Wednesday, February 12, 2014

तोहार कवन बान राजा...

अशोक मिश्र 
संपादक जी मुझे हौंक रहे थे, ‘यार! कभी तो कोई अच्छी स्टोरी कर लिया करो। हर बार तुम अपनी स्टोरी में कोई न कोई ऐसा नुक्स छोड़ ही देते हैं जिसके चलते अगली सुबह मुझे मालिक की सुननी पड़ती है। सुनो! कल वेलेंटाइन डे पर अगर कोई अच्छी स्टोरी नहीं मिली, तो तुम्हारा भगवान ही मालिक है। अच्छी स्टोरी मतलब...कोई धड़कती सी, फड़कती सी, कड़कती सी स्टोरी। और अब..दफा हो जाओ मेरी नजरों के सामने से। जिस दिन तुम्हारा सुबह-सुबह मुंह देख लेता हूं, उस दिन जरूर अखबार में कोई ब्लंडर छप जाता है।’ हौंके जाने पर किसी नाक बहाते, थूक चुवाते बच्चे की तरह रिरियाता हुआ उनकी केबिन से बाहर आया। अगर कुछ बोलता, तो नौकरी जाने का भी खतरा था। सोचने लगा, वेलेंटाइन डे पर कौन सी स्टोरी करूं कि धमाका हो जाए? कि जिसको पढ़कर संपादक जी धड़क जाएं, फड़क जाएं और भड़क जाएं। काफी देर तक मगजमारी करने के बाद भी कुछ नहीं सूझा, तो अपने साथियों से भी कोई नया आइडिया सुझाने की विनती की। कुछ ने तो मौके का फायदा उठाते हुए चाय-समोसे के साथ-साथ चौदह रुपये वाला गुटखा भी गटक लिया और यह कहते हुए सरक लिए कि सोचता हूं तुम्हारे लिए कोई धांसू आइडिया। मैं हवन्नकों की तरह टुकुर-टुकुर उन्हें जाता हुआ देखता रहा।
जब कुछ नहीं सूझा, तो शहर घूमने निकल पड़ा। घूमता-घामता दिल्ली के बाहरी इलाके में पहुंच गया। सड़क से थोड़ा हटकर स्थित एक खेत में के किनारे वाले हिस्से में लगे ट्यूबवेल से पानी निकलता देख प्यास लग गई, तो सोचा दो चुल्लू पानी ही पी लूं। थोड़ी देर यहीं बैठूंगा और अगर कोई अच्छी स्टोरी का आइडिया नहीं सूझा, तो चुल्लू भर पानी में डूब मरूंगा। पानी पीकर खेत की हरियाली को निहार ही रहा था कि मुझे आवाज सुनाई दी। कोई कह रहा था,‘आज तो एकदम पटाखा लग रही हो, मितवा की अम्मा!’ मैं दबे पांव खेत की दूसरी ओर बढ़ा, तो खेत की मेड़ पर एक युगल बैठा दिखाई दिया। दोनों शायद पति-पत्नी थे। पति ने पत्नी को छेड़ते हुए कहा, ‘सुबह छोटा भाई कह रहा था कि आज वेलेंनटाइन डे है। जानती हो, वेलेंनटाइन क्या होता है? चलो, हम लोग भी वेलेंनटाइन डे मनाएं।’ पत्नी ने घास का तिनका तोड़ते हुए कहा, ‘हमें क्या मालूम कि वेलेंनटाइन डे क्या होता है? यह कोई नया त्योहार है क्या?’ पति ने अपनी बायीं कोहनी से टोहका मारते हुए कहा, ‘धत बुड़बक! यह त्योहार नहीं है। इस दिन प्रेमी-प्रेमिका, पति-पत्नी एक दूसरे को उपहार देते हैं, अपने प्यार का इजहार करते हैं। एक बात बताएं। तुम्हारी चमक-दमक देखकर लगता है कि आज तुम वेलेंनटाइन डे के चक्कर में ही दशहरे की हाथी की तरह सज-धजकर आई हो। वैसे, आज तुम बहुत अच्छी लग रही हो।’ पत्नी ने अपनी प्रशंसा सुनकर थोड़ा शरमाते हुए कहा, ‘चापलूसी तो आप कीजिए ही नहीं। इतनी ही अच्छी लगती हूं, तो कल बुधिया को आंख फाड़-फाड़ क्यों देख रहे थे।’ पत्नी की बात सुनकर पति ठहाका लगाकर हंस पड़ा। उसने पत्नी को बाहों में भरते हुए कहा, ‘अच्छा..तो तुम कल से इसी वजह से नाराज हो। अरे बुधिया..एक तो मेरी भौजी लगती है, दूसरी तरफ, वह तुम्हारी बहिन भी लगती है। दोनों तरफ से हमारा मजाक का रिश्ता है। अब अगर बुधिया भौजी से मैंने थोड़ा सा मजाक कर ही लिया, तो कोई पाप नहीं कर दिया है। ’‘अच्छा..यह सब छोड़ो। मुझको यह बताओ कि तुमने आज अपने बालों में महकऊवा तेल क्यों नहीं लगाया? जब सुबह मैं घर से खेत आने लगा था, तो तुमसे कहा भी था कि खेत में रोटी लेकर अते समय थोड़ा-सा सज-धजकर आना।’ पति ने पत्नी को एक बार फिर छेड़ते हुए कहा। पत्नी ने कहा, ‘वह तेल तो कब का खत्म हो गया है। आपसे कई बार कहा भी कि बाजार जाइएगा, तो लेते आइएगा। लेकिन आप कहां लाए आज तक।’ पति ने गहरी सांस लेते हुए कहा, ‘क्या करें। जब भी बाजार में महकउवा तेल लेने के बारे में सोचा, तब पैसा पास नहीं रहा। मुझको तो लगता है कि इस संसार में गरीबों के प्यार करने पर बंदिश लगी है। गरीब नहीं होते, तो मेरी बीवी भला गरीबी का ताना देती। वैसे भी वेलेंनटाइन डे उन्हीं के लिए है जिनके पेट भरे हैं। खाली पेट वालों के लिए वेलेंनटाइन-फेलेंनटाइन का क्या मतलब है?’ पति की बात सुनकर पत्नी भड़क उठी, ‘अरे गरीबी है, तो सिर्फ हमारे लिए है? चार दिन पहले सुमित्रा दीदी ने कहा, तो उनके लिए उसी दिन काजल, टिकुली, बिंदी लाकर दे दिया था। उस मुंहझौसी से पैसा भी नहीं लिया आपने। हमारी खातिर तेल लेते समय पैसा खत्म हो जाता है।’ इस बार तुनकने की बारी पति की थी। उसने तीखे स्वर में कहा, ‘वेलेंनटाइन डे के दिन झगड़ा करना हो, तो ऐसा बताओ। सुमित्रा भौजी से मैं कभी पैसा नहीं मांगूंगा। चाहे जो हो जएा।’ इतना कहकर पति झटके से उठा और मुंह उठाकर एक ओर चल दिया। पत्नी ने लपककर पति की हाथ पकड़ते हुए कहा, ‘तोहार कवन बान (आदत) राजा..रोज रिसियाला।’ पत्नी की बात सुनते ही पति हंस पड़ा। मैं सड़क पर आ गया और सोचने लगा। संपादक जी मुझसे रोज खफा रहते हैं। संपादक जी से अखबार के मालिक किसी न किसी बात को लेकर रोज नाराजगी जाहिर करते हैं। बरबस ही मेरे मुंह से निकल गया, ‘तोहार कवन बान राजा...रोज रिसियाला।’

1 comment:

  1. बवाल लिखले बाड़ हो राजा.....फाड़ दे धई देलह....

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