Wednesday, August 13, 2025

कांग्रेस की कोई निश्चित राजनीतिक विचारधारा नहीं थी

 बस यों ही बैठे ठाले--20-------रचनाकाल-27 जुलाई 2020

अशोक मिश्र
कल बात हुई थी मोहनदास करमचंद गांधी के अचानक असहयोग आंदोलन के वापस ले लेने से कांग्रेसी नेताओं में उपजे असंतोष की। इसी असंतोष का परिणाम यह हुआ कि कांग्रेस के ही कुछ नेताओं ने स्वराज पार्टी की स्थापना की। इसके पीछे मोती लाल नेहरू और अनुशीलन समिति के देशबंधु चितरंजन दास की भूमिका महत्वपूर्ण थी। लेकिन स्वराज पार्टी भी भारतीय राष्ट्रीय स्वाधीनता संग्राम में महत्वपूर्ण भूमिका अदा नहीं कर सकी। इसका प्रमुख कारण यह है कि स्वराज पार्टी के एक तो लक्ष्य और सिद्धांत निश्चित नहीं थे, दूसरे मोती लाल नेहरू वैचारिक रूप से परिपक्व नहीं थे। दूसरे उनका कांग्रेस के प्रति मोह कम नहीं था।
देशबंधु चितरंजन दास और उन्हीं तरह के अन्य क्रांतिकारियों ने स्वराज पार्टी के प्रति कोई उत्साह नहीं दिखाया। नतीजा यह हुआ कि वैचारिकता के अभाव में स्वराज पार्टी पंचमेल खिचड़ी बनकर रह गई। अब सवाल उठता है कि अनुशीलन समिति से जुड़े देशबंधु चितरंजन दास और अन्य क्रांतिकारी कांग्रेस में क्या कर रहे थे? उनका वहां क्या काम था? तो बात यह है कि अनुशीलन समिति के गठन के कुछ ही वर्षों बाद वर्ष 1908 में अंग्रेजों ने उस पर प्रतिबंध लगा दिया था। अनुशीलन समिति के सदस्यों को अप्रैल 1940 में आरएसपीआई (रिवोल्यूशनरी सोशलिस्ट पार्टी आफ इंडिया) के गठन तक गुप्त रूप से ही कार्य करना पड़ा।
उस समय अनुशीलन समिति के सदस्यों को कोई अंग्रेजों से बचकर काम करना पड़ता था। कई बार आम जनता भी इन क्रांतिकारियों को भयवश, लालचवश या अनजाने पकड़वा देती थी। अंग्रेज जासूसों, अंग्रेज दलालों और आम जनता की निगाह से छिपकर क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम देना, तात्कालिक परिस्थितियों में बहुत कठिन हो रहा था। इसलिए वे एक ऐसे मंच की तलाश में थे, जहां से राजनीतिक रूप से सक्रिय रहकर क्रांतिकारी गतिविधियों को अंजाम दिया जा सके। उस समय कांग्रेस से बड़ा राजनीतिक मंच पूरे देश में दूसरा कोई नहीं था।
दरअसल, उस समय तक अखिल भारतीय राष्ट्रीय कांग्रेस कोई राजनीतिक पार्टी नहीं थी, सिर्फ एक मंच था। कांग्रेस की कोई निश्चित राजनीतिक विचारधारा नहीं थी। यही वजह है कि अनुशीलन समिति के सदस्य देशबंधु चितरंजन दास ने नेताजी सुभाष चंद्र बोस को कांग्रेस में स्थापित करने में सहयोग दिया। वे कांग्रेस अध्यक्ष के पद तक पहुंचे। नेताजी सुभाष चंद्र बोस अनुशीलन समिति के सदस्य कभी नहीं रहे। वह एक प्रबल राष्ट्रवादी विप्लवी योद्धा थे। वह चितरंजन दास से प्रभावित थे।
अनुशीलन समिति तब तक मार्क्सवाद और लेनिनवाद को सैद्धांतिक तौर पर अपना चुकी थी। उसके अधिकांश सदस्य मार्क्सवादी-लेनिनवादी नीतियों और सिद्धांतों को आत्मसात कर उसके अनुरूप कार्ययोजना बनाने लगे थे। अनुशीलन समिति ने बाकायदा अपना लक्ष्य और उद्देश्य बनाकर क्रांतिकारी गतिविधियों को कार्य रूप में अंजाम देना शुरू कर दिया था। लेकिन कांग्रेस के नेता महात्मा गांधी के असहयोग और अहिंसा के मोहजाल से निकल नहीं पा रहे थे। वह अंग्रेजों से सुधार की मांग करते हुए स्वदेशी आंदोलन चलाने तक अपने कर्तव्यों की इतिश्री समझ कर आत्ममुग्ध हो रहे थे।

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