Sunday, December 5, 2010

अपना डेथ सर्टिफिकेट

-अशोक मिश्र
नगर निगम के जन्म-मृत्यु प्रमाण पत्र के कार्यालय में पहुंचकर उस्ताद मुजरिम ने एक बाबू से पूछा, ‘सर, क्या आप बता सकेंगे कि यह मृत्यु प्रमाण पत्र कहां बनता है?’ बाबू ने बिना सिर उठाये जबाब दिया,‘कामता बाबू से जाकर मिलो। ऐसे घटिया काम वही देखते हैं। उनकी पैदाइश ही ऐसे घटिया कामों के लिए हुई है।’मुजरिम ने मासूम सा सवाल किया ,‘सर जी! ये आपके कामता बाबू कहां मिलेंगे? यह आप मुझे बताने की कृपा करेंगे।’मुजरिम ने यह सवाल क्या किया मानो उस बाबू की कुर्सी के नीचे हाईड्रोजन बम रख दिया हो। उस बाबू ने पहली बार अपना सिर झटके से उठाया और झल्लाकर कहा,‘मेरे सिर पर! आपको कामता बाबू के बैठने का स्थान बताने के लिए सरकार ने मुझे यहां नहीं बैठा रखा है। जिस तरह से आपने मुझे ढूंढ़ लिया, उसी तरह कामता बाबू को भी खोज लीजिए। और अब आप जाइए, मेरा भेजा मत खाइए। पता नहीं कहां से चले आते हैं, लोग मेरा सिर चाटने। भगवान की फैक्ट्री में अब भी ऐसे लोग बनाये जाते हैं, यह तो मुझे पता ही नहीं था। भगवान जाने...इस देश का क्या होगा?’क्लर्क के जवाब से आहत मुजरिम ने चारों तरफ नजर दौड़ाई और एक चपरासीनुमा जीव को किनारे बैठा देखकर उनकी आंखों में चमक आ गयी। वे उसकी ओर उसी तरह लपके, जैसे कभी सुदामा को देखकर श्रीकृष्ण लपके होंगे। उन्होंने चपरासी के पास जाकर पचास का पत्ता उसे थमाया, तो उसने उन्हें ले जाकर कामता बाबू के पास खड़ा कर दिया। वैसे भी हिंदुस्तान में गांधीवादी दर्शन की कोई उपयोगिता हो या न हो, लेकिन गांधी छाप रुपये की उपयोगिता सर्वसिद्ध है। यह कश्मीर से लेकर कन्या कुमारी तक समान रूप से पहचाना और अपनाया जाता है। पचास का पत्ता देखते ही चपरासी की आंखों में जो चमक उभरी थी, वह इसी बात का प्रमाण है। मुजरिम को देखकर कामता बाबू ने अपने दायें हाथ की अंगुलियां चटकाई और बोले ,‘हां बताइए , आपका क्या काम है?’ इसके बाद इस तरह जमुहाई लेने लगे मानो रात भर जागने के बाद सीधे दफ्तर चले आये हों। उन्होंने पास बैठे सीनियर क्लर्क विशंभर नाथ से कहा, ‘बड़े बाबू, कुछ सुर्ती-वुर्ती खिलाएंगे या नहीं। बड़ी सुस्ती सी आ रही है।’ इसके बाद उनका ‘सुर्ती पुराण’ चालू हो गया। वे बताने लगे कि उनके गांव में तंबाकू खूब बोया जाता है। उस तंबाकू को एक बार खाने के बाद व्यक्ति जिंदगी भर वही खोजता फिरता है। वे बड़े गर्व से बता रहे थे कि उनके गांव की सुर्ती को को खरीदने कांधार से व्यापारी आते हैं। उनके खेत में उपजी तंबाकू के दीवाने तो रूस के पूर्व राष्ट्रपति रहे ब्रेझनेव तक रहे। उनके पिता जी जब तक जिंदा रहे, पूर्व राष्ट्रपति ब्रेझनेव को तंबाकू उपहार में भेजते रहे।