Tuesday, July 1, 2025

ऐसी सजा दो कि दिमाग बीस साल काम न करे

बोधिवृक्ष

अशोक मिश्र

एंटोनियो फ्रांसेस्को ग्राम्स्की, जी हां! यही वह नाम है जिसके विचारों को सुनकर इटली का तानाशाह मुसोलिनी कांप उठा था। मुसोलिनी ने ग्राम्स्की पर लोगों को भड़काने का आरोप लगाकर जेल में डाल दिया था। ग्राम्स्की का जन्म 22 जनवरी 1891 में एलेस में सार्डिनिया द्वीप पर हुआ था। 

यह अपने मां-पिता की सात बेटों में से चौथे थे। इनके पिता फ्रांसेस्को ग्राम्स्की को गबन का दोषी ठहराकर जब जेल में डाल दिया गया, तो मजबूरन ग्राम्स्की को अपनी पढ़ाई छोड़नी पड़ी। बाद में सन 1911 में उन्होंने ट्यूरिन विश्वविद्यालय में अध्ययन के लिए छात्रवृत्ति जीती और अपनी पढ़ाई पूरी की। ग्राम्स्की जैसे-जैसे युवा होते गए, उनका झुकाव कम्युनिस्ट विचारधारा की ओर होने लगा। 

उन्हें महसूस होने लगा था कि इटली में अब एक कम्युनिस्ट पार्टी की जरूरत है। इसके लिए उन्होंने उस समय के कुछ नामचीन नेताओं से इस बारे में चर्चा की। अंतत: 1921 में इटली में कम्युनिस्ट पार्टी की स्थापना की गई। ग्राम्स्की के विचार मार्क्सवादी और लेनिनवादी विचारधारा से पूरी तरह मेल नहीं खाते थे। वह एक तरह के अधिनायकवाद को सत्ता के लिए अनिवार्य अंग मानते थे। इटली की संसद में खड़े होकर उन्होंने जो कहा था, वह इस बात को साबित करते हैं। 

उन्होंने संसद में कहा था कि सत्ता केवल हथियारों से नहीं चलती है। यह संस्कृति, शिक्षा, मीडिया और नैतिकता के रास्ते दिलों में उतारी जाती है, तभी सत्ता टिकती है।  उनका यह भाषण सुनकर इटली का तानाशाह मुसोलिनी भयभीत हो गया। ग्राम्स्की पर विभिन्न आरोप  लगाकर सजा दी गई। जज ने अपने आदेश में कहा कि ऐसी सजा दी जाए कि इसका दिमाग बीस साल तक काम न करे। जेल में रहते हुए स्वास्थ्य बिगड़ने से 27 अप्रैल 1937 में मृत्यु हो गई।

प्रदेश के बेटे-बेटियां अपने मुक्के का दम कजाकिस्तान में दिखाने को आतुर

अशोक मिश्र

हरियाणा की लड़कियों ने देश और दुनिया में अपनी प्रतिभा का लोहा मनवाना वैसे तो बहुत पहले से ही शुरू कर दिया था। लेकिन पिछले पंद्रह बीस वर्षों में प्रदेश सरकार की खेल नीतियों की वजह से लड़के और लड़कियों ने पूरी दुनिया में हरियाणा और देश का नाम रोशन किया है। आज से कजाकिस्तान में विश्व मुक्केबाजी प्रतियोगिता हुई है जो सात जुलाई तक चलेगी। भारत से इस प्रतियोगिता में भाग लेने के लिए महिला और पुरुष की भेजी गई बीस सदस्यीय टीम में कुल सत्रह हरियाणा के ही हैं। दस महिला मुक्केबाजों में से नौ हरियाणा की हैं, वहीं दस पुरुष मुक्केबाजों में सात हरियाणा के हैं। 

प्रदेश के बेटे-बेटियां अपने मुक्के का दम कजाकिस्तान में दिखाने को आतुर हैं। पूरे देश को विश्वास है कि हमारे देश के सभी बीसों मुक्केबाज अपने दमखम और प्रतिभा का प्रदर्शन करके देश का नाम रोशन करेंगे। कभी कुड़ीमार प्रदेश के रूप में बदनाम हरियाणा ने अब इस कलंक से मुक्ति पा ली है। हरियाणा ने अपने बेटियों को भी बेटों के समान हर क्षेत्र में सुविधाएं देनी शुरू कर दी हैं। 

हरियाणा की बेटियों भी शिक्षा, विज्ञान, चिकित्सा और खेल के साथ-साथ सेना में जाकर देश की सेवा कर रही हैं। इसके पीछे लोगों की बेटियों को लेकर बदलती मानसिकता के साथ-साथ प्रदेश सरकार की खेल नीति काम कर रही है। हरियाणा के खिलाड़ियों की राष्ट्रीय अंतर्राष्ट्रीय प्रतिस्पर्धाओं में सफलता को देखकर दूसरे राज्यों ने भी हमारे प्रदेश की खेलनीति का अनुसरण करना शुरू कर दिया है। ओलम्पिक खेलों में स्वर्ण विजेता को छह करोड़ रुपये, रजत पदक विजेता चार करोड़ रुपये और कांस्य पदक विजेता को 2.50 करोड़ रुपये का नकद पुरस्कार देती है। ओलम्पिक खेलों में भाग लेने वाले प्रत्येक खिलाड़ी को 15 लाख रुपये देने का प्रावधान है। ओलम्पिक खेलों के लिए चुने गए हरियाणा के खिलाड़ियों को नकद पुरस्कार राशि में से प्रशिक्षण तथा खुराक के लिए अग्रिम पांच लाख रुपये देने का प्रावधान है।

यही सुविधाएं और पुरस्कार पदक जीतने वाले पैरालम्पिक खिलाड़ियों को भी मिलते हैं। विश्व की 10 अधिकतम ऊंची या जटिल चोटियों पर सफलतापूर्वक पर्वतारोहण करने वाले राज्य के खिलाड़ियों को पांच लाख रुपये का नकद ईनाम तथा ग्रेड-सी का खेल ग्रेडेशन प्रमाण पत्र दिया जाता है। इतना ही नहीं, अर्जुन, द्रोणाचार्य तथा ध्यानचंद अवार्डी के मानदेय को पांच हजार से बढ़ाकर 20 हजार रुपये मासिक कर दिया गया है। तेनजिंग नोर्गे राष्ट्रीय साहसिक पुरस्कार विजेताओं को बीस हजार रुपये और भीम अवार्ड विजेताओं को पांच हजार रुपये मासिक मानदेय देने की शुरुआत की गई है।