बोधिवृक्ष
अशोक मिश्र
गुरु सुबुद्ध का नाम देश के कई धार्मिक और दार्शनिक ग्रंथों में मिलता है। लेकिन इनके बारे में कोई विशेष जानकारी भी नहीं मिलती है। वैसे गुरु सुबुद्ध का शाब्दिक अर्थ होता है कि ऐसा गुरु जो ज्ञानी हो और अपने शिष्य को सही मार्ग पर ले चलने की क्षमता रखता हो। गुरु सुबुद्ध और उनके शिष्य अबुद्ध के बारे में एक बड़ी रोचक कथा कही जाती है।
कहा जाता है कि गुरु सुबुद्ध बहुत बड़े विद्वान और शिष्यों के प्रति अनुराग रखने वाले थे। उनका शिष्य अबुद्ध अपने गुरु पर असीम श्रद्धा रखता था। उसे विश्वास था कि एक दिन उसके गुरु उसकी सेवाओं से प्रसन्न होकर उसे अमृत तक पहुंचने का रास्ता बता सकते हैं। अबुद्ध को अपने गुरु सुबुद्ध की सेवा करते हुए कई साल बीत गए।
जब भी वह अमृत हासिल करने की बात करता, गुरु सुबुद्ध बड़ी चतुराई से बात को दूसरी दिशा में मोड़ देते। बेचारा अबुद्ध मन मसोसकर रह जाता। एक दिन जब गुरु सुबुद्ध ने उसकी बात पर ध्यान नहीं दिया। तो वह नाराज होकर आश्रम से भाग खड़ा हुआ। आश्रम से अबुद्ध के भाग जाने पर गुरु को बहुत दुख हुआ। शिष्य आश्रम से भागने के बाद भटकता रहा। वह रास्ते में मिलने वाले हर साधु संत से अमृत पाने का रास्ता पूछता रहा। लेकिन सबने अमृत के ही अस्तित्व से इनकार कर दिया।
इस तरह अबुद्ध को भटकते हुए कई साल बीत गए। एक दिन उसे अपने गुरु की याद आई, तो वह अपने आश्रम लौट आया। उसने अपने गुरु से कहा कि मैंने इतना भटकने के बाद जान लिया है कि अमृत कहीं नहीं है। गुरु सुबुद्ध ने कहा कि अमृत है न, वाणी में। जो इस दुनिया में मीठी वाणी बोलता है, वह मरने के बाद भी अमर हो जाता है, लेकिन जो कड़वा बोलता है, वह मरते ही भुला दिया जाता है। यह सुनकर अबुद्ध अपने गुरु के चरणों में गिर पड़ा। वह समझ चुका था कि अमृत क्या है?
बहुत सुंदर
ReplyDeleteशुक्रिया
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