
नौकरी की तलाश उसे लखनऊ से दिल्ली लेकर आती है। एक दिन वह आठ वर्षीय सोनिया से हुए सामूहिक बलात्कार खबर कवर करने क्या जाता है मानो मुसीबत ही मोल ले लेता है। अस्पताल में सोनिया की मौत हो जाती है। वह अखबार में मुख्य खबर के साथ-साथ कई साइड स्टोरियां भेजता है, लेकिन अगले दिन जब वह अखबार देखता है, तो वह आश्चर्यचकित रह जाता है। उसकी खबरें तोड़-मरोड़कर छापी गई थीं। साइड स्टोरियों के तथ्य बदल दिए गए थे। विरोध करने पर उसे टाल दिया जाता है। बात में छानबीन करने पर उसे पता चलता है कि दिल्ली के एक बहुत बड़े बिल्डर ने सभी अखबारों को मैनेज कर लिया था। सात दिन में उसके अखबार को ही पैंतीस लाख रुपये का विज्ञापन दिया गया था। वह इसके विरोध में अपने समाचार संपादक के सामने विरोध प्रकट करता है, तो उसे पत्रकारिता और व्यवसाय की मजबूरियां बताकर चुप करने का प्रयास किया जाता है। उधर, अस्पताल में दम तोड़ती हुई सोनिया की सुनी गई चीखें उसे मजबूरन इस स्थिति के खिलाफ खड़ा होने को बाध्य करती हैं। वह अपने एक मित्र के साथ लिव इन रिलेशन में रह रही पत्रकार शालिनी की मदद से दिल्ली के कुछ स्वयंसेवी संगठनों को इसके खिलाफ खड़ा करता है। शिवाकांत के अखबार का संपादक और समाचार संपादक सोनिया के साथ हुए गैंगरेप की घटना के विरोध में जंतर-मंतर पर होने वाले प्रदर्शन में भाग लेने पर नौकरी से निकालने की धमकी देता है, तो वह नौकरी छोड़ना बेहतर समझता है। प्रदर्शन के दौरान कुछ अराजक तत्वों के पथराव करने पर शालिनी और शिवाकांत घायल हो जाते हैं। तीन दिन बाद शालिनी की मौत हो जाती है। एक बार फिर शिवाकांत बेरोजगारी का दंश झेलने के लिए मजबूर हो जाता है।
डेढ़ महीने की बेरोजगारी के बाद उसके लिए आगरा की एक चिटफंड कंपनी के निकलने जा रहे अखबार पृथ्वी एक्सप्रेस में नौकरी प्रस्ताव मिलता है। वह नौकरी ज्वाइन करता है। चिटफंड कंपनी में नौकरी के दौरान उसे महसूस होता है कि यह एक अलग ही दुनिया है। चिटफंड कंपनी पत्रकारों और पत्रकारिता से जुड़े लोगों को अपने ही हिसाब से हांकती है। कंपनी का सीएमडी आश्वासन किसी को देता है, नियुक्त किसी और को करता है। पृथ्वी एक्सप्रेस में कई गुट सक्रिय हैं। प्रधान संपादक का एक गुट अलग, संपादक का गुट अलग। इन दोनों गुटों में पिसता शिवाकांत और उसके जैसे कई पत्रकार। स्वार्थ और गुटबाजी का बोलबाला इस कदर व्याप्त है पृथ्वी एक्सप्रेस में कि शिवाकांत की आत्मा कराह उठती है। एक दिन शराब पार्टी में वह संपादक को उसकी कुछ गलतियों की ओर इशारा करके शिवाकांत मानो सांप के बिल में हाथ डाल बैठता है। चिटफंड कंपनी का अपना चरित्र, उस पर पत्रकारिता के मूल्यों का होता ह्रास, जनता से वसूले गए पैसों की बंदरबाट, संस्थान में चल रही गुटीय राजनीति एक दिन शिवाकांत को इतना उत्तेजित कर देती है कि वह संपादक और प्रधान संपादक से बहस कर बैठता है। काफी दिनों से उसे निकालने की फिराक में लगे दोनों गुटों को मौका भी मिलता है, चिटफंड कंपनी द्वारा खरीदे गए एक होटल के उद्घाटन समारोह में। चिटफंड कंपनी का एक टीवी चैनल भी चलता है। वह उद्घाटन समारोह के दौरान थोड़ी देर सीएमडी के पास खड़ा रह जाता है और इसी बात को प्रधान संपादक और संपादक आपसी वैरभाव भूलकर इतना तूल देते हैं कि मजबूरन एक बार फिर शिवाकांत को इस्तीफा देना पड़ता है। पत्रकारिता जगत में व्याप्त विसंगतियों, आपसी खींचतान, उठापटक के साथ-साथ देश में चल रही चिटफंड कंपनियों का चरित्र भी इस उपन्यास में उभर कर सामने आया है।
उपन्यास : सच अभी जिंदा है
उपन्यासकार : अशोक मिश्र
प्रकाशक : भावना प्रकाशन,
108 ए, पटपड़गंज, दिल्ली
मूल्य : 650 रुपये पृष्ठ : 346