ। 

राजा और उसके दरबारी बड़े चिंतित थे। लेकिन किसी उपाय से राजा का रोग दूर नहीं हो रहा था। उसी समय राज्य में एक साधु आया। उसने राजा की बीमारी के बारे में सुना, तो वह राजा को देखने पहुंच गया। उसने राजा का गंभीरता से निरीक्षण किया। उसके बाद राजा से बोला, आपका रोग शारीरिक नहीं, मानसिक लग रहा है। राजा ने कहा कि हां, मुझे भी यही लगता है। मैं हमेशा चिंताग्रस्त रहता हूं। 

राजा से साधु ने कहा कि यदि आप ऐसे आदमी को ले आएं जो पर्याप्त समृद्ध हो, सफल हो और शांत भी हो। बस, फिर क्या था, पूरे राज्य में सैनिक और कर्मचारी दौड़ाए गए। कुछ दिनों बाद सारे खाली हाथ लौट आए। तब साधु ने कहा कि मैं जानता था कि ऐसा ही होगा। ऐसा हो ही नहीं सकता कि कोई समृद्ध हो और शांत भी हो। अब आपको तय करना है कि आपको शांति चाहिए या समृद्धि। राजा तुरंत साधु की बात समझ गया। उसने चिंता करनी तुरंत छोड़ दी।

तेज रफ्तार का रोमांच खतरे में डाल रहा लोगों की जान

अशोक मिश्र

सड़कों पर तेज रफ्तार से ड्राइविंग करना युवाओं की आदत बनती जा रही है। स्पीड में वाहन चलाने से उनको रोमांच का अनुभव होता है। पल भर का यह रोमांच कभी-कभी जीवन पर भारी पड़ता है। रविवार रात दो बजे महेंद्रगढ़-रेवाड़ी हाईवे पर एक तेज रफ्तार कार आगे जा रही ट्राले में जा घुसी। इस कार में चार दोस्त बैठे हुए थे जिनकी मौके पर ही मौत हो गई। 

कार की रफ्तार का अंदाजा इस बात से लगाया जा सकता है कि ट्राले में घुसी कार में बैठे युवकों के शव को निकालने में चार घंटे लगे। ट्राले और कार की बाडी को गैस कटर से काटना पड़ा था। आधी से ज्यादा कार ट्राले में घुसी हुई थी और एकदम पिचक गई थी। इस हादसे में मरने वाले गौरव की बुआ की बेटी के घर कुआं पूजन समारोह आयोजित किया गया था। 

चारों युवक कुआं पूजन समारोह में भाग लेने के बाद अपने घर लौट रहे थे। रात होने की वजह से सड़क पर आवागमन भी कम था, इसलिए कार चालक ने स्पीड काफी तेज कर रखी थी। अचानक ट्राले के पीछे पहुंचने पर कार नियंत्रण से बाहर हो गई और हादसा हो गया। केंद्र और प्रदेश सरकार लगातार यह प्रयास कर रही है कि  सड़कों पर होने वाली दुर्घटनाओं को न्यूनतम किया जाए। इन दिनों जितनी सड़क दुर्घटनाएं हो रही हैं, उस दर को आगामी पांच साल में आधी से भी कम करने का लक्ष्य सैनी सरकार ने तय किया है।  इसके लिए सैनी सरकार कई तरह के प्रयास कर रही है। 

वह लोगों से बराबर अपील कर रही है, कार्यशालाएं आयोजित करके तेज रफ्तार से होने वाले नुकसान के बार में लोगों को जागरूक कर रही है। प्रदेश यातायात विभाग के कर्मचारी स्कूल, कालेजों और विभिन्न जगहों पर जाकर लोगों को तेज रफ्तार से होने वाले नुकसान के बारे में बता रहे हैं, लेकिन लोग की समझ में यह बात नहीं आ रही है। रविवार को हुआ हादसा कतई नहीं होता, यदि कार की रफ्तार निर्धारित सीमा में होती। पिछले कई वर्षों की अपेक्षा इस साल प्रदेश में हादसे कम ही हुए हैं। इसके बावजूद लोगों को सतर्कता बरतनी चाहिए। हरियाणा में साल 2024 के दौरान 9806 सडक हादसे हुए। 

