अशोक मिश्र
क्रान्तिकारिणी माता और परिवार के प्रेरणा से क्रांतिकारी बनने वालों में से थे मणीन्द्र नाथ बनर्जी जिनकी शहादत का लक्ष्य अभी अधूरा है। विप्लवी पथ पर उन्होंने हिंदुस्तान रिपब्लिकन एसोसिएशन(H.R.A) के इंकलाबी मानववादी लक्ष्य- मानव द्वारा मानव के शोषण व गुलामी से मुक्त शोषण-विहीन, वर्ग-विहीन समाज की स्थापना को अपना जीवन लक्ष्य बनाया था। जिसकी पूर्ति हेतु अपनी अंतिम सांस तक वे दृढ़ प्रतीज्ञ व क्रियाशील रहे।दिसंबर 1927 में काकोरी षड्यंत्र केस में एच. आर. ए. के योद्धाओं पंडित राम प्रसाद बिस्मिल,अशफाक उल्ला खान,राजेंद्र नाथ लहरी व ठाकुर रोशन सिंह को साम्राज्यवादी दरिंदों द्वारा फांसी पर चढ़ा देने का उनके मस्तिष्क पर गहरा आघात लगा था। वे इन शहादतों का बदला लेने के लिए आकुल हो उठे थे। अन्ततः उन्होंने अपने भाई प्रभाषचंद्र बनर्जी के सहयोग व अपनी महान क्रांतिकारी माता के आशीर्वाद से 13 जनवरी 1928 को एच.आर.ए. के महान योद्धाओं को फांसी पर लटकाने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाने वाले साम्राज्यवादी शासकों के पालतू कुत्ते गुप्तचर विभाग के डी.एस.पी. जितेंद्र नाथ बनर्जी को वाराणसी में गोली मारकर अपना जन्म दिवस मनाया। जिसके अपराध में उन्हें 10 वर्ष के उम्र कैद की सजा हुई और वे फतेहगढ़ सेंट्रल जेल भेज दिया गये।
यहीं पर राजनीतिक बंदियों को दी जाने वाली यातनाओं के खिलाफ लड़ते हुए वे भूख हड़ताल के दौरान 20 जून 1934 को शहीद हो गए। उनकी क्रांतिकारी दृढ़ता व समझदारी का आलम यह था कि जब वे मृत्यु शैय्या पर पड़े हुए मर्मान्तक पीड़ा से तड़प रहे थे तो उनके पास बैठे काकोरी केस के बंदी श्री मन्मथनाथ गुप्त उनकी पीड़ा को कम करने हेतु भगवान की प्रार्थना करने लगे। इस पर बिगडकर उन्हें फटकारते हुए शहीद मणीन्द्र बनर्जी ने कहा था- मेरी अंतिम घड़ियों में मेरा मस्तिष्क धुंधला मत करो। मुझे कायर और कातर बनाने की चेष्टा न करो। मुझे शांतिपूर्वक मरने दो।
यह थी शहीद मणीन्द्र की अपने लक्ष्य व अपनी सैद्धांतिक राजनीतिक समझ के प्रति विप्लवी दृढ़ता। अमर शहीद मणीन्द्रनाथ बनर्जी को शहीद हुए 88 वर्ष पूरे हो रहे हैं। परंतु अफसोस। जिन लक्ष्यों एवं उद्देश्यों को लेकर सशस्त्र राष्ट्रीय जनतांत्रिक क्रांति की बलिवेदी पर उन्होंने अपनी आहुति दी थी वे आज भी अधूरे हैं। शोषण- विहीन, वर्ग-विहीन समाज की रचना ही उनका मुख्य उद्देश्य था।