Thursday, July 31, 2025

महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी की अहिंसा में बहुत अंतर था

बस यों ही बैठे ठाले-6

रचना काल 7 मई 2020

आज बुद्ध पूर्णिमा है। कहा जाता है कि आज के ही दिन ईसा पूर्व 563 में इक्ष्वाकु वंशीय शाक्य कुल नरेश शुद्धोधन के घर में महात्मा बुद्ध का जन्म हुआ था। उनका जन्म राजधानी कपिलवस्तु से कुछ दूर लुंबिनी में हुआ था जो नेपाल में है। राजकुमार सिद्धार्थ महात्मा बुद्ध कैसे बने, यह लगभग सभी जानते हैं। एक कथा तो यह है कि एक बार उन्होंने बीमार को देखा, फिर एक दिन बूढ़े को देखा और फिर एक आदमी की शवयात्रा देखी, तो वह व्यथित हो गए और संपूर्ण मानव समाज के दुखों का कारण तलाशने को राजपाट छोड़कर संन्यासी हो गए।
वहीं, एक कथा यह भी कही जाती है कि राजकुमार सिद्धार्थ लच्छिवी गणराज्य के प्रमुख नरेश शुद्धोधन का अपने पड़ोसी राज्य के बीच काफी लंबे समय से नदी जल विवाद चला आ रहा था। इस विवाद को हल करने के लिए जब गणराज्यों की बैठक हुई, तो दूसरे पक्ष ने शर्त रखी कि यदि राजकुमार सिद्धार्थ राजपाट छोड़कर संन्यासी हो जाएं, तो युद्ध टाला जा सकता है। कहते हैं कि राजकुमार सिद्धार्थ युद्ध नहीं चाहते थे और एक दिन रात में वे पत्नी, पुत्र, पिता और राजपाट को त्याग कर अपने आप को देश निकाला दे दिया।

अब इनमें से कौन सी कथा सही है, नहीं मालूम। पर पहली कथा को ही समाज में मान्यता प्राप्त है इन दोनों कथाओं पर यदि विचार करें, तो एक बात साफ उभर कर सामने आती थी कि राजकुमार सिद्धार्थ एक संवेदनशील और जिज्ञासु प्रवृत्ति के रहे होंगे। दया, करुणा और मानव प्रेम उनके अंत:करण में काफी गहरे पैठी रही होगी। आज के हालात में यह सोचकर देखिए कि आज से ढाई हजार साल पहले तत्कालीन समाज में रहने वालों के दुखों का कारण जानने को उस समय की सबसे सुंदर राजकुमारी यशोधरा, पुत्र राहुल और लिच्छिवी गण को एक झटके में छोड़कर एक चीवर धारण कर निकल पड़ता है, तो वह कितना दृढ़ निश्चयी, साहसी, मानवीय और करुणामय रहा होगा।
राजकुमार सिद्धार्थ से महात्मा बुद्ध बनने के बीच का सफर भी कोई आसान नहीं रहा होगा। लेकिन उन्होंने यह सफर पूरा किया। इस दौरान वे आत्म विवेचन, परीक्षण और अनुसंधान के कई चरणों से गुजरे होंगे। कई बार वे विचारों, सिद्धांतों को लेकर गलत साबित हुए, उन्होंने उसमें सुधार किया। महात्मा बुद्ध जिस युग में पैदा हुए थे, उस युग में कर्मकांडों और यज्ञों का बोलबाला था। तत्कालीन समाज में पुरोहितों ने दीन हीन, निराश्रित और असहाय जनता को यज्ञ और कर्मकांड के नाम पर लूट मचा रखी थी। महात्मा बुद्ध आम जनता को इन कर्मकांडों और यज्ञों से मुक्ति दिलाने के लिए आगे आए।
उन्होंने उद्घोष किया, अप्प दीपो भव। अपना प्रकाश खुद बनो। तुम दूसरों में अपना आदर्श खोजने की जगह खुद आदर्श बनो। तुम जिस ईश्वर की प्रतीक्षा में हो, वह ईश्वर तुम्हें कष्टों से मुक्ति नहीं दिलाएगा। तुम्हें खुद प्रयास करना होगा। यह शायद महात्मा बुद्ध का अवतारवाद के खिलाफ पहला विद्रोह था। उन्होंने निर्वाण के लिए कर्मकांड और यज्ञों की महत्ता से इनकार कर दिया। उन्होंने आत्मिक शुद्धता को ही महत्व दिया। नतीजा यह हुआ कि तत्कालीन शोषित, पीड़ित आम जनता को बुद्ध के रूप में एक मुक्तिदाता मिला जिसने सदियों से पैरों में पड़ी कर्मकांडों की बेड़ी को एक झटके में तोड़ दिया।
आज से ढाई हजार साल पहले महात्मा बुद्ध इस बात को समझ गए थे कि सभी मानवीय समस्याओं की जड़ निजी संपत्ति है। इसीलिए उन्होंने व्यवस्था दी कि संघ में भिक्षा पात्र और तीन चीवर (1- अन्तरवासक : अधोवस्त्र, जिसे लुंगी के समान लपेटा जाता है । 2- उत्तरासंग : यह इकहरी चादर के समान होता है, जिससे शरीर को लपेटा जाता है । यह चार हाथ लम्बा और चार हाथ चौड़ा होता है । 3- संघाटी : दुहरी सिली होने के कारण इसे दुहरी चादर कहा जा सकता है । यह कंधे पर तह लगाकर रखी जाती है । ठंड लगने अथवा अन्य कोई कार्य आ पड़ने पर इसका उपयोग किया जाता है । ) के अलावा किसी भिक्षु की कोई निजी संपत्ति नहीं होगी। भिक्षु की मौत के बाद काषाय (चीवर) और भिक्षा पात्र दूसरे भिक्षु को प्रदान कर दिए जाएंगे यदि वे उपयोग के लायक रहे तो।
बुद्ध पूर्णिमा के अवसर पर मैं महात्मा बुद्ध और महात्मा गांधी की अहिंसा संबंधी विचारों के बारे में स्पष्ट करने का प्रयास करना चाहता हूं। इसमें कितना सफल होता हूं, यह तो आप ही बताएंगे। जहां तक मैं समझ पाया हूं कि महात्मा बुद्ध की अहिंसा के मूल में यह अवधारणा थी कि जैसा राजा होता है, वैसी प्रजा होती है। यदि राजा अहिंसक हो, तो जनता हिंसा नहीं करती है। इसलिए अहिंसा के विचारों को अपनाने की जरूरत राजाओं को है, प्रजा तो वैसे भी स्वभावत: अहिंसक ही होती है। यही वजह है कि महात्मा बुद्ध और उनके परिवर्ती शिष्यों ने राजाओं को अहिंसक बनाने का प्रयास किया। लेकिन महात्मा गांधी?
जहां तक मैं समझता हूं कि मोहन दास करमचंद गांधी यानि महात्मा गांधी के राजनीतिक गुरु भले ही रामकृष्ण गोखले रहे हों, लेकिन अहिंसा संबंधी विचार उन्होंने रूसी साहित्यकार और दार्शनिक लियो टालस्टाय की अमर रचना ‘वार एंड पीस’ से ली थी। लियो टालस्टाय से प्रभावित होने की वजह से ही महात्मा गांधी ने कभी भारत या दूसरे देशों में उनके दौर में चल रही क्रांतिकारी गतिविधियों का समर्थन नहीं किया। उनका मानना था कि हम अंग्रेजों के खिलाफ अहिंसा नहीं करेंगे। यदि अंग्रेज हुकूमत हिंसा करती है, तो करती रहे। यही वजह है कि स्वाधीनता संग्राम के दौरान कांग्रेसी कार्यकर्ता अंग्रेजों के लाठी-डंडे खाकर भी हाथ नहीं उठाते थे। गांधीवादी दर्शन और सिद्धांत को शहीदे-आजम भगत सिंह ने दिवा स्वप्न और कोरी कल्पना शायद इसी वजह से कहा होगा।

गुनाह की भरपाई तो मुझे करनी होगी

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अशरफ अली शाह एक प्रसिद्ध स्वतंत्रता संग्राम सेनानी थे। उनका जन्म 1920 में ओरछा रियासत में हुआ था। उन्होंने झंडा आंदोलन और बेगारी के खिलाफ चलने वाले आंदोलन में भाग लिया था। वह एक संत जैसा जीवन बिताते थे। स्वतंत्रता संग्राम में भाग लेने की वजह से अंग्रेजी हुकूमत ने उन पर काफी जुल्म ढाए थे। सन 1940 के आसपास चलने वाले क्रांतिकारी आंदोलनों में उन्होंने भाग लिया था। 

इसकी वजह से कई बार गिरफ्तार भी किए गए। ज्यादातर समय उन्होंने भूमिगत रहकर क्रांतिकारी आंदोलन को आगे बढ़ाया। अशरफ अली शाह को जेल में इतनी अधिक यातनाएँ दी गई कि इनके गले की हड्डी टूट गयी थी एवं आँखों से कम दिखाई देने लगा था। फिर भी ये न तो डरे ना ही कभी झुके। ओरछा रियासत ने भी 1943 में उन्हें निष्कासित कर दिया था। वह हर किसी की मदद करते रहते थे। एक बार की बात है। वह सहारनपुर से लखनऊ जा रहे थे। उनके साथ कुछ सामान था और कई शिष्य भी उनके साथ थे। 

संयोग से उस रेलगाड़ी का गार्ड उनको पहचानता था। उसने कहा कि आपको सामान तुलवाकर उसका भाड़ा जमा करने की जरूरत नहीं है। मैं बरेली तक जाऊंगा। इसके बाद जो दूसरा गार्ड आएगा, मैं उससे कह दूंगा तो वह आपके सामान को सुरक्षित लखनऊ तक पहुंचा देगा। जबकि शाह ने अपने शिष्यों से कह रखा था कि वह सामान तुलवाकर उसका भाड़ा जमाकर दें। 

गार्ड की बात सुनकर शाह बोले कि मेरी यात्रा बहुत लंबी है। फिलहाल तो यह यात्रा लखनऊ तक है, लेकिन जीवन की यात्रा समाप्त होने के बाद मेरे इन गुनाहों को स्वीकार करने के लिए तुम तो साथ नहीं होगा। इस गुनाह की भरपाई तो मुझे ही करनी होगी। यह सुनकर गार्ड लज्जित हो गया। शाह ने सामान का भाड़ा जमा किया और लखनऊ तक यात्रा की।

राजस्व रिकार्ड डिजिटल होने से भ्रष्टाचार की गुंजाइश हुई खत्म

अशोक मिश्र

अब हरियाणा में किसी की जमीन पर दूसरा कोई कब्जा नहीं कर पाएगा। उसे धोखाधड़ी करके बेचना भी अब संभव नहीं होगा। जमीन से जुड़े मामले में किसी भी प्रकार का भ्रष्टाचार कम से कम अब हरियाणा में संभव नहीं होगा। इसका कारण यह है कि हरियाणा में राजस्व रिकार्ड अब आॅनलाइन हो गए हैं। 163 साल पुराने जमीन के दस्तावेजों का डिजिटलीकरण किया जा चुका है। बस, केवल दस प्रतिशत दस्तावेजों का काम बाकी है जिसके एक पखवाड़े में पूरा हो जाने की उम्मीद है। वैसे जमीनी दस्तावेजों को डिजिटल करने का विचार पूर्व मुख्यमंत्री मनोहर लाल के मन में वर्ष 2017 में आया था।  

उन्होंने राजस्व विभाग के अधिकारियों और कर्मचारियों को यह कठिन काम सौंपा था। 163 साल पुराने जमीनी दस्तावेजों का अनुवाद करना, उन्हें क्रमबद्ध करना और फिर उसको स्कैन करके कोडिंग करना आसान काम नहीं था। सौ साल से भी अधिक पुराने ज्यादातर दस्तावेज उर्दू में थे जिनका अनुवाद भी आसान नहीं था। लेकिन सरकार का दृढ़ संकल्प और अधिकारियों-कर्मचारियों की कार्यकुशलता से यह कठिन काम आठ साल में ही पूरा हो गया। जमीनी दस्तावेजों का डिजिटलीकरण करने का मकसद एक तो उन्हें सुरक्षित रखना था, वहीं भ्रष्टाचार को रोकना भी अहम उद्देश्य था। 

बरसों से फटे-पुराने रिकार्ड को सहेजने में भी काफी परेशानी होती थी। यदि इनमें से कोई रिकार्ड खराब हो जाता, तो उसे दोबारा बनाने में काफी दिक्कत होती। राजस्व रिकार्ड किसी भी संपत्ति के लिए बहुत महत्वपूर्ण दस्तावेज माना जाता है। जमीन की फर्द, इंतकाल, जमाबंदी, रजिस्ट्री जैसे तमाम काम राजस्व रिकार्ड का ही हिस्सा है। हरियाणा में 2691 पटवार सर्किल हैं। इसके बाद कानूनगो सर्किल आता है। प्रदेश में कुल 256 कानूनगो सर्किल हैं। एक पूरी तहसील के अंतर्गत आने वाले गांवों-कस्बों का यहां पर रिकार्ड रखा जाता है। हरियाणा में 49 सब तहसील और 93 तहसीलें हैं। हरियाणा देश का पहला राज्य है जिसने अपने राजस्व रिकॉर्ड का नब्बे प्रतिशत हिस्सा डिजिटल कर लिया है। 

डिजिटलीकरण का फायदा छोटे किसान, गरीब परिवारों से लेकर बड़े उद्योगपतियों को मिलेगा। जमीन का हर टुकड़ा सरकारी रिकार्ड में दर्ज रहेगा जिससे कोई दूसरा उससे छेड़छाड़ भी नहीं कर पाएगा। हरियाणा सरकार का यह फैसला लोकहित में है। गांव के किसान अब किसी भी तरह के जमीनी विवाद पैदा होने पर आॅनलाइन दस्तावेज निकाल सकेंगे, उसका उपयोग कर सकेंगे। इससे पहले सदियों और दशकों पुराने ऐतिहासिक दस्तावेज और अभिलेखों को प्राप्त करने के लिए संपत्ति मालिकों को काफी परेशानी उठानी पड़ती थी।

Wednesday, July 30, 2025

किसान पुत्रों ने लड़ना छोड़ दिया

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

एकता में बल होता है, यह हमारे धर्मग्रंथों और पंचतंत्र की कहानियों में बहुत बार दोहराया जा चुका है। यह सही है कि एकता में बहुत बल होता है, लेकिन इंसान अपनी कमजोरियों और स्वार्थ की वजह से एक नहीं रह पाता है। जब दो समाज, दो देश या दो भाइयों-बहनों के हित टकराते हैं, तो एकता टूट जाती है। व्यक्ति वैसे तो कभी नहीं चाहता है कि वह अपने परिजनों से अलग रहे,लेकिन परिस्थितियां उसे मजबूर कर देती हैं कि वह अपने ही सगे-संबंधियों के खिलाफ हो जाए। 