इन हादसों में करीब 4689 लोगों की जान चले गई, जबकि 7914 लोग घायल हुए। यह आंकड़ा साल 2023 के मुकाबले काफी कम है। खास बात यह है कि पुलिस ने साल 2024 के सड़क हादसों में घायल होने वाले 5313 लोगों को फस्ट एड की सुविधा मुहैया करवाई, वहीं 7090 घायलों को तुरंत प्राथमिक उपचार के लिए अस्पताल पहुंचाया। साल 2023 में 10 हजार 168 सड़क हादसे हुए, जिनमें 5092 लोगों की मौत हुई है। साल 2022 में 11 हजार 130 सड़क हादसों में 5621 लोगों की मौत हुई थी।

Tuesday, June 3, 2025

युद्ध हमेशा आत्मबल से जीते जाते हैं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

शेरे पंजाब के नाम से मशहूर महाराजा रणजीत सिंह ने कई रियासतों में बंटे पंजाब को एकजुट करके एक सूत्र में बांधने का काम किया था। उनका जन्म 13 नवंबर 1780 में गुजरांवाला में हुआ था। इनके पिता महाराजा महा सिंह सुकरचकिया मिसल के कमांडर थे। जब रणजीत सिंह केवल बारह साल के थे, तभी इनके पिता की मौत हो गई। राजकाज का बोझ कम उम्र में ही इनके कंधे पर आ पड़ा। इतने कठिन दायित्व का बोझ कंधे पर आने के बाद भी वे घबड़ाए नहीं। 

उन्होंने धीरे-धीरे पंजाब की अन्य रियासतों को संगठित करना शुरू किया। इन्होंने लाहौर को अपनी राजधानी बनाई लेकिन बाद में उन्होंने अमृतसर को राजधानी बनाकर अफगानों के खिलाफ संघर्ष छेड़ दिया। उन दिनों महाराजा रणजीत सिंह के राज्य की सीमाएं अफगानिस्तान तक फैली हुई थीं। इन सीमाओं पर अफगानी लुटेरे हमला करके लूटपाट करते थे और भाग जाते थे। 

एक बार की बात है। पंजाब के सीमावर्ती इलाकों पर अफगानी लुटेरों ने हमला किया और खूब आतंक मचाया। जब यह बात रणजीत सिंह को पता चली तो उन्होंने सेनापति को बुलाकर पूछा कि ऐसा क्यों हुआ? सेनापति ने कहा कि अफगान लुटेरे डेढ़ हजार थे और हमारे सैनिक केवल डेढ़ सौ। इस वजह से लूटपाट हुई। रणजीत सिंह ने डेढ़ सौ सैनिक के काफिले के साथ अफगानिस्तान सीमा पर पहुंचकर हमला किया। 

इतने कम सैनिकों के बावजूद रणजीत सिंह और उनके सैनिक डेढ़ हजार अफगान लुटेरों पर भारी पड़े। अफगान लुटेरे जान बचाकर भागने को मजबूर हुए। तब रणजीत सिंह ने सेनापति से कहा कि कोई भी जंग सैनिकों की संख्या से नहीं, साहस और आत्मबल के भरोसे जीती जाती है। यह सुनकर सेनापति खूब शर्मिंदा हुआ।

हरियाणा में फिर से कांग्रेस संगठन खड़ा कर पाएंगे राहुल गांधी?

