अशोक मिश्र
आफिस पहुंचते ही संपादक जी ने आदेश का टोकरा मेरे सिर पर पटक दिया, 'मैं केंद्र सरकार की अब तक की उपलब्धियों पर एक परिशिष्ट (सप्लीमेंट) निकालना चाहता हूं। फौरन से पेशतर मुझे एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट चाहिए, ताकि उसे सप्लीमेंट में लिया जा सके।' इतना कहकर वे अपने चैंबर नुमा दड़बे में घुस गए। मैं सिर पकड़ कर बैठ गया। काफी शोध, पूछताछ और साक्षात्कार के बाद जो रिपोर्ट मैंने तैयार की, उसे देखते ही संपादक जी ने मेरे मुंह पर मारते हुए कहा, 'यह तुमने रिपोर्ट तैयार की है?...इसे ले जाकर रद्दी की टोकरी में डाल दो...।' इसके बाद वे मोबाइल पर व्यस्त हो गए। मैं लोट आया। अब आपके सामने अपनी रिपोर्ट पेश कर रहा हूँ । आप ही बताइए, इसमें मैंने क्या गलत लिखा था?
मैंने लिखा था, देश में सबके अच्छे दिन आ बहुत पुरानी बात हो चुकी है। यहां तो सब कुछ चकाचक है। दूध पीने वालों के लिए सरकार ने जहां हर गली के मोड़ पर मिल्क बूथ का इंतजाम किया है, तो शराब पीने वालों के लिए हर चौराहे पर 'मुफ्त सुरा वितरण केंद्र' स्थापित किए गए हैं। कहने का मतलब है कि जिसकी जैसी आवश्यकता है, सरकार ने वैसे ही प्रबंध किए हैं। सरकार की मेहरबानी से पूरे देश में रामराज्य कायम हो गया है। देश के प्रत्येक मोहल्ले, कालोनी और चौराहों पर लगे सरकारी नल पर शेर और बकरी एक साथ पानी पीते हैं। कई बार तो शेर एकदम लखनवी अंदाज में बकरी से 'पहले आप' कहते हुए पानी पीने का आग्रह करता है। बकरी भी दोस्ताना अंदाज में मुस्कुराती हुई पानी पीने के बात 'थैंक्स' कहती हुई चली जाती है। देश में अब न कोई गरीब है, न अमीर। इस सरकार से पहले जितने अमीर थे, सरकार के प्रभाव से वे पद और धन का मोह त्यागकर एकदम विरागी हो गए हैं। उन्होंने अपनी पूरी संपत्ति, रुपया-पैसा या तो सरकार को दे दिया है या फिर गरीबों में बराबर-बराबर बांट दिया है। अपने पास सिर्फ इतना ही छोड़ा है, जितना इस देश के एक आम आदमी के पास है। यही नहीं, सरकार ने विदेश में जमा सारा काला और सफेद धन भारत में मंगवाकर अपने देश की जनता के बीच बंटवा दिया है। इस देश का हर नागरिक पंद्रह से बीस लख टकिया हो गया है। अब तो देश में पैदा होने वाला बच्चा भी पैदा होते ही लखटकिया हो जाता है क्योंकि बच्चे के संभावित जन्म से एक सप्ताह पहले सरकार उसके नाम का किसी बैंक में खाता खुलवाकर उसके नाम उतना ही पैसा डाल देती है जितना कि उसने दूसरे नागरिकों को दिया था। सरकार ने जन-धन योजना का पैसा पहली ही किस्त जमा होते ही खाताधारक के खाते में जमा करवा दिया है कि यदि दुर्घटना में खाताधारक की मृत्यु हो गई, तो ठीक...नहीं तो बाद में खाताधारक सधन्यवाद वह पैसा सरकार को वापस कर देगा।
देश में स्किल इंडिया बड़े जोर-शोर से चल रहा है। जिन्हें आईएएस, पीसीएस से लेकर इंजीनियर, मैनेजर, मजदूर, बस चालक, रिक्शावाला...कहने का मतलब है कि जिसकी जिस क्षेत्र में रुचि है, सरकार ने वैसे-वैसे प्रशिक्षण और शिक्षण संस्थान खुलवा दिए हैं। भ्रष्टाचार, लूट-खसोट से लेकर छिनताई और पाकेटमारी की लुप्त होती कला को भी जिंदा रखने का प्रयास सरकार बड़े पैमाने पर कर रही है। आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ करप्शन से लेकर इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट आफ पिकपाकेटिंग जैसे संस्थान प्रत्येक शहर में खुलवाए गए हैं, ताकि भारत की ये अमूल्य ललित कलाएं लुप्त न हो जाएं और पश्चिमी देश इन्हें अपना बताकर पेटेंट न करवा लें। सरकारी और गैर सरकारी नौकरियों में पाकेटमारों, उठाईगीरों, ठगों, पूजा-पाठ के नाम पर ठगने वालों को बीस फीसदी आरक्षण दिया जाता है। बस, हत्या और बलात्कार जैसे मामलों में बड़ी सख्ती से सरकार पेश आती है। वैसे भी सरकार के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और छुटभैये से लेकर राष्ट्रीय स्तर के पार्टी नेताओं की चारित्रिक शुचिता, कर्तव्य पारायणता, लोक कल्याणकारी भावना ने देश की जनता को काफी प्रभावित किया है। अब कार्यालय चाहे किसी भी विभाग का हो, सरकारी हो या गैर सरकारी, ठीक दस बजे खुल जाता है और अपना काम लेकर आने वाली जनता का दरवाजे पर ही विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी मुस्कुराकर स्वागत करता है। उसे चाय-काफी पिलाकर पहले ठंडा होने दिया जाता है, फिर उसका काम पूछकर तुरंत निबटाया जाता है।
तो पाठको! यह है मेरी रिपोर्ट का निचोड़। बस आप इस बात को पुराने समय में चिट्ठियों में लिखा जाने वाला जुमला 'कि लिखा कम, समझना ज्यादा' की तर्ज पर पढ़ें। लेकिन पता नहीं क्यों, मेरी यह रिपोर्ट संपादक जी को पसंद ही नहीं आई। अब आप लोग ही बताइए, मैंने कुछ गलत लिखा था क्या?