चलिए, वह कहानी भी कह देते हैं जिसमें कहा गया है कि एकता में बल है। बात बहुत पुरानी है। एक गांव में किसान रहता था। उसके पांच पुत्र थे। सभी पुत्र मेहनती और पिता के प्रति आज्ञाकारी थे, लेकिन वह आपस में लड़ते रहते थे। उनका पिता कई बार उन्हें समझा बुझा चुका था कि आपस में लड़ने से कोई फायदा नहीं है। यदि तुम सब एक साथ मिलजुलकर रहोगे, तो फायदे में रहोगे। 

लेकिन किसान के पांच पुत्र पिता की बात एक कान से सुनते और दूसरे कान से निकाल देते थे। हारकर एक दिन किसान ने अपने पांचों पुत्रों को बुलाया और कहा कि सामने रखा, लकड़ी का गट्ठर तोड़ दो। पांचों पुत्र बलशाली थे, लेकिन वह लकड़ी के गट्ठर को तोड़ नहीं पाए। तब किसान ने अपने पुत्रों से एक-एक लकड़ी को तोड़ने के लिए कहा। सभी पुत्रों ने उन लकड़ियों को बड़ी आसानी से तोड़ दिया।

तब किसान ने अपने पुत्रों को समझाया कि यदि तुम लोग आपस में मिलजुलकर नहीं रहे, तो दूसरे लोग तुम्हारी कमजोरियों का फायदा उठाकर तुम्हें हानि पहुंचा सकते हैं, लेकिन यदि मिलजुलकर रहे, तो कोई भी तुम्हारा बाल बांका नहीं कर पाएगा। यह बात लड़कों की समझ में आ गई और उस दिन से लड़ना छोड़ दिया।

हरियाणा में महिलाओं के विकास और उत्थान के लिए खुलते नए द्वार

अशोक मिश्र

हरियाली तीज के अवसर पर मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने प्रदेश की महिलाओं को कोथली दी। हरियाणा में भाई द्वारा बहनों को कोथली देने की एक बहुत पुरानी परंपरा है। सैनी सरकार ने महिलाओं के उत्थान और विकास के लिए अंबाला में कई घोषणाएं की। उनकी घोषणा में जहां महिलाओं की आर्थिक दशा सुधारने, गर्भवती महिलाओं का सुरक्षित प्रसव और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के बच्चों की फिक्र साफ तौर पर झलकी। वहीं, उन्होंने कन्याभ्रूण हत्या को लेकर भी एक तरह से अपनी चिंता जाहिर की। 

वह हर हालत में हरियाणा में बिगड़ते लिंगानुपात को सुधारकर बेटी बचाओ-बेटी पढ़ाओ की मुहिम को आगे बढ़ाना चाहता है। हरियाली तीज के अवसर पर उन्होंने लाडो सखी योजना की घोषणा करके अपने इरादे जाहिर कर दिए हैं। लाडो सखी योजना के तहत प्रदेश की गर्भवती महिलाओं के सुरक्षित प्रसव की जिम्मेदारी उन्होंने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशा वर्कर और एएनएम को सौंप दी है। यह एक तरह से गर्भवती महिलाओं की सखी की भूमिका निभाएंगी। 

इस योजना के तहत बेटी पैदा होने पर हर लाडो सखी को एक हजार रुपये की प्रोत्साहन राशि प्रदान की जाएगी। इस योजना के सहारे सीएम सैनी ने कन्याभ्रूण हत्या को भी प्रकारांतर से रोकने का प्रयास किया है। प्रोत्साहन राशि आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं, आशा वर्कर्स और एएनएम को प्रोत्साहित करेगा कि वह कन्या भ्रूण हत्या को हर हालत में रोकने का प्रयास करें। यह लोग वैसे तो पहले भी कन्या भ्रूण हत्या को रोकने में अहम भूमिका निभा रहे थे, लेकिन लाडो सखी योजना की शुरुआत के बाद वह इस पर विशेष ध्यान देंगी। 

अब जब सैनी सरकार ने आंगनबाड़ी कार्यकर्ता, आशावर्कर और एएनएम को गर्भवती महिलाओं के सुरक्षित प्रसव की जिम्मेदारी दे दी है, तो ऐसी स्थिति में इन लोगों के बच्चों की देखभाल का जिम्मा सरकार ने खुद ले लिया है। इसके लिए उन्होंने आंगनबाड़ियों में बढ़ते कदम डिजिटल बाल कार्यक्रम शुरू करने की घोषणा कर दी है। अब सरकार आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के बच्चों की देखभाल और शिक्षा में मदद करेगी। एक तरह से हरियाली तीज के अवसर पर सीएम सैनी ने गर्भवती महिलाओं और आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं के लिए सराहनीय फैसले लेकर यह जाहिर कर दिया है कि वह महिलाओं के विकास और उत्थान के लिए हर संभव प्रयास करने को आतुर हैं।

 हरियाणा में स्टार्टअप में महिलाओं की बढ़ती भागीदारी उनकी सफल नीतियों का ही परिणाम है। महिलाओं के नेतृत्व वाले स्टार्टअप को विशेष छूट देने की घोषणा करके महिलाओं को एक नया आयाम सैनी सरकार ने प्रदान किया है।

मई दिवस अब मजदूर नहीं, पूंजीपति मनाते हैं

 बस यों ही बैठे ठाले-5

रचनाकाल-----------मई 2020

मेरा ख्याल है कि मई दिवस के बारे में किसी को कुछ बताने की जरूरत नहीं है। देश-दुनिया के लोग मई दिवस के बारे में कमोबेस कुछ न कुछ जानते ही हैं। हां, आज के अखबारों में एक खबर छपी है कि इस देश के कुछ उद्योगपति लॉकडाउन के दौरान का वेतन अपने कर्मचारियों को नहीं देना चाहते हैं। उनका कहना है कि यदि उन्हें लॉकडाउन के दौरान का वेतन अपने कर्मचारियों को देने पर मजबूर किया गया, तो लाकडाउन के दौरान और उसके बाद उद्योग धंधे पचास फीसदी तक चौपट हो जाएंगे। उद्योग धंधों को बचाने के लिए सरकार को बिजली रियायती दरों पर दे, फलां टैक्स में छूट दे सरकार। इतने साल तक कच्चा माल लाने-ले जाने में रियायत दे।
सरकार से तमाम तरह के छूट और अपने कर्मचारियों को लाकडाउन के दौरान का वेतन न देने की गुहार लगाने वाले ये वही उद्योगपति और पूंजीपति हैं जिन्होंने सालोंसाल इनके कार्यालयों, कल-कारखानों और दुकानों में काम करने वाले कर्मचारियों, मजदूरों और नौकरों की बदौलत मुनाफा कमाते रहे हैं। आज जब देश-दुनिया में संकट आया है, देश की आम जनता अपनी गाढ़ी कमाई से कुछ हिस्सा निकालकर महामारी से लड़ने के लिए पीएम केयर्स फंड में दे रहा है, तब ये उद्योगपति और पूंजीपति सालों साल कमाए गए मुनाफे का छोटा सा भी हिस्सा देने को तैयार नहीं हैं। (कुछ अपवादों को छोड़कर)। आज मई दिवस पर प्रकाशित हुई इन खबरों ने पूंजीवादी वर्ग व्यवस्था की कलई खोलकर रख दी है।े
मुझे याद है, बचपन में भइया (का. आनंद प्रकाश मिश्र, महामंत्री, आरएसपीआई(एमएल)) मई दिवस और लेनिन से जुड़ा एक प्रसंग सुनाया करते थे।
जिन दिनों लेनिन लंदन में निर्वासित जीवन बिता रहे थे, उन्हीं दिनों मई दिवस आया। लेनिन बहुत प्रसन्न हुए कि आज दुनिया भर के मजदूरों का सबसे बड़ा दिन आया है। जरूर लंदन में मजदूरों ने बहुत बड़ा आयोजन किया होगा। मजदूर दिवस पर मजदूरों की अगुवाई में होने वाले कार्यक्रम में भाग लेने के लिए वे सुबह ही तैयार होकर लंदन की सड़कों पर घूमने लगे। कुछ देर बाद देखा कि राज पथ पर बैंड-बाजों के साथ एक जुलूस चला आ रहा है। बैंड-बाजे के पीछे-पीछे ब्रिटेन की संसद के दोनों सदनों के सदस्य राजसी पोशाक में मजदूर दिवस अमर रहे का नारा लगाते हुए चले आ रहे हैं। उस जुलूस में एक भी मजदूर नहीं था। मई दिवस को दुनिया भर के पूंजीपतियों ने हाथों हाथ लपक लिया था, ताकि मई दिवस के संदेश और मजदूर वर्गीय चेतना से मजदूरों को लैस होने से रोका जा सके। आज भी देश में मई दिवस मनाने में कौन सबसे आगे है?
दक्षिण पंथी राजनीतिक पार्टियां जिनको मजदूर वर्गीय दर्शन और सिद्धांत से एलर्जी है, मध्य मार्गी पार्टियां जिन्होंने अपने हमेशा पूंजीपतियों के हितों का ही पोषण संरक्षण किया है और वामपंथी कम्युनिस्ट पार्टियां जिन्होंने मार्क्सवादी-लेनिनवादी क्रांतिकारी दर्शन और सिद्धांतों की जगह प्रतिक्रियावादी ट्राटस्कीवाद, माओवाद, स्टालिनवाद, ख्रुश्चेववाद, नक्सलवाद को अपना रखा है जिन्होंने मजदूरों और मजदूर वर्गीय दर्शन के साथ अपने जन्मकाल से ही गद्दारी की है। दक्षिण पंथियों, मध्य मार्गीयों और वामपंथियों को न तो मजदूरों से कोई लेना देना है, न ही मजदूर दिवस से। इस देश की तमाम ट्रेड यूनियनें भी मजदूर दिवस यानी मई दिवस को मनाने में अग्रणी रहती हैं।
(इस वर्ष कोरोना महामारी के चलते सामूहिक कार्यक्रम नहीं हो पा रहे हैं) दरअसल, कभी ट्रेड यूनियनों का वर्गीय चरित्र मजदूर वर्ग के समर्थन में रहा है, लेकिन कालांतर ये सभी तरह की ट्रेड यूनियनें (चाहे वे दक्षिण पंथी पार्टियों द्वारा समर्थित हों, मध्य मार्गीयों द्वारा समर्थित हों या वाम पंथियों द्वारा ) मजदूर वर्ग विरोधी हो गईं। मजदूरों के नाम पर इनका एक मात्र कार्य मजदूरों के नाम पर पूंजीपतियों की दलाली करना रहा है। आज मई दिवस पर मजदूर वर्ग को एक बात अच्छी तरह से समझना होगा कि शोषण पर आधारित बिकाऊ माल की पूंजीवादी अर्थ व्यवस्था में एक मात्र क्रांतिकारी मजदूर वर्ग ही है। किसान क्रांति में सहयोगी तो हो सकता है, लेकिन क्रांति में अग्रणी भूमिका नहीं निभा सकता है। प्रख्यात क्रांतिकारी का. केशव प्रसाद शर्मा कहा करते थे कि यह सभ्य किंतु अमानवीय पूंजीवादी वर्ग समाज है, इसे मानवीय मानव समाज में बदलने की ऐतिहासिक जिम्मेदारी मजदूर वर्ग पर ही है।
मजदूर व्यक्तिगत रूप से नस्लभेदी, रंगभेदी, जातिवादी, प्रांतवादी, सांप्रदायिक, प्रतिक्रियावादी और इस भ्रष्ट पूंजीवादी व्यवस्था का एक अंग हो सकता है, लेकिन जब वह उत्पादन कार्य क्षेत्र में होता है, तो वह क्रांतिकारी मजदूर वर्ग में तब्दील हो जाता है। उसके पास खोने को कुछ नहीं होता है, लेकिन वह चाहे तो इस संसार की सकल संपदा का स्वामी बन सकता है। यही इस मई दिवस का सार रूप में संदेश है। और यही संदेश मजदूर वर्ग तक न पहुंच पाए, इसका सारा यत्न पूंजीवादी व्यवस्था की रक्षक-पोषक राजनीतिक दल करते हैं। तमाम तरह के झंडे, डंडे, चेहरे और दर्शन, विचारधारा को लेकर एक दूसरे से लड़ने वाले राजनीतिक दलों का वर्ग चरित्र एक ही है। इनमें वैचारिक मतभेद नहीं है। ये बस इस पूंजीवादी राजसत्ता का संचालन और संरक्षक बनने के लिए लड़ते हैं। आम लोगों को बस एक बात समझने की जरूरत है कि गड़बड़ी गाड़ी में है और हम हर पांच साल बाद उस गाड़ी का ड्राइवर बदल रहे हैं।

Tuesday, July 29, 2025

हाथी, महावत और राहगीर

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

इंसान को जब किसी प्रकार की समस्याओं का सामना करना पड़ता है, तो वह पहले उस समस्या से निजात पाने की कोशिश करता है। हर संभव प्रयास करने के बाद दिया वह सफल नहीं होता है,तो वह मान लेता है कि वह उस समस्या से छुटकारा नहीं पा सकता है। 

भले ही यदि वह थोड़ा और प्रयास करता, तो उसे समस्या से निजात मिल जाती है। लेकिन विफलता उसके मन में कहीं गहरे बैठ जाती है। यदि कभी दोबारा वही समस्या आकर खड़ी हो जाती है, तो वह उस समय प्रयास ही नहीं करता है। इस संबंध में एक बड़ी ही रोचक कहानी कही जाती है। कहते हैं कि एक आदमी कहीं जा रहा था। वह अपने में ही मस्त था। 

कुछ दूर जाने पर उसे थकान महसूस हुई, तो वह एक बड़े पेड़ के नीचे रुक गया। तभी उसकी निगाह पास में ही एक पतली रस्सी से बंधे हाथी पर पड़ी। उसे पतली रस्सी से बंधे हाथी को देखकर बड़ा ताज्जुब हुआ। उसने थोड़ी दूर खड़े महावत से पूछा कि इतनी पतली रस्सी को तुड़ाकर यह हाथी भाग नहीं सकता है क्या? महावत ने गंभीर होकर जवाब दिया कि जब यह हाथी छोटा था, तब भी मैं इसी रस्सी से बांधता था। तब रस्सी नई और मजबूत हुआ करती थी। यह लगातार प्रयास करता रहता था, इस रस्सी को तोड़ने की। 

लेकिन यह सफल नहीं हुआ। धीरे-धीरे इसके मन में यह बात बैठती गई कि इस रस्सी को तोड़ पाना उसके वश में नहीं है। अब जब इसमें ताकत आ गई है, तो भी यह रस्सी को तोड़ने की कोशिश नहीं करता है। हालांकि अगर वह चाहे तो एक झटके में इस रस्सी को तोड़ सकता है। यह सुनकर वह व्यक्ति यह सोचता हुआ आगे बढ़ गया कि इंसान भी ऐसा ही करता है। यदि वह थोड़ा प्रयास करे तो उस काम में सफल हो सकता है जिसमें पहले वह नाकाम साबित हुआ था।