अशोक मिश्र

हरियाणा कांग्रेस संगठन को पटरी पर लाने की कवायद के तहत चार जून को लोकसभा में नेता प्रतिपक्ष राहुल गांधी चंडीगढ़ आ रहे हैं। राहुल गांधी के हरियाणा आगमन के सिलसिले में कांग्रेस नेताओं की गतिविधियां तेज हो गई हैं। राजनीतिक हलकों में जो चर्चा है, उसके मुताबिक राहुल गांधी का हरियाणा आगमन मुख्यत: दो बातों को लेकर है। पहला तो यह है कि हरियाणा में मृतप्राय संगठन को फिर से खड़ा किया जाए। ठीक उसी तरह जिस तरह आज से ग्यारह-बारह साल पहले कांग्रेस संगठन हुआ करता था। 

हर जिले, हर ब्लाक और गांव स्तर पर कांग्रेस को अपना संगठन खड़ा करने के लिए प्रदेश स्तर के सभी नेताओं को एकजुट होकर अपना खून पसीना एक करना होगा। जब कोई संगठन एक बार छिन्न भिन्न हो जाता है, तो उसको दोबारा पुरानी स्थिति में लाने में काफी मेहनत करनी पड़ती है। नया संगठन तैयार करने की अपेक्षा पुराने संगठन को ही झाड़-पोंछकर खड़ा करना काफी दुरूह हो जाता है। 

किसी पार्टी संगठन के कार्यकर्ताओं का एक बार जब विश्वास नेताओं पर से टूट जाता है, तो उस विश्वास को कायम करने में अधिक श्रम और समय लगता है। उन्हें विश्वास नहीं हो पाता है कि पार्टी के नेता सचमुच सक्रिय हो गए हैं। वैसे एक बात यह भी है कि लोग उस दल से जुड़ना ज्यादा पसंद करते हैं जिसकी प्रदेश या देश में सत्ता होती है। यह एक मानवीय प्रवृत्ति है। ज्यादातर लोग सत्ता के साथ जुड़कर अपना हित साधना चाहते हैं। जिनकी आस्था किसी पार्टी के दर्शन और सिद्धांत के प्रति होती है, वह अपनी पार्टी में बने रहते हैं। 

वरिष्ठ नेताओं का रवैया ठीक न हो या गुटबाजी हो जाए, तो ऐसे कार्यकर्ता निष्क्रिय हो जाते हैं। राहुल गांधी चार जून को जिला स्तर पर संगठन खड़ा करने का प्रयास करेंगे, ऐसी चर्चा है। राहुल गांधी के चंडीगढ़ आगमन का दूसरा कारण प्रदेश स्तरीय नेताओं के बीच चल रही गुटबाजी को खत्म करना है। विधानसभा चुनाव के दौरान भी उन्होंने प्रदेश कांग्रेस में कई वर्षों से अपनी जड़ें जमाए बैठी गुटबाजी को खत्म करने का प्रयास किया था, लेकिन अपेक्षित सफलता नहीं मिल पाई थी। अब उन्होंने एक बार फिर नेताओं की गुटबाजी खत्म करने के लिए एक और प्रयास करने का मन बनाया है। 

वह अपने प्रयास में कितना सफल हो पाते हैं, यह तो वक्त ही बताएगा, लेकिन एक बात अवश्य कही जा सकती है कि जब तक बुजुर्ग हो चुके अड़ियल नेताओं को दरकिनार नहीं किया जाता, तब तक बात बनने वाली नहीं है। सबसे पहले तो प्रदेश की कमान उस व्यक्ति को सौंपनी होगी, जो युवा हो, उत्साही हो और पार्टी के प्रति पूरी तरह समर्पित हो। वह सभी गुटों से बाहर का होना चाहिए।

Monday, June 2, 2025

फकीर से कराया राजकुमारी का विवाह

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

ईरान का पुराना नाम फारस है। भारत और फारस के बीच संबंध बहुत पुराना है। भारतीय और फारसी व्यापारी ईसा से कई सौ साल पहले से ही एक दूसरे के देश में आने जाने लगे थे। यह भी माना जाता है कि भारत में  आने वाले आर्य वास्तव में ईरानी ही थे। 

