अशोक मिश्र
यदि सब कुछ ठीक ठाक रहा तो हरियाणा कांग्रेस के इतिहास में शायद पहली बार होगा कि जिला अध्यक्षों के चुनाव में स्थानीय सांसद, विधायक, प्रदेश कांग्रेस कमेटी की कोई भूमिका नहीं होगी। जिलाध्यक्षों का चुनाव सिर्फकांग्रेस कार्यकर्ता ही करेंगे। पिछले ग्यारह साल से प्रदेश की सत्ता से वंचित कांग्रेस आलाकमान ने पिछले साल विधानसभा चुनावों में मिली पराजय और गुटबाजी से सबक लेते हुए ऐसा फैसला किया है। यह तरीका गुजरात में प्रदेश और जिला अध्यक्षों के चुनाव और संगठन को खड़ा करने में आजमाया जा चुका है। जब से लोकसभा में नेता विपक्ष और कांग्रेस सांसद राहुल गांधी ने हरियाणा कांग्रेस के नेताओं की गुटबाजी को लेकर कड़ा रुख अपनाया है, तब से सतह पर गुटबाजी दिखाई नहीं दे रही है।
भूपेंद्र सिंह हुड्डा, कुमारी सैलजा और रणदीप सुरजेवाला जैसे नेताओं के बयान मीडिया में दिखाई नहीं दे रहे हैं। ऐसा लगता है कि इन नेताओं की फिलहाल सक्रियता कम हो गई है। या फिर ऐसा भी हो सकता है कि कांग्रेस नेता राहुल गांधी की वजह से इनकी समझ में आ गया हो कि एक दूसरे का विरोध करके न तो भविष्य में कांग्रेस को सत्ता पर बिठाया जा सकता है और न ही उन्हें इससे कुछ हासिल होने वाला है। यही सोचकर उन्होंने फिलहाल चुप बैठने का फैसला किया हो।
बहरहाल, इन दिनों कांग्रेस संगठन में काफी सक्रियता दिखाई दे रही है। जिला अध्यक्षों के चुनाव के लिए आवश्यक कदम उठाते हुए केंद्रीय पर्यवेक्षक अपने काम में लगे हुए हैं। सभी केंद्रीय पर्यवेक्षकों को तीस जून तक प्रदेश के 22 जिलाध्यक्षों के लिए पैनल में छह-छह नाम कांग्रेस हाईकमान को सौंप देने हैं। इन छह नामों में महिला, अनुसूचित जाति, अनुसूचित जनजाति जैसे कैटेगरी के लोगों के नाम होंगे। कांग्रेस ने इस बार अपने पदाधिकारियों के चयन में काफी सावधानी और सख्ती बरतने का फैसला किया है। जिला अध्यक्षों के लिए आने वाले आवेदनों की बड़ी गहराई से जांच की जा रही है।
आवेदकों ने अपने बारे में जो कुछ बताया या लिखा है, वह सही है या नहीं, इसकी भी जांच की जा रही है। इसके लिए इलाके के कार्यकर्ताओं और कांग्रेस समर्थकों से फीडबैक लिया जा रहा है। कांग्रेस हाई कमान ने यह भी तय किया है कि यदि कोई जिलाध्यक्ष सांसद या विधायक का चुनाव लड़ना चाहता है, तो उसे अपने पद से एक से डेढ़ साल पहले इस्तीफा देकर अपने क्षेत्र में जाना होगा। इसके बाद पार्टी फीडबैक के आधार पर तय करेगी कि आवेदन करने वाले को टिकट दिया जाए या नहीं। इस मामले में किसी की सिफारिश मान्य नहीं होगी। यही बात जिलाध्यक्षों के चुनाव को लेकर भी लागू की गई है।
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