बीबीपुर गांव के विकास और बदलाव की अनुपम गाथा

अशोक मिश्र

हरियाणा के जींद जिले का एक गांव है बीबीपुर। बीबीपुर के लोगों और गांव के सरपंच ने प्रदेशवासियों के सामने एक ऐसा उदाहरण पेश किया है जिसकी जितनी तारीफ की जाए, कम है। प्रदेश की सरकारों ने वैसे तो कन्या भ्रूण हत्या रोकने के लिए एड़ी चोटी का जोर लगा दिया है। हरियाणा में बिगड़ते लिंगानुपात को सुधारने के लिए हरसंभव प्रयास किया है और आज भी किया जा रहा है। 

सैनी सरकार ने तो संबंधित विभाग के अधिकारियों को बिगड़ते लिंगानुपात को सुधारने के लिए हरसंभव प्रयास करने का सख्त निर्देश दिया है। इसके लिए जो भी जरूरी अधिकार और संसाधन चाहिए, वह सब कुछ उपलब्ध करा रखा है। इस मामले में लापरवाही बरतने वाले अधिकारियों और कर्मचारियों को दंडित करने का प्रावधान कर रखा है, लेकिन बीबीपुर गांव की पंचायत ने जो कुछ किया, उससे प्रदेश की सभी पंचायतों को सीखने की जरूरत है। बीबीपुर गांव की तस्वीर तब बदलनी शुरू हुई, जब सन 2010 में इस गांव के सरपंच बने सुनील जागलान। उन्होंने सबसे पहले अपने अधिकार क्षेत्र में आने वाली महिलाओं की दशा का अध्ययन किया। 

महिलाओं की दशा कैसे सुधारी जा सकती है, इस पर गंभीरता से विचार किया। महिलाओं को कन्या भ्रूण हत्या के बारे में कैसे जागरूक किया जाए, इसके लिए भी काफी मंथन किया। इसके बाद सुनील जागलान की शुरू हुईं योजनाएं। उन्होंने अपने गांव की महिलाओं को सबसे पहले उनके अधिकारों को लेकर जागरूक किया। गांव की तस्वीर बदलने के लिए सबसे पहले पंचायत को डिजिटल बनाया। 

उन्होंने महिला खाप पंचायत का आयोजन किया। हालांकि कुछ लोगों को महिला खाप पंचायत का आयोजन अच्छा नहीं लगा, लेकिन आसपास के गांवों से जब पंचायत में शामिल होने के लिए हजारों महिलाएं इकट्ठी हुईं, तो धीरे-धीरे सबको मानना पड़ा कि महिलाएं अगर आगे आ जाती हैं, तो इससे परिवार और समाज का भला ही होगा। सरपंच जागलान  की पहल का नतीजा यह हुआ कि महिला पंचायत में जुटी महिलाओं ने कन्याभ्रूण हत्या के खिलाफ आवाज बुलंद की। महिलाओं को उनकी महत्ता जताने के लिए उन्होंने दादी-पोती को एक मंच पर लाकर खड़ा कर दिया। उन्होंने घर की चहारदिवारी में बंद रहने वाली महिलाओं को लाकर समाज के बीच खड़ा कर दिया और उनके हाथों में बदलाव की कमान थमा दी। 

यह एक अच्छी पहल थी। नतीजा यह हुआ कि बीबीपुर और उसके आसपास के गांवों में नेम प्लेट बेटियों के नाम पर लगने लगे। अब बीबीपुर गांव के इस बदलाव को आईसीएससी बोर्ड ने अपने आठवीं के बच्चों को पढ़ाने का फैसला किया है। यह बीबीपुर गांव की एक बड़ी उपलब्धि है।

Monday, July 28, 2025

डेमोक्रीट्स की बदौलत महान गणितज्ञ बने पाइथागोरस

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

महान गणितज्ञ और दार्शनिक पाइथागोरस कहा करते थे कि संख्या ही विचारों और रूपों का शासक है और देवताओं और राक्षसों का कारण है। पाइथागोरस को प्रमेय के लिए याद किया जाता है। पाइथागोरस का जन्म ग्रीक में ईसा पूर्व 580 से 570 के बीच हुआ था। वैसे तो पाइथागोरस के बारे में विस्तार से और क्रमबद्ध कुछ भी नहीं मिलता है। कहते हैं कि पाइथागोरस के विचारों का सुकरात के शिष्य प्लेटो पर बहुत प्रभाव पड़ा था। 

यही वजह थी कि प्लेटो कुछ हद तक दर्शन में तार्किकता की बात करते थे। पाइथागोरस के बारे में एक कथा कही जाती है। कहा जाता है कि वह बचपन में लकड़हारे का काम करते थे। उस समय तक वह शायद अनाथ हो चुके थे। वह जंगल में लकड़ियां काटते थे और उसे ले जाकर बाजार में बेच दिया करते थे। इससे जो आय होती थी, उससे वह अपना काम चलाते थे। 

एक दिन जब वह लकड़ियों का गट्ठर सिर पर रखे बाजार की ओर जा रहे थे, तब उन्हें एक व्यक्ति मिला। उस व्यक्ति ने देखा कि बालक ने लकड़ियों को बहुत ही कलात्मक ढंग से बांध रखी है। उस व्यक्ति ने कहा कि लकड़ियों का यह गट्ठर तुमने बांधा है? पाइथागोरस ने जवाब दिया कि हां. इसे मैंने ही बांधा है। उस आदमी ने कहा कि क्या तुम इसे दोबारा बांध सकते हो? 

पाइथागोरस ने कहा हां। इतना कहकर उन्होंने गट्ठर खोला और उसे दोबारा उसी तरह कलात्मक ढंग से बांध दिया। उस आदमी ने कहा कि क्या तुम मेरे साथ चलोगे। मैं तुम्हारे खाने-पीने और पढ़ने का खर्च मैं दूंगा। पाइथागोरस उस आदमी के साथ चल दिए। पढ़-लिखकर पाइथागोरस एक महान गणितज्ञ और दार्शनिक बने। जिस आदमी ने उन्हें इस काबिल बनाया वह महान तत्वज्ञानी डेमोक्रीट्स थे जिनका मानना था कि परमाणु अविभाज्य है। उन्हें परमाणु सिद्धांत के प्रवर्तक के रूप में जाना जाता है।

हरियाली तीज पर महिलाओं को उपहार दे सकती है सैनी सरकार



अशोक मिश्र

हरियाणा सरकार सोमवार को भव्य स्तर पर हरियाली तीज मनाएगी। इस दिन महिलाओं के लिए मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी लाडो लक्ष्मी योजना की घोषणा कर सकते हैं। इस योजना की घोषणा की प्रदेश की लाखों महिलाएं बड़ी बेसब्री से इंतजार कर रही हैं। प्रदेश की महिलाओं के लिए लाडो लक्ष्मी योजना के तहत प्रति माह मिलने वाली 2100 रुपये की रकम एक बड़ा संबल बन सकती है। इस रकम से महिला अपने घर की आर्थिक दशा को थोड़ा बहुत सुधार सकती है। यदि वह इस छोटी सी लगने वाली रकम को साल-दो साल तक संचित कर ले, तो वह छोटा-मोटा रोजगार भी शुरू कर सकती है। 

पिछले साल चुनाव के दौरान सीएम सैनी ने प्रदेश की महिलाओं को यह उपहार देने की घोषणा की थी। ऐसे में हरियाली तीज से बढ़कर कोई दूसरा बेहतरीन अवसर नहीं हो सकता है। हरियाली तीज हरियाणा, पंजाब, राजस्थान और पश्चिमी उत्तर प्रदेश का प्रमुख पर्व है। इस दिन महिलाएं अपने मायके में आकर जहां अपने माता-पिता, भाई-बहन, भाभी और सहेलियों से मिलती है, उनके दुख-सुख की जानकारी हासिल करती है, वहीं हरियाली तीज पर व्रत रखकर अपने पति के लंबे जीवन की कामना करती है। 

अपने लंबे वैवाहिक जीवन और सुख-शांति की मनोकामना करती है। ऐसी स्थिति में अगर सैनी सरकार से उसे लाडो लक्ष्मी योजना के तहत मासिक सहायता मिल जाती है, तो यह खुशी दोगुना हो जाएगी। वैसे भी हरियाली तीज और हरियाणा के बीच एक बहुत ही गहरा रिश्ता है। स्कंद पुराण में हरियाणा का उल्लेख हरियाली के नाम से मिलता है। लेकिन छठी शताब्दी में यही हरियाली नाम हरियाला में बदल गया। कुछ इतिहासकारों का मत है हरियाली से हरियाणा बना है। महाभारत काल से ही हरियाणा को भरपूर अनाज (बहुधान्यक) और विशाल धन(बहुधना) की भूमि के रूप में जाना जाता है। 

हरियाणा क्षेत्र को प्रकृति पूजकों का क्षेत्र माना जाता है। सिंधु घाटी सभ्यता से लेकर आज तक हरियाणा प्रचलित ज्यादातर रीति-रिवाज और व्रत-त्यौहार प्रकृति से ही जुड़े हैं। हरियाली तीज भी प्रकृति पूजकों का ही त्यौहार है। सावन महीने में मनाई जाने वाली हरियाली तीज भी प्रकारांतर से प्रकृति की ही पूजा है। हरियाणा प्रदेश की वर्तमान संस्कृति में पुरातन और अधुनातन दोनों का सम्मिश्रण परिलक्षित होता है। भारतीय संस्कृति और सभ्यता को सुरक्षित और पुष्पित-पल्लवित करने में हरियाणा के प्रकृति पूजकों की एक बड़ी भूमिका रही है। हरियाणा के पिछले कुछ दशकों से बिगड़ते पर्यावरण को सुधारने के लिए हमें अपने पूर्वजों की तरह एक बार फिर पूरे हरियाणा को वनाच्छादित करना होगा।

Sunday, July 27, 2025

मीठी वाणी बोलने वाला ही अमर होता है

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

गुरु सुबुद्ध का नाम देश के कई धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों में मिलता है। लेकिन इनके बारे में कोई विशेष जानकारी भी नहीं मिलती है। वैसे गुरु सुबुद्ध का शाब्दिक अर्थ होता है कि ऐसा गुरु जो ज्ञानी हो और अपने शिष्य को सही मार्ग पर ले चलने की क्षमता रखता हो। गुरु सुबुद्ध और उनके शिष्य अबुद्ध के बारे में एक बड़ी रोचक कथा कही जाती है। 

कहा जाता है कि गुरु सुबुद्ध बहुत बड़े विद्वान और शिष्यों के प्रति अनुराग रखने वाले थे। उनका शिष्य अबुद्ध अपने गुरु पर असीम श्रद्धा रखता था। उसे विश्वास था कि एक दिन उसके गुरु उसकी सेवाओं से प्रसन्न होकर उसे अमृत तक पहुंचने का रास्ता बता सकते हैं। अबुद्ध को अपने गुरु सुबुद्ध की सेवा करते हुए कई साल बीत गए। 

जब भी वह अमृत हासिल करने की बात करता, गुरु सुबुद्ध बड़ी चतुराई से बात को दूसरी दिशा में मोड़ देते। बेचारा अबुद्ध मन मसोसकर रह जाता। एक दिन जब गुरु सुबुद्ध ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। तो वह नाराज होकर आश्रम से भाग खड़ा हुआ। आश्रम से अबुद्ध के भाग जाने पर गुरु को बहुत दुख हुआ। शिष्य आश्रम से भागने के बाद भटकता रहा। वह रास्ते में मिलने वाले हर साधु संत से अमृत पाने का रास्ता पूछता रहा। लेकिन सबने अमृत के ही अस्तित्व से इनकार कर दिया।

इस तरह अबुद्ध को भटकते हुए कई साल बीत गए। एक दिन उसे अपने गुरु की याद आई, तो वह अपने आश्रम लौट आया। उसने अपने गुरु से कहा कि मैंने इतना भटकने के बाद जान लिया है कि अमृत कहीं नहीं है। गुरु सुबुद्ध ने कहा कि अमृत है न, वाणी में। जो इस दुनिया में मीठी वाणी बोलता है, वह मरने के बाद भी अमर हो जाता है, लेकिन जो कड़वा बोलता है, वह मरते ही भुला दिया जाता है। यह सुनकर अबुद्ध अपने गुरु के चरणों में गिर पड़ा। वह समझ चुका था कि अमृत क्या है?

सशक्त समाज के लिए महिलाओं को संरक्षण मिलना बहुत जरूरी

अशोक मिश्र

हाईकोर्ट की वकील शर्मिला शर्मा की ओर से पंजाब एंड हरियाणा हाईकोर्ट में दायर की गई जनहित याचिका पर सुनवाई करते हुए चीफ जस्टिस शील नागू और जस्टिस संजीव बेरी ने कहा कि महिलाओं का संरक्षण हर हालत में बहुत जरूरी है। इसके लिए प्रदेश सरकरा को हर जिले में संरक्षण अधिनियम को सही तरीके से लागू करने के लिए संरक्षण अधिकारियों की नियुक्ति जानी चाहिए। हालांकि सुनवाई के दौरान सरकार ने कोर्ट को जानकारी दी कि हरियाणा के हर जिले में संरक्षण अधिकारी की नियुक्ति की गई है। 

यही नहीं, ग्राम स्तर पर आंगनबाड़ी कार्यकर्ताओं को संरक्षण एजेंट के रूप में काम करने के लिए नामित किया गया है। याचिका में शर्मिला शर्मा ने यह दावा किया था कि घरेलू हिंसा की पीड़िताओं को अधिनियम के तरह पारित आदेशों के क्रियान्वयन न होने से बहुत परेशानी का सामना करना पड़ा है। इस बात से कोई भी इनकार नहीं कर सकता है कि दुनिया भर में महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार होने पड़ता है। फर्ककेवल इतना है कि किसी देश में कम घरेलू हिंसा की घटनाएं होती हैं,तो कहीं ज्यादा। 

भारत में कुछ ज्यादा ही घरेलू हिंसा की घटनाएं देखने को मिलती हैं। इस मामले में हरियाणा कोई अपवाद नहीं है। हरियाणा में शायद ही कोई महिला हो जो अपने वैवाहिक जीवन में कई बार घरेलू हिंसा का शिकार न हुई हो। आम तौर पर देखा यह गया है कि महिलाओं को छोटी-छोटी बातों के लिए भी प्रताड़ित किया जाता है। कई बार तो यह गंभीर मारपीट में बदल जाती है। कुछ महिलाओं को घरेलू हिंसा के चलते अपनी जान तक गंवानी पड़ती है। खाना बनाने में देर हो गई, पति को शराब पीने या जुआ खेलने से रोका, महिला को अपने पति के अवैध संबंध के बारे में पता लग गया, ऐसे न जाने कितनी घटनाओं को लेकर महिलाओं को घरेलू हिंसा का शिकार होना पड़ता है। कई बार तो संयुक्त परिवार में सास, ननद, देवरानी या जिठानी तक महिलाओं को प्रताड़ित करती हैं। घरेलू हिंसा संपत्ति को लेकर भी होती है। 

