Monday, November 15, 2010

‘राखी’ बहन से शिकायत कर दूंगी....हां

-अशोक मिश्र
ऑफिस से थक हारकर घर पहुंचा, तो मेरी इकलौती घरैतिन एनडीटीवी पर प्रसारित हो रहे इमेजिन शो ‘राखी का इंसाफ’ देख रही थी। मैंने सोफे पर पसरते हुए अपनी पत्नी से पानी पिलाने को कहा, तो वह रोज की तरह झटपट पानी लाकर देने की बजाय घूरते हुए बोली, ‘आप आफिस से कोई गोवर्धन पर्वत उठाकर नहीं आ रहे हैं। इसलिए बराये मेहरबानी आप पानी लेकर पी लीजिए। हां, थोड़ी देर बाद अपने लिए चाय बनाऊंगी, तो आपके लिए भी चाय बन जाएगी। तसल्ली रखिये।’घरैतिन के रंग-ढंग देखकर मैं चौंका। मैं सोचने लगा कि आखिर घरैतिन इतनी अकड़ क्यों दिखा रही है। कहीं मिसेज शर्मा के फीगर की मुक्त कंठ से प्रशंसा करने वाली बात तो उसे नहीं पता चल गयी? लेकिन उसे यह कैसे पता चल सकता है, उस समय तो वह रसोई में दलिया उबाल रही थी। या फिर कहीं पड़ोस वाली भाभी जी ने शिकायत तो नहीं कर दी कि मैं उसे घूर-घूर कर देखता हूं। लेकिन जब पिछले दो साल से लगातार घूर रहा हूं, तो आज शिकायत करने वाली कौन सी बात हो गयी। नहीं, कोई और बात है। मैंने मामले की पूंछ पकड़ने के लिए मस्का मारा, ‘मेरी जोहरा जबीं, आज कोई खास बात है क्या? जो माहताब से आफताब बनी मेरे दिल पर बिजलियां गिरा रही हो। पानी नहीं देना है, तो मत दो। मैं खुद पानी निकालकर पी लूंगा। लेकिन बात क्या है? यह तो बताओगी।’घरैतिन ने मुंह बिचकाया और ‘राखी का इंसाफ’ देखने में मशगूल हो गयीं। संयोग से तभी अपने कार्यक्रम में ‘राखी’ एक प्रतिभागी लक्ष्मण से चीख-चीख कर कहने लगीं, ‘तू नामर्द है, इसीलिए तो तेरी बीवी भाग गयी।’ राखी का चिल्लाना और इस तरह अश्लील भाषा का प्रयोग करते देख मैं भौंचक रह गया। मेरी समझ में नहीं आ रहा था कि हमेशा अच्छे और सामाजिक सरोकारों से जुड़े सीरियल देखने वाली मेरी बीवी कितनी रुचि से ‘राखी का इंसाफ’ देख रही है। मुझे बहुत बुरा लगा। मैंने उठकर टीवी बंद करते हुए कहा, ‘आज से तुम लोगों का यह सब देखना बंद...। यह फूहड़ कार्यक्रम तुम खुद देख रही हो और बच्चों को भी दिखा रही हो। शर्म नहीं आती...तुम्हें।’मैंने समझा कि हमेशा की तरह मेरी बीवी अपनी गलती पर शर्मिंदा होगी और चाय बनाने या पानी पिलाने के लिए उठकर चल देगी। लेकिन हुआ इसका उल्टा। बीवी गुर्राई, ‘देखो...ज्यादा तीन-पांच मत करो। अगर ज्यादा चूं-चपड़ की, तो ‘राखी’ बहन से शिकायत कर दूंगी...हां। राखी बहन आजकल अच्छे-अच्छों के कस-बल ढीले कर रही हैं। देखते नहीं हो, बड़े-बड़े सूरमा राखी के सामने भीगी बिल्ली बने गिड़गिड़ाते रहते हैं और वह शेरनी की तरह बैठी इंसाफ करती रहती हैं। एकदम विक्रमादित्य की तरह दूध का दूध, पानी का पानी....राखी बहन, तुम्हारी जय हो।’ इतना कहकर टीवी की ओर घरैतिन ने बड़ी श्रद्धा से हाथ जोड़ लिए।घरैतिन की बात सुनकर मुझे चार सौ चालीस वोल्ट का झटका लगा। मुझे भी ताव आ गया। मैंने ताल ठोंकते हुए कहा, ‘जा..जा...तुझसे या तेरी राखी बहन से जो करते बने कर ले।’‘हां...हां...जरूर करूंगी शिकायत। राखी से सब बताऊंगी। तुम क्या जानती हो कि मुझे पता नहीं है। पड़ोस वाली भाभी जी से तुम्हारा टांका भिड़ा है। बाजू वाली भी कई बार तुम्हारी शिकायत कर चुकी है। तुम कहां-कहां नैन-मटक्का करते हो, यह मुझे सब मालूम है।’ घरैतिन हाथ नचाते हुए लड़ने की मुद्रा में आ गयी। घरैतिन की बात सुनकर मेरे होश उड़ गये। अब तक जिस बात को इतने जतन से छिपाता चला आ रहा था, वही बात सरेआम हो गयी। घरैतिन ने एक और धमाका किया, ‘तुम मर्दोँ की मनमानी अब नहीं चलेगी। मोहल्ले की सभी महिलाएं एक हो गयी हैं और राखी का इंसाफ की तर्ज पर हम सभी महिलाएं आप सबका इंसाफ खुद करेंगी। आपके खिलाफ कुछ शिकायतें मुझे मिली हैं। मैं उन पर विचार कर रही हूं। चार दिन बाद रविवार को हम सभी महिलाएं मोहल्ले के कम्यूनिटी हाल में इकट्ठी होकर आपके खिलाफ सुनवाई करेंगी। आपको अपने बचाव में जो कुछ कहना होगा, वहीं कहिएगा। हमने तय किया है कि जिसके खिलाफ शिकायत होगी, उसकी बीवी उस इंसाफ की अध्यक्ष होगी।’तभी मेरे बेटे ने टीवी आॅन करके न्यूज चैनल लगा दिया था। उत्तेजित स्वर में न्यूज एंकर चिल्ला-चिल्लाकर बता रही थी, ‘राखी द्वारा नामर्द बताये गये अवसादग्रस्त लक्ष्मण की मौत। लोगों में आक्रोश।’ तेज आवाज में प्रसारित हो रहे खबर को हम दोनों देखने लगे थे। मैंने अपनी घरैतिन की ओर देखा,‘अब बताओ...तुम्हारी राखी बहन ने तो एक की जान ले ली। बहुत उछल रही थी तुम राखी बहन के बल पर।’ मैंने घरैतिन की नकल उतारते हुए कहा, ‘हम महिलाओं ने तुम मर्दों का इंसाफ करने का फैसला किया है।’मैंने देखा कि खबर प्रसारित होने के बाद से घरैतिन का उत्साह ठंडा पड़ गया था। वह सिर्फ इतना बुदबुदाईं, ‘आग लगे ऐसे कार्यक्रम को। बेचारे लक्ष्मण की जान ही ले ली। मुझे कवि डॉ. बलजीत की ये पंक्तियां याद आने लगीं।टीवी टीबी दे रहा, मीठा-मीठा दर्द,अच्छे-अच्छे वैद्य भी, सिद्ध हुए नामर्द।

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