मुजरिम ने अपने आने का मकसद बताया, तो कामता बाबू ने एक फार्म निकाला और बोले,‘यह फार्म भर लाइए। चालीस रुपये के साथ ‘सेवा पानी’ जमा कर दीजिए। दो दिन में आपका काम हो जाएगा।’ इसके बाद वे फिर बड़े बाबू से बात करने लगे। कामता बाबू की बातों पर बड़े बाबू सिर्फ ‘हूं-हां’ करते जा रहे थे, लेकिन उनका ध्यान कहीं और था। वे अपने चश्मे से सामने बैठी मिस कविता को प्यार भरी नजरों से घूर रहे थे। मिस कविता भी तिरछी नजरों से पहले बड़े बाबू को देखतीं और मुस्कुराकर अपने सामने बैठे अभी कुछ ही दिन पहले भर्ती हुए जूनियर क्लर्क को देखने लगतीं। कामता बाबू इस नैन व्यापार से अप्रभावित अपने ‘सुर्ती पुराण’ में लगे हुए थे। उन्हें अपनी बात कहने के सिवा न बड़े बाबू से कुछ लेना-देना था, न ही मिस कविता या जूनियर क्लर्क से।थोड़ी देर बाद फार्म भरकर मुजरिम कामता बाबू के हुजूर में पेश हुए। कामता के ‘सुर्ती पुराण’ में बाधा पड़ी, तो वे तिलमिला उठे। उन्होंने बड़ी मुश्किल से अपने क्रोध को काबू में किया और नाक पर चश्मा चढ़ाते हुए कहा, ‘मुजरिम आपके क्या लगते थे? उनकी कब मौत हुई थी? ग्राम प्रधान या सरकारी अस्पताल के डॉक्टर का प्रमाण-पत्र लाए हैं? अगर न लाए हो, तो अभी मौका है, घर जाकर ले आओ। आज न ला सको, तो कल-परसों ले आना। लेकिन फार्म जमा करने के साथ यह सब कुछ जरूरी है। इसके बिना फार्म रिजेक्ट हो जाएगा, तो मुझे दोष देते फिरोगे।’मुजरिम ने घिघियाते हुए कहा, ‘बड़े बाबू...मुजरिम मेरा ही नाम है और खुदा के फजल से मैं अभी तक जिंदा हूं।’मुजरिम की बात सुनकर कामताबाबू इस कदर चौंक पड़े कि उनका चश्मा टेबल पर गिर पड़ा। उन्होंने चश्मा उठाकर नाक पर टिकाते हुए कहा, ‘क्या....आप अपना मृत्यु प्रमाण-पत्र बनवाने आए हैं? शर्म नहीं आती आपको सरकारी कर्मचारियों से आन ड्यूटी मजाक करते हुए। अगर मैं शिकायत कर दूँ, तो आप गए बिना भाव के। सरकारी मुलाजिमों से मजाक करना क्या इतना आसान है? आपको अंदाज नहीं है कि ऐसा करने पर क्या सजा हो सकती है।’मुजरिम ने बेचारगी अख्तिायार करते हुए कहा, ‘वो क्या है कि बड़े बाबू! सरकारी कामकाज कितना फास्ट होता है, मैं जानता हूं। इसलिए सोचा कि मैं अपनी मृत्यु प्रमाण-पत्र के लिए अभी से अप्लीकेशन दे दूँ । बहुत जल्दी काम हुआ, तो दस-पांच साल में बन ही जाएगा। तब तक मैं भी खुदा के फजल से टपक ही जाऊंगा। पैसठ साल की उम्र हो गयी है। बाद में अगर मृत्यु प्रमाण पत्र बन गया, तो मेरे बच्चे आकर ले जाएंगे।’ मुजरिम का जबाब सुनकर कामता बाबू उन्हें ताकते ही रह गये।
(व्यंग्य संग्रह ‘हाय राम!...लोकतंत्र मर गया’ से)

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