हमारे देश और प्रदेश में घरेलू हिंसा रोकने के लिए कई तरह के कानून बनाए गए हैं। पीड़ित महिलाओं को परेशानी से निजात दिलाने के लिए कई तरह की कमेटियां बनाई गई हैं। हरियाणा में अंत्योदय सरल पोर्टल भी बनाया गया है, लेकिन इसके बावजूद घरेलू हिंसा रुक नहीं रही है। ज्यादातर मामलों में तो महिलाएं मार खाती रहती हैं, लेकिन परिवार टूटने के भय से अपनी जुबान नहीं खोलती हैं। वह अपने पति या सास ससुर आदि के खिलाफ कोई दंडात्मक कार्रवाई करने से इनकार कर देती हैं। अगर मामला पुलिस या कोर्ट तक पहुंचा भी, तो न्याय भी काफी देर से मिलता है।

देश के हम करोड़ों बेवड़ों का ख्याल जरूर रखें

 अशोक मिश्र

जब से अपने प्यारे दुलारे देश में यह खबर फैली है कि ग्रेट ब्रिटेन से भारत ने फ्री ट्रेड एग्रीमेंट कर लिया है, तब से अपने देश के एसीपी और डीसीपी काफी प्रसन्न हैं। न...न, एसीपी और डीसीपी का वह मतलब नहीं है जो आप समझ रहे हैं। सोशल मीडिया शब्दकोष के मुताबिक एसीपी का मतलब है एल्कोहल कंज्यूमिंग पर्सन और डीसीपी का अर्थ है डेली कंज्यूमिंग पर्सन। जो कभी-कभार सुरा का उपभोग करता है, एसीपी है। जिसको सुबह उठने से लेकर रात सोने तक बिना पीए रहा नहीं जाता है, वह डीसीपी है।

कल आफिस से जब पीजी पहुंचा, तो मुसद्दी लाल पहले से ही रूम में विराजमान थे। उन्हें यह मालूम था कि कमरे की चाबी उस गमले के नीचे रखी मिलेगी जिस गमले में कभी कोई पौधा लगाया ही नहीं गया है। दरअसल जिस पीजी में मैं रहता हूं, उस कमरे में मेरा एक रूम पार्टनर भी रहता है। वह महीने दो महीने में कभी-कभार एकाध दिन के लिए आता है, लेकिन वह कमरे का आधा किराया जरूर समय पर चुका देता है। अब उसके आने का कोई दिन तो तय होता नहीं है, इसलिए मुझे अपने कमरे की चाबी उस नियत स्थान पर रखना ही पड़ता है।

मैंने देखा कि मुसद्दी लाल दोनों बेड को जोड़कर पूरी महफिल सजा चुके थे। मैंने पूछा- अरे! भाई साहब, आप कब आए? और यह क्या? लगता है कि कहीं से वाइन शाप पर डाका डालकर आए हैं। कई किस्म की शराब सजा रखी है।

मुसद्दी लाल ने नशे की अधिकता से मुंदती आंखों को सायास खोलने की कोशिश करते हुए कहा, अमां यार! खुशी का मौका है। आज तो पार्टी बनती है न। मुसद्दी लाल की बात सुनकर मैं चौंक पड़ा। मैंने पूछा-क्या आज कोई खास बात है? आखिर किस बात का जश्न मनाया जा रहा है?

मुसद्दी लाल ने लड़खड़ाती आवाज में कहा-तुम तो जानते हो। अपने पीएम मोदी ने आज ब्रिटेन से ट्रेड डील की है। उस ट्रेड डील के मुताबिक बहुत जल्दी अपने देश में इंग्लैंड की जानीवॉकर वाइन और स्कॉच बहुत सस्ती बिकने लगेगी। अबे जिस शराब के नाम पर अपना नाम रखने वाले कमेडियन ने पूरी जिंदगी कमाई की, उस नाम की वाइन पीकर सोच हमें कितना मजा आएगा। बस, कुछ ही दिनों की बात है, जब हर गली-कूचे में जानीवॉकर बिका करेगी। वैसे तो अपने माननीय प्रधानमंत्री मोदी जी ने कई अच्छे और कल्याणकारी काम किए हैं, लेकिन देश के बेवड़ों के लिए सस्ती शराब का जो इंतजाम किया है, उसके लिए अपने देश के सारे बेवड़े उनके आभारी हैं। मैं तो कहूंगा कि देश के सारे बेवड़े मिलकर अखिल भारतीय बेवड़ा संघ बनाएं और अगली बार भी मोदी जी को पीएम बनाने के लिए राष्ट्रीय स्तर पर मुहिम चलाएं।

मैंने मुसद्दी लाल को समझाने का प्रयास किया, देखिए!, ब्रिटेन से केवल वाइन ट्रेड का ही समझौता नहीं हुआ है। बहुत सारे मुद्दे हैं। कुछ चीजें हमारे देश से वहां जाएंगी, बहुत सारी चीजें वहां से हमारे देश आएंगी। यह सही है कि कार, वाइन जैसी तमाम चीजें हमारे देश में सस्ती हो जाएंगी, लोगों को इसका लाभ मिलेगा। कुछ उत्पाद हमारे देश के वहां सस्ते में मिलेंगी, यह सब तो एक सामान्य प्रक्रिया है। इसमें शराब थोड़ी बहुत सस्ती हो गई, तो कोई बड़ी बात नहीं है।

मुसद्दी लाल ने पैग खत्म करते हुए कहा, देखो! मेरी कार खरीदने की औकात तो है नहीं। बेवड़ा हूं, रोज पिये बिना नींद नहीं आती है। मेरे लिए तो वही चीज मायने रखती है जिसको खरीदने की मेरी औकात है। हर आदमी अपना हित देखता है। भारत-ब्रिटेन समझौते में मुझे शराब ही अपने फायदे की चीज लगी, तो उसके गुन न गाऊँ? मैं तो कहूंगा कि मोदी जी फ्रांस, जर्मनी, जापान जैसे तमाम देशों से भले ही गेहूं, चावल, मसाला, दवाओं का व्यापार करें या न करें, लेकिन देश के हम करोड़ों बेवड़ों का ख्याल अवश्य रखें। हम भगवान से प्रार्थना करेंगे कि हमारे पीएम हमेशा स्वस्थ रहें और हम बेवड़ों के वोटों से सातवीं आठवीं बार पीएम बनें।

Saturday, July 26, 2025

बनना है तो गामा नहीं, मालवीय जी जैसा बनो

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

गामा पहलवान को मरे हुए पैंसठ साल हो गए हैं। लेकिन आज भी उनके नाम से लोग परिचित जरूर हैं। ब्रिटिश शासनकाल के दौर में दुनियाभर में अपनी पहलवानी का डंका बजाने वाले गामा का नाम गुलाम मोहम्मद बख्श था। उनका जन्म 22 मई 1878 को अमृतसर में हुआ था। कहा जाता है कि पहलवानी में उन्हें दुनिया का कोई भी पहलवान हरा नहीं पाया था। 

उन्होंने अमेरिका के सबसे प्रसिद्ध पहलवान  विश्व-चैंपियन स्टैनिस्लॉस जैविस्को को हराया था। गामा से हारने से पहले उसे भी कोई नहीं हरा पाया था। एशिया, यूरोप और अमेरिका में अपनी पहलवानी का झंडा गाड़ने वाले गामा पहलवान भारत-पाक विभाजन के बाद पाकिस्तान चले गए थे। 23 मई 1960 में उनकी लाहौर में मृत्यु हो गई थी।  उनके बारे में एक किस्सा बहुत मशहूर है। 

हुआ यह कि बनारस हिंदू यूनिवर्सिटी की स्थापना करने वाले पंडित महामना मदन मोहन मालवीय ने उन्हें सम्मानित करने के लिए एक समारोह का आयोजन किया। इस अवसर पर शहर और दूसरे शहरों के सम्मानित नागरिकों के साथ-साथ विश्वविद्यालय के छात्र उपस्थित थे। मालवीय जी ने समारोह को संबोधित करते हुए कहा कि सभी छात्रों को पहलवान गामा की तरह बनना चाहिए। गामा की तरह बलवान और मजबूत बनकर ही तुम देश सेवा कर सकते हो। 

सम्मान समारोह के बाद दो शब्द बोलने के लिए गामा को बुलाया गया। उन्होंने कहा कि मैं मालवीय जी की बात को काटने का साहस तो नहीं कर सकता हूं। लेकिन इतना अनुरोध करता हूं कि यदि बनना ही है तो मालवीय जी जैसा बनो। मैं लोगों को नीचे गिराता हूं, पटकता हूं। यह अच्छी बात नहीं है। वहीं मालवीय जी नीचे गिरे हुए लोगों को ऊपर उठाते हैं। किसी को नीचे से ऊपर उठाना ज्यादा बहादुरी का काम है।

ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थलों को सहेजने की कोशिश

अशोक मिश्र

हरियाणा में प्राचीनकाल की सभ्यताओं के भरपूर अवशेष मिले हैं। कुछ नए स्थल भी मिले हैं। प्राचीनकाल के ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थलों के संरक्षण का काम हरियाणा सरकार कर रही है। हरियाणा की कुछ प्राचीन विरासतों को संरक्षित करने का काम पूर्ववर्ती सरकारें कर चुकी हैं। कुछ प्राचीन विरासत को संरक्षित करने का काम सैनी सरकार कर रही है। सैनी सरकार ने 18वीं शताब्दी में निर्मित मुकुंदपुरा और नागपुरिया की बावड़ियों और दादरी में स्थित श्यामसर तालाब को संरक्षित करने का फैसला लिया है। 

इतिहास बताता है कि श्यामसर तालाब का निर्माण सत्रहवीं शताब्दी में सीताराम सेठ ने कराया था। सीताराम उन दिनों मुगल बादशाह के कोषाध्यक्ष के सहायक थे। दादरी में उन दिनों पानी की समस्या से लोगों को काफी जूझना पड़ता था। लोगों को पानी की समस्या से निजात दिलाने के लिए उन्होंने श्यामसर का निर्माण कराया था। चालीस फीट गहरे तालाब को बनाने में कलियाना की पहाड़ी के नीले और भूरे पत्थरों का उपयोग किया गया था। उचित देखरेख के अभाव में यह तालाब अपना स्वरूप खो रहा था, इसलिए सैनी सरकार ने इसे संरक्षित करने का फैसला किया है। जहां तक मुकुंदपुरा की बावड़ी की बात है। 

इसका निर्माण मुगल बादशाह शाहजहां के अधीन काम करने वाले जमींदार राव बाल मुकुंद दास ने कराया था। वह इस इलाके के काफी अमीर जमींदार थे। यह बावड़ी इस्लामी और हिंदू स्थापत्य कला का बेजोड़ नमूना थी। लेकिन समय के प्रभाव के चलते यह अपना सौंदर्य खो चुकी है। इस बावड़ी से न केवल लोगों की प्यास बुझती थी बल्कि  आसपास के किसानों के खेतों की प्यास भी यह बावड़ी बुझाती थी। कई सौ साल तक इलाके के लोग अपनी खेती के लिए इसी बावड़ी पर निर्भर रहे। भारतीय वास्तुकला का उत्कृष्ट नमूना है नागपुरिया बावड़ी। इस बावड़ी के पानी में सल्फर अधिक मात्रा में पाया जाता है। 

इसका पानी त्वचा रोगों के उपचार में बहुत काम आता रहा है। आज भी लोग त्वचा संबंधी रोगों के उपचार के लिए यहां का पानी उपयोग में लाते हैं। इन प्राचीन धरोहरों के संरक्षण का फैसला सराहनीय है। वैसे हरियाणा की संरक्षित विरासत में कई ऐतिहासिक और पुरातात्विक स्थल शामिल हैं। इनमें राखीगढ़ी, मिताथल, विभिन्न किले, मकबरे और हवेलियाँ शामिल हैं। ये स्थल राज्य के समृद्ध इतिहास और संस्कृति को दर्शाते हैं। हरियाणा में कई किले और मकबरे हैं, जैसे कि नारनौल का किला, शेख मूसा की दरगाह और झूलती मीनार, और चौधरी काशी राम की हवेली। यहां छत्ता राय बाल मुकुंद दास की हवेली, बीरबल का छत्ता, और मिर्जा अली जान की बावली जैसी हवेलियाँ भी हैं। 

Friday, July 25, 2025

राजकुमार को भिखारी बनाने को नहीं सौंपा था

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

संस्कृत में रचे गए योगवासिष्ठ महारामायण में एक राजा का जिक्र आता है। उस राजा का नाम है शिखिघ्वज। वैसे कुछ लोग योगवासिष्ठ को वाल्मीकि की रचना मानते हैं, लेकिन वास्तव में यह महर्षि वशिष्ठ की रचना है जिसका संग्रह वाल्मीकि ने किया था। 

शिखिध्वज मालव के राजा थे और उनका विवाह सौराष्ट्र की राजकुमारी चूडाला से हुआ था जो अपने समय की सबसे सुंदर और विदुषी मानी जाती थी। कहा जाता है कि चूडाला को ब्रह्मज्ञान प्राप्त हो गया था। उसने बाद में अपने पति शिखिध्वज को भी यह ज्ञान प्राप्त करने के लिए प्रेरित किया था। शिखिध्वज के बारे में एक बड़ा रोचक घटना है। 

मिली जानकारी के अनुसार, मिथिला के राजा कुशध्वज ने अपने पुत्र शिखिध्वज को एक संत को सौंपते हुए कहा कि आप इसे पांच साल में शिक्षा देकर एक योग्य राजा बनने के लायक बना दें। वह संत शिखिध्वज को अपने साथ लेकर चला गया। इस बीच राजा कुशध्वज ने अपने पुत्र से मिलने की इच्छा जाहिर की, लेकिन संत ने उनके अनुरोध को स्वीकार नहीं किया। पांच साल बाद एक दिन वह संत शिखिध्वज को लेकर राजदरबार में हाजिर हुआ। शिखिध्वज ने एक साधारण सा कपड़ा पहन रखा था। उसके सिर पर एक गठरी रखी हुई थी। अपने पुत्र का यह हाल देखकर राजा कुशध्वज हैरान रह गया। 

उसने संत से कहा कि मैंने आपको अपना पुत्र भिखारी बनाने के लिए नहीं सौंपा था। संत ने देखा कि उसके शिष्य ने राजा को अभिवादन नहीं किया है, तो उसने एक छड़ी उसके पीठ पर जड़ दी। राजकुमार चीख उठा। संत ने कहा कि जो राजकुमार मान-अपमान, अच्छा-बुरा ऊंच-नीच का ज्ञान नहीं रखेगा, वह अच्छा राजा कैसे बनेगा। यह सुनकर कुशध्वज चुप रह गए। बाद में शिखिध्वज महान राजा हुआ।

