अशोक मिश्र
महान क्रांतिकारी सूर्य सेन को उनके साथी बड़े आदर और सम्मान के साथ मास्टर दा कहा करते थे। वह एक स्कूल में पढ़ाते थे। क्रांतिकारी सूर्य सेन का जन्म 22 मार्च 1894 को हुआ था। उन्होंने 18 अप्रैल 1930 को सूर्य सेन के नेतृत्व में कई दर्जन क्रांतिकारियों ने चटगांव के शस्त्रागार को लूट लिया और चटगांव को स्वतंत्र घोषित कर दिया। पकड़े जाने पर अंग्रेजों ने क्रांतिकारी सूर्य सेन को चटगांव कारागार में फांसी पर लटका दिया था।
वैसे जब वह किशोर थे और पढ़ाई कर रहे थे, तो उन पर अपने एक अध्यापक का प्रभाव पड़ा और वह धीरे-धीरे क्रांतिकारियों के संपर्क में आए और अनुशीलन समिति के सदस्य बन गए। उन्होंने क्रांतिकारियों के साथ मिलकर हिंदुस्तान रिपब्लिकन आर्मी का गठन किया था। बात तब की है, जब वह नेशनल हाईस्कूल में सीनियर ग्रेजुएट शिक्षक के रूप में पढ़ाते थे।
एक बार परीक्षा के समय उनकी ड्यूटी लगाई गई। जिस कमरे में उनकी ड्यूटी लगी थी, उसी कमरे में प्रिंसिपल का बेटा भी परीक्षा दे रहा था। वह नकल कर रहा था जिसे उन्होंने पकड़ लिया और उसे परीक्षा देने से रोक दिया। यह देखकर दूसरे अध्यापक डर गए। उन्होंने सूर्य सेन को समझाया लेकिन वह नहीं माने। जब परिणाम निकला, तो प्रिंसिपल का बेटा फेल हो गया था।
चपरासी भेजकर प्रिंसिपल ने सूर्य सेन को बुलाया। यह देखकर सारे अध्यापक समझ गए कि सूर्य सेन की नौकरी गई। निडर सूर्य सेन प्रिंसिपल के पास पहुंचे। प्रिंसिपल ने उनका स्वागत करते हुए कहा कि यदि आपने बेटे को नकल करते हुए नहीं पकड़ा होता, तो मैं आपको नौकरी से निकाल देता। इस पर सूर्य सेन ने कहा कि यदि आपने अपने बेटे की तरफदारी की होती, तो मैं इस्तीफा दे देता। यह सुनकर प्रिंसिपल ने उन्हें गले लगा लिया।
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