Sunday, June 29, 2025

चिकित्सक के मन में मानवता जरूरी

 बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

रसायन शास्त्री नागार्जुन ने पहली शताब्दी में ही धातुकर्म में प्रवीणता हासिल कर ली थी। बौद्ध धर्म के महायान संप्रदाय के संस्थापक नागार्जुन का जन्म 150 ईस्वी में माना जाता है। वैसे प्राचीन साहित्य में एक और नागार्जुन का उल्लेख मिलता है जो दसवीं शताब्दी में पैदा हुए थे। यह भी रसायन शास्त्री थे। इसलिए कई बार यह तय कर पाना कठिन हो जाता है कि अमुक घटना किस नागार्जुन से जुड़ी हुई है। 

बहरहाल, नागार्जुन ने पारे और लोहे को शोधित करने की विधि खोज ली थी। महायान संप्रदाय से जुड़े नागार्जुन की मृत्यु 250 ईस्वी में हुई बताई जाती है। कहते हैं कि एक बार नागार्जुन को कुछ नए शिष्यों की आवश्यकता हुई। उन्होंने कुछ रसायन तैयार करवाने थे। पुराने शिष्यों ने दो युवकों का नाम लिया जिनको शिष्य बनाया जा सकता था। नागार्जुन ने एक दिन दोनों युवकों को बुलाया और कहा कि एक दिन के भीतर वे कोई नया रसायन बनाकर लाएं। दोनों युवक आश्रम से निकल गए। 

दूसरे दिन एक युवक रसायन लेकर हाजिर हो गया। नागार्जुन ने पूछा कि कोई परेशानी तो नहीं हुई। उस युवक ने कहा कि नहीं, वैसे तो कोई परेशानी नहीं हुई, लेकिन माता-पिता के बीमार होने की वजह से कुछ व्यवधान जरूर पड़ा था, लेकिन मेरा ध्यान रसायन बनाने पर ही रहा। थोड़ी देर बाद दूसरा युवक भी खाली हाथ पहुंचा। उसने नागार्जुन से कहा कि गुरुदेव! मैं रसायन नहीं बना सका क्योंकि आश्रम से निकलते ही एक बुजुर्ग मिला, जो दर्द से कराह रहा था। मुझसे उसकी पीड़ा देखी नहीं गई। 

मैं उसे घर ले गया और उसका उपचार किया। अब वह ठीक है। इस वजह से मैं रसायन तैयार नहीं कर पाया। यदि कहें, तो मैं अब बना सकता हूं। यह सुनकर नागार्जुन ने कहा कि जिसके मन में बीमार के प्रति सहानुभूति न हो, वह अच्छा वैद्य नहीं बन सकता है। कल से तुम आश्रम आ सकते हो। यह सुनकर युवक प्रसन्न हो गया।

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