अरावली में अवैध खनन और अफसरों की लापरवाही पर सुप्रीम कोर्ट सख्त

अशोक मिश्र

सुप्रीमकोर्ट अरावली की पहाड़ियों में हो रहे अवैध खनन को लेकर काफी सख्त हो गया है। उसने अरावली पहाड़ियों पर हो रहे अवैध खनन के दोषियों को दंडित न करने और अधिकारियों की लापरवाह कार्य प्रणाली को लेकर कड़ी फटकार भी लगाई है। दरअसल, सुप्रीमकोर्ट की यह टिप्पणी बसाई मेवो गांव के लोगों की ओर से दायर की गई याचिका की सुनवाई के दौरान आई। 

नूंह में वन और कृषि भूमि पर ही डेढ़ किमी लंबी एक सड़क बनाई गई है जिससे अरावली पहाड़ियों पर अवैध खनन किए गए पत्थरों को राजस्थान पहुंचाया जा रहा है। सड़क का निर्माण ही अवैध खनन को आसानी से दूसरे राज्यों तक पहुंचाने के लिए किया गया है। इस सड़क का निर्माण अक्टूबर 2024 में शुरू हुआ था और अप्रैल 2025 में पूरा हो गया था। इस मामले की सुनवाई के दौरान सुप्रीमकोर्ट ने हरियाणा के मुख्य सचिव को चेतावनी दी है कि जल्दी से जल्दी नूंह में सड़क निर्माण के साथ-साथ अवैध खनन के लिए जिम्मेदार लोगों के खिलाफ कड़ी कार्रवाई करके कोर्ट में हलफनामा दायर करे। 

यदि इस मामले में किसी किस्म की लापरवाही बरती जाती है, तो कानून के तहत दंडात्मक कार्रवाई का आदेश दिया जा सकता है। सच तो यह है कि अरावली क्षेत्र में गैर जरूरी गतिविधियों की वजह से वन्य जीवों के प्राकृतिक गलियारों में खलल पड़ता है। जिस क्षेत्र में डेढ़ किमी लंबी सड़क बनाई गई है, वह तेंदुओं के निवास और आवागमन का मार्ग रहा है। अरावली क्षेत्र जैव विविधता की दृष्टि से अत्यंत समृद्ध है। अरावली क्षेत्र में देशी वृक्ष प्रजातियां जैसे खैर, ढोक, रोहिड़ा, ढूडी, खेजड़ी, हिंगोट, कैर तथा कुछ लुप्तप्राय वृक्ष प्रजातियां जैसे गुग्गुल, जाल और सालर पाई जाती हैं। 

अवैध रूप से पेड़ पौधों की कटान करने वाले लकड़ी माफिया की निगाह इन पर रही है। वह इन अमूल्य पेड़-पौधों की तस्करी करके अरावली क्षेत्र को खोखला करते रहे हैं। अरावली क्षेत्र कितना समृद्ध रहा है, इसका पता इस बात से चलता है कि यहां पर कई लुप्तप्राय और संकटग्रस्त वन्यजीव प्रजातियों जैसे दुर्लभ रस्टी स्पॉटेड बिल्ली, तेंदुआ, धारीदार लकड़बग्घा, भारतीय छोटी सिवेट, बंगाल मॉनिटर छिपकली, उल्लू और चील का निवास स्थान भी है। यही नहीं, पुरातत्व विभाग को अरावली क्षेत्र में मानव सभ्यता के विकास के प्रमाण मिले हैं, जो पाषाण युग से लेकर तांबे और लौह युग तक फैले हुए हैं। 

अरावली क्षेत्र में पहले भी मानव जीवन के प्रमाण मिलते रहे हैं। आनंदपुर गांव में भी कुछ साल पहले मानव सभ्यता के प्रमाण मिले थे। अब मांगर और कोट गांव में भी ऐसे प्रमाण मिले हैं। जिससे यह साबित होता है कि लाखों साल पहले मानव सभ्यता यहां निवास करती थी। ऐसे महत्वपूर्ण स्थल को बचाना, हम सबका दायित्व है।

Thursday, July 24, 2025

रास्ते का रोड़ा उखाड़ फेंकना चाहिए

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

लौह पुरुष की उपाधि से अलंकृत सरदार वल्लभ भाई पटेल भारत के पहले  उप प्रधानमंत्री थे। भारत के आजाद होने पर जिस तरह उन्होंने भारतीय रियासतों का भारत में विलय कराया, उसको देखते हुए देश की जनता ने उन्हें सम्मानपूर्वक लौह पुरुष कहा। वल्लभभाई झावेरभाई पटेल का जन्म गुजरात के नाडियाड शहर में 31 अक्टूबर 1875 में हुआ था। कहा जाता है कि सरदार पटेल की पढ़ाई थोड़ी देर से शुरू हुई थी। 

उन्होंने बाइस साल की उम्र में मैट्रिक की परीक्षा पास की थी। लेकिन बाद में उन्होंने लंदन से बैरिस्टरी पास की और देश के नामी वकील बने। वह स्वतंत्रता संग्राम सेनानी और कांग्रेस के वरिष्ठ नेता भी रहे। वह महात्मा गांधी की विचारधारा से काफी प्रभावित थे। जब गांधी जी ने खादी पहनने का आह्वान किया, तो उन्होंने अपनी बेटी मणि और बेटे दहिया के साथ खादी पहनना शुरू कर दिया। 

लौहपुरुष के छात्र जीवन की एक घटना बताई जाती है। कहा जाता है कि वह अपने स्कूल पैदल ही जाते थे। उनके साथ आसपास के अन्य छात्र भी रहते थे। एक दिन जब छात्रों का यह गुट स्कूल जा रहा था, तो उनके साथियों ने पाया कि उनका साथी वल्लभ बहुत पीछे रह गया है। वह लोग रुक गए। थोड़ी देर बाद जब वल्लभ भाई आए तो उनके साथियों ने पूछा कि तुम कहां रुक गए थे। स्कूल के लिए काफी देर हो रही है। तब वल्लभ भाई ने जवाब दिया कि रास्ते में एक पत्थर गड़ा हुआ था जिससे लोगों को आते-जाते समय चोट लग सकती थी। 

मैंने वह पत्थर उखाड़कर किनारे रख दिया है। अब किसी को चोट नहीं पहुंचेगी। उनके साथियों ने कहा कि यह तुमने क्या किया? वह पत्थर खेत का सीमांकन भी हो सकता है। इस पर वल्लभ भाई ने कहा कि जो रास्ते का रोड़ा बने उसे उखाड़ फेंकना चाहिए।

बाल एवं मानव तस्करों के खिलाफ हरियाणा में चलनी चाहिए मुहिम

अशोक मिश्र

पंजाब एवं हरियाणा हाईकोर्ट ने मंगलवार को उस महिला को जमानत देने से इनकार कर दिया जिस पर नाबालिग लड़की को यौन शोषण के लिए आरोपियों के हवाले कर दिया था। रोहतक की निवासी इस महिला पर आरोप था कि उसने नाबालिग लड़की को बहला-फुसलाकर, नशा देकर पैसे के बदले पुरुषों के हवाले कर दिया था। बाद में नाबालिग के साथ पुरुषों ने राजस्थान में कई बार दुष्कर्म किया था। हाईकोर्ट ने समाज के कमजोर तबकों में बाल एवं मानव तस्करी के गिरोहों की गहरी जड़ों पर अपनी चिंता भी प्रकट की है। 

हाईकोर्ट की यह टिप्पणी सौ प्रतिशत सही है। समाज के गरीब तबकों की नाबालिग लड़कियों पर बाल एवं मानव तस्करी से जुड़े गिरोहों की नजर टिकी रहती है। ऐसे गिरोह कई बार तो वह लड़कियों के माता-पिता को रुपये पैसे का लालच देकर, अच्छी जगह काम दिलाने का आश्वासन देकर और कई बार तो बात न बनने पर लड़कियों का अपहरण कर लेते हैं। गिरोह से जुड़े लोग नाबालिग लड़कियों को सपने दिखाकर अपने साथ भगा ले जाते हैं। बाद में उन्हें मानव तस्करी से जुड़े लोगों तक पहुंचा देते हैं। 

हरियाणा में मोटे तौर पर रोजाना 45 से अधिक लोग लापता हो रहे हैं। यह वह आंकड़ा है, जो पुलिस रिकार्ड में दर्ज है। हरियाणा में बाल और मानव तस्करी के आंकड़े 2021 में बाल तस्करी के मामलों को बढ़ता हुआ बताया गया था। राष्ट्रीय अपराध रिकॉर्ड ब्यूरो (एनसीआरबी) के अनुसार, 2019 में कुल छह लड़के-लड़कियां गायब हुएथे जिनमें तीन लड़कियां थीं। वर्ष 2021 में यह आंकड़ा 21 तक जा पहुंचा जिसमें गायब होने वाली लड़कियों की संख्या 20 थीं। हरियाणा पुलिस ने अप्रैल 2023 में राज्य स्तर पर मानव तस्करी विरोधी अभियान चलाया था। इसमें पुलिस को काफी हद तक सफलता भी मिली थीं। पुलिस ने 227 लड़कियों सहित 639 पुरुषों और 294 महिलाओं को तस्करों की चंगुल से बचा लिया था। 

मानव तस्करों ने इन लोगों को भीख मांगने के काम में लगा रखा था। प्रदेश से गायब होने वाली ज्यादातर लड़कियों और महिलाओं का यौन शोषण और पोर्नोग्राफी में उपयोग किया जाता है। कई बार तो नाबालिग और बालिग महिलाएं अपनी गरीबी, बेरोजगारी और समान अवसर न मिलने की वजह से खुद ही वेश्यावृत्ति में उतर आती हैं। कुछ नाबालिग तो अपने माता-पिता के व्यवहार, उनकी आपसी लड़ाई और घर में प्यार न मिलने की वजह से मानव तस्करों की गिरफ्त में फंस जाती हैं। ऐसी स्थिति में इन लड़कियों को बहलाफुसलाकर तस्कर यौन शोषण करते हैं और फिर इन्हें गुलाम बनाकर आजीवन शोषण करते हैं।

ग्लोबल वार्मिंग बढ़ा रही चावल की खेती

 अशोक मिश्र

ग्लोबल वार्मिंग और चावल में कोई गहरा संबंध है क्या? जी हां, ग्लोबल वार्मिंग के लिए जिम्मेदार ग्रीनहाउस गैसों के उत्सर्जन में दस प्रतिशत हिस्सेदारी चावल की खेती की होती है। तो फिर क्या, चावल की खेती बंद कर दी जाए? गेहूं, मक्का, आलू आदि को मुख्य भोजन के रूप में स्वीकार किया जाए? कहना आसान है, लेकिन वास्तविकता कुछ और है। दुनिया की लगभग चार अरब आबादी का मुख्य भोजन चावल ही है। अंतरराष्ट्रीय चावल अनुसंधान संस्थान (आईआरआरआई) के महानिदेशक डॉ. इवान पिंटो का कहना है कि दुनिया की कुल आबादी में 50 से 56 प्रतिशत हिस्सा, मुख्य भोजन के लिए चावल पर निर्भर है।

दरअसल, दक्षिण और दक्षिण पूर्व एशियाई देशों के लोगों के लिए चावल मुख्य भोजन ही नहीं, उनकी सामाजिक, सांस्कृतिक परंपरा का एक अहम हिस्सा है। हमारे ही देश की एक बहुत बड़ी आबादी का मुख्य भोजन चावल ही है। दक्षिण भारत की अर्थव्यवस्था और खान-पान में चावल और मछली को यदि निकाल दिया जाए, तो भोजन के रूप में कुछ नहीं बचेगा। हरियाणा, पंजाब, दिल्ली और पश्चिमी उत्तर प्रदेश में चावल की खपत कम है क्योंकि इन इलाकों में चावल का उत्पादन कम ही होता है। पूर्वी उत्तर प्रदेश, बिहार, बंगाल, उड़ीसा जैसे राज्यों में चावल भोजन का मुख्य आधार है। पूर्वी उत्तर प्रदेश में तो चावल की फसल तैयार होने के बाद किसान अपनी जरूरत भर का धान रखकर बाकी बचा हुआ अनाज अपनी अन्य जरूरतों की पूर्ति के लिए बेच देता है। तब तक उसकेघर में रखा हुआ गेहूं खर्च हो चुका होता है। ऐसी स्थिति में गांव की एक बहुत बड़ी आबादी दोनों जून चावल ही खाती है। यही हाल गेहूं की फसल तैयार होने पर होता है। गरीब किसान बाजार से गेहूं या चावल खरीदने की स्थिति में नहीं होता है।

तो फिर चावल की खेती में दिक्कत क्या है? दिक्कत है। चावल की खेती में सबसे ज्यादा पानी की खपत होती है। इससे भूगर्भ जल में कमी आती है। कहा जाता है कि एक किलो चावल की पैदावार के लिए तीन हजार से पांच हजार लीटर पानी की खपत होती है। एक कुंटल चावल उगाने के लिए कितना पानी चाहिए, इसका अनुमान लगा सकते हैं। इतने पानी का उपयोग तो एक पखवाड़े तक एक छोटा मोटा मोहल्ला कर सकता है। चावल उत्पादन में अत्यधिक खर्च होने वाला पानी तो एक समस्या है ही, इसके साथ जुड़ी हैं ग्रीन हाउस गैसें।

जब अच्छी उपज लेने के लिए चावल के खेत में पानी भर दिया जाता है, तो इस पानी और चावल के पौधे की जड़ों में जमा होने वाले जीवाणु मीथेन गैस का बहुत बड़ी मात्रा में उत्पादन करते हैं। मीथेन गैस ग्रीन हाउस गैसों में प्रमुख स्थान रखती है जिसकी वजह से ग्लोबल वार्मिंग होती है। वैज्ञानिकों का कहना है कि ग्लोबल वार्मिंग के लिए मीथेन गैस अकेले तीस प्रतिशत की हिस्सेदार है। चावल के खेत में अच्छी फसल लेने के लिए कई बार पानी भरना पड़ता है। इसमें से ज्यादातर पानी तो वाष्प बनकर उड़ जाता है। केवल कुछ ही प्रतिशत पानी का उपयोग फसल उत्पादन में होता है।

तो फिर उपाय क्या है? उपाय यह है कि ऐसी फसलों को चुनाव किया जाए जिसमें पानी की खपत कम होती हो। एक उपाय यह है कि खेत के नीचे छेद वाले पाइप बिछा दिए जाएं और जब जरूरत हो, तो इन पाइपों के माध्यम से सिर्फधान के पौधों की जड़ों तक पानी पहुंचाया जाए। इस विधि से कुछ देशों में धान की खेती भी होने लगी है। स्पेन की चावल कंपनी टिल्डा  के प्रबंध निदेशक जीन-फिलिप लाबोर्दे बताते हैं कि इस विधि से हमने 27 प्रतिशत पानी, 28 प्रतिशत बिजली और 25 प्रतिशत उर्वरक की खपत घटा ली है। इतना ही नहीं, फसल उत्पादन में सात प्रतिशत की बढ़त दर्ज की गई। इसके साथ ही चावल की ऐसी प्रजाति विकसित करनी होगी जिसमें पानी की खपत कम हो।

