Friday, August 8, 2025

सूरज की रोशनी को कोई पेटेंट करा सकता है क्या?

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

अगर आदमी ठान ले, तो वह कुछ भी कर सकता है। वह समाज का भला कर सकता है। यदि वह बुरा आदमी हुआ, तो वह समाज का नुकसान भी कर सकता है। यह व्यक्ति के स्वभाव पर निर्भर करता है। कभी एक समय था कि पोलियो वायरस का पूरी दुनिया में आतंक था। कारण यह था कि उसका कोई इलाज नहीं था। पूरी दुनिया में लाखों लोग हर साल पोलिया का शिकार होकर अपंग जीवन व्यतीत करते थे। उस समय लोग यह भी सोचते थे कि पोलियो रोगी के संपर्क में आने से  यह वायरस फैलता है। 

उन्हीं दिनों 28 अक्टूबर 1914 को न्यूयार्क में डेनियल और डोरा साल्क के घर में बेटे का जन्म हुआ। उन्होंने अपने बेटे का बड़े प्यार से नाम रखा जोनास साल्क। एक साधारण से घर में पैदा हुए जोनास में कुछ कर गुजरने का जुनून था। उसने काफी विपरीत परिस्थितियों में डॉक्टर की पढ़ाई पूरी की। न्यूयार्क यूनिवर्सिटी में पढ़ाई के दौरान भी कई तरह की बाधाएं आईं, लेकिन उसने हिम्मत नहीं हारी। 

साल्क परिवार में वह पहला आदमी था जो कॉलेज गया था। पढ़ाई पूरी होने के बाद जोनास ने पोलियो पर काम करना शुरू किया। इसके लिए उसे मिशिगन यूनिवर्सिटी जाना पड़ा। उन दिनों वैज्ञानिकों में यह धारणा थी कि पोलियो का टीका तभी बनाया जा सकता है, जब उसका जीवित वायरस हो। लेकिन जोनास ने इसके विपरीत जाकर पोलियो का टीका विकसित किया। जब टीका बन गया, तो उसने सबसे पहले अपने पर प्रयोग किया। उसके बाद उसने अपनी पत्नी, बच्चों और सहयोगियों को टीका लगाया। 

धीरे-धीरे लोगों का विश्वास जमा, तो 1954 में जोनास के बनाए टीके को दस लाख बच्चों को लगाया गया। टीका सफल रहा और पोलियो रोगियों की संख्या काफी घट गई। लेकिन जोनास ने अपने टीके को पेटेंट नहीं कराया। लोगों ने पूछा, तो उन्होंने कहा कि सूरज की रोशनी को कोई पेटेंट करा सकता है क्या?

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