बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
हर व्यक्ति को अपनी प्रतिभा और ज्ञान पर भरोसा करना चाहिए। किसी दूसरे की सहायता से जीवन का थोड़ा बहुत मार्ग तो तय किया जा सकता है, लेकिन यदि व्यक्ति में खुद कुछ करने की क्षमता नहीं है, तो दूसरों की मदद से हासिल की गई सफलता टिकाऊ नहीं होती है।व्यक्ति को अपने जीवन में आने वाली मुसीबतों का सामना खुद ही करना पड़ता है। किसी राज्य में एक गुरु ने आश्रम खोल रखा था। उस आश्रम में गुरुजी के बहुत सारे शिष्य अध्ययन करते थे। गुरु जी तमाम विषयों की शिक्षा देने के साथ-साथ जीवन के व्यावहारिक पक्ष की भी शिक्षा दिया करते थे। शिष्य भी मन लगाकर गुरु जी की बताई बातों पर ध्यान दिया करते थे।
एक दिन ऐसा हुआ कि एक शिष्य को अपने गुरु जी से मंत्रणा करते देर हो गई। गुरु और शिष्य छत पर विचारविमर्श कर रहे थे। शिष्य जब नीचे उतरने के लिए सीढ़ियों के पास आया, तो उसने देखा कि यह तो बहुत अधिक अंधेरा है। उसने अपने गुरु जी के पास जाकर कहा कि सीढ़ियों पर तो बहुत अंधेरा है। मैं कैसे नीचे उतरूं। यदि अंधेरे में उतरने का प्रयास किया, तो गिर जाऊंगा। गुरुजी ने तत्काल एक दीपक जला दिया। जैसे ही शिष्य ने पहली सीढ़ी पर कदम रखा, गुरु जी ने तत्क्षण दीपक बुझा दिया।
अब फिर पहले की तरह अंधेरा हो गया था। शिष्य ने कहा कि गुरु जी, यह आपने क्या किया? अभी तो मैंने पहली ही सीढ़ी पर पैर रखा था। गुरुजी ने कहा कि तुम कब तक दूसरों के सहारे जीवन व्यतीत करोगे। तुम पहले तो अपने भीतर अंधकार से जूझने की शक्ति पैदा करो या फिर अंधेरे से लड़ने के लिए अपना दीपक तलाशो। दूसरों के सहारे जीवन व्यतीत नहीं किया जा सकता है।