कुछ इतिहासकार आर्यों को भारत का ही मूल निवासी बताते हैं। सच क्या है? यह शोध का विषय है। ईरान से ही जुड़ा एक प्रसंग है। कहा जाता है कि ईरान का शासक शाह जूसा बहुत ही दयालु और सूफी प्रवृत्ति का था। वह अपनी प्रजा का बहुत ख्याल रखता था। उसकी पुत्री भी संत प्रवृत्ति की थी। राजकुमारी बहुत सुंदर थी। ऐसे में आसपड़ोस के राजाओं के विवाह के लिए प्रस्ताव बहुत आए, लेकिन राजा ने सभी प्रस्तावों को यह कहकर मना कर दिया कि मेरी बेटी किसी संत पुरुष से विवाह करना चाहती है। 

राजा शाह जूसा ने कई फकीरों को देखा, लेकिन उसे एक युवा फकीर पसंद आया। राजा ने फकीर के सामने जब विवाह का प्रस्ताव रखा, तो वह बहुत चकित हुआ। उसने कहा कि मैं विवाह तो करना चाहता हूं, लेकिन मुझ गरीब फकीर को अपनी बेटी कौन देगा? 

राजा ने कहा कि मेरी बेटी से विवाह करोगे? फकीर ने उत्तर दिया कि कहां आप ईरान के राजा और कहां मैं एक फकीर। मुझ से राजकुमारी क्यों विवाह करेगी। राजा ने बड़ी सादगी से उस फकीर का अपनी बेटी से विवाह करा दिया। जब राजकुमारी विवाह के बाद फकीर की झोपड़ी में पहुंची तो वहां रोटियां का ढेर देखकर बोली, क्या आपको कल पर भरोसा नहीं है? 

फकीर ने कहा कि कुछ रोटियां बच रही थीं, तो मैंने सोचा कि कल के लिए रख लूं। तब राजकुमारी ने कहा कि तुम कैसे फकीर हो? तुम्हें कल पर भरोसा नहीं है। यह सुनकर फकीर ने रोटियां जानवरों को खिला दी और दोनों सुख से रहने लगे।

केंद्र और राज्य सरकार ने दिया प्राकृतिक खेती का संदेश

अशोक मिश्र

केंद्रीय कृषि एवं किसान कल्याण मंत्री शिवराज सिंह चौहान पानीपत जिले के सिवाह गांव पहुंचे। 31 मई को सिवाह गांव पहुंचने पर उन्होंने कुछ किसानों से बातचीत भी की। उनसे खेती और फसल उत्पादन के संबंध में बातचीत भी की। बातचीत के दौरान प्राकृतिक खेती पर भी विचार विमर्श किया गया। प्रगतिशील किसान राम प्रताप शर्मा से प्राकृतिक खेती के संबंध में बातचीत करके उन्होंने प्रदेश के प्रत्येक किसान को संदेश देने का प्रयास किया कि यदि वह प्राकृतिक खेती में रुचि लेते हैं, तो उनकी आय वर्तमान से ज्यादा हो सकती है। 

प्राकृतिक रूप से उपजाई गई फसलों की कीमत रासायनिक खाद का उपयोग करके उपजाई गई फसलों से कहीं ज्यादा होता है। प्राकृतिक खेती काफी मुनाफा देती है। केंद्र और प्रदेश सरकार पिछले कई वर्षों से किसानों को यह समझाने का प्रयास कर रही है कि प्राकृतिक खेती करने से एक तो मुनाफा बढ़ेगा और स्वास्थ्य के लिए पैदा होने वाली समस्याओं से भी निजात मिलेगी।

 रासायनिक खादों का उपयोग करने से फसल में ऐसे रसायन भी चले जाते हैं, जो कई जानलेवा बीमारियों का कारण बनते हैं। कैंसर, ब्लड प्रेशर और डायबिटीज जैसे घातक रोगों का कारण फसलों के माध्यम से शरीर में पहुंचा रसायन है। इसके सुखद परिणाम भी देखने को मिल रहा है। प्रदेश के किसान अब प्राकृतिक खेती को अपना रहे हैं। राज्य के एक बड़े भूभाग पर अब प्राकृतिक खेती होने लगी है। कुछ सप्ताह पहले ही यह तय किया गया है कि कैथल में 54  एकड़ पंचायती जमीन पर प्राकृतिक खेती की जाएगी। इसके लिए सरकार ने जमीन भी चिन्हित कर ली है। 