आफिस पहुंचते ही संपादक जी ने आदेश का टोकरा मेरे सिर पर पटक दिया, 'मैं केंद्र सरकार की अब तक की उपलब्धियों पर एक परिशिष्ट (सप्लीमेंट) निकालना चाहता हूं। फौरन से पेशतर मुझे एक विश्लेषणात्मक रिपोर्ट चाहिए, ताकि उसे सप्लीमेंट में लिया जा सके।' इतना कहकर वे अपने चैंबर नुमा दड़बे में घुस गए। मैं सिर पकड़ कर बैठ गया। काफी शोध, पूछताछ और साक्षात्कार के बाद जो रिपोर्ट मैंने तैयार की, उसे देखते ही संपादक जी ने मेरे मुंह पर मारते हुए कहा, 'यह तुमने रिपोर्ट तैयार की है?...इसे ले जाकर रद्दी की टोकरी में डाल दो...।' इसके बाद वे मोबाइल पर व्यस्त हो गए। मैं लोट आया। अब आपके सामने अपनी रिपोर्ट पेश कर रहा हूँ । आप ही बताइए, इसमें मैंने क्या गलत लिखा था?

देश में स्किल इंडिया बड़े जोर-शोर से चल रहा है। जिन्हें आईएएस, पीसीएस से लेकर इंजीनियर, मैनेजर, मजदूर, बस चालक, रिक्शावाला...कहने का मतलब है कि जिसकी जिस क्षेत्र में रुचि है, सरकार ने वैसे-वैसे प्रशिक्षण और शिक्षण संस्थान खुलवा दिए हैं। भ्रष्टाचार, लूट-खसोट से लेकर छिनताई और पाकेटमारी की लुप्त होती कला को भी जिंदा रखने का प्रयास सरकार बड़े पैमाने पर कर रही है। आल इंडिया इंस्टीट्यूट ऑफ करप्शन से लेकर इंटरनेशनल इंस्टीट्यूट आफ पिकपाकेटिंग जैसे संस्थान प्रत्येक शहर में खुलवाए गए हैं, ताकि भारत की ये अमूल्य ललित कलाएं लुप्त न हो जाएं और पश्चिमी देश इन्हें अपना बताकर पेटेंट न करवा लें। सरकारी और गैर सरकारी नौकरियों में पाकेटमारों, उठाईगीरों, ठगों, पूजा-पाठ के नाम पर ठगने वालों को बीस फीसदी आरक्षण दिया जाता है। बस, हत्या और बलात्कार जैसे मामलों में बड़ी सख्ती से सरकार पेश आती है। वैसे भी सरकार के मंत्रियों, सांसदों, विधायकों और छुटभैये से लेकर राष्ट्रीय स्तर के पार्टी नेताओं की चारित्रिक शुचिता, कर्तव्य पारायणता, लोक कल्याणकारी भावना ने देश की जनता को काफी प्रभावित किया है। अब कार्यालय चाहे किसी भी विभाग का हो, सरकारी हो या गैर सरकारी, ठीक दस बजे खुल जाता है और अपना काम लेकर आने वाली जनता का दरवाजे पर ही विभाग का सबसे बड़ा अधिकारी मुस्कुराकर स्वागत करता है। उसे चाय-काफी पिलाकर पहले ठंडा होने दिया जाता है, फिर उसका काम पूछकर तुरंत निबटाया जाता है।
तो पाठको! यह है मेरी रिपोर्ट का निचोड़। बस आप इस बात को पुराने समय में चिट्ठियों में लिखा जाने वाला जुमला 'कि लिखा कम, समझना ज्यादा' की तर्ज पर पढ़ें। लेकिन पता नहीं क्यों, मेरी यह रिपोर्ट संपादक जी को पसंद ही नहीं आई। अब आप लोग ही बताइए, मैंने कुछ गलत लिखा था क्या?
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