अशोक मिश्र
प्रख्यात गायिका सरला देवी चौधरी क्रांतिकारी भी थीं। इनका जन्म 9 सितंबर 1872 को हुआ था। वह भारत के प्रथम नोबल पुरस्कार विजेता और साहित्यकार रवींद्रनाथ टैगोर की भांजी थीं। सरला देवी की मां स्वर्ण कुमारी देवी रवींद्र नाथ टैगोर की बड़ी बहन थीं। उनके पिता जानकी नाथ घोषाल कांग्रेस के पूर्व सचिव थे। उनकी मां बांग्ला साहित्य की पहली महिला उपन्यासकार थीं।
सरला देवी का विवाह पंजाब के रामभज दत्त चौधरी से 1905 में हुआ था। इस प्रकार उन्होंने पंजाब और बंगाल के क्रांतिकारियों के बीच बीसवीं शताब्दी के पहले दूसरे और तीसरे दशक तक सेतु की तरह काम किया। उन्होंने बंगाल, उत्तर प्रदेश, पंजाब, बिहार आदि प्रांतों में महिलाओं को संगठित किया और उन्हें देश को आजाद कराने के लिए चलने वाले स्वाधीनता संग्राम में भाग लेने को प्रेरित किया।
बात सरला देवी के विवाह वाले वर्ष की है। बंगाल की जनता बंगभंग के कारण बहुत आंदोलित थी। उसी साल वाराणसी में कांग्रेस का राष्ट्रीय अधिवेशन बुलाया गया था। उसमें भाग लेने के लिए सरला देवी भी आई थीं। तब तक देश के लोग उन्हें पंजाब की शेरनी का खिताब अता कर चुके थे। जब लोगों को पता चला कि गायिका सरला देवी अधिवेशन में मौजूद हैं, तो लोगों ने उनसे वंदेमातरम सुनाने की मांग की। कांग्रेस अधिवेशन के अध्यक्ष गोपाल कृष्ण गोखले मंच पर मौजूद थे। लोगों की मांग पर उनसे वंदेमातरम की कुछ पंक्तियां गाने का अनुरोध किया गया। कांग्रेस वालों को डर था कि कहीं अधिवेशन को खत्म करने का बहाना अंग्रेजों को न मिल जाए। सरला देवी ने जब वंदेमातरम गाना शुरू किया, तो लोग मंत्रमुग्ध होकर सुनते रहे। पुलिस वालों ने भी गीत खत्म होने पर जोरदार तालियां बजाईं।
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