Wednesday, July 23, 2025

मैं तो अंग्रेजों का शिष्टाचार सीख रहा हूं


बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

ब्रिटिश शासन काल में राजा राम मोहन राय के बाद अगर किसी ने विधवा विवाह, नारी शिक्षा की सबसे ज्यादा वकालत की थी, तो वह थे ईश्वरचंद्र विद्यासागर। वैसे उनका पूरा नाम था ईश्वर चंद्र बन्द्योपाध्याय। बंगाल के संस्कृत कालेज ने उन्हें विद्यासागर की उपाधि दी थी। बाद में विद्यासागर इसी स्कूल में अध्यापक हो गए थे। विद्यासागर का जन्म 26 सितंबर 1820 को बंगाल के मेदिनीपुर जिले में हुआ था। 

नौ साल की उम्र में वह अपने पिता ठाकुरदास बन्द्योपाध्याय के साथ मेदिनीपुर से पैदल चलकर कलकत्ता के संस्कृत कालेज पढ़ने पहुंचे थे। जब वह संस्कृत कालेज में अध्यापक थे, तब की एक बड़ी मजेदार घटना है। एक दिन हुआ यह कि उन्हें किसी काम से प्रेसीडेंसी कालेज के प्राचार्य जेम्स केर मिलने जाना हुआ। केर को हिंदुस्तानियों से घृणा थी। 

वह हिंदुस्तान के लोगों को अपमानित करने का अवसर खोजा करते थे। जब विद्यासागर उनसे मिलने पहुंचे, तो वह मेज पर अपने जूते सहित पैर फैलाए हुए बैठे थे। उन्होंने विद्यासागर के अभिवादन का जवाब भी नहीं दिया। यह रवैया देखकर विद्यासागर अपमान का घूंट पीकर रह गए। संयोग से कुछ दिनों बाद आचार्य केर किसी काम से विद्यासागर से मिलने संस्कृत कालेज पहुंचे। केर को देखते ही विद्यासागर ने चप्पल पहनकर अपने पैर मेज पर रख लिया। यह देखकर केर बहुत क्रोधित हुए। 

उन्होंने इसकी शिकायत शिक्षा परिषद के सचिव से कर दी। सचिव तो विद्यासागर का स्वभाव जानता था, लेकिन केर के सामने ही उसने विद्यासागर से कारण पूछा। विद्यासागर ने कहा कि हम लोग तो यूरोपियंस की नकल करते हैं। हमने सोचा कि अंग्रेज इसी तरह लोगों का स्वागत करते हैं। और फिर उन्होंने पूरी घटना सुनाई। यह सुनकर केर बहुत शर्मिंदा हुए।

कब पूरा होगा हरियाणा की सड़कों को गड्ढा मुक्त बनाने का सपना?

अशोक मिश्र

किसी देश या प्रदेश ने कितनी प्रगति की है, इसको मापने का साधारण सा पैमाना सड़कें होती हैं। सड़कों की दशा बताती हैं कि प्रदेश में उद्योग-धंधों के विकास और विस्तार के लिए सरकार कितनी रुचि ले रही है। प्रदेश में जितनी अच्छी सड़कें होंगी, कारोबार उतनी ही गति से प्रगति करेगा। मुख्यमंत्री नायब सिंह सैनी ने पिछले दिनों प्रदेश में सड़कों के नवीनीकरण और मरम्मत की समीक्षा करते हुए कहा कि राज्य में पंद्रह जून तक सड़कों को गड्ढा मुक्त करने के आदेश दिए गए थे। लेकिन यह लक्ष्य हासिल नहीं किया जा सका। 

सड़कों की दशा ठीक नहीं होने से हादसों की आशंका बनी रहती है। कई बार बरसात के दिनों में सड़कों पर पानी भरा होने की वजह से वाहन चालकों और पैदल चलने वालों को पता ही नहीं चल पाता है कि आगे गड्ढा है। ऐसी स्थिति में हादसा हो जाता है। सड़कों पर बने गड्ढे और टूटी-फूटी सड़कें हादसे का एक प्रमुख कारण हैं। वैसे तो राज्य में सड़कों का एक अच्छा नेटवर्क है। इन सड़कों की मरम्मत और बने गड्ढों पर यदि ध्यान दिया जाए, तो प्रदेश में यात्रा करना काफी सुखद हो सकता है। 

प्रदेश में बनी सड़कों में राष्ट्रीय राजमार्ग, राज्य राजमार्ग, प्रमुख जिला सड़कें और अन्य जिला सड़कें शामिल हैं। हरियाणा में सड़कों की कुल लंबाई 26,062 किमी है। यह हरियाणा जैसे छोटे राज्य के लिए पर्याप्त मानी जाती है। इन सड़कों में 2,482 किमी राष्ट्रीय राजमार्ग, 1,801 किमी राज्य राजमार्ग, 1,395 किमी जिलों की प्रमुख सड़कें और 20,384 किमी अन्य जिला सड़कें शामिल हैं। राष्ट्रीय राजमार्गों के निर्माण, देखभाल और उसकी मरम्मत का काम भारतीय राष्ट्रीय राजमार्ग प्राधिकरण के जिम्मे है। 

आमतौर पर राष्ट्रीय राजमार्गों पर अव्यवस्था या गड्ढे नाममात्र के ही दिखाई पड़ते हैं। सबसे बड़ी समस्या जिलों की शहर और ग्रामीण इलाके में आने वाली सड़कों की है। इन सड़कों की जिम्मेदारी राज्य सरकार पर होती है। प्रदेश में जितने भी सड़क हादसे होते हैं, वह राज्य राजमार्ग और जिलों की सड़कों पर बने गड्ढों और खराब होने की वजह से होते हैं। नेशनल हाईवे पर होने वाले हादसों का कारण आमतौर पर ओवर स्पीड होती है। बरसात के दिनों में हादसों की संख्या कुछ प्रतिशत बढ़ जाती है। इसका कारण सड़कों पर बने गड्ढे और खराब सड़कें हैं। सैनी सरकार पूरे प्रदेश को गड्ढा मुक्त बनाने का प्रयास कर रही है। 

हरियाणा में सड़कों की स्थिति में सुधार के लिए कई प्रयास किए जा रहे हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में सड़कों की चौड़ाई बढ़ाने, शहरों में बाईपास बनाने और सड़कों के रखरखाव पर विशेष ध्यान दिया जा रहा है। इसके बावजूद सड़कों को गड्ढा मुक्त बनाने का लक्ष्य अभी दूर नजर आ रहा है।

Tuesday, July 22, 2025

समस्या में ही छिपा है उसका समाधान

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

लुंबिनी में 563 ईस्वी पूर्व पैदा होने वाली गौतम बुद्ध के संबंध में तमाम कहानियां कही जाती हैं। वह शाक्य कुल के राजा शुद्धोधन के घर में हुआ था। महात्मा बुद्ध के जन्म के सात दिन बाद उनकी मां महामाया की मौत हो गई थी। ऐसी स्थिति में बुद्ध का पालन-पोषण उनकी मौसी महाप्रजापति गौतमी ने किया था।

 29 साल की अवस्था में महात्मा बुद्ध अपने नवजात पुत्र राहुल और पत्नी यशोधरा को छोड़कर सत्य की खोज में निकल पड़े थे। काफी प्रयास के बाद उन्हें बोध गया में उन्हें ज्ञान की प्राप्ति हुई। उन्होंने अपना सारा जीवन मानव कल्याण में लगा दिया। एक दिन की बात है। वह अपने शिष्यों की सभा में जब पहुंचे तो उनके हाथ में कपड़े का एक टुकड़ा था। 

आमतौर पर महात्मा बुद्ध अपने साथ कुछ लेकर नहीं चलते थे। किसी वस्तु का संग्रह करना उनके स्वभाव या सिद्धांत में नहीं था। यह देखकर शिष्यों को आश्चर्य तो हुआ, लेकिन वह चुप रहे। बुद्ध ने उस कपड़े में तीन-चार जगह गांठ लगा दी। इसके बाद बुद्ध ने अपने शिष्यों से पूछा कि यह कपड़ा क्या पहले जैसा है? एक शिष्य ने खड़े होकर जवाब दिया कि कपड़ा तो वही है, उसके गुण में कोई बदलाव नहीं आया है, लेकिन उसका स्वरूप बदल गया है। 

यह सुनकर बुद्ध ने कपड़े का दोनों सिरा पकड़कर खींचना शुरू किया और पूछा कि क्या इससे गांठें खुल जाएंगी? शिष्य ने कहा कि इससे और गांठें कस जाएंगी। सबसे पहले हमें यह देखना होगा कि गांठें किस प्रकार लगी हैं। फिर उसे खोलना आसान होगा। बुद्ध ने कहा कि यही मैं आप सबको समझाना चाहता हूं। हर समस्या का समाधान उसी में छिपा है। बस हमें यह देखना होगा कि हम समस्या में पड़े कैसे? इसके बाद समस्या को सुलझाना आसान होगा। यही मैं समझाना चाहता हूं।

सरकार का दावा, हरियाणा में अपराधियों की तोड़ दी कमर

अशोक मिश्र

हरियाणा में अपराध और अपराधियों को लेकर सत्तापक्ष और विपक्ष की राय अलग-अलग है। सैनी सरकार पिछले वर्षों की तुलना में इस साल जहां  अपराध और अपराधियों पर प्रभावी कार्रवाई करके काफी हद तक नियंत्रित करने की बात कह रही है। वहीं, विपक्ष का आरोप है कि प्रदेश में लगातार अपराध बढ़ते जा रहे हैं। सरकार अपराधियों पर अंकुश नहीं लगा पा रही है। महिलाओं के प्रति होने वाले अपराध में लगातार वृद्धि हो रही है। कारोबारियों से रंगदारी वसूली के मामले बढ़ते जा रहे हैं। 

इस संबंध में सरकार का दावा है कि वर्ष 2023 से अब तक प्रदेश में 233 मोस्टवांटेड अपराधियों को गिरफ्तार करके सलाखों के पीछे डाला गया है। यही नहीं, प्रदेश में सक्रिय 248 गैंगस्टरों और उनके कारिंदों के साथ-साथ 792 आपराधिक मामलों में शामिल अपराधियों को गिरफ्तार किया गया है। सत्तापक्ष का दावा है कि सैनी सरकार हरियाणा में जीरो टॉलरेंस फार क्राइम की नीति पर काम कर रही है। कानून व्यवस्था को पहले से कहीं ज्यादा चुस्त-दुरुस्त और जवाबदेह बनाया गया है। 

पिछले वर्षों की तुलना में अपराध दर में काफी गिरावट आई है। स्पेशल टास्क फोर्स ने मुरथल सोनीपत में सुंदर मर्डर केस, हिसार में महिंद्रा शोरूम केस और प्रदेश के कई क्षेत्रों में कई जघन्य अपराधों में शामिल अपराधी आशीष उर्फलल्लू, सन्नी खरड़ और विक्की रिदाना को मुठभेड़ में मार गिराया है। अंबाला में बसपा नेता हरबिलास की हत्या में शामिल अपराधी सागर को भी पुलिस ने मुठभेड़ में मार दिया है। हाई प्रोफाइल मामलों और अन्य दूसरे जघन्य अपराध में शामिल कुल 33 अपराधियों को मुठभेड़ में घायल होने के बाद गिरफ्तार किया गया है। 

यही नहीं, एसटीएफ ने केंद्रीय एजेंसियों के साथ तालमेल बिठाकर 83 लुकआउट सरकुलर, 37 रेड कॉर्नर नोटिस, इंटरपोल रेफरेंस 27 पासपोर्ट निरस्तीकरण के 21 मामले और विदेश में रहकर प्रदेश में अपने गुर्गों से अपराध को अंजाम देने वाले नौ अपराधियों को डिपोर्ट करवाकर उन्हें भारत लाया गया है। इन अपराधियों को न केवल जेल की सलाखों के पीछे डाला गया है, बल्कि इनके गैंग को नेस्तनाबूत कर दिया गया है। विदेश में रह रहे कुछ और अपराधियों को भी केंद्रीय एजेंसियों के सहयोग से डिपोर्ट कराने की प्रक्रिया जारी है।

हरियाणा राज्य क्राइम ब्यूरो रिकार्ड के मुताबिक वर्ष 2014 से 2024 के बीच चेन स्नैचिंग को छोड़कर अधिकतर मामलों में अपराध काफी कम हुए हैं। हरियाणा में पिछले कई वर्षों की तुलना में वर्तमान समय में अपराध की दर घटी है। इससे आम नागरिकों में सुरक्षा की भावना पैदा हुई है। लोग अब अपने को सुरक्षित महसूस करने लगे हैं। प्रत्येक थाना और जिला स्तर पर निगरानी व्यवस्था को मजबूत किया गया है।

Monday, July 21, 2025

प्लेटो ने किया पशु बलि का विरोध

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

प्लेटो यूनान के महान दार्शनिकों में गिने जाते हैं। प्लेटो का जन्म ईसा पूर्व 428-27 में एथेंस के एजिना द्वीप हुआ था। प्लेटो के गुरु यूनान के दार्शनिक जगत में उथल-पुथल मचा देने वाले सुकरात थे जिन्हें राज्य द्रोह में जहर का प्याला पीने पर मजबूर करके मृत्यु दंड दिया गया था। 

अरस्तू इनका प्रिय शिष्य था जो बाद में सिकंदर का गुरु हुआ था। यूनान में एक अकादमी स्थापित करके प्लेटो ने अपने दर्शन का प्रचार किया जिसे बाद में प्लेटोवाद की संज्ञा दी गई। एक बार की बात है। यूनान में कोई उत्सव मनाया जा रहा था। उस उत्सव में यूनान के सम्राट, उनके दरबारी और अन्य गणमान्य नागरिक उपस्थित थे। उत्सव में शामिल होने के लिए प्लेटो को भी न्यौता दिया गया था क्योंकि प्लेटो यूनान के सबसे प्रसिद्ध दार्शनिक थे। वहां पहुंचे प्लेटो ने देखा कि जो भी व्यक्ति वहां आता था, वह अपने साथ एक पशु को लेकर आता। 

वह देवता की प्रतिमा के सामने उस पशु की बलि चढ़ाता था। बलि देने पर पशु का शरीर काफी देर तक तड़पता रहता था। बलि देने पर वहां मौजूद लोग हर्षनाद करते थे। खिलखिलाकर हसंते थे। यह देखकर प्लेटो काफी दुखी हो गए। जब उनकी बारी आई तो  उन्होंने वहां की मिट्टी को उठाया और उसमें पानी मिलाकर मिट्टी को पशु की आकृति प्रदान कर दी। 

