Sunday, August 3, 2025

बुद्ध ने कहा, अप्प दीपो भव

अशोक मिश्र

प्रकाश! क्या है प्रकाश? ऊर्जा का एक परिवर्तित रूप। एक विशेष किस्म की ऊर्जा ही प्रकाश है। और ऊर्जा किसमें? चेतन में, अचेतन (यानी जड़) में यानी समस्त पदार्थ में। इस संपूर्ण प्रकृति के प्रत्येक अंग, उपांग में ऊर्जा मौजूद है। इसका एक निहितार्थ यह हुआ कि संपूर्ण प्रकृति में जो कुछ भी है, वह ऊर्जावान है। इसी ऊर्जा के कारण के कारण प्रकृति में गति है। प्रकृति का निर्माण भी पदार्थ और गति से हुआ है। गतिमय पदार्थ और पदार्थ में गति।
और अंधकार क्या है?…प्रकाश का न होना अंधकार है। जब किसी पदार्थ में एक विशेष किस्म की ऊर्जा अनुपस्थित होती है, तब अंधकार होता है। अंधकार और प्रकाश पदार्थ के बिना नहीं हो सकते। अभौतिक नहीं हो सकते, अपदार्थिक नहीं हो सकते। प्रकृति विज्ञानी कहते हैं कि संपूर्ण प्रकृति की ऊर्जा का योग शून्य होता है। जब हमारे वैज्ञानिक कहते हैं कि ग्लोबल वार्मिंग के कारण पृथ्वी का तापमान बढ़ रहा है, इसका एक मतलब यह भी है कि इस प्रकृति में कहीं न कहीं किसी जगह पर उतना ही तापमान घट रहा है क्योंकि इस संपूर्ण ब्रह्मांड में सभी तरह की ऊर्जाएं नियत हैं, निश्चित हैं। न उन्हें घटाया जा सकता है, न बढ़ाया जा सकता है।
यह हमारी पृथ्वी या ब्रह्मांड के किसी हिस्से में हो सकता है, पृथ्वी से बाहर भी हो सकता है। यही प्रकृति की द्वंद्वात्मकता है।अंधकार और प्रकाश एक दूसरे के पूरक हैं। इस प्रकृति में जितना महत्व प्रकाश का है, उतना ही महत्व अंधकार का भी है। अंधकार उतना भी बुरा नहीं होता है, जितना हम समझते हैं। अंधकार के बिना प्रकाश का कोई महत्व नहीं है। संख्या ‘एक’ का महत्व तभी तक है, जब तक संख्या ‘दो’ मौजूद है। इस दीप पर्व पर हम संपूर्ण जगत को प्रकाशित तो करें, लेकिन तिमिर के महत्व को भी न भूलें।
भारतीय दार्शनिक जगत में अवतारवाद के सबसे पहले विरोधी महात्मा बुद्ध ने ‘अप्प दीपो भव’ कहकर प्रकाश और तिमिर को पारिभाषित किया। उन्होंने कहा कि अपना प्रकाश खुद बनो। इसका एक तात्पर्य यह भी हुआ कि अपने भीतर प्रकाश पैदा करो। भीतर तम है, प्रकाश की आवश्यकता है। तम किसका है? अज्ञानता का है, रूढ़ियों का है, अंध विश्वासों का है, सामाजिक, राजनीतिक वर्जनाओं का है। पाबंदियों का है। इन्हें दूर करने के लिए महात्मा बुद्ध कहते हैं कि अप्प दीपो भव। इसका एक दूसरा तात्पर्य यह हुआ कि अपना आदर्श खुद बनो।

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