सैनी सरकार ने तय किया है कि अगले दो वर्षों में प्राकृतिक खेती मिशन को राज्य के इच्छुक ग्राम पंचायतों के 15 हजार समूहों में लागू किया जाएगा। इसके माध्यम से प्रदेश के एक करोड़ किसानों को प्राकृतिक खेती के लाभ से परिचय कराया जाएगा। प्राकृतिक खेती का प्रशिक्षण देने के लिए आगामी पांच जून को एक कार्यक्रम रखा गया है। हमारे देश में प्राचीनकाल में प्राकृतिक खेती ही की जाती थी। 

खेत की जुताई के बाद फसल उत्पादन बढ़ाने के लिए खरपतवार को सड़ा-गलाकर बनाई गई खाद और पशुओं का गोबर का उपयोग किया जाने लगा था। खरपतवार और गोबर का उपयोग सदियों से होता आ रहा है, लेकिन जब बीसवीं सदी में रासायनिक खादों  का उत्पादन शुरू हुआ, तो प्राकृतिक खेती का रकबा कम होता गया। नतीजा यह हुआ कि रासायनिक खाद का उपयोग करके अधिक से अधिक अन्न उत्पादन की लालसा किसानों में पैदा होने लगी। इसका नतीजा यह हुआ कि इंसानों में कई तरह की बीमारियां फैलने लगीं।

Sunday, June 1, 2025

हजारों बेटों को बचाने के लिए दी बेटे की बलि

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

स्पेन के राजा अल्फांसो का जन्म 17 मई 1886 को मैड्रिड में हुआ था। इनके पिता की मौत सत्ताइस वर्ष की अल्प आयु में हो गई थी। पिता की मौत के बाद इनका जन्म हुआ था। अल्फांसो का पालन पोषण मां मारिया क्रिस्टीना ने किया था। जब यह सोलह साल के हुए, तो इनको विधिवत राजा के अधिकार सौंपे गए। राजा अल्फांसो अपने को उदारवादी शासक मानते थे। राजा अल्फांसो की मृत्यु 28 फरवरी 1941 को इटली में हुई थी। 

एक बार की बात है। स्पेन के पड़ोसी राजा ने अल्फांसो के राज्य पर हमला कर दिया। दोनों ओर की सेनाएं बड़ी बहादुरी से लड़ीं। दोनों एक दूसरे को हराने के लिए जी जान से लगे हुए थे। अल्फांसो भी एक वीर पुरुष थे और उन्होंने कभी किसी युद्ध में हार नहीं मानी थी। लेकिन इसी बीच हुआ यह कि शत्रु देश के राजा ने अल्फांसो के बेटे को धोखे से बंदी बना लिया। 

स्पेन पर हमला करने वाले राजा ने सोचा कि इससे अल्फांसों का मनोबल टूट जाएगा। यह सोचकर वह राजा अल्फांसो के बेटे को फांसी चढ़ाने के लिए एक ऊंची पहाड़ी पर ले गया। उसने बेटे को फांसी चढ़ाने से पहले अल्फांसो के पास एक संदेश भिजवाया कि उसके पास अब केवल दो ही रास्ते बचें हैं। पहला यह कि वह आत्म समर्पण कर दे और अपने बेटे को बचा ले। 

दूसरा यह कि वह अपने बेटे को मरने दे और जंग करे। जब शुत्र राजा का दूत अल्फांसो के पास यह संदेश लेकर गया, तो अल्फांसो ने तत्काल निर्णय लेते हुए कहा कि वह अपने राज्य के हजारों बेटों की जान बचाने के लिए अपने बेटे की बलि दे सकता है। अल्फांसो का यह जवाब सुनकर लोग और शत्रु राजा आश्चर्यचकित रह गए। शत्रु राजा ने तत्काल उनके बेटे को जीवन दान दे दिया और जंग खत्म करके अपने राज्य लौट गया।

सैनी सरकार ने सरस्वती नदी के पुनर्जीवित होने की जगाई आस

अशोक मिश्र

भारत के ज्ञात इतिहास में सबसे पहले विलुप्त होने वाली नदियों में सरस्वती का नाम ऊपर है। इस नदी का उल्लेख वेदों, पुराणों और प्राचीन ग्रंथों में बहुतायत में मिलता है। कहा जाता है कि सरस्वती नदी तीन हजार साल पूर्व विलुप्त हो चुकी थी। सरस्वती नदी के विलुप्त होने का कारण कुछ लोग सरस्वती नदी क्षेत्र में बार-बार आने वाले भूकंप को मानते हैं, तो वहीं कुछ लोग मानते हैं कि मानवीय गतिविधियों के कारण ही सरस्वती नदी सूख गई। इन बातों में कितनी सच्चाई है, इसका पता अब विज्ञान और टेक्नोलॉजी के माध्यम से लगाया जा सकता है। 

इसके अलावा देश में विलुप्त हो जाने वाली नदियों में घाघर और लूनी का भी नाम लिया जाता है। वैसे कुछ और नदियां हैं जिनके विलुप्त हो जाने का खतरा है। ऐसी नदियों में फल्गु, दरधा और बाणेश्वरी दाहा प्रमुख हैं। लेकिन अब हरियाणा सरकार ने विलुप्त हो चुकी सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने के लिए कमर कस ली है। यदि सरकार की योजना का सही तरीके से क्रियान्वयन हुआ, तो अक्टूबर 2027 तक हरियाणा में सरस्वती नदी के प्रवाह को देखने का सौभाग्य मिल सकता है। 

सैनी सरकार की योजना के अनुसार सरस्वती नदी यमुनानगर के आदि बद्री से शुरू होकर राज्य में चार सौ किमी की यात्रा करती हुई सिरसा के ओट्टू बैराज में मिल जाएगी। इसके बाद यहीं से वह आगे बढ़कर राजस्थान की ओर निकल जाएगी। अभी यमुनानगर में सरस्वती के उद्गम क्षेत्र आदि बद्री में शिवालिक की पहाड़ियों से बूंद-बूंद पानी रिसता है। जो वहां स्थित एक कुंड में इकट्ठा हो जाता है। इस जगह पर यदि उद्गम क्षेत्र से पानी का प्रवाह बढ़ा दिया जाए, तो सरस्वती नदी पुनर्जीवित हो उठेगी। 

राज्य सरकार की योजना पूरी होने के बाद सरस्वती नदी के चार सौ किमी प्रवाह क्षेत्र के आसपास बसे गांवों और शहरों को पानी की कमी से नहीं जूझना पड़ेगा। इससे नदी के प्रवाह क्षेत्र के आसपास की जमीन भी रिचार्ज होगी और सिंचाई के लिए पानी भी पर्याप्त मात्रा में किसानों को मिलेगा। वर्ष 2015 में हरियाणा सरकार ने सरस्वती नदी को पुनर्जीवित करने के लिए सरस्वती धरोहर विकास बोर्ड की स्थापना की थी। विकास बोर्ड तभी से लगातार इस योजना पर काम कर रहा है। 

विकास बोर्ड की योजना के अनुसार, खंड व्यासपुर के रामपुर कांबियान, रामपुर होड़ियान और छिलौर गांवों के 350 एकड़ पंचायत की भूमि पर एक जलाशय बनाया जा रहा है। एनएचएआई ने यहां से मिट्टी निकालने का काम भी शुरू कर दिया है। अब तक तीन लाख क्यूसेक मिट्टी निकाली भी जा चुकी है। ऐसी स्थिति में राज्य सरकार को समय से इस पूरी परियोजना को पूरा करने का प्रयास करना चाहिए।