-अशोक मिश्र
भारत-पाकिस्तान का वनडे क्रिकेट मैच देखने के लिए बहाना बनाकर आफिस से छुट्टी लेने के बाद बिस्तर पर लेटा ही था कि दरवाजे पर उस्ताद गुनाहगार की आवाज सुनाई दी। उनकी आवाज सुनते ही मुझे बहुत कोफ्त हुई। मैं समझ गया कि रजाई ओढ़कर चाय पीते हुए क्रिकेट मैच देखने का सपना अब पूरा होने वाला नहीं है। तब तक घरैतिन को ढेर सारा आशीर्वाद देते हुए उस्ताद गुनाहगार कमरे में घुस आए, ‘अमां यार! तुम अभी तक बिस्तर पर लंबे पड़े हुए हो। काहिल कहीं के...।’
झुंझलाहट के बावजूद मैंने उठकर चरण स्पर्श करते हुए कहा, ‘उस्ताद..आज तबीयत कुछ नासाज थी, इसलिए आफिस से छुट्टी लेकर आराम फरमा रहा हूं। आप बताएं, आज मेरे गरीबखाने पर कैसे पधारने का कष्ट किया। ’
‘एक मुसीबत में फंस गया हूं। मुझे एक कैरेक्टर सर्टिफिकेट बनवाना है। समझ में नहीं आ रहा है कि क्या करूं?’ उस्ताद गुनाहगार ने रजाई हटाकर बिस्तर पर ही पसरते हुए हांक लगाई, ‘अरे बहू! आज चाय नहीं, काफी पीने का मन है। ठंड कुछ ज्यादा है, अगर साथ में पनीर की पकौड़ियां भी हो जाएं, तो मजा आ जाए।’ मैं समझ गया कि घरैतिन आशीर्वाद और अच्छी बहू का खिताब पाने के चक्कर में आज बची-खुची काफी और शाम को ही लाए गए पनीर का कबाड़ा करके रहेगी। लेकिन उस्ताद गुनाहगार के सामने कुछ बोल पाने की हिम्मत नहीं जुटा पाया।
‘उस्ताद! आखिर बात क्या है? आपको कैरेक्टर सर्टिफिकेट की क्या जरूरत पड़ गयी। कौन-सी आपको किसी की नौकरी करनी है। पाकेटमारी कोई कैरेक्टर सर्टिफिकेट देखकर होती है?’ मैं भी अपनी खीझ से मुक्त होकर चुहुल के मूड में आ गया था।
‘यार तुम समझोगे नहीं। अंतरराष्ट्रीय पाकेटमारी संघ का चुनाव होना है। इस बार मैं अध्यक्ष पद के लिए खड़ा हो रहा हूं। इसके लिए अन्य कागजात के साथ कैरेक्टर सर्टिफिकेट भी जमा करना होगा।’ गुनाहगार ने मुझे जानकारी दी।
‘तो इसमें क्या दिक्कत है? आपको एक फार्म भरकर जमा करना होगा और जिला पुलिस मुख्यालय से आपको कैरेक्टर सर्टिफिकेट मिल जाएगा। हां, आपको बाबुओं की जेब इस ठंडक में गर्म करनी पड़ेगी।’ मैंने मुफ्त में ही सलाह दे डाली। वैसे आपको बता दूं, मैं सलाह देने की बाकायदा फीस लेता हूं। लेकिन उस्ताद गुनाहगार मेरे बड़े भाई हैं, उनकी मैं इज्जत भी खूब करता हूं। इसलिए कभी-कभी मुफ्त में सलाह देने से भी परहेज नहीं करता।
मेरी सलाह सुनते ही गुनाहगार गुस्से से उछल पड़े, ‘अबे व्यंग्यकार की दुम! तुम्हारी अक्ल हमेशा घुटने में ही रहेगी। बताओ भला, किसी पाकेटमार को किस जिले की पुलिस चरित्र प्रमाण पत्र देगी। पकड़े जाने पर पब्लिक और पुलिस जो प्रमाणपत्र देती है, वह मैं ही जानता हूं। पाकेट में भले ही लवलेटर्स, दवाइयों या बीवी द्वारा की गयी शॉपिंग के बिल्स पड़े हों, लेकिन जैसे ही पाकेटमार पकड़ा जाता है, पर्स वाला पांच हजार रुपये से ज्यादा रकम होने की गुहार लगाने लगता है।’
गुनाहगार की बात सुनते ही मैंने अक्ल के घोड़े दौड़ाने शुरू कर दिए, ‘तो गुरु...पुलिस-वुलिस का चक्कर छोड़िए। स्कूल-कालेज छोड़ते समय तो आपको कैरेक्टर सर्टिफिकेट तो मिला ही होगा। उसी को जमा कर दीजिए न...। फालतू में टेंशन लेने की जरूरत नहीं है।’ तब तक घरैतिन पनीर के पकौड़े और गर्मागर्म काफी ले आयीं। गुनाहगार ने पकौड़े भकोसते हुए कहा, ‘अब तुम्हें क्या कहूं। अगर मैं स्कूल-कालेज ही गया होता, तो कहीं किसी कालेज या विश्वविद्यालय में प्रोफेसर होता, सांसद-विधायक होता, किसी बैंक का मैनेजर होता। कहने का मतलब यह है कि इनमें से कुछ भी होता, लेकिन पाकेटमार तो नहीं होता। मैंने जिस कालेज में पढ़ाई की है, वहां से मिलने वाली डिग्री और कैरेक्टर सर्टिफिकेट ब्लेड ही होती है। इस बात को अंतरराष्ट्रीय पाकेटमार संघ के लोग भी जानते हैं, लेकिन उन बेवकूफों को कौन समझाए। अब उन्होंने कैरेक्टर सर्टिफिकेट मांगा है, तो देना ही पड़ेगा। जब मैं अध्यक्ष बन जाऊंगा, तो इस नामाकूल नियम को बदलवा कर रहूंगा।’
एकाएक मेरी खोपड़ी में एक आइडिया क्लिक कर गया। मैंने उनकी बांह पर हाथ मारते हुए कहा, ‘गुरु मिल गया आइडिया...आपको कैरेक्टर सर्टिफिकेट चाहिए न। ऐसा करें, भाभी जी या भाभी जी की बहन से कैरेक्टर सर्टिफिकेट ले लें। भला एक बीवी या साली से बेहतर कौन बता सकता है कि उसके पति या जीजा का कैरेक्टर क्या है? मुझे लगता है कि इससे बेहतर और प्रामाणिक सर्टिफिकेट और कोई दूसरा नहीं दे सकता है। इस दुनिया में कोई ऐसा नहीं होगा जो इस सर्टिफिकेट को अमान्य कर सके। उस्ताद! अगर बीवी या साली द्वारा दिया गया सर्टिफिकेट मान्य हो जाए, तो मजा आ जाए। लोग अपनी बीवी या साली की लल्लोचप्पो करते हुए आगे-पीछे घूमेंगे। वाकई...कल्पना कीजिए, कितना मजा आएगा।’ यह बात सुनते ही गुनाहगार गुस्से में ‘मुझसे मसखरी करता है’ कहते हुए मेरी ओर झपटे और मैं ‘बचाओ’ कहता हुआ भागकर घरैतिन के पीछे छिप गया।
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