Saturday, January 21, 2012

पूंजीवादी संसदीय चुनाव एक धोखा है

उत्तर प्रदेश सहित पांच राज्यों के विधानसभा चुनावों की अधिघोषणा हो चुकी है। छोटी-बड़ी सभी पार्टियां अधिक से अधिक सीटें हासिल करने के लिए दलीय जोड़-तोड़ की कवायद में लगी हैं। इस आपाधापी के बीच एक ऐसी पार्टी भी मैदान में उतरी है, जो बेहिचक मतदाताओं से अपील करने जा रही है कि यदि वे उसकी विचारधारा से सहमत हों, तो सक्रिय सहयोग करें। यदि सहमत न हों, तो कृपया मत देकर भ्रमित न करें। यह पार्टी है, भारत की क्रांतिकारी समाजवादी पार्टी (मार्क्सवादी-लेनिनवादी) यानी आरएसपीआई (एमएल), जिसने उत्तर प्रदेश में एक दर्जन निर्वाचन क्षेत्रों से अपने प्रत्याशी खड़े करने का निर्णय लिया है। पार्टी के राष्ट्रीय महामंत्री आनंद प्रकाश मिश्र के इलाहाबाद आगमन पर रीतेश श्रीवास्तव ने उनसे विस्तृत वार्ता की। पेश हैं प्रमुख अंश

विधानसभा के इस चुनाव में आपकी पार्टी की क्या भूमिका होगी?
पिछले चुनाव की भांति इस बार भी पार्टी उत्तर प्रदेश के लगभग एक दर्जन प्रमुख निर्वाचन क्षेत्रों से अपने प्रत्याशी खड़े कर रही है। पार्टी प्रत्याशी न तो मतदाताओं से वोट की भीख मांगेंगे, न कोई चुनावी वादे करेंगे और न ही हम किसी राजनीतिक पार्टी या मोर्चे से गठबंधन करेंगे।
आपकी पार्टी तो संसदीय चुनावों को आमजनों के लिए धोखा बताती है, फिर प्रत्याशी क्यों?
जी हां, हमारी पार्टी की स्पष्ट मान्यता है कि जब तक पूंजीवादी व्यवस्था कायम रहेगी, पूंजी की सत्ता रहेगी, तब तक इन चुनावों से श्रमिक, शोषितजनों का हित पूरा होना संभव नहीं। पूंजी के ही हित पूरे होंगे।
क्रांति से आपका क्या मतलब है?
देखिए, क्रांति का अर्थ खून-खराबा, रक्तपात या जातीय-व्यक्तिगत हिंसा नहीं है। जैसा कि कुछ माओवादी संगठन समझते-करते हैं। क्रांति का अर्थ भी शहीद भगत सिंह ने पूरी तरह स्पष्ट कर दिया था कि मौजूदा पूंजीवादी आर्थिक सामाजिक राजनीतिक ढांचे में आमूल-चूल परिवर्तन जरूरी है। मौजूदा पूंजीवादी आर्थिक ढांचे में सारा सामाजिक उत्पादन मनुष्य की जरूरतों को पूरा करने के उद्देश्य से नहीं, बल्कि उसे बेचकर मुनाफा कमाने के लिए होता है। हमारा उद्देश्य ठीक इससे उलट ऐसे आर्थिक ढांचे का निर्माण करना है, जिसमें समाज का सारा उत्पादन मनुष्य की जरूरतों को पूरा करने के लिए हो।
क्या यह संभव है?
यह संभव-असंभव की बात नहीं है। क्योंकि समाज को आगे ले जाने का यही एकमात्र मार्ग है। विश्व की पूंजीवादी ताकतों ने तमाम षडयंत्रों से आज इसी मार्ग को अवरुद्घ कर रखा है। जिसके कारण मानवीय जीवन की उपजी विकराल समस्याओं के चलते पूरा विश्व ही मिट जाने के कगार पर पहुंच गया है।
फिर क्रांति कब और कैसे होगी?
देखिए, क्रांति किसी व्यक्ति अथवा पार्टी के न तो चाहने मात्र से होती है और न ऊपर से थोपी जा सकती है। जैसा कि माओवादी नक्सलपंथी सोचते हैं। क्रांति तो राजनीतिक क्रियाशीलता की पराकाष्ठा होती है। इसके लिए आम श्रमिक शोषितजन खासतौर पर मजदूर वर्ग के बीच क्रांतिकारी समाजवादी चेतना को ले जाना होगा। श्रमिक शोषितजन आंदोलन के साथ समाजवादी चेतना को जोड़ना होगा। यही काम हमारी पार्टी पूरी दृढ़ता के साथ कर रही है और इसलिए वह चुनाव के दौरान प्रत्याशी भी खड़ा करती है, न कि झूठे वादे कर चुनाव जीतने के लिए।
इस चुनाव में पार्टी के मुद्दे क्या होंगे?
पहला मुद्दा जाति, धर्म, वर्ण, संप्रदाय, भाषा, क्षेत्र, अगड़ा-पिछड़ा, अल्पसंख्यक-बहुसंख्यक आदि विघटनकारी समाजघाती प्रवृत्तियों के बल पर संचालित पूंजीवादी हिंसात्मक वर्ग, राजनीति-राजनीतिक षडयंत्रों का भंडाफोड़ करना है। मजदूर वर्ग में समाजवादी चेतना का प्रसार करना, जिससे उन का विकास संभव हो। राज्यों के विभाजन और कथित भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन को भी पार्टी अपना मुद्दा बनाएगी।
उत्तर प्रदेश को चार छोटे राज्यों मे बांटने का मुद्दा उठा है, उस पर आपका क्या कहना है?
हमारी पार्टी इसका प्रबल विरोध करेगी। क्योंकि बड़े राज्य को बांटकर छोटा राज्य बनाने से खेत खलिहान या कल-कारखाने नहीं बढ़ते। केवल नेताशाही-नौकरशाही बढ़ती है।
भ्रष्टाचार विरोधी आंदोलन के संदर्भ में आपकी पार्टी का क्या नजरिया है?
देखिए, यह आंदोलन मध्यमवर्गीय ताकतों द्वारा आम लोगों का ध्यान उनकी मूल समस्याओं से हटाने के लिए नियोजित किया गया है। कोई मनुष्य भ्रष्टाचारी और बेईमान होकर जन्म नहीं लेता। सब कुछ इसी समाज से ग्रहण करता है। अतएव इस सामाजिक राजनीतिक आर्थिक ढांचे को बदलकर ही इसकी बुराइयों को दूर किया जा सकता है। कानून बना देने से यदि अपराध खत्म हो जाते, तो हत्या, चोरी, डकैती जैसे अपराध कब के खत्म हो चुके होते। आतंकवाद, अराजकतावाद की तरह भ्रष्टाचार भी पूंजीवाद की उपज है।

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