अशोक मिश्र
जो लोग सज्जन प्रवृत्ति के होते हैं, वह दूसरों को कष्ट में कतई नहीं देख सकते हैं। भले ही उन्हें इसके लिए कितना कष्ट क्यों न उठाना पड़े। कई बार तो सज्जन व्यक्ति दूसरों का भला करने के लिए अपने प्राणों की भी परवाह नहीं करते हैं। यही सज्जनता व्यक्ति को महान बनाती है।
यह भी सच है कि कुछ लोग किसी प्रकार का कष्ट दूसरों के लिए नहीं उठाते हैं। ऐसे लोगों को लोग कतई पसंद नहीं करते हैं। किसी निर्जन स्थान पर एक साधु छोटी सी कुटिया बनाकर रहता था। आसपास बसे गांवों के लोग खाने-पीने का सामान लाकर उसे दे देते थे। वह उनसे अपना पेट भरता था और अपनी आराधना में लीन रहता था। जरूरत पड़ने पर वह लोगों की मदद भी किया करता था।
जब भी कोई समस्या होती तो आसपास के गांव वाले अपनी समस्याओं का निराकरण भी उस साधु से कराते थे। एक दिन की बात है। मूसलाधार बारिश हो रही थी। रात का समय था। दरवाजे पर थपथपाहट सुनकर उसने दरवाजा खोला। सामने एक व्यक्ति खड़ा था, जो पानी से पूरा भीग गया था। उस व्यक्ति ने साधु से कहा कि बाहर भयंकर बारिश हो रही है। मैं रास्ता भटक गया हूं और मुझे कोई दूसरी जगह नहीं दिखाई दे रही है, जहां मैं शरण ले लूं।
साधु ने उस व्यक्ति का स्वागत करते हुए कहा कि मेरी कुटिया में इतनी जगह नहीं है कि दोनों सो सकें, लेकिन बैठ तो सकते हैं। थोड़ी देर बाद दरवाजा फिर खटका। साधु ने उस आदमी से कहा कि आ जाइए, तीनों लोग खड़े होकर रात गुजार लेंगे। तीसरी बार फिर दरवाजे पर आवाज होने पर साधु ने नए आए व्यक्ति से कहा कि कुटिया छोटी है, लेकिन आप अंदर आ जाएं। मैं तो बाहर खड़ा होकर भी रात गुजार सकता हंू। साधु सारी रात बरसते पानी में खड़ा रहा।
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