Tuesday, December 20, 2011

परलोक में आरटीआई

-अशोक मिश्र
आदरणीय भगवान जी, सादर प्रणाम। मैं यह नहीं जानता कि परलोक में सूचना का अधिकार कानून लागू है या नहीं। आप यह तो अच्छी तरह जानते होंगे कि मृत्युलोक में इसकी बदौलत कल तक केंचुओं की तरह रेंगने वाली जनता ने देश के बड़े-बड़े सियासी शेरों की मिट्टी पलीद कर रखी है। आरटीआई का नाम सुनते ही बड़े-बड़े सूरमाओं की सिट्टी-पिट्टी गुम हो जाती है। हां, तो भगवान जी सबसे पहले यह बताएं कि परलोक में जनलोकपाल, आरटीआई, राइट टू रिजेक्ट और राइट टू रिकॉल जैसे कानून लागू है या नहीं। वहां सी या डी ग्रेड के कर्मचारियों को माल झटकने की कितनी छूट है? यहां का हाल तो यह है कि देश की विभन्न पार्टियां लोकपाल में भी आरक्षण की बात कर रही हैं। हालांकि मैं यह नहीं जान पाया हूं कि ये पार्टियां और उनके वरिष्ठ नेता भ्रष्टाचार में आरक्षण चाहते हंे या भ्रष्टाचार रोकने को बनने वाली समिति में। भगवन! आपको तो पता होगा कि मृत्युसोत में गांधीवादी अन्ना हजारे की बड़ी धाक है। वे पहले तो भूख हड़ताल करते हैं, फिर पांच सितारा अस्पताल में जाकर चेकअप करवाते हैं। गांधीवादी होते हुए भी गांधी जी की तरह पैदल नहीं, हवाई जहाज से आते-जाते हैं। उनके चेले-चपाटे भी ठीक उनके ही नक्शेकदम पर चलते हैं। परलोक में अन्ना जैसी कोई शख्सियत पहुंची या नहीं। कहीं ऐसा तो नहीं, परलोक का काम-काज अभी तक महात्मा गांधी से ही चल रहा है।
भगवान साथ ही यह जानकारी भी प्रेषित करें कि अगर परलोक का कोई मुलाजिम या अधिकारी किसी आत्मा या वहीं के निवासियों से रिश्वत लेते हुए पकड़ा जाए, तो क्या उस पर वैसे ही मुकदमा चलता है, जैसा हमारे देश में होता है। हमारे देश में तो सालों मुकदमे चलते रहते हैं और देश की संपदा लूटकर अपने घर भर लेने वाला मौज करता रहता है। बहुत हुआ, तो महीने-दो महीने के लिए वातावरण बदलने की तरह तिहाड़ जेल चले गए। कुछ दिनों बाद जमानत का ढोंग रचकर बाहर आए, तो फिर पूरी जिंदगी गुजर जाती है और मुकदमे का फैसला नहीं हो पाता है। भगवान जी, आप तो सर्वज्ञानी हैं, सबके मन की बात समझते हैं। मैं एक छोटा-मोटा पाकेटमार हूं। ए. राजा, कनिमोझी, सुखराम जैसा लंबा हाथ मारने को जिंदगी भर तरसता रहा। कभी किसी का पाकेट मार लिया, तो कुछ दिन तक पेट भरने का जरिया हो जाता है। क्या ऐसा नहीं हो सकता है कि जब मैं परलोक में आई, तो कोई लंबा हाथ मारने का मौका आप ही मुहैया करा दें। जो इच्छा यहां जीते-जी पूरी नहीं हो सकी, उसे मरने के बाद परलोक में पूरी कर लूं, तो आपके निजाम में कोई फर्क तो पड़ने वाला नहीं है। आखिर ‘इस लोक और उस लोक’ में आपकी इजाजत के बिना कोई पत्ता भी नहीं हिलता। यह बात हमें बचपन से ही पुजारी काका बताते चले रहे थे। अभी कुछ दिन पहले ही वे परलोक गए हैं, आप चाहें तो उन्हें बुलाकर पूछ लें। जब मृत्युलोक में भ्रष्टाचार, चोरी, लूट-खसोट, हत्या-बलात्कार जैसे अपराधों में आपकी सहमति है, तो वहां एक बार मुझे लंबा हाथ मारने का मौका देने से कोई पहाड़ नहीं टूट जाएगा। हमारे देश की से आपके परलोक में सोशल साइट्स पर सरकारी नियंत्रण है या नहीं। अगर लागू है, तो उसका प्रारूप क्या है? वहां आरटीआई की फीस किस मुद्रा में जमा होगी, यह भी मुझे नहीं मालूम है। अगर आप चाहें, तो यह फीस मैं रुपये में चुका दूं या फिर आप जिस मुद्रा में चाहें, वह मुद्रा परलोक आने पर लेता आऊंगा। आशा है कि आप मुझे हफ्ते-दस दिन में यह सारी जानकारियां जरूर उपलब्ध करा देंगे। आपका ही-मुजरिम।
(व्यंग्यकार साप्ताहिक हमवतन के स्थानीय संपादक हैं)

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