उस्ताद मुजरिम भगवान की प्रतिमा के आगे हाथ जोड़े प्रार्थना कर रहे थे, ‘भगवन! बस एक बार कृपा कर दो। आगे से कभी आपसे कुछ नहीं मांगूंगा। अच्छा आप ही बताइए, आपसे अब तक कुछ मांगा है? लेकिन अब मांगता हूं। जब तक आप मेरी मनोकामना पूरी नहीं करते, तब तक मुन्नाभाई की तरह रोज सुबह आपके मंदिर में आकर गांधीगीरी करता रहूंगा। आखिर आप कब तक नहीं पसीजेंगे। आपको मेरी बात माननी ही पड़ेगी। वैसे तो आप जानते ही हैं कि अपने नाखूनों में फंसा ब्लेड और लोगों की जेब में पर्स सलामत रहे, तो फिर अपने को कुछ नहीं चाहिए। भगवन! अब आपसे क्या छिपाऊं। मुझे नाखूनों में फंसे ब्लेड पर इतना भरोसा है कि अगर कोई ठीकठाक दाम देने को तैयार हो जाए, तो आगरे का ताजमहल उड़ाकर बेच दूं और पकड़ा न जाऊं।’
इतना कहकर उस्ताद मुजरिम ने अगरबत्ती सुलगाई और मूर्ति के चारों ओर घुमाते हुए बोले, ‘भगवन! अब तक लोगों की पाकेट मार कर अपना गुजारा करता रहा। लेकिन आप तो जानते हैं कि इस पेशे में कोई दम नहीं रहा। जब से नेता और अफसर मिलकर लोगों की पाकेट मारने लगे, तब से अपना कोई स्कोप नहीं रह गया। अब लोगों की जेब से सौ दो सौ रुपये से ज्यादा निकलता भी नहीं है। ज्यादातर पर्स से निकलते हैं प्रेमपत्र, अश्लील फोटोग्राफ्स या फिर राशन की दुकान का बिल, दवाओं की पर्चियां। इससे इतनी कोफ्त होती है कि अब पाकेटमारी छोड़ने का जी करता है।’
अब तक आंखें मूंदे प्रार्थना कर रहे मुजरिम ने चारों ओर देखा और कानाफूसी वाले अंदाज में बुदबुदाये, ‘गुरु...बस किसी तरह मुझे इस बार सांसद बनवा दो। सांसद मैं भले ही दो-चार दिन ही रहूं, लेकिन अगर एक बार सांसद बन गया, तो फिर जिंदगी भर की मौज हो जायेगी। बिना कुछ किये ही तनख्वाह के रूप में इतनी मोटी-मोटी गड्डियां मिलेंगी कि पूछो न...सुना है कि सांसद अपनी तनख्वाह खुद ही बढ़ा सकता है। एक बार सांसद बन गया, तो सबसे पहले बराक ओबामा की सैलरी पता करूंगा और उनसे चार रुपये अपनी तनख्वाह ज्यादा रखूंगा। और अगर आपने किसी को इस बार सांसद बनाने का आश्वासन दे रखा हो, तो कोई बात नहीं। दिल्ली के किसी क्षेत्र से विधायक ही बनवा दो। सुना है कि दिल्ली के विधायकों की पांचों अंगुलियां घी में और सिर कढ़ाई में जाने वाला है। मैंने आपको सामने दोनों आप्शन रख दिये हैं। आप जो चाहें बनवा दें। आप तो जानते ही हैं। मुझमें नेताओं के सारे गुण हैं। झूठ बोलना, झांसे देना, बिना कुछ किये कमीशन खाना आदि गुणों में तो बचपन से ही पारंगत हूं।’
उस्ताद मुजरिम अनवरत बोले जा रहे थे। उनके हाथ की अगरबत्ती कब की जलकर खत्म हो गयी थी। केवल सींक हाथ में पकड़े गोल-गोल घुमाते जा रहे थे, ‘अगर इसके बदले आपको कुछ चाहिए, तो अभी से बता दें। बात साफ रहे, तो हमारी आपकी दोस्ती निभ भी सकती है। अगर आप सांसद बनवाने के बदले नकद चाहते हैं, तो सवा रुपये एडवांस रखे जा रहा हूं। बाकी सांसद बनकर जब लूटखसोट कर अपना घर भरूंगा, तो हिसाब चुकता कर दूंगा। एक बात और बता दें भगवन! आगे से आप कैश लेंगे या चेक से काम चल जायेगा। हां, अगर आप अपना हिस्सा गोल्ड या डायमंड के रूप में चाहेंगे, तो अपने पास उसका भी इंतजाम है। बस आपके इशारे की देर है। लगे हाथ आप यह भी बता दें कि आपको पैसा इंडिया में चाहिए या किसी और देश में। वैसे चिंता मत करें। अगर कहीं और आपको पैसा चाहिए, तो भी उसका इंतजाम हो जायेगा। कई हवाला कारोबारी अपने गिरोह में हैं।’ इतना कहकर उस्ताद मुजरिम ने पूजा खत्म की और बाहर आ गये।
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