फिर उसी मिट्टी के पशु को देवता के आगे बलि दे दी। यह देखकर वहां मौजूद पुजारियों को बहुत बुरा लगा। उसने जब प्लेटो से इस बारे में पूछा तो उन्होंने कहा कि मिट्टी के देवता को मिट्टी के जानवर की बलि देना ही ठीक है। तब पुजारी ने पूछा, जिन्होंने बलि दी है, वे क्या मूर्ख हैं। प्लेटों ने कहा कि कोई देवता पशुओं की बलि से कैसे प्रसन्न हो सकता है। जानवरों की जान लेने से कोई देवता प्रसन्न नहीं होता।

यूरिया और डीएपी के लिए हरियाणा में हाहाकार, किसान हो रहे परेशान


अशोक मिश्र

किसान बहुत परेशान हैं। नाराज होकर जगह-जगह किसान प्रदर्शन  कर रहे हैं। धरना दे रहे हैं। वह सरकार और नेताओं से खाद दिलाने की गुहार लगा रहे हैं, लेकिन उन्हें खाद नहीं मिल पा रही है। हरियाणा में यूरिया और डीएपी खाद की भारी कमी है। खाद नहीं मिलने का कारण किसानों का गुस्सा सरकार और अधिकारियों-कर्मचारियों पर निकलने लगा है। कई जगह विवाद के चलते मार-पीट होते होते बची है। कई जिलों में किसानों ने उग्र प्रदर्शन भी किया है। राज्य में खाद की कमी का नतीजा यह है कि प्रदेश में खाद की कालाबाजारी हो रही है। हरियाणा में खाद की कमी का कारण केंद्र से 40 प्रतिशत कोटा न मिलना बताया जा रहा है। 

प्रदेश के कृषि मंत्री श्याम सिंह राणा का कहना है कि खाद का जो स्टाक रहता है, वह भी जल्दी ही आ जाएगा। दो-तीन दिन पहले खाद की रेलगाड़िया प्रदेश में आई हैं। इन्हें जिलों में पहुंचाने की कोशिश की जा रही है। बहुत जल्द खाद के वितरण के लिए आनलाइन व्यवस्था की जाएगी। प्रदेश में खाद की कमी की समस्या को लेकर विपक्ष सरकार की मंशा और लापरवाही पर सवाल उठा रहा है। विपक्षी दलों के नेताओं को कहना है कि सरकार को पहले से ही खाद की व्यवस्था कर लेनी चाहिए थी। सबको पता रहता है कि बरसात के दिनों में खेती-किसानी के लिए खाद की जरूरत पड़ती है।

ऐसी स्थिति में पहले से ही खाद की व्यवस्था करके रखनी चाहिए थी। लेकिन अधिकारियों और सरकार की नाकामियों का परिणाम किसानों को भुगतना पड़ रहा है। अब सरकार कह रही है कि खाद पोर्टल पर मिलेगी। प्रदेश के लाखों किसान पोर्टल को लेकर जानकार नहीं हैं, ऐसी स्थिति में उन्हें इस व्यवस्था से काफी परेशानी का सामना करना पड़ सकता है। वास्तविकता यह है कि प्रदेश को केंद्र से मिलने वाली खाद का चालीस प्रतिशत अभी मिला नहीं है। केंद्र ने रबी सीजन के लिए हरियाणा को यूरिया का कुल 13.90 लाख मीट्रिक टन कोटा तय किया है। अभी तक 8.16 लाख मीट्रिक टन यूरिया मिली है। कुल 57,950 मीट्रिक टन डीएपी में से 36,277 मीट्रिक टन डीएपी मिल पाई है। 

ऐसी स्थिति में जिन केंद्रों पर यूरिया और डीएपी खाद की उपलब्धता की जानकारी मिलती है, वहीं किसानों की एक लंबी लाइन लग जाती है। हालत यह है कि पुलिस को इस भीड़ को नियंत्रित करने के लिए काफी मशक्कत करनी पड़ रही है। पिछले पांच दिनों से कुरुक्षेत्र, पिहोवा, लाडवा, हिसार, करनाल और सिरसा सहित कई जगहों पर खाद नहीं मिलने की वजह से किसान अपना रोष व्यक्त कर चुके हैं। कई जिलों में तो हालात इतने बिगड़ चुके हैं कि खाद न मिलने से परेशान किसानों ने कृषि अधिकारियों को ही बंधक बना लिया। काफी प्रयास के बाद ही कृषि अधिकारियों को मुक्त कराया जा सका।

आइए, कहानी-कविता चुराएं

व्यंग्य

अशोक मिश्र

उस्ताद गुनहगार मुझको बता रहे थे, ‘पाकेटमारी और चोरी दो अलग-अलग विधाएं हैं। पाकेटमारी कला का जन्म और विकास अंग्रेजों के भारत आगमन के बाद हुआ था। मेरे परदादा बताते थे कि शाहजहां के शासनकाल में जब पहला अंग्रेज भारत आया था, तो गोवा में मेरे लक्कड़दादा के लक्कड़दादा ने उनकी पाकेट मार दी थी। उसके पाकेट में इंग्लैंड के अलावा एक जहांगीरी सिक्का भी था। यह जहांगीरी सिक्का आज भी हमारे परिवार का मुखिया अपने उत्तराधिकारी को सौंप जाता है। लेकिन यह मुई चौरवृत्ति प्राचीनकाल से ही चली आ रही है। चौरकर्म का प्रमाण पहली या दूसरी शताब्दी में गुप्तकाल में रची गई शूद्रक की मृच्छकटिकम में भी मिलता है। इसमें एक चोर ब्राह्मण रात में अपनी जनेऊ से नाप-नापकर कलात्मक सेंध तैयार करता है और सुबह हो जाने की वजह से पकड़ा जाता है।’

‘लेकिन आप मुझे यह सब क्यों बता रहे हैं?’ आजिज आकर मैंने पूछा। आज सुबह सोकर उठा भी नहीं था कि उस्ताद गुनहगार लगभग नक्सलियों की तरह घर में आ घुसे। मैं उनको देखते ही समझ गया कि हो गया दिन का सत्यानाश। कहां सोचा था कि बारह बजे तक सोकर छुट्टी का जश्न मनाऊंगा। 

उस्ताद गुनहगार ने तंबाकू फांकते हुए कहा, ‘वही बताने तो मैं सुबह-सुबह आया हूं, वरना न तो तू कोई देव है और न ही तेरा घर कोई तीर्थस्थान। कल एक पार्क में ‘कपि गोष्ठी’(कवि गोष्ठी को गुनहगार यही कहते हैं) हो रही थी। मैंने सोचा, चलो एकाध अच्छी कविताएं सुनने को मिलेंगी। इसी आशा में वहां बिछी दरी पर जा बैठा। वहां एक ‘जवानी दिवानी’ टाइप की कवयित्री भी आई हुई थीं। माइक पकड़कर वह पहले तो अपने लटके-झटके दिखाती रहीं और फिर उन्होंने गोपालदास नीरज की एक गजल अपनी कहकर हम सब के सिर पर दे मारा। हद तो यह थी कि सारे बेवकूफ श्रोता उस जवानी दिवानी के हर लफ्ज पर ‘वाह...वाह’ कहते रहे।’

गुनहगार की बात सुनकर मैं गंभीर हो गया। मैंने कहा, ‘उस्ताद, साहित्यिक चोरियां तो इधर कुछ सालों से बहुत बढ़ गई हैं। मैं आपको एक किस्सा बताऊं! मेरे एक कवि मित्र हैं ढपोरशंख जी। उनका यह तखल्लुस इतना चर्चित हुआ कि लोग असली नाम भूल गए। वे पिछले दस सालों से इनकी गजल, उनके गीत, फलाने का मुक्तक, ढमकाने का छंद अपने घर में रखे साहित्यिक खरल में डालते हैं और उसे दस-बीस घंटे तक घोंटते रहते हैं। और फिर, उस खरल से नए-नए गीत, छंद, गजल और मुक्तक मनचाही मात्रा में निकाल लेते हैं। गली-मोहल्ले में होने वाली कवि गोष्ठियों से लेकर राष्ट्रीय स्तर पर होने वाले कवि सम्मेलनों और मुशायरों में वे बड़ी हनक से अपनी कहकर गीत, गजल और छंद पढ़ते हैं। मजाल है कि इस साहित्यिक हेराफेरी पर कोई चूं-चपड़ कर सके।’

मेरी बात सुनकर गुनहगार सिर हिलाते रहे। फिर बोले, ‘हां मियां! साहित्यिक चोर तो कबीरदास, तुलसीदास और रहीमदास से लेकर निराला, पंत, महादेवी वर्मा तक और आज के तमाम प्रख्यात कवियों, कथाकारों और कहानीकारों की ‘वॉट’ लगाने पर तुले हुए हैं। इन रचनाओं के रीमिक्स तैयार किए जा रहे हैं। कोई माई का लाल विरोध करने वाला भी नहीं है। मैं तुम्हें क्या बताऊँ। मेरे एक परिचित लेखक हैं। कई पुस्तकों की रचना कर चुके हैं। पहली पुस्तक जब प्रकाशित हुई थी, तभी कुछ लोगों ने दबी जुबान से उन पर साहित्यिक चोरी का आरोप लगाया था। बाद में प्रकाशित होने वाली पुस्तकों को लेकर भी लोगों ने यही आरोप दोहराया, तब भी मुझे विश्वास नहीं हुआ। 

दो साल पहले जब मैं एक मासिक पत्रिका का संपादक बनाया गया, तो वे मुझे मिलने मेरे दफ्तर आए। बड़ी गर्मजोशी से मिले और जाते समय अपनी तीन रचनाएं मुझे थमा गए। मैंने उनसे तीनों रचनाएं एक-एक करके छाप दी। इन रचनाओं के छपने के चार-पांच महीने बाद एक दिन मेरे नाम नोटिस आई कि मेरे परिचित ने अपनी बताकर जो तीनों रचनाएं मेरी पत्रिका में छपवाई थीं, वे तीनों रचनाएं वास्तव में महात्मा गांधी, दक्षिण भारत के एक प्रख्यात दार्शनिक और मोहम्मद अली जिन्ना की थीं।’

मैंने मुस्कुराते हुए कहा, ‘उस्ताद! साहित्यिक चोरी की गंगोत्री में जब सभी डुबकी मार रहे हों, तो फिर हम लोग ही इतनी मगजमारी क्यों करें। आइए, हम लोग भी दूसरों की कहानी-कविता, लेख चुराकर राष्ट्रीय स्तर के कवि, कहानीकार और लेखक बन जाते हैं।’ 

‘चुपकर नासपीटे! ऐसा करके बाप-दादाओं का नाम डुबोएगा क्या? खबरदार! जो ऐसा करने की सोची, खाल खींच लूंगा तेरी।’ इतना कहकर उस्ताद उठे और चलते बने।

Sunday, July 20, 2025

महाराज! समुद्र भी आपका आदेश मानता है

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

इंग्लैंड के किंग कैन्यूट का जन्म डेनमार्क में सन 985 से 995 के बीच किसी वर्ष में हुआ था। उसके जन्म की वास्तविक तिथि का विवरण शायद उपलब्ध नहीं है। लेकिन उसकी मृत्यु की तिथि 12 नवंबर 1035 बताई जाती है। कैन्यूट के पिता डेनिस राजकुमार  स्वेन 'फोर्कबियर्ड' 1013 में इंग्लैंड के राजा बने थे। उनकी मृत्यु के बाद कैन्यूट को सन 1016 में इंग्लैड का राजा बनाया गया था। 

उत्तरी यूरोप के राज्यों पर विजय प्राप्त करने तथा इंग्लैंड, डेनमार्क, नॉर्वे और स्वीडन के क्षेत्रों का राजा बनने के लिए कैन्यूट को याद किया जाता है। कैन्यूट के बारे में सबसे पहले हंटिंगडन के हेनरी ने बारहवीं शताब्दी में पुस्तक क्रॉनिकल आॅफ द हिस्ट्री आॅफ इंग्लैंड में एक घटना दर्ज की थी। इस कहानी का नाम है कैन्यूट एंड द वेव्स। इसके मुताबिक कैन्यूट के दरबार में एक बार चापलूस लोगों की भरमार हो गई थी। दरबारी राजा की चापलूसी करते थे और ईनाम में खूब धन के साथ-साथ ओहदा पाते थे। 

एक दिन एक दरबारी ने तो यहां तक कहा कि हुजूर, आपका पूरी दुनिया में इतना आतंक है कि समुद्र भी आपका कहा मानते हैं। कैन्यूट प्रसन्न हो गए। यह बात घूम-फिरकर कैन्यूट के गुरु के पास पहुंची, तो गुरु ने राजा को एक पत्र लिखते हुए कहा कि तुम इन चापलूसों से बचकर रहो। एक दिन तुम्हारे और तुम्हारे राज्य के लिए यह बड़ा खतरा बन जाएंगे। पत्र पढ़कर कैन्यूट की आंखें खुल गई। 

दूसरे दिन उस चापलूस दरबारी को लेकर वह समुद्र की ओर गए। वह दरबारी अब भी प्रशंसा किए जा रहा था। समुद्र के किनारे पहुंचने पर राजा ने दराबारी से कहा कि वह समुद्र में कूद जाए, जब डूबने लगेगा तो मैं समुद्र को आदेश दे दूंगा, तुम नहीं डूबोगे। यह सुनकर दरबारी पानी-पानी हो गया। तब कैन्यूट ने कहा कि आज के बाद तुम दरबार में दिखाई मत देना, वरना फांसी दे दंूगा। इस प्रकार राजा को चापलूसों से मुक्ति मिल गई।

तमाम दावों के बावजूद स्वच्छ सर्वेक्षण में हरियाणा रहा खाली हाथ

अशोक मिश्र

स्वच्छ सर्वेक्षण 2024 में हरियाणा की हालत पिछली बार की ही तरह बदतर रही। वर्ष 2023 के सर्वेक्षण में हरियाण देशभर में चौदहवें स्थान पर आया था। सभी शहरों की रैकिंग टॉप-100 से बाहर थी। इस बार भी हालत थोड़े बहुत रद्दोबदल के साथ वैसी ही रही। फरीदाबाद की हालत तो सबसे बदतर रही।  स्वच्छता सर्वेक्षण-2025 की रिपोर्ट में फरीदाबाद को गार्बेज फ्री सिटी (जीएफसी) में शून्य अंक मिले हैं। वैसे तो कचरा मुक्त शहर (गारबेज फ्री सिटी) स्टार रेटिंग के लिए प्रदेश के ग्यारह में से दस नगर निगमों (मानेसर को छोड़कर) ने आवेदन किया था। लेकिन कोई भी मानकों पर खरा उतर नहीं पाया। 

यह स्थिति सभी नगर निगमों के लिए चिंताजनक होनी चाहिए। उन्हें इस पर विचार करना चाहिए कि  उनकी किन कमियों के चलते प्रदेश को स्वच्च सर्वेक्षण में अन्य प्रदेशों के नगर निगमों के सामने शर्मिंदा होना पड़ा। अभी से उन कमियों को दूर करके आगामी स्वच्छ सर्वेक्षण में स्थान हासिल करके प्रदेश का नाम रोशन किया जा सकता है। प्रदेश के अधिकारियों को इंदौर जाकर वहां की कार्यप्रणाली का अध्ययन करना चाहिए। इंदौर सहित मध्य प्रदेश के कुछ शहर पिछले कई वर्षों से इस मामले में अच्छा प्रदर्शन करते आए हैं। यदि किसी से हमें कुछ सीखने को मिलता है, तो इसमें किसी प्रकार की बुराई नहीं है। 

हमें अपनी गलतियों को स्वीकार करके आगे बढ़ना सीखना होगा। जब तक हमारी सोच ऐसी नहीं होगी, तब तक हम कुछ नहीं कर पाएंगे। जब भी प्रदेश में स्वच्छता के मामले में कोई बात चलती है, तो सरकार से लेकर प्रशासनिक मशीनरी दावा करती है कि सब कुछ चाक चौबंद है। लगातार साफ-सफाई के दावे और प्रयासों के बावजूद कचरा प्रबंधन में निगमों का बुरी तरह फेल हो जाना बताता है कि इस मामले में सब कुछ हवा हवाई ही रहा। दावे तो बहुत किए गए, लेकिन दावों के मुताबिक प्रयास नहीं किए गए। स्वच्छ सर्वेक्षण में जिन शहरों को जो रेटिंग मिली है, उसके मुताबिक ही पूरी जी जान लगाकर मेहनत करनी होगी। जब तक ऐसा नहीं किया जाएगा, तब तक हालात नहीं सुधरने वाले हैं।

वैसे तो प्रदेश की हालत यह है कि तमाम दावों के बावजूद हालत यह है कि किसी भी जिले की सड़कों पर घूम आइए, सड़कों के किनारे कूड़े के ढेर देखने को मिल जाएंगे। कई दिनों तक कूड़ा ही नहीं उठाया जाता है। कुछ जगहों पर स्थानीय निकाय के कर्मचारी कूड़े को जलाते हुए भी पाए गए हैं। घरों से रोज कूड़ा भी इकट्ठा नहीं किया जाता है जिसकी वजह से सड़कों पर इधर उधर बिखरा कूड़ा सड़ता रहता है। इसके लिए प्रदेशवासी भी पूरी तरह जिम्मेदार हैं। शहरों के गंदे होने में उनकी भी भूमिका है।



Saturday, July 19, 2025

अपनी मां को बहुत प्यार करते थे नेताजी

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

नेताजी सुभाष चंद्र बोस भारतीय स्वाधीनता संग्राम के राष्ट्रवादी क्रांतिकारी माने जाते हैं। नेताजी ने देश के क्रांतिकारियों को जयहिंद और तुम मुझे खून दो, मैं तुम्हें आजादी दूंगा जैसा नारा दिया था। क्रांतिकारी रास बिहारी बोस ने जापान में आजाद हिंद फौज का गठन किया था, लेकिन उम्र अधिक हो जाने की वजह वह आजाद हिंद फौज का संचालन ठीक से नहीं कर पा रहे थे। 

तब उन्होंने हिंदुस्तान के क्रांतिकारियों से आजाद हिंद फौज को संभालने के लिए किसी युवा क्रांतिकारी को जापान भेजने के लिए पत्र लिखा था। उस समय योजना बनी कि क्रांतिकारी योगेश चंद्र चटर्जी जापान जाएंगे, लेकिन अंग्रेजों द्वारा गिरफ्तार कर लिए जाने की वजह से देश के क्रांतिकारियों ने नेताजी को जापान भेजा। नेताजी ने लगभग दो साल जर्मनी में निर्वासित जीवन व्यतीत किया था। 

क्रांतिकारी जीवन में वह हमेशा दृढ़ रहे। वह किसी भी प्रकार के भय से ऊपर थे, लेकिन वह अपनी मां प्रभावती को बहुत प्यार करते थे। कहा जाता है कि जब वह जर्मनी में निर्वासित जीवन बिता रहे थे, तब अंग्रेज उनकी मौत हो जाने की खबरें अखबारों में प्रकाशित कराया करते थे। हिंदुस्तान में भी एक अखबार ने उनकी मौत की झूठी खबर छापी। यह खबर पढ़कर नेताजी की आंखों में आंसू आ गए। 

नेताजी के साथी ने जब उनके रोने का कारण पूछा, तब उन्होंने कहा कि मेरी मां ने यह खबर पढ़ी होगी तो कितनी दुखी हुई होगी। यही सोचकर मेरी आंखों में आंसू आ गए। नेताजी सुभाष चंद्र बोस अत्यंत कुशाग्र बुद्धि के थे। सुभाष ने 1919 में बीए (आॅनर्स) की परीक्षा प्रथम श्रेणी में उत्तीर्ण की। कलकत्ता विश्वविद्यालय में उनका दूसरा स्थान था। इसी तरह उन्होंने 1920 में आईसीएस परीक्षा  में चौथा स्थान प्राप्त किया था।

बेरोजगार युवाओं को प्रशिक्षण देकर कार्यकुशल बनाएगी सैनी सरकार

अशोक मिश्र

हरियाणा की सैनी सरकार ने प्रदेश के इंजीनियरिंग डिग्री, डिप्लोमा या आईटीआई किए हुए बेरोजगार युवाओं के लिए रोजगार के नए अवसर प्रदान करने के लिए नई योजना तैयार की है। अब बेरोजगार युवाओं को वर्क्स कांट्रैक्टर बनने का मौका का मौका प्रदान किया जाएगा। इसके लिए हरियाणा कांट्रैक्टर सक्षम युवा योजना की शुरू की है। इस योजना के तहत वर्क्स कांट्रैक्टर बनने के लिए युवाओं को विश्वकर्मा कौशल विश्वविद्यालय में 90 दिन का प्रशिक्षण पूरा करना होगा। 

इसके बाद वे एचईडब्ल्यूपी पोर्टल पर ठेकेदार के रूप में रजिस्टर हो सकेंगे। उन्हें इंजीनियरिंग के क्षेत्र में रोजगार और उद्यमिता के नए अवसर मिलेंगे। युवाओं को ठेकेदारों का रजिस्ट्रेशन कराने के लिए किसी विभाग के दफ्तरों के चक्कर न लगाना पड़े, इसके लिए रजिस्ट्रेशन को आॅनलाइन कर दिया गया है। सीएम सैनी ने सभी विभागों को निर्देश दिया है कि कार्य समाप्ति के बाद सभी भुगतान भी आॅनलाइन ही समय पर किए जाएं।  

सीएम सैनी की इस योजना से प्रदेश के उन युवाओं को भी रोजगार मिल जाएगा जिन्होंने इंजीनियरिंग की डिग्री, डिप्लोमा या आईटीआई कोर्स कर रखा है। हालांकि मुख्यमंत्री सैनी कई बार इस बात को दोहरा चुके हैं कि पिछले 10 वर्षों में राज्य सरकार ने पारदर्शिता के साथ सरकारी नौकरियां दी हैं और निजी क्षेत्र में युवाओं को रोजगार के लिए तैयार किया है। बेरोजगारी दर के मामले में सैनी सरकार का दावा है कि पड़ोसी राज्यों की तुलना में हरियाणा की स्थिति बेहतर है। हालांकि एक सच्चाई यह भी है कि हरियाणा में युवाओं को रोजगार पाने में कठिनाइयों का सामना करना पड़ रहा है। 

हरियाणा के शहरी क्षेत्र में नौकरी के अवसर तो हैं, लेकिन उससे भी कहीं ज्यादा युवाओं को प्रतिस्पर्धा का सामना करना पड़ता है। वहीं ग्रामीण क्षेत्र में नौकरी के अवसर कम हैं और कृषि क्षेत्र में रोजगार के अवसर की अनिश्चितता बनी हुई है। हरियाणा के ग्रामीण और शहरी क्षेत्र में डिग्री धारकों की संख्या तो ज्यादा है, लेकिन जिस कार्यकुशलता की मांग इडस्ट्री कर रही है, उसके मुताबिक उनके पास कौशल नहीं है। यही हाल आईटी और टेक्नोलॉजी सेक्टर में भी है। योग्य उम्मीदवारों की कमी के कारण उद्योग कार्यबल की कमी का सामना करने को मजबूर हैं। इस स्थिति से निपटने के लिए ही सैनी सरकार ने इंजीनियरिंग डिग्री और डिप्लोमा धारकों के साथ-साथ आईटीआई कोर्स करने वालों को तीन महीने का प्रशिक्षण दिलाने का फैसला किया है। इसके माध्यम से सरकार खुद तो युवाओं को रोजगार के अवसर मुहैया कराएगी, वहीं निजी क्षेत्रों के उद्योगों को भी प्रशिक्षित युवा मिल सकेंगे।

Friday, July 18, 2025

दूसरों के श्रम का सम्मान करना सीखिए

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

स्वामी सत्यानंद सरस्वती का जन्म अल्मोड़ा में 24 दिसंबर 1923 को हुआ था। इनके पिता ब्रिटिश शासन में पुलिस अधिकारी थे। इनकी मां नेपाल के राज घराने से थीं। यह अपने माता-पिता की इकलौती संतान थे। बचपन से ही धर्म और अध्यात्म की ओर रुचि होने की वजह से जब सत्यानंद ने संन्यास लेने की बात कही, तो इनके माता-पिता काफी विचलित हो गए थे। 18 वर्ष की आयु में सत्यानंद ने घर का त्याग कर दिया था। 

वर्ष 1946 में उन्होंने शिवानंद सरस्वती से दीक्षा ली थी। 12 साल तक गुरु की सेवा करने के बाद उन्होंने देश-विदेश में भ्रमण किया। बाद में स्वामी सत्यानंद सरस्वती ने योगाश्रम खोला जिसमें लोगों को योग सिखाया जाता था। एक दिन योगाश्रम में एक अमीर किसान योग सीखने आया। पहले ही दिन उसकी मुलाकात स्वामी सत्यानंद से हो गई। स्वामी जी ने उससे हालचाल पूछा तो उसने खीझते हुए कहा कि आज खाने को मिली रोटियां अधपकी और ठंडी थीं। खाने में अच्छी नहीं लगी। 

स्वामी जी ने कहा कि कल से रसोई की जिम्मेदारी आपकी है। अगले दिन उस किसान ने जो रोटियां बनाई, उसकी सबने प्रशंसा की। कुछ दिनों बाद वह दिन भी आया, जब पहले की तरह अधपकी रोटियां बनने लगीं। एक दिन तो काफी देर तक किसान रसोई घर में भी नहीं आया। यह बात स्वामी जी को पता चली तो उन्होंने उससे पूछा, तो उसने कहा कि मैं रोज-रोज रोटियां बनाते-बनाते ऊब गया हूं, इसलिए देर से आया। 

इस पर स्वामी जी ने सबको बुलाकर कहा कि हम यहां परमयोग प्राप्त करने की कामना से आए हैं। इसलिए जरूरी है कि छोटी-छोटी बातों पर ध्यान दें। दूसरों की निंदा करने से अच्छा है कि हम खुद श्रम करके देखें, तभी दूसरों के श्रम का सम्मान कर पाएंगे।

हरियाणा में अवैध खनन करने वालों के खिलाफ होगी सख्त कार्रवाई

अशोक मिश्र

हरियाणा में सक्रिय खनन माफियाओं की अब खैर नहीं है। सैनी सरकार ने इनके खिलाफ कड़ी कार्रवाई करने के लिए अधिकारियों को सख्त निर्देश दिया है। पुलिस और खनन विभाग ने भी इस मामले में तत्परता से काम करना भी शुरू कर दिया है। खनन और भूविज्ञान विभाग के साथ-साथ पुलिस की ओर से चलाए गए अभियान के अंतर्गत 3733 खनन स्थलों की जांच की गई है।

सरकार की ओर से जारी किए गए आंकड़ों के अनुसार पिछले साल 10 जुलाई तक पूरे प्रदेश में जहां 3039 खनन स्थलों की जांच करने के बाद अवैध खनन करने वालों को 684 केस दर्ज किए गए थे, वहीं इस साल 19 जुलाई तक पुलिस और खनन एवं भूविज्ञान विभाग ने मिलकर 3733 खनन स्थलों की जांच की। इन स्थलों पर गड़बड़ी मिलने पर 860 लोगों के खिलाफ मामले दर्ज किए गए। प्रदेश में अवैध खनन में लिप्त पाए गए 754 लोगों को गिरफ्तार किया गया, जबकि पिछले साल 626 लोग गिरफ्तार किए गए थे। 

पिछले साल 10 जुलाई तक 945 वाहनों को जब्त किया गया था, जबकि समान अवधि के लिए इस साल 1186 वाहन जब्त किए गए। इतना ही नहीं, इस साल साढ़े दस करोड़ रुपये जुर्माना भी वसूला गया। पुलिस अधिकारियों का कहना है कि प्रदेश में अवैध खनन करने वालों के खिलाफ सख्त कार्रवाई की जा रही है। जो भी कानून का उल्लंघन करता हुआ पाया जाएगा, उसे किसीभी हालत में बख्शा नहीं जाएगा। प्राकृतिक संसाधनों का दोहन कानूनी और पर्यावरणीय मर्यादा के भीतर ही होना चाहिए। लेकिन पिछले कई दशकों से खनन माफियाओं ने अरावली पहाड़ियों के साथ-साथ अन्य स्थानों पर खनन करके प्रदेश को काफी राजस्व का नुकसान पहुंचाया है। पिछले पंद्रह साल में खनन माफिया ने आठ से दस किमी क्षेत्र में पूरी पहाड़ी को ही वीरान कर दिया। 

2023 के दौरान राजस्थान में किए अध्ययन के मुताबिक 1975 से 2019 के बीच अरावली की करीब आठ फीसदी पहाड़ियां गायब हो गईं। अध्ययन में यह भी सामने आया है कि अगर अवैध खनन और शहरीकरण ऐसे ही बढ़ता रहा तो 2059 तक यह नुकसान 22 फीसदी पर पहुंच जाएगा। नूंह के नहरिका, चित्तौड़ा और रावा आदि गांवों में मौजूद पहाड़ियों से आठ करोड़ मीट्रिक टन से ज्यादा खनन सामग्री गायब हो चुकी है। इससे हरियाणा को करीब 22 अरब रुपये का नुकसान होने का अनुमान है। 

गुजरात से लेकर हरियाणा तक फैली अरावली की पहाड़ियों पर खनन माफियाओं की कई दशकों से निगाह रही है। अरावली पर पेड़ों की अवैध कटान से लेकर खनन तक होता रहा है और इसमें कुछ स्थानीय लोगों की मिलीभगत की बात कही जा रही है।