Sunday, June 22, 2025

मन निर्मल न हो, तो ज्ञान का कोई मूल्य नहीं

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अहंकार व्यक्ति की प्रतिभा को ही नष्ट नहीं करता है, बल्कि सोचने-समझने की शक्ति भी हर लेता है। यही वजह है कि हमारे प्राचीन ग्रंथों में अहंकार को व्यक्ति का सबसे बड़ा दुश्मन बताया गया है। बात महात्मा बुद्ध के समय की है। श्रावस्ती के आसपास किसी शहर में एक युवक रहता था। उसने अपने युवावस्था में सोलह देशों की यात्राएं की थीं। वह युवक काफी प्रतिभाशाली और कुशाग्र बुद्धि का था। 

उसमें सीखने की काफी ललक थी। वह जिस देश में जाता, कोई न कोई नई बात सीखकर आगे बढ़ जाता। वह युवक एक राज्य में गया, जहां वाण-धनुष बनाना और चलाना आम बात थी। उस युवक ने एक व्यक्ति से वाण और धनुष को बनाने की कला सीख ली। फिर दूसरे देश गया, तो उसने वहां की कोई कला सीख ली। इस तरह उसने सोलह देशों की सोलह विद्याएं सीख लीं। 

जब वह अपने देश लौटा तो लोगों ने उसका भरपूर स्वागत किया। अपना इतना भव्य स्वागत और सोलह विद्याएं सीखने की वजह से उसमें धीरे-धीरे अहंकार आता गया। वह लोगों को चुनौती देने लगा कि उसके मुकाबले इस दुनिया में सबसे ज्यादा गुणी कौन है? धीरे-धीरे यह बात महात्मा बुद्ध तक पहुंची। वह उसकी प्रतिभा से परिचित थे। लेकिन उन्होंने सोचा कि यदि इसका अहंकार दूर नहीं किया गया तो एक दिन यह अहंकार उसे खा जाएगा। एक दिन भिक्षा मांगने उसके दरवाजे पर पहुंच गए। 

उसने पूछा-कौन? बुद्ध ने जवाब दिया-मैं आत्मविजय पथ का राही हूं। युवक इस बात समझ नहीं पाया, तो उसने अर्थ पूछा। बुद्ध ने कहा कि वाण या धनुष बनाना, जहाज बनाना जैसी कला तो कोई भी सीख सकता है। जब तक मन निर्मल न हो, तो ज्ञान का कोई मतलब नहीं होता। यह सुनकर युवक समझ गया कि बुद्ध उसे क्या समझाना चाहते हैं। उसका अहंकार दूर